Sailaab - 16 in Hindi Moral Stories by Lata Tejeswar renuka books and stories PDF | सैलाब - 16

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सैलाब - 16

सैलाब

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

अध्याय - 16

"देखो बिंदु आज कल लड़कियों को अपनी सुरक्षा खुद करना जरूरी हो गया है। वरना हर वक्त माँ, पिताजी या किसी और का साथ रहना मुनासिब नहीं है। आप को आगे बढ़ना है, लोगों के कंधे से कंधा मिला कर चलना है। अभी से खुद को तैयार करो। हमेशा समस्या का समाधान खुद से शुरू करना पड़ता है। इसलिए कभी पीछे मत हटना आगे बढ़े चलो, देखो दुनिया तुम्हारे पीछे कैसे आएगी। " पावनी ने बिन्दु को चुपचाप देखकर पूछा, "समझ रही हो न में क्या कह रही हूँ ?"

"हाँ ऑटी। आप ठीक कह रही है। आज से मैं कभी पीछे नहीं हटूंगी। वादा करती हूँ आप से।" कहते हुए बिंदु ने पावनी के दोनों हाथ पकड़ लिये। "थैंक्स आंटी मुझे अब बहुत अच्छा लग रहा है, वादा करती हूँ फिर कभी ऐसे लोगों से नहीं हारूँगी।" आँखें पोंछते हुए उसने कहा।

उसने खुद से वादा किया कि वह पावनी आंटी को दिया हुआ वचन कभी तोड़ेगी नहीं। न सिर्फ खुद को बल्कि किसी भी लड़की को कमजोर पड़ने नहीं देगी। कुछ तो करना होगा। इन हालातों से निपटने का रास्ता ढूंढ़ना होगा। ऐसी लड़कियों को इकट्ठा करना होगा जो समाज की सताई हुई हैं। मर्दों के इस समाज में औरतें भी बराबर का स्थान रखती है उन्हें भी उतनी ही अहमियत देनी चाहिए, इस समाज को ये बात समझाना होगा। उसी दिन उसने दृढ़ संकल्प लिया इन बुराइयों और स्त्रियों पर हो रहे अत्याचारोँ के खिलाफ आवाज़ उठाएगी और लड़ेगी भी।

***

राम काम खत्म करने के बाद दिल्ली से घर लौट आया। राम के लौटने से पहले ही पावनी ने बिट्टू को जहां से लेकर आई थी वहां छोड़ दिया। राम को कुत्तों से एलर्जी है। इसलिए बिट्टू को घर में रखना ठीक नहीं था। राम ने आते ही बच्चों के बारे में सारी जानकारी ले ली।

"कैसा रहा आप का ट्रिप? आप का काम सब अच्छे से हो गया न?" पावनी ने प्रश्न किया ।

"हाँ सब ठीक रहा और आप बताओ कैसी हो?" पावनी को बाहों में लेते हुए पूछा ।

"आप को क्या लगता है मुझे देख कर? कैसी हो सकती हूँ?" उल्टा प्रश्न किया पावनी ने।

"थोड़ी सी गोरी हो गई हो और थोड़ी सी मोटी भी।" राम ने चुपके से पावनी के कान में कहा ।

"क्या मैं मोटी हो गई? इन चार दिन में? हाँ बाबा ऐसे ही कहोगे न, जैसे की आप नहीं होते हो तो मुझे और कुछ काम ही नहीं रहता है।" रूठने का बहाना करते हुए कहा।

"हूँ.., फिर बताओ क्या क्या किया? कैसे कटे ये चार दिन? बहुत मज़े में रही होगी। शैतानी करने के लिए मैं जो नहीं था क्यों?"

पावनी ने खुद को राम की बाहों से आजाद किया और उसके पास में जा कर बैठी फिर सेजल के कॉलेज की बात कही। सेजल के बारे में उसकी परेशानी और चिंता देख कर राम अचानक ही गुस्सा हो गया।

"ऐसी बाते रोज़ हजारोँ होती रहती है दुनिया में सब की परेशानी सिर पर लेकर चलोगी तो जिंदगी में आगे बढना मुश्किल हो जाएगा, फिर सेजल अभी बच्ची नहीं रही उसे समस्याओं का सामना करने दो।"

"लेकिन राम ऐसे बातें जब सुनने मिलती है तब डर तो लगता है न अगर कुछ गलत... "

बस राम का गुस्सा एकदम बढ़ गया, "कुछ नहीं होगा। आप लोग कुछ कर नहीं सकते हो बेकार में घर में बैठ कर न जाने क्या क्या सोच कर सारी दुनिया की परेशानी सिर पर उठा लेते हो। एक बात अच्छे से सुनो सेजल के बारे में तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं, वह खुद खूब समझदार है। दुनिया की मुश्किलों से कैसे निपटना है खुद की खुद सीख जाएगी। अगर कोई प्रोब्लम हुई तो मैं भी हूँ, देख लूँगा। घर आते ही शांति से रहना नहीं होता है कुछ न कुछ परेशानी शुरू हो जाती है।" कह कर गुस्से में वाशरूम की ओर बढ़ गया।

दिल्ली से आते ही राम से ढेर सारी बातें करने का मन था पावनी का। सेजल और उसके कॉलेज हॉस्टल के बारे में बता कर मन हल्का करना चाहती थी, पर यहां तो कुछ उल्टा ही हो गया। राम घर आते ही छोटी बात पर ऐसे नाराज हो जाएगा यह सोचा ही नहीं था। राम की इस तरह बेरुखी देख वह दु:खी हो गई, एकदम से उसके मुँह पर जैसे ताला पड़ गया। उसे क्या पता था सेजल के प्रति उसकी चिंता को देखकर राम इतना गुस्सा हो जाएँगे। उसकी चिंता भी तो ग़लत नहीं हैं, आखिर एक बेटी की माँ है, बेटी की क्या क्या परेशानी होती है वह एक माँ के अलावा कौन भला जान सकता है। उसकी चिंता को एक ही झटके में इस तरह खंडित करके चले जाने से पावनी के दिल को बहुत चोट पहुँची।

चुपचाप पावनी खाना परोसने लगी, मन में दु:ख था कि इतने सालों से साथ रहने के बाद भी राम उसके दिल को समझ नहीं पाया। यह शिकायत तो पावनी के दिल में हमेशा से रही है, कभी कभी राम ऐसी बातें भी कह जाते हैं कि सालों से साथ रह कर भी जैसे कोई दो अजनबी एक छत के नीचे खड़े हो। फिर कभी लगता था जैसे सात जन्मों का बंधन यूँ ही तो नहीं हुआ है।

२५ सालों के बाद अभी भी लगता है जैसे कि कल की ही बात है जब उसने राम का हाथ पकड़ कर सात कदम चल कर ससुराल में गृह प्रवेश किया था। वह सात जन्मों का बंधन, दो प्यारे-प्यारे बच्चों का साथ जैसे एक ही पल में संदेहास्पद लगने लगता है। राम बहुत निस्वार्थ और सुलझा हुआ इंसान है लेकिन उसमें एक कमी देखने को मिलती है वह है सहनशीलता का। दूसरों की बात को सुनना व समझना अपने आप में बहुत बड़ी खूबी होती है। लेकिन सुनने और समझने के लिए राम के पास न वक्त होता है न धैर्य। ऐसे में पावनी को अपनी बात बताने का मौका मिले उससे पहले ही राम नाराज़ हो घर से बाहर चला जाता था। पावनी मन ही मन दुखी हो कर खुद को काम में व्यस्त कर लेती थी।

जब वह परेशान रहती मन को शांत करने के लिए कुछ समय लिखने बैठती, इस तरह वह अपने मनोभाव, दु:ख, पश्चाताप, गुस्सा और दिल के बोझ को अक्षरों के रूप में बाहर निकाल देती। कभी देवेंद्र की भावुक कविताएँ उसके मन को खूब सुकून पहुँचाती तो कभी उससे बात करके दिल खुश हो जाता। उस से बात कर वह खुद को खुब प्रफुल्लित महसूस करती थी। इस तरह दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो गई। वे कई बार घंटों बातों में उलझ जाते और समय का पता नहीं चलता। ऐसे में कब देवेंद्र, देव बन गया पावनी को पता ही नहीं चला।

एक दिन जब पावनी ने मैसेज खोल कर देखा देवेंद्र का एक मैसेज इनबॉक्स में था। एक सुंदर सा काव्य था। एक खासियत थी उसके काव्य में जो पावनी के मन की तकलीफ़, बेचैनी, पीड़ा पर दर्द में दवा जैसा काम करती। लेकिन उस दिन कविता के भाव पढ़कर उसके मन में अनजाने से भाव पैदा होने लगे। पावनी को शक हुआ कहीं देव उससे प्यार तो नहीं करने लगा?

पावनी के मन में उसके प्रति एक स्नेह तो जाग उठा था लेकिन उसे प्यार कहना गलत था। दोस्ती और प्यार के बीच एक धागे का ही अन्तराल होता है। इस धागे को पार करना पावनी के बस में नहीं था। दोस्ती और प्यार के बीच का फर्क वह अच्छी तरह समझती थी।

पावनी ने हमेशा से ही अपने परिवार प्रति समर्पण भाव रखा है। ऐसा नहीं कि देवेंद्र नहीं जानता था कि पावनी शादीशुदा है वह अच्छे से जानता था फिर... उसके मन में क्या है .. इस प्रश्न ने पावनी को दुविधा में ड़ाल दिया। उसके बाद पावनी थोड़ी सी सकुचा गयी। उसे देव अच्छा लगता था उसके साथ खाली समय में नेट में कई बातें करती थी, लेकिन प्यार? क्या यह सही है? कहीं अनजाने में उससे कोई गलती तो नहीं हुई जो देव के दिल में उसके लिए प्यार के बीज बोने लगी?

अंतरंग से आवाज़ आयी देव उसे अच्छा लगता है उसे अपना सा लगता है जैसे कि वह उससे अलग नहीं है। उसके साथ नेट पर जितना भी वक़्त गुजारती उतने समय वह बहुत खुश रहती। जब भी उससे बात करने लगती पावनी को लगता वह किसी और से नहीं खुद से ही बात कर रही हो। जब देव से बात नहीं हो पाती तब बहुत उदास हो जाती। उस से बात करने को तरस जाती, क्यों कि वह उसका अकेलेपन का साथी था। जब भी मन में कोई उथल-पुथल मचती है तब किसी से बात करने से मन को तसल्ली मिलती है। पावनी का अकेलापन भी उसे अंदर ही अंदर खोखला कर रहा था। अगर वह देव से दोस्ती न की होती तो शायद वह मानसिक बीमारी का शिकार भी बन सकती थी।

वह खुद के मन को पूछ बैठी, 'वह क्या था जो देव की तरफ वह खिंचती जा रही थी? क्या वह खुद भी देव से...?'

लेकिन "ना... वह देव से प्यार नहीं करती... ना ही देव को खुद से प्यार करने दे सकती।" अब समय आ गया उसे रोकना होगा उससे पहले खुद को संभलना होगा। ये कैसी गलती होने जा रही थी, क्या इन 25 सालों में राम का प्यार कहीं खो गया? या पावनी दो-चार प्यार भरी बातें सुनने के लिए तरस गयी थी कि उसे किसी और से प्यार की जरुरत महसूस होने लगी?"

जब पावनी को बात समझ में आयी उसने ज्यादा देर होने से पहले देव को ब्लॉक कर नेट से कुछ दिन विराम ले लिया। देव की एक तरफा गलती नहीं थी। देव तो शरीफ है उससे बड़ी बात वह शादीशुदा नहीं है। पावनी ने कभी भी उसकी तस्वीर तक नहीं देखी थी फिर अनजाने में भावों का आदान प्रदान का माध्यम कंप्यूटर बन गया। कंप्यूटर के एक ओर पावनी तो दूसरे ओर देव! किसने सोचा था क्या होगा?

उसके बाद पावनी अपने मन को कंप्यूटर से हटा कर निजी जीवन में उलझ गयी।

***