Sailaab - 15 in Hindi Moral Stories by Lata Tejeswar renuka books and stories PDF | सैलाब - 15

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सैलाब - 15

सैलाब

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

अध्याय - 15

ठीक उसी वक्त विनिता और पावनी वहाँ पहुँची। "क्या हो रहा है?" पावनी ने कड़ी आवाज़ से पूछा।

"कुछ नहीं आंटी बस यूँ ही.. "

"क्या यूँ ही?"

"तुम बोलो क्या हो रहा है, यहाँ? पावनी ने बिंदु से पूछा।

"वह वह.. " बिंदु के कुछ कहने से पहले ही उनमें से एक लड़का बोलने लगा, "कुछ नहीं आंटी कुछ दिन से दिख नहीं रही थी तो बस पूछ रहे थे क्यों नहीं आ रही थी? बस उतना ही और कुछ नहीं."

"अच्छा, तुम लोगों को कुछ और काम नहीं है? रास्ते पर आने जाने वालों के उपर नजर रखने का ठेका ले रखा है क्या? कौन आता जाता है तुम्हें क्या? जाओ अपने काम से मतलब रखो। आगे किसी को परेशान करते हुए देखा तो सीधा पुलिस थाने का रास्ता दिखा दूँगी। हूँ जाओ यहाँ से.." वे लोग चुप चाप वहाँ से चले गए।

बिंदु को स्कूल छोड़ कर दोनो वापस लौट आये। रास्ते में विनिता ने पुलिस स्टेशन जाने से रोक लिया। पावनी आज तो उन्हें डाँट पड़ी है, दो दिन बाद देखते है अगर वे चले गए तो ठीक वरना थाने जाएँगे। क्यों?"

"ठीक है। कुछ दिन देखो अगर उन्होंने बंदर की तरह पूँछ हिला कर छलाँग मारने की कोशिश करी तो उनकी पूँछ तो काटनी ही पड़ेगी। तब तो थाने जाएँगे ही। लेकिन अगर देख कर अनदेखा करें तो परिस्थिति विषम भी हो सकती है। अपना और बिंदु का ध्यान रखना। जरूरत पड़ी फोन करना डरना नहीं मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।"

"तो वापस लेने शाम को आती हूँ।" जाते हुए पावनी ने पीछे मुड़ कर कहा।

"नहीं, आज मैं ले आऊँगी."

"फिर मैं चलती हूँ। अगर कुछ भी शक हो या कोई भी मदद की जरूरत पड़े तो हिचकिचाना मत, मुझे फोन करके बताना।" विनिता से बिदा लेकर वापस आ गई पावनी ।

***

पावनी के मन में शंकाएँ घर कर बैठी। एक तरफ बिंदु जो १२वी क्लास में पढ़ती है और माँ बाबूजी के साथ रहते हुए भी वह बहुत सारी मुश्किलों का सामना कर रही है। डर डर के जिंदगी गुजारना, लोगों के ताने सुनना, जैसी रोज़ नई-नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन सारे बातों को घर में बताने से कहीं उसे स्कूल छोड़ना न पड़े इस बात का डर भी लगा रहता है। लेकिन इस छोटी सी उम्र में यह बेबसी और मजबूरी उसके दिल दहला देती होगी को कितने टुकड़े कर देती होगी, यह कौन भला समझ पाएगा। कुछ ही दिन पहले की बात है, दामिनी के साथ हुये दुर्व्यवहार ने पूरे समाज को हिला कर रख दिया था। इस तरह से रोज़ नयी-नयी घटनाएँ सुनने को मिलती है। मासूम लड़कियों पर जुर्म को हम बदनामी के भय से हम देख कर भी चुप हो जाते हैं। इन परिस्थितियों का सामना रोज़ करना लड़कियों के लिए आम सी बात हो गयी है। मासूम लड़कियां बेबस हो कर स्कूल छोड़ने पर मजबूर हो जातीं हैं और हमें दुनिया से लड़ने की हिम्मत नहीं होती। विनीता का डर भी सही है। जब खुद पर गुजरती है, तब समझ में आता है मामला कितना गम्भीर है।

दूसरे तरफ सेजल, जो हर मुश्किलों से अकेले लड़ने के लिए तैयार है। पिता माता का संग न होते हुए भी अकेले समाज में खड़े होने की ठान ली है। पावनी के मन में सेजल को लेकर कई उलझनें थी। 'न जाने कैसे रह रही होगी मेरी बच्ची नयी जगह पर।' सोचते चिंतित हो जाती थी।

कुछ ही दिन पहले की बात है, एक गर्ल्स हॉस्टल के रूम्स में से हिडन कैमरे पाए गए। ये सब सुन कर दिल तो बैठ सा जाता है। कहीं हमारी बेटी भी ऐसी किसी हालात का शिकार बन न जाए। यही बात मन में आते ही पावनी की नींद गायब हो गयी। रात के एक बजने वाले है। फ्रिज में से पानी की बोतल उठा कर एक घूंट में पी गयी। अब नींद भी कहाँ आने वाली है। जाकर बिट्टू को देख आई वह आराम से सोया हुआ था। रात के एक बजे काम भी क्या हो सकता है जो मन लग जाए, आँखों से नींद भी तो उड़ी हुई थी।

पावनी इंटरनेट ऑन कर मन को दूसरी और मोड़ने की कोशिश करने लगी। फ्रेंड्स बुक पर कविताएँ पढ़ने में लग गयी, रात के एक बजे भी बहुत लोग फ्रेंड्स बुक पर मौजूद हैं चाहे बाहर की दुनिया सो गयी हो लेकिन घर में बैठे बैठे अब भी लोग जाग रहे है। पावनी ने अब कुछ ग्रुपस में भी ज्वाइन कर लिये थे, जहां उसे बहुत कुछ पढ़ने को मिलता ही था और बहुत कुछ सीखने को भी मिल जाता था। कविताओं को लिखने की कई विधाएँ हैं और हर एक विधा के भी छंद, भेद, रूप इत्यादि न जाने क्या क्या हैं। जब उसने लिखने का मन ही बना लिया तो सीखना भी आवश्यक है और वो जितनी गहराई से जानने की कोशिश करती उन में उतने ही बढ़ती गहराई देखती। कभी लगता की इस दुनिया में सीखने जाओ तो पूरी उम्र कम पड़ जाएगी। उसने देवेंद्र की प्रोफाइल खंगाली पर उसे पढ़ने को कुछ नहीं मिला। पावनी ने कंप्यूटर बंद किया और बेड रूम की तरफ़ बढ़ गई।

विनीता, शहर में रहते हुए भी एक सीधी सादी जिंदगी बसर करती है। गाँव में पढ़ाई पूरी कर वह मुंबई तो आ गयी लेकिन वहां के ढांचे में ढलना उसके लिए इतना आसान नहीं था। शहर की भाग दौड़ की जिंदगी में कदम से कदम मिला कर चलना, गाँव के सादी जिंदगी को अपना चुके लोगों के लिए आसान नहीं था। मुंबई का माहौल, लोग और भीड़ में उसे घुटन सी होने लगी थी। यहाँ सबकी अपनी अपनी जिंदगी है, सच कहो तो कोई किसी का नहीं है। सुबह से लेकर शाम तक आदमी जिंदगी की भाग दौड़ में लगा रहता है। हर कोई हर समय व्यस्त रहता है यहाँ किसी से मिलने जुलने या तीज त्यौहार के अवसर पर हाल पूछने के लिए भी किसी के पास वक्त नहीं रहता।

विनिता सोचती थी, गाँव की जिंदगी कितनी आसान होती है। सुबह पति जब काम के लिए निकल जाता है, पत्नी घर के काम खत्म कर बच्चों को संभालती है। पति के घर लौट ने से पहले सारे काम खत्म कर इंतजार करना, खाली समय में पास पड़ोस से दु:ख सुख और गाँव की चर्चा करना, सारा गाँव एक ही परिवार लगता था। किसी की परेशानी हो या किसी की खुशी, गाँव के सारे लोग मिल कर सुलझाते थे।

शहर की भीड़ भाड़ में जिंदगी गुजारना विनिता के लिए एक चुनौती से कम नहीं था। धीरे धीरे गौरव की सहायता से कुछ हद तक खुद को संभाल लिया लेकिन २० साल बाद भी उसे यह मुंबई शहर अजनबी सा लगता है। शादी के दो साल बाद उसे जुड़वां बच्चे हुए। विनीता ने उनके नाम बिंदु और ओमकार रखे। पावनी उस समय उसी शहर में ही रहती थी। सास ससुर के बीच रहने वाली पावनी को क्षण भर भी समय नहीं मिलता था कि वह कुछ समय जा कर विनीता के साथ बिताए। लेकिन विनीता पावनी की दुविधा को समझते हुए खुद पावनी से मिलने आ जाया करती थी। इस तरह शहर में भी उन दोनों दोस्ती कायम रखी।

विनीता की बेटी बिंदु सरल स्वभाव की है। उसे घर से स्कूल और स्कूल से घर के अलावा दूसरी किसी भी जगह कहीं आना जाना पसंद नहीं था। १०वीं के बाद घर से कुछ दूर के जूनियर कालेज में दाखिला लेना पड़ा। कुछ दिन माँ की साथ आने जाने लगी, फिर खुद अकेले ही कॉलेज जाने लगी। कुछ दिन तक तो सब ठीक था लेकिन कुछ दिन से कुछ लड़के उसे स्कूल के रास्ते पर परेशान करते थे। रोज़ आते जाते वक्त कुछ न कुछ कमेंट करना, गलत ढ़ंग से पीछा करना उसे संकट में ड़ाल देता था। बिन्दु इस बात को घर में बता कर माँ को परेशान करना नहीं चाहती थी, लेकिन दिन ब दिन उनकी छिछोरेपन से तंग आ कर मजबूरन उसने सारी बातें विनिता को बताई।

बिंदु मन ही मन खुद को धैर्य देने लगी, अभी उसने खुद को कमजोर महसूस करना छोड़ दिया। वो अच्छी तरह जान गयी दुनिया से जितना डरेंगे वह उतना ही डराने लगेगी। इसलिए उसने खुद को मजबूत करने की ठान ली। वह लड़ेगी और जरूर लड़ेगी, अगर कहीं कुछ गलत होता है उसे सहन करने से बढ़कर पाप और कुछ भी नहीं है। पावनी की सच्चाई, हिम्मत और धैर्य उसे प्रेरणा देता है। वह उन बातों को कभी भूल नहीं पाएगी जो पावनी ऑटी ने कही थी।

"देखो बिंदु इन तुच्छ लोगों से कभी डरना मत। लड़ो, तुम्हारे साथ जो हो रहा है किसी और लड़की के साथ मत होने देना। सोचो! आज अगर तुम चुप रहती हो तो मत भूलना की कल वे लोग तुमसे और भी ज्यादती करने पर उतर आएंगे और दूसरों के साथ वही करने से पछताएंगे भी नहीं। इस तरह उन लोगों को बढ़ावा देना ही हुआ न। इसलिए ऐसी बातों से डरना छोड़ो बल्कि तुम खुद को मजबूत बनाओ और उन्हें सबक सिखाओ ताकि फिर कभी औरों से वे ऐसी हरकत न कर सकें।

***