Sailaab - 5 in Hindi Moral Stories by Lata Tejeswar renuka books and stories PDF | सैलाब - 5

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सैलाब - 5

सैलाब

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

अध्याय - 5

पावनी के पैर लड़खड़ा गये। जहाँ खड़ी थी वहीँ वैसे ही बैठ गयी जैसे उसके पैर की शक्ति किसीने छीन ली हो। उसके सिर पर जैसे पहाड़ गिर पड़ा हो।

" क्या.. क्या हुआ? मुझे पूरी बात बताओ। आप सब क्या कह रहे हैं मुझे समझ में नहीं आ रहा है। मैंने रात को सोने से पहले ही दीदी से बात करी वहाँ सब बिल्कुल ठीक है फिर तुम क्या कह रही हो?" पावनी के हाथ पैर काँप रहे थे। उसकी जुबान लड़खड़ा रही थी। उस ने अपना फ़ोन उठाकर घर पर फोन लगाया। घंटी बजती रही पर किसीने फोन नहीं उठाया। पावनी बार बार फोन लगाती रही। सोनिया ने पावनी का हाथ पकड़ लिया और कहा, "इस तरह वक्त बरबाद मत करो, तुम्हें तुरंत ही जाने की तैयारी करनी चाहिए। उन्हें तुम्हारी जरूरत है। जितना जल्दी हो सके तुम चली जाओ। राहुल सर तुम्हारे साथ भोपाल चलेंगे और कुछ भी जरूरत पड़े हमें फ़ोन करना, आशा है सब कुछ ठीक हो।"

पावनी बहुत देर तक आँसू बहाती रह गई। सोनिया उसे जोर से हिलाकर होश में लाई और तुरंत तैयार होने को कहा। पावनी अंदर गई देखा पलंग पर शतायु बेफिक्र सो रहा है। एक पल में झपक कर उसे गले लगा लिया। न जाने यह बात पता चलते ही उस पर क्या बीतेगी। उसकी तो दुनिया उजड़ जाएगी। पता नहीं वहाँ सब किस हालात में होंगे, दीदी जीजू शतायु के दादा दादी। पावनी की रोने की आवाज़ से शतायु की नींद खुल गई ।

शतायु ने आँखें मलते हुआ पूछा, " क्या हुआ मौसी क्यों रो रही हो?"

"कुछ नहीं सोनू।" आँखें पोंछते हुए कहा, "अचानक मुझे कहीं जाना पड़ रहा है तुम कुछ समय के लिए सोनिया मैडम के साथ रहना होगा रहोगे ना?"

"नहीं मैं भी चलूँगा आप के साथ।"

"सोनू बेटा मैं अभी तुम्हें नहीं ले जा सकती।" पावनीने उसके माथे को चूमते हुए कहा।

"मुझे माँ के पास जाना है। मुझे छोड़ कर आप अकेली जाओगी?"

"बस कुछ समय के लिए जाऊँगी मगर जल्द ही वापस आ जाऊँगी फिर साथ चलेंगे ।"

"मुझे भी आपके साथ जाना है। मुझे यहाँ नहीं रहना है।" शतायु जिद्द करने लगा। पावनी उसे गले लगा कर रो पड़ी।

पावनी को रोते हुए देख कर वह चुप हो गया। "क्या हुआ मौसी?" उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। पावनी को खुद को संभालना ही मुश्किल हो रहा था। सोनिया ने शतायु को गोद में उठा लिया। शतायु ने सोनिया को पूछा, "आंटी,मौसी क्यों रो रही है?"

सोनिया ने कहा, "तुम जिद्द कर रहे हो ना इसलिए। उसे प्रिन्सिपल मेम ने काम दिया है, अगर नहीं गई तो स्कूल से निकाल देंगे। उसकी नौकरी चली जाएगी, ये तो बुरा होगा की नहीं?"

"हाँ, पर मैं अकेले कैसे रहूँगा ? "

"हम सब है ना तुम्हारे साथ और मेरे घर में तुम्हारे दो दोस्त भी हैं उन के साथ खेलोगे और जैसे ही मौसी लौट कर आएगी तुम घर चले आना।"

"मौसी आते ही हम घर जा सकते हैं?"

"हाँ क्यों नहीं? जरूर जाओगे, अगर मौसी को देर होगी तो हम तुम्हें लेकर मौसी के पास छोड़ आएँगे। ठीक है ।"

"तो क्या इसलिए मौसी रो रही है ?"

सोनिया ने सिर को आगे-पीछे हिलाते हुए "हाँ" कहा।

"तुम अगर मना कर रहे हो तो फिर.. "

"नहीं ठीक है, मौसी आप जाओ लेकिन जल्दी वापस आना हम घर जाएँगे।" पावनी ने शतायु के माथे को चूम कर कहा, "मैडम को परेशान मत करना अच्छे बच्चे की तरह रहना।"

शतायु ने अच्छे बच्चे की तरह सिर हिलाया ।

कुछ ही क्षणों में पावनी ने अपने कुछ कपड़े बैग में भर लिये। थोड़े पैसे भी बैग में रख लिये और जाने के लिये तैयार हुई।

पावनी शतायु को बताने के लिए उसके कमरे की ओर बढ़ ही रही थी पर सोनिया ने उसे रोक लिया, "तुम चिंता मत करो पहले तुम जाकर वहां परिवार को संभालो, शतायु को हम संभाल लेंगे। जरूरत पड़े तो हम में से कोई शतायु को लेकर वहां पहुँच जाएगा। तुम उसकी चिंता छोड़ दो, राहुल सर भी तुम्हारे साथ जा रहे हैं, जल्दी जाओ।"

पावनी को भी यही सही लगा, वहां के हालात कैसे हैं पता नहीं फिर शतायु को संभालना भी मुश्किल हो जाएगा। एक बार तीनों की ओर देख कर पावनी निकल गई। पावनी के साथ राहुल भी भोपाल के लिए चल पड़ा।

***

रास्ते भर पावनी रोती रही। उसे रोकना राहुल के बस में नहीं था। जब वे भोपाल शहर में पहुँचे सारी जगह इस बात की चर्चा हो रही थी। वे सीधे उनके गाँव की तरफ बढ़ गए। लोग अपने, अपनों के लिए मारे मारे फिर रहे थे। गाँव में लाशें बिखरी हुई थी। लोग अस्पताल की ओर भाग रहे थे, कोई बच्चों को गोद में उठा कर ले जा रहा था तो कोई अपने बुजुर्गों को काँधे पर उठा कर। सारा शहर श्मशान में तब्दील हो गया था। हर एक घर के सामने लाश पड़ी हुई थी। उन दर्दनाक घटनाओं को देख कर आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी। वह सीढ़ियों पर बैठ गई। पावनी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा दिन उसे देखना पड़ेगा। उसे चक्कर आने लगे। पानी की बोतल के लिए वह बैग ढूँढने लगी पर उसको बैग कहीं नहीं मिला। उसका बैग बहुत पहले कहीं छूट गया था।

लोग इधर उधर भाग रहे थे। अस्पतालों में, रास्तों पर, घर, आँगन में लोग गिरे पड़े थे कई बेहोश तो कई लाश बन कर। जो जीवित थे उनकी दुर्दशा देखी नहीं जा रही थी। जहरीली गैस ने साँस से हो कर भीतर जा कर लोगों का हाल बेहाल कर दिया था। ट्रक में लाशें लादी जा रही थी। कुछ लाशें को अस्पताल से निकाल कर इधर उधर रास्ते पर रखी जा रही थी। लाशें एक के ऊपर दूसरी, जहाँ देखो लाशें ही लाशें बिखरी पड़ी थी।

बच्चों की लाशें, बड़े बुजुर्गों की लाशें, स्त्रियों की लाशें, गर्भवती महिलाओं की लाशें, न कोई जात पात, न ही कोई उम्र का तकाज़ा, न स्त्री पुरुष न बच्चे न बुजुर्ग .. सिर्फ लाशें ..लाशें ...और लाशें....।

लाशों के चेहरों के कई रूप रंग थे। अस्पताल में पैर रखने के लिए तिल मात्र भी जगह न थी, डॉक्टर भी किस किस को देखें? एक या दो नहीं कई हज़ार लोग। अस्पताल के स्टाफ कम पड़ रहे थे। फिर भी भाग दौड़ हो रही थी किसी के पास सोचने के लिए वक्त नहीं था। पावनी को ये भी समझ में नहीं आ रहा था की वह होश में है या कोई सपना देख रही है। उसकी आँखों के सामने जैसे फिल्म का कोई सीन चल रहा था, लोग आ रहे थे जा रहे थे। उसके चारों ओर चीखने चिल्लाने की आवाज़ें आ रही थी।

पावनी मुँह पर कपड़ा रख कर उल्टी करने लगी। उससे वह भयानक दृश्य देखा नहीं जा रहा था। चक्कर आने लगा और वह खड़ी रह नहीं पाई, उसी जगह पर बैठ गई। वहाँ के वीभत्स दृश्य को देख कर किसी का दिल भी भय से काँप जाए। पावनी की हालत भी कुछ ऐसी ही थी। कुछ ही पल में वह बेहोश हो गई। राहुल ने पावनी को उठा कर छाँव में लेकर बिठाया और अपने पास रखी हुई पानी की बोतल से पानी निकाल कर उसके मुँह पर पानी छिड़का। कुछ देर बाद पावनी होश में आ गई।

"पावनी जी अब आप ठीक हो?" राहुल ने पावनी से पूछा।

"हाँ, ठीक हूँ।" कह कर उठने को प्रयास करने लगी लेकिन फिर से चक्कर आने से वहीँ बैठ कर रो पड़ी। राहुल ने रोती हुई पावनी को चुप कराने का प्रयास भी नहीं किया। उसे पूरी तरह रोने दिया। वह जानता था पावनी अपनी दर्द को दबाए हुये थी। रो लेने से दिल हल्का हो जाएगा। कुछ समय पावनी को यूँ ही छोड़ कर राहुल सामने एक तड़पते बच्चे को ले कर एम्बुलेंस में बिठाया। एम्बुलेंस में कुछ बीमार लोग पहले से ही मौजूद थे। उस बच्चे को अस्पताल पहुंचाने को कह कर वह पावनी के पास आया। तब तक पावनी ने खुद को संभाल लिया था।

उनसे कुछ ही दूरी पर एक गर्भवती महिला तड़प रही थी। उसके पास कोई नहीं था, पावनी और राहुल उसके पास गए। पावनी ने उसे उठा कर बिठाया और पानी पिलाया। वह उस दर्द के हाल में भी 'मेरा बच्चा मेरा बच्चा' कह कर रो रही थी। उसका एक हाथ पेट पर था तो दूसरा गेट की तरफ दिखाते हुये वह रोने लगी।

"मेरे बेटे को संभालो मेरा बेटा ।" कह कर रो रही थी।

"कहाँ है आप का बच्चा?" राहुल ने पूछा।

"कोई ले कर गया, शायद अस्पताल ले गया होगा। वह तड़प रहा था। मुझमें उठने की ताकत नहीं है।" वह महिला रोए जा रही थी।

"बिटू के बाबा आप कहाँ हो? हे भगवान! मेरे पति और बेटे की रक्षा करना।" दर्द से तड़पती वह महिला अपने पति और बेटे को ढूँढ रही थी। वह आवाज़ दे रही थी पर उसके आस पास कोई न था।

***