Sailaab - 12 in Hindi Moral Stories by Lata Tejeswar renuka books and stories PDF | सैलाब - 12

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सैलाब - 12

सैलाब

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

अध्याय - 12

कितने मन से सारी तैयारी कर रखी थी उसने। वह एक दम ही हताश हो गई। क्या क्या सोच रखा था, खैर अगर ऑफिस में छुट्टी नहीं मिली तो राम भला क्या कर सकते हैं। मन को समझा कर राम के नहाने के लिए गरम पानी बाल्टी में भर कर, चाय बनाने किचन की ओर बढ़ गई।

राम ने बाथ रूम से बाहर निकल कर देखा पावनी चुप चाप चाय बना रही थी। उसने चुपके से जाकर गीले बालों को पावनी के उपर झटकाया फिर पीछे से उसकी कमर कस कर पकड ली, वह पावनी की मायूसी समझ गया था।

"क्या कर रही हो?" पावनी के कंधे पर सिर रखकर पूछा।

"चाय बना रही हूँ बस आप तैयार हो जाओ मैं अभी ले कर आती हूँ। "पावनी ने सहज स्वर में उत्तर दिया ।

"नहीं मुझे चाय नहीं चाहिए . "

"फिर क्या चाय पीकर आए हो।?"

"नहीं।"

"फिर ? चाय नहीं पिओगे?"

"अभी नहीं, बाद में।"

मैने चाय बना भी ली उसका क्या?

उसे रख दो, बाद में देखते हैं।

अभी शरारत करने के मूड़ में हो?" पावनी राम की ओर शक की नज़र से देखा |

"हूँ … नहीं ." सिर को आगे पीछे हिलाते हुए हाँ, ना कहा। पावनी को कुछ समझ में नहीं आया |

"चलो चाय लाती हूँ, जाओ! आप सोफे पर चुप चाप बैठो।" ताकीद करते हुये उसने राम के हाथ को कमर से हटाते हुए कहा।

" नहीं बाबा मुझे चाय नहीं चाहिए।" पावनी को और जोर से कस कर पकड़ कर जिद करते हुए कहा।

"अरे बाबा चाय गरम है। गिर जाएगी तो हाथ जल जायेगा? छोड़ो दूर हटो हम से।" कह कर हाथ छुड़ाकर हॉल में आ गयी पावनी। पावनी की नाराज़गी समझ गया था राम। इस बार चुप चाप बच्चे की तरह आकर सोफे पर बैठ गया। पावनी ने राम की ओर एक कप चाय आगे बढ़ाई और वह खुद एक कप लेकर चाय पीने लगी।

"ठीक है, फिर ऐसा करते है वहाँ से आते ही हम घूमने चलते हैं, एक लम्बी छुट्टी लेकर, अब तो ठीक है न? "मुस्कुराते हुए कहा राम ने।

"पहले लौट आओ देखते हैं।" पावनी की नाराज़गी चेहरे पर साफ़ साफ दिखने लगी। इतने में राम ने अपनी जेब से दो टिकटें बाहर निकाली और पावनी की तरफ बढ़ाई। पावनी टिकट देख कर खुश हो गयी।

"तो अगले महीने की फ्लाइट है? फिर अब तक मज़ाक कर रहे थे?" राम के गले लग गयी पावनी, राम ने पावनी की ओर देख कर मुस्कुरा दिया।

"अब तक तो मुझे दूर भेज रही थी अब इतने में इतना प्यार ..?"

पावनी की ख़ुशी का अंत नहीं था। पावनी को बहुत पहले से केरल जाने की इच्छा थी, राम ने पावनी के लिए केरला ले जाने का प्लान पहले से कर रखा है देख ख़ुशी रोक नहीं सकी। उसने मुस्कुराते हुए राम के गाल पर पप्पी देकर 'थैंक यू ' कहा।

"पर अब अकेले ही जाना होगा, बस दो दिन की ही बात है, वहाँ से लौटते ही हम छुट्टियाँ मनाने केरला जा रहे हैं। पूरे एक हफ्ते की छुट्टी ली है, तुम्हारा मन था ना कब से तो let's enjoy." कुछ देर चुप रहकर फिर बोला।

"एक काम करते हैं हनीमून हो आते हैं। एक हनीमून सूट बुक करवा दूँगा फिर तुम और मैं कैसा रहेगा प्लान? बोलो क्या कहती हो।" राम ने आँख मटकाते हुए कहा ।

पावनी शरमाते हुए मुस्कुरा कर कहा "चलो हटो, हमारे बच्चे बड़े हो गए हैं."

".... तो क्या हुआ मैं अभी जवान हूँ।" कॉलर उड़ाते आँखे मटकाते हुए उसने कहा।

बिल्कुल उसी वक्त राम का मोबाइल बज उठा, राम ने नंबर को देखकर खुशी से कहा सोहम का फ़ोन है, "सोहम, बेटा कैसे हो? कहाँ से बोल रहे हो ?"

"डैड, मैं ऑफिस में हूँ, आप कैसे हैं? माँ कैसी है ? आप कहाँ हो घर पहुँच गए?"

"हाँ, मैं घर से ही बात कर रहा हूँ, तुम्हारी माँ मेरे पास ही बैठी है और बिल्कुल ठीक भी है। आज इतनी देर कैसे हो गई ऑफिस में?"

" कुछ काम था तो देर हो गई। बस आप दोनों की याद आ रही थी तो सोचा बात कर लूँ। डैड, आपके ऑफिस का काम कैसा चल रहा है? कोई परेशानी तो नहीं है न?"

नहीं, सब ठीक है और तुम्हारे ऑफिस का हालचाल क्या है?"

बिलकुल परफेक्ट पापा, और माँ घर में बहुत बोर तो नहीं हो रही है न? सेजल भी हॉस्टल चली गयी। माँ सेजल को बहुत मिस करती होगी।"

"हाँ, लो माँ से ही पूछ लो बहुत देर से तुझसे बात करने के लिए उतावली हो रही है।"

"हाँ, डैड माँ को दीजिए। "

पावनी ने राम के हाथ से फ़ोन ले लिया, "बेटा कैसे हो? तुम क्या बात है कल पूरे दिन में माँ से बात करने के लिए वक्त भी नहीं मिला?"

"हाँ, माँ मैं कुछ काम में फंस गया था इसलिए बात नहीं कर सका, वैसे ड्यूटी से आते वक्त भी बहुत देर हो गई थी। थक गया था नींद आ गई। इसलिए बात नहीं कर सका। माँ कैसी है आप? आप का वक्त कैसे कट रहा है? बोर तो नहीं हो रही हो, अब सेजल भी नहीं है, आप को बिजी रखने के लिए।"

"हाँ वो तो है पर ठीक है, तू बता खाना पीना ठीक से खा रहा है की नहीं। काम की वजह से खाने पीने की अवहेलना तो नहीं कर रहा है न? "

"नहीं माँ वक्त पर खाना खा रहा हूँ आप फ़िक्र मत करें। सेजल से मैंने बात की थी वो भी ठीक है। अच्छे कालेज में सीट मिल जाने से वह बहुत खुश है। बस पढ़ाई में ध्यान रखना पड़ेगा। माँ चिंता मत करो मैं सेजल का ख्याल रखूँगा।"

हॉल से किचन की तरफ जाते हुए पावनी ने सोहम से चुपके से कहा, "तेरे डैड ने केरला जाने के लिए दो टिकट बुक किए हैँ अगले महीने के लिए, तो बस कुछ दिन घूमके आएंगे तो मज़ा आ जाएगा।"

"चलो अच्छा है घूम कर आएँगे तो आप और डैड भी फ्रेश हो जाएंगे और आप की कविताएँ कैसे चल रही है? आज कल फ्रेंड्स बुक में आप की कविताएँ कुछ दिख नहीं रही हैं? बहुत मिस करता हूँ आप की लेखनी को। "

पावनी ने हंस कर कहा, "अच्छा! मेरी लेखनी इतनी अच्छी भी कहाँ है बस यूँ ही लिख देती हूँ जो मन में आया। "

"नहीं माँ! सच में बहुत अच्छी होती हैं, मेरे दोस्त भी आप की कविताएँ बहुत मन से पढ़ते हैं। "

"अच्छा ऐसी बात है, तो ठीक है। अपना ख्याल रखना और कोई बात हो तो बताना बेटा और फ़ोन करते रहना।"

" ठीक है माँ ,करूँगा।" फोन कट गया |

***

अगले दिन राम दिल्ली के लिए निकल गया। पावनी अकेली पीछे रह गई। सारे काम खत्म करने के बाद पावनी ने अपना लैपटॉप निकाला। बहुत दिनों बाद फिर से फ्रेंड्स बुक लॉग इन किया, वह भी बेटे के याद दिलाने पर। ये भी सही है, इंटर नेट की दुनिया बड़ी अच्छी हैं। घर से बाहर जाने की जरूरत भी नहीं कुछ जाने पहचाने तो कुछ अनजान लोगों से अच्छी दोस्ती हो जाती है। कई दिनों के बाद खोलने पर बहुत सारे मैसेज इन बॉक्स में पड़े थे। एक बार सारे मैसेज पढ़े। पावनी को उनमें कोई भी खास नहीं लगा। एक बार देख कर होम पर सर्च करने लगी। पटल पर कई सारे पोस्ट थे, कुछ अच्छी-अच्छी कविताएँ तो कुछ सुंदर-सुंदर तस्वीरें भी। कुछ नये प्रोफाइल भी जाँच कर कुछ नये लोगों को फ्रेंड्स लिस्ट में जोड़ा और साथ ही मन में जो भी कुछ आया लिख डाला। समय देखा, एक बजने को था, कुछ खाने के लिए बनाना पड़ेगा।

अकेली हुई तो क्या हुआ भूख तो लगनी ही थी। कंप्यूटर को छोड़ कर वह किचन में आई। कुछ चावल, दाल रोटी बनाकर सब्जी काटने लगी, अनमने मनसे काटते हुए अचानक ही छुरी से हाथ कट गया और खूब खून निकलने लगा। 'उफ् उफ्' करते हुए कटी हुई उँगली के घाव को दूसरे हाथ से दबाकर किचन से बाहर हॉल में सोफे पर बैठ गई। बहुत देर उँगली को दबाकर रखा, खून बहना बंद नहीं हो रहा था। फर्स्ट एड बक्सा ढूँढ़ कर उसमें से एक हाथ से रूई निकाल कर घाव के उपर दबाए रखा। एक हाथ से ही दवा लगाकर मुश्किल से बैंड़ेज बाँधी। बक्से को उसके जगह पर रखकर बैठ गई।

***