Sailaab - 11 in Hindi Moral Stories by Lata Tejeswar renuka books and stories PDF | सैलाब - 11

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सैलाब - 11

सैलाब

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

अध्याय - 11

फिर पुराने कुछ अखबार निकाल कर उनमें कुछ ढूंढने लगी। एक एक कर अखबार निकालती पढ़ती और कोने में रख देती पर एक भी ऐसा अखबार नहीं मिला कि पावनी के कुछ काम आ सके। हर अखबार में जॉब के कॉलम सब छाँटने लगी, बहुत सारी नौकरियाँ हैं, पर जब उम्र की सीमा पर नजर पड़ती तब मन उदास हो जाता है। सिर्फ फ्रेशर की माँग हैं। एक लंबी सी साँस छोड़ते हुए पावनी ने उन सारे अखबारों को सजाकर अपने स्थान पर रख दिया। समय पांच बज चुके हैं, कुछ देर बाद राम बाबू घर लौट आएंगे। उस से पहले घर ठीक करना जरूरी है। घर को साफ़ कर मुँह धोकर तैयार हो गयी पावनी, ताकि राम बाबू उसे देख कर जरा सा मुस्कुरा तो दे।

***

रात नौ बज चुके थे। राम बाबू और पावनी खाने के टेबल पर बैठे हुए थे। पिछले दिनों तो टेबल हमेशा भरी भरी सी रहती थी। साथ साथ हंसी मज़ाक बच्चों का शोर शराबा एक दूसरे को छेड़ना फिर रूठ जाना चलता रहता था और कैसे दिन गुज़र जाते थे पता ही नहीं चलता था। अब खाली टेबल, एक कोने में राम तो दूसरे कोने में पावनी बस बीच में दो बातें। टीवी पर क्रिकेट मैच चल रहा था। राम बाबू बड़े ही मज़े से मैच देख रहे थे। इंडिया व ऑस्ट्रेलिया का मैच था। अचानक ही राम 'यस' कहकर चिल्लाने लगे, इंडिया मैच जीत गया बस बहुत खुश।

"देखा मैं न कहता था इंड़िया जीत जाएगा, जीत गये न हमारे 'बहादुर शेर'। शाबाश" कह कर खाना खाने लगे।

पावनी को मैच देखना पसंद तो था लेकिन उससे भी जरूरी बात थी जो उसे किसी भी हाल में रामबाबू से कहनी ही थी। पावनी सोचने लगी क्या कहे राम से और कैसे कहे, कैसे रियेक्ट करेंगे राम अब कहूं या बाद में....... ?

इतने में राम ही कहने लगे, "पावनी क्या सोहम का फ़ोन आया था?"

"नहीं कल ही बात हुई थी कह रहा था किसी प्रोजेक्ट के लिए 2 दिन बाहर रहेगा। वापस आते ही फ़ोन करेगा।

"अच्छा ठीक है, कैसा है वह?"

"हाँ, वह ठीक है।" कुछ क्षण रुक कर पूछा, "आज आप को देर कैसे हो गयी ?" पावनी ने पुछा।

"ट्राफिक कुछ ज्यादा था, इसलिए देर हो गई। "

"हूँ। "

पावनी सोचने लगी अपनी बात कहना तो पड़ेगी ही, अब नहीं तो बाद में कहना तो पड़ेगा ही अभी कहना ही बेहतर समझा।

"राम !"

'हूँ ' खाना खाते हुए सिर उठाकर एक बार पावनी की तरफ़ देखा और फिर टीवी के तरफ देखते हुए पुछा, 'बोलो क्या बात है?'

पावनी हिचकिचाते हुए बोली, 'घर में अकेले बहुत बोर होती हूँ, सारा दिन अकेले घर में मन नहीं लगता है।"

"तो घर जाना चाहती हो? ठीक है, कुछ दिन घूम फिर के आ जाओ अच्छा लगेगा। मैं टिकट का बंदोबस्त कर देता हूँ।"

"नहीं ऐसी बात नहीं है। "

"तो क्या बात है? नहीं तो कुछ दिन ऑफिस से छुट्टी ले लेता हूँ फिर कहीं घूम फिर के आते हैं, और हाँ आदित्य ने भी बुलाया था न ? उसका नया घर देखने, तो चलो वहीँ चले जाते हैं। "

"हाँ चलना तो है, पर मैं सोच रही थी कि अगर मैं …… "कहते कहते रुक गयी।

"हूँ, बोलो क्या बात है ?"

"मैं सोच रही थी कि अगर मैं जॉब करूँ तो ....?"

खाना खाते हुए राम रूक गये "जॉब ?"

"हाँ, अगर तुम कहो तो.....

" अब जॉब करोगी? इस उम्र में? क्यूँ कुछ परेशानी है?"

नहीं कुछ परेशानी कुछ नहीं बस घर बैठे क्या करुँगी, इसलिए सोचा कोई भी काम मिले तो कर लूँगी।"

"अब जॉब करने की क्या जरूरत पड़ गयी।"

"मुझे कुछ काम रहेगा तो अच्छा लगेगा। "

"तुम क्या काम करोगी? अब इस उम्र में काम कौन देगा और भाग दौड़ करना इतना आसान भी नहीं है। अच्छा होगा घर में टाइम पास कर लो। सिलाई, बुनाई कुछ भी तुम्हें जो भी पसंद है।"

"नहीं घर काटने को दौड़ता है, कुछ देर बाहर निकलूंगी लोगों से मिलने जुलने लगूंगी तो अच्छा लगेगा।"

"ठीक है न दोस्तों को घर बुला लो, फिर ऐसे ही टाइम पास होता है। अब आप जॉब नहीं कर पाओगी, जॉब के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं। मैं काम कर रहा हूँ ना आराम से घर बैठे मज़े करो, या घर बैठे ही कुछ करो बाहर काम करने की क्या जरूरत है?" कहकर हाथ धोने वॉश बेसिन कि ओर बढ गया।

पावनी सोचने लगी राम को कैसे समझाया जाए समझ में नहीं आ रहा था। दोनों के बीच, ऐसी बातें कभी हुई ही नहीं थी। इसलिए पावनी इस बारे में बात करने में संकोच महसूस कर रही थी। आज अचानक जॉब की बात सुनकर राम क्या सोचेगा इसका उसे कुछ हद तक अंदाज़ा हो गया था। पर उसके आगे कैसे समझाएं पावनी को समझ में नहीं आ रहा था। एक अजीब सी कशमकश है, दिल की बात करना कभी आया ही नहीं पावनी को, बस मन की भावनाओं को कलम से कागज पर उतारने के अलावा उससे आगे लफ्जों में समझाना मुश्किल था। इसलिए चुप हो गई पावनी, मन में अभी भी कई बातें थी जो की जुबान से निकलने का नाम ही नहीं ले रही थी। चुपचाप किचन की तरफ बढ गई पावनी।

घर से ऑफिस काफी दूर होने के कारण राम को सुबह जल्दी ऑफिस जाना पड़ता था। मुम्बई शहर में ट्रैफिक को पार करते हुए मीलों रोज़ सफर करने में बहुत समय लगता है। ऑफिस में दिन भर फाइलों के बीच थक कर चूर शाम 7-8 बजे पहुँचता था। राम को काम के सिलसिले में हफ्ते भर बाहर भी रहना पड़ता था। उस दिन भी अचानक बॉस का बुलावा आया और दिल्ली जाने को कहा। जैसे की राम ऑफिस से लौटा, पावनी चाय तैयार कर ले आई, "कैसा रहा आज का दिन?"

"बस ठीक है।" चाय पीते हुए कहा, "पावनी मेरे कपड़े तैयार रखना मुझे कुछ दिन के लिए दिल्ली जाना होगा।"

"कब ?"

" दो दिन बाद। "

"अच्छा! ठीक है।" राम का बाहर जाना अक्सर रहता था, ये पावनी को भी पता है, लेकिन इस बार उसके साथ बच्चे नहीं है। सेजल को हॉस्टल में भेजने के बाद राम का बाहर जाना यह पहली बार है। इस बार पावनी को घर में अकेले ही रहना होगा सोच कर वह परेशान हो गई। लेकिन राम को काम है तो क्या कर सकती है।

"राम! क्या मैं आप के साथ आ सकती हूँ? अकेले यहाँ मन नहीं लगेगा।" थोड़ी सी परेशानी, थोड़ी सी आशा से उसने अपने मन की बात कहदी।

"तुम वहाँ आ कर क्या करोगी? पूरा दिन मैं काम पर रहूँगा, तो तुम्हें होटल के कमरे में अकेले ही रहना होगा। इस से अच्छा है घर पर ही रहो। मुझे भी टेंशन नहीं रहेगी।"

"मैं डेल्ही में मेरी मौसी के यहाँ रह लूँगी। आप को जब वक्त मिलेगा तब कुछ घूमना फिरना भी हो जाएगा। काम ख़त्म होते ही आप भी दो दिन छुट्टी और ले लीजिए साथ में घूम फिर कर वापस आ जाएंगे, क्यूँ कैसा रहेगा?" कह कर पावनी ने प्रश्नार्थक नज़र से राम की ओर देखा।

"प्लान तो बहुत अच्छा है, कोशिश करके देखता हूँ पर यकीन से कह नहीं सकता, बात बन जाएगी तो बताऊंगा, अगर दो दिन छुट्टी मिल जाए तो साथ ही चलेंगे।" बस इतनी सी बात पर पावनी बहुत खुश हो गयी।

दूसरे दिन पावनी बड़ी बेचैनी से राम की राह देख रही थी। सारा काम पूरा हो चुका था, फिर भी किचन के सामान एक एक कर अपने जगह लगाने लगी, धुले हुए डिब्बों को फिर से साफ कर सामान भरने लगी, 'अगर राम को दिल्ली जाने के लिए छुट्टी मिल जाए तो फिर जाने के लिए बैग भी तैयारी करनी है। जल्दबाजी में अगर ठीक से काम न हुआ तो आने तक चीजें खराब भी हो सकती है।

बारिश का मौसम है, कुछ दिन से बारिश थमने का नाम ही नहीं ले रही है, मूसलाधार बारिश ने मुम्बई के मौसम को बहुत खराब करके रखा है। दो दिन से लगातार बारिश की वजह से दीवार में जगह-जगह सिपेज हो रही है, क्या पता बारिश ने और जोर पकड़ लिया तो? इसलिए यहाँ सब ठीक करना भी जरूरी है। 'पहले ही कपड़े धुलने को ड़ाल दिए थे, उन कपड़ों को एक एक कर आयरन करके अलमारी में सजा कर रख दिया। बस सारे काम खत्म, कपड़े सूटकेस में भरना ही बाकी है।' सोचते हुए तृप्त होकर राम का इंतजार करने लगी।

दिन भर की थकान के बाद जैसे ही वह सोफे पर बैठ कर इंतजार करने लगी, आँखों में नींद छा गई, न जाने कितना समय बीत गया अचानक घंटी की आवाज से नींद खुली, समय देखा ७ बज कर ३० मिनट हो चुके थे। पावनी ने दरवाजा खोल कर बाहर देखा राम बारिश में आधे भीग चुके थे, टॉवल लेकर सिर पोंछने के लिए हाथ बढ़ाया पर राम पावनी के हाथ से टॉवल लेकर खुद पोंछने लगे।

वह राम के लिए ग्लास भर पानी ले आई। आशा थी कि वह उसे दिल्ली जाने के लिए तैयार होने को कह दे, मगर राम ने कुछ नहीं कहा। पावनी चुप रही, राम स्नान करने बाथ रूम की ओर बढ गया। पावनी किचन में जाकर अपना काम करने लगी। कुछ देर इंतजार करने के बाद अपनी उत्सुकता रोक न सकी, और पूछ ही लिया, " क्या हुआ! दिल्ली जाने की बात ?"

"कौन सी बात? ओह! हाँ भूल गया, नहीं साथ में जाना मुश्किल है, अकेले ही जाना होगा।" पावनी निराश हो गयी।

***