सैलाब
लता तेजेश्वर 'रेणुका'
अध्याय - 6
"आप का बच्चा तड़प रहा था। उसे मैने एम्बुलेंस में अस्पताल भेज दिया। चलिए आप को भी छोड़ देते हैं।" पावनी और राहुल ने उसे संभाल कर रास्ते पर खड़ी दूसरी एम्बुलेंस में बिठाया।
"आप चिंता न करें उसे अब तक अस्पताल में भर्ती कर दिया होगा। आप चलिए। " कह कर राहुल ने पावनी की ओर देखा दोनों वहाँ से निकले ।
पावनी रो रही थी। न जाने किस हालात में होगा दीदी और उनका परिवार। आखिर वह बच्ची का दोष क्या था जो २ दिन की भी नहीं हुई। पावनी सीधे पवित्रा के घर पहुँची, उसे भरोसा था घर पर कोई मिल जाए या कुछ तो खबर मिल जाएगी। पहले कि तरह दीदी और जीजू उसका स्वागत करने दौड़ कर नहीं आए। गेट खुला पड़ा था। सारा घर बिखरा पड़ा था घर में पूछने वाला कोई भी नहीं था। घर के आस पास भी लोग नजर नहीं आ रहे थे। जो भी एक दो लोग किसी की मदद करने के लिए यहाँ वहाँ भाग रहे थे उन्हें पूछा तो उन्होंने अस्पताल जाने को कहा।
पावनी उस अस्पताल में पहुँची जहाँ पवित्रा को प्रसव के लिए एडमिट किया गया था। वहाँ के हालात दुर्भर थे। न लोगों को एडमिट करने के लिए बेड था न ही फर्श पर पैर रखने के लिए जगह। फर्श पर लाशें बिखरी पड़ी थी। बाहर पुलिस की गाड़ियाँ, एम्बुलेंस, ट्रक और ट्रैक्टर भरे पड़े थे। लाशों को रखने की जगह के अभाव से लाशों को रास्ते पर ही रख दिया गया था। लाशों को अपना कहने वाले भी बचे नहीं थे। कुछ इस तरह लोग इसकी चपेट में आ गए थे की खुद का भी जब होश नहीं था तो फिर अपनों को ढूँढ़ता कौन?
"हे भगवान! मेरे दीदी और सारे परिवार वाले सही सलामत हों।" कहते हुए आकाश के तरफ़ देख कर नमस्कार करते हुए मन ही मन मिन्नतें करती रही। गांव के लोगों की हालत को देख कर उसकी हिम्मत भी टूट रही थी।
पावनी निर्जीव लाश की तरह अस्पताल के अंदर गई। अस्पताल के दोनों तरफ लाशों का ढेर लगा हुआ था। वह अगर ढूँढती तो ढूँढे कहाँ? कहाँ से शुरू करे उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। अंदर पैर रखते ही सामने एक नर्स को देखा। उस नर्स से पावनी ने पवित्रा के बारे में पूछा। वह ज्यादा कुछ बता नहीं पाई। लेकिन उसने वार्ड के तरफ उँगली दिखाते हुए अंदर जाने को कहा। जैसे ही पावनी अंदर जा रही थी उसे शतायु के दादा खांसते हुए दिखाई दिए। पावनी को देखकर उन्होंने अंदर की तरफ इशारा किया। पावनी ने उन्हें पकड़ कर बिठाया और पानी पिलाया।
- पापा जी आप ठीक तो हैं ना?
वे कुछ भी कहने के हालात में नहीं थे। उनके मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे। कुछ बोलने को कोशिश करते तो खाँसी आ जाती थी। साँस जोर जोर से फूल रही थी।
"पापाजी, दीदी, जीजू... " प्रश्नार्थक नज़र से पूछा। इन दो शब्दों के अलावा उसकी जुबान से कुछ निकल नहीं रहा था। उन्होने एक कोने की ओर इशारा किया पावनी ने लाशों के उपर से गुजरते हुए वहाँ जा कर देखा वहाँ शतायु की दादी की लाश थी।
"ओह! " कह कर पावनी ने आंखें बंद कर ली। तब तक पावनी का दिल पत्थर हो चुका था। उसे अपनों को ढूँढने के अलावा वहाँ के माहौल के लिए सोचने का वक्त नहीं था। राहुल को उन्हें सँभालने के लिए कह कर वह अंदर गई, उसे एक स्ट्रेचर पर उसकी दीदी दर्द से तड़पते दिखी।
"दीदी! दीदी! ये सब क्या हो गया? आप कैसी हो ?ठीक तो है न ..?" दौड़ कर पास गई। पवित्रा को उसकी बातें कुछ सुनाई नहीं दे रही थी वह पावनी के आगे पीछे किसी को ढूँढ रही थी।
"पावनी सोनू कहाँ है? सोनू कहाँ है?"पवित्रा ने हाँफते हुए पूछा। जैसे उसने अपने बेटे को देखने को आखरी सांस बचाके रखी थी।
"सोनू ठीक है दीदी, आप कैसी हो ?"
पवित्रा को अपने से ज्यादा परिवार वालों की चिंता थी।
"तेरे जीजू कैसे हैं? कहाँ है वह ? तुझे दिखे की नहीं, कैसे हैं वह..?" कहते हुए रोने लगी। पवित्रा हाँफ रही थी उसे साँस लेने में तकलीफ हो रही थी। उसका हाथ पेट पर था, वह पावनी को दूसरे हाथ से हवा में हिलाते हुए कुछ कहने की कोशिश कर रही थी। बहुत मुश्किल से उसके होंठ कुछ ही शब्द कह पाये, "..मेरे सोनू का ख्याल रखना .. " उस की आँखों से आँसू बह रहे थे। आखिरी बार सिर इधर उधर हिलाते हुए कहा "कुछ नहीं बचा। तेरे जीजू .." कहते हुए रो पड़ी।
"हाँ दीदी बताओ जीजू कैसे हैं ?कहीं भी हो मैं उन्हें लेकर आऊँगी। "
" मेरी बच्ची .. मेरी बच्ची।" अस्पताल के चिल्ड्रन वार्ड के तरफ उंगली दिखाते हुए कहा।
"दीदी, चिंता मत करो, मैं आ गयी हूँ न मैं देखती हूँ।" दिलासा तो दे रही थी मगर वह भी जानती थी इस गंभीर हालात में उसकी बातें कोई मायने नहीं रखती।
" तेरे जीजू, हमें .... यहाँ ले आए .... फिर उन्हें देखा नहीं।" पवित्रा ने आशा से पावनी की ओर देखा "सोनू ...सोनू कैसा है..? "
पावनी ने पवित्रा के सिर को अपने सीने से लगाया और कहा "हाँ दीदी सोनू ठीक है। उसे वही छोड़ कर आई हूँ।" पवित्रा ने एक लंबी साँस ली, जैसे उसे कुछ राहत मिली। साँस को रोक कर कहा "बच्ची .....मेरी बेटी भी.. .. नहीं रही।" फिर पवित्रा की साँस फूलने लगी और पावनी के हाथों में आखिरी साँस ली।
"दीदी जीजू .. जीजू कैसे हैं?"
"दीदी ...दीदी ..?" तब तक पवित्रा खामोश हो गई थी। वह जोर जोर से "डॉक्टर डॉक्टर" चिल्लाती रही। तब वहाँ डॉक्टर ने आ कर पवित्रा की नस जांच कर बताया, "सॉरी वह अब नहीं रही।"
"नहीं डॉक्टर मेरी दीदी, कल ही उसने एक बच्ची को जन्म दिया। देखिए डॉक्टर प्लीज, मेरे दीदी को कुछ नहीं होगा, प्लीज फिर से देखिए।" पावनी रोती रही।
डॉक्टर "सॉरी मैडम धैर्य रखिए।" कहकर पीठ पर थपथापा कर आगे निकल ही रही थी पावनी ने उनके हाथ पकड़ लिया, "डॉक्टर, मेरी दीदी की बच्ची।" प्रश्नार्थक नज़रों से पूछा।
"अंदर चिल्ड्रेन्स केअर वार्ड में पता कीजिए।" कहकर दूसरे पीड़ित के पास चली गयी।
पावनी घसीटते पैरों से चिल्ड्रन केअर वार्ड के तरफ गयी। नर्स से बच्ची के बारे में पता किया तो उसने अंदर जा कर देखने को कहा। पावनी बच्ची को ढूँढते हुए हर एक पालने में देखा अगर सब कुछ ठीक होता तो पालने में बच्चे हाथ पैर हिलाते रोने की आवाज़ सुनाई देती। लेकिन यहां जैसे श्मशान निशब्द तांडव कर रही थी। एक पालने पर पवित्रा का नाम लिखा हुआ था। उस पालने के पास पहुँच कर देखा कि वह 2 दिन की मासूम जिसने आँखें तक नहीं खोली थी वैसे ही चिर निद्रा में सो गयी है। पावनी बेहोश होने ही वाली थी राहुल उसे संभाल कर बाहर ले आया। एक कोने में खाली जगह देख उसे बिठाकर मुँह पर पानी सींचा।
तुरंत राहुल ने किसी को फ़ोन कर के मदद के लिए बुलाया। रिसेप्शन लोगों से भरा पड़ा था । लाशों की पहचान के लिए और भीड़ देखते हुए लोगों की सुरक्षा के लिए पुलिस कर्मियों का जमावड़ा था। पावनी पवित्रा के पैरों के पास बहुत देर तक रोती हुई बैठी रही। राहुल उसे अस्पताल से बाहर ले आया। लाशों को अस्पताल में ज्यादा देर रखा नहीं जा सकता था। एक एक करके लाश को बाहर निकालने जा रहे थे। पावनी एक जीवंत लाश की तरह चली जा रही थी। उसको होश नहीं था कि उसके चारों तरफ क्या हो रहा है।
लाशों को एक एक कर अस्पताल के बाहर रास्ते पर रखा जा रहा था। कुछ लाशों को गाड़ी में भरा जा रहा था तो कई लाशें गुमनाम और बेहाल पड़ी हुई थी। न कोई रोने वाला न कोई अपना कहने वाला जैसे शमशान बन गया था। लोग भाग दौड़ कर रहे थे। कोई मदद के लिए इधर उधर भाग रहे थे। राहुल भी कहीं दिख नहीं रहा था शायद वह भी लोगों की मदद करने में जुट गया था। उस भयावह दृश्य को देख कर किसी की भी रूह काँप उठेगी। राहुल, उसके दोस्त के मदद से रिसेप्शन से लाशों को ले जाने की इजाज़त ले कर सभीके दहन संस्कार की जिम्मेदारी ली। पावनी ने अपने जीजू को बहुत ढूँढ़ा इंतज़ार किया लेकिन उनकी कोई खबर नहीं मिली। जमीं खा गयी या असमान निगल गया पता नही चला।
उसके बाद शतायु के पापा को किसीने नहीं देखा। आज भी शतायु को पापा का इंतजार रहता है। उसे पापा के लौटने की आशा तो नहीं थी फिर भी मन में एक आशा है काश कि वे लौट आये। बस इसी उम्मीद ने उसे जीने का हौसला दिया है। आज भी वह दुर्घटना ग्रस्त इलाके में घंटो अकेले समय बिताता है, शायद कहीं उसके पापा कभी वापस आ जाए।
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