Sailaab - 4 in Hindi Moral Stories by Lata Tejeswar renuka books and stories PDF | सैलाब - 4

Featured Books
Categories
Share

सैलाब - 4

सैलाब

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

अध्याय - 4

शतायु के वहाँ से जाते ही पवित्रा ने पावनी से आराम करने को कहा, "पावनी यात्रा से थक गयी होगी कुछ समय विश्राम कर ले शाम को बात करेंगे।" कहकर पवित्रा वहाँ से जाने लगी तो पावनी ने पीछे से पुकारा, "दीदी। "

"हाँ बोलो पावनी।" कह कर वापस आ कर पास बैठ गयी पवित्रा।

"दीदी, मुझे माफ़ करना मैं इस बार ज्यादा दिन रह नहीं पाऊँगी" संकोच से कहा।

"१५-२० दिन की छुट्टी मिली होगी न स्कूल से? डिलीवरी होनेतक रुकोगी न पावनी ?"

"नहीं, दीदी बस चार ही दिन की छुट्टी मिली है, मुझे जाना ही होगा स्कूल में अगले हफ्ते से परीक्षा है … माफ़ करना दी, बहुत कोशिश की पर…।" आँखों में उसकी दुविधा थी।

"पावनी तू तो जानती है की मुझे ८वां महीना खत्म होने को है किसी भी वक्त मेरी डिलीवरी हो सकती है। मुझे पूरा विश्वास था की तू तब तक मेरे पास रहेगी और सोनू को संभाल लेगी। तुझ पर ही मेरी उम्मीद टिकी है। "

छुट्टी के लिए बहुत कोशिश की दी मगर स्कूल में परीक्षा के चलते छुट्टी नहीं मिली फिर भी बड़ी मुश्किल से 4 दिन के लिए मना लिया है, दीदी अगर तुम राज़ी हो तो सोनू को मेरे साथ ले जाऊँ? " पावनी ने पवित्रा से अनुरोध किया।

"सोनू को ....?"

"हाँ, दीदी, वैसे सोनू की परीक्षा भी तो खत्म हो रही है, मैं उसे कुछ दिन के लिए मेरे संग ले जाऊंगी। तुम्हें भी कुछ आराम हो जाएगा और मुझे भी कुछ दिन शतायु के साथ समय बिताने का मौका मिल जाएगा।"

"उसके बिना मैं कैसे रहूंगी? सुबह शाम तो बस उसके काम करते ही दिन कट जाता है, फिर वो घर पर न हो तो मेरा दिल कहाँ मानेगा। तेरे जीजाजी क्या कहेंगे पता नहीं?" सोचते हुए कहा।

"दीदी तुम जीजाजी को मना लेना बाकी लोगों को वो मना लेंगे। दिन भर उसी के काम से तुम्हें आराम कहाँ मिलता है और कुछ दिन उसकी देख भाल मैं कर लूँगी, फिर चिंता की क्या बात है। परीक्षा ख़त्म होते ही हम वापस आ जाएंगे। क्या कहोगी ? बोलो।" पावनी ने दिलासा देते हुए कहा।

"तू ठीक कह रही है पर स्कूल के काम काज के साथ तू उसे संभालेगी कैसे? उसके लिए तो नयी जगह होगी फिर …।"

"ना मत बोलो दीदी वो मेरी जिम्मेदारी है, मैं उसे संभाल सकती हूँ। स्कूल में मेरे ही साथ रहेगा वहाँ और भी बहुत सारे टीचर्स हैं और वे बच्चों का ख्याल अच्छे से रखना जानतीं हैं। आखिर छोटे बच्चों का स्कूल ही है, तुम बेफिक्र रहो और अपनी तबियत का ध्यान रखना।" पावनी ने समझाया।

"तू कह रही है तो घर में बात कर के देखूंगी। सोनू को अगर सम्भाल सकती है तो वे भी ना नहीं कहेंगे।"

"तो बस, सोनू को मेरे साथ भेजने की तैयारी कर उसको मैं समझा दूंगी।"

"तेरे जीजाजी से इजाजत लेकर बताऊँगी। अब तू कुछ देर आराम कर ले।" कह कर पवित्रा चली गयी।

शतायु की मौसी पावनी और राम ने शादी के कुछ साल बाद मुम्बई में अपना आशियाना बना लिया। कुछ साल तक शिक्षिका रह चुकी पावनी अब लेखिका बन गई है। मुम्बई में रहते कईबार शतायु को मुंबई आने की और मुंबई में अपनी जिंदगी नई सिरे से शुरू करने की सलाह दी लेकिन शतायु उसकी जन्मभूमी छोड़ कर आने को तैयार नहीं था। ऐसे में पावनी को शतायु की याद आना और उसके भविष्य को ले कर चिंतित होना सही था। उसकी दीदी की मौत के बाद शतायु को अपने साथ ही रखा और अपने बच्चे की तरह ही संभाला है।

पावनी ने शतायु के जन्म दिन पर उसके चेहरे पर आखिरी बार ख़ुशी देखी थी। उसके बाद शतायु के चेहरे से मुस्कराहट और मासूमियत जैसे छिन गयी है। पावनी की आँखें भर आई। उठकर दीवार के पास गई। दीवार पर टंगी हुई तस्वीरें जैसे कुछ कह रही थी। आँखों में आँसू लेकर उन तस्वीरों को देखती रह गयी पावनी। आज शतायु का जन्म दिन है। उसका हर जन्म दिन जैसे उसका चैन छीन लेता है, बचपन में उसने जो कुछ खो दिया था उसे याद कर के वह व्यथित हो जाता है।

वह रात काली भयानक थी जिसकी सुबह के बाद भोपाल का वह इलाका श्मशान में तब्दील हो गया था। वर्ष १९८४, दिसंबर ३ तारीख सुबह ६ बजे भोपाल की यूनियन कार्बाइड का टैंक नंबर ६०१ से जहरीली गैस के रिसाव से यूनियन कार्बाइड के ५ से १० किमी की दायरे में जितने भी लोग रहते थे उनकी जिंदगी में ऐसी हलचल मचा देगा ये किसी ने भी सोचा न था उस समय शतायु की उम्र सिर्फ सात साल थी। छोटी सी उम्र में माँ, दादा, दादी सब उस दुर्घटना के शिकार हो गये और वह नन्हीं सी जान भी जो इस दुनिया में आई तो सही पर आँखें खुलने से पहले ही जहरीली गैस के चपेट में आ कर चल बसी। बाबूजी का तो कोई पता नहीं उस दुर्घटना के बाद वह जिन्दा हैं भी कि नहीं कोई नहीं जानता।

***

१९८४, २ तारीख शाम को जैसे ही शतायु को बहन होने की खबर मिली तो वह ख़ुशी से फूला नहीं समाया। मौसी पावनी से तुरंत ही घर जाने की जिद्द करने लगा।

"मौसी! बहन को देखने मुझे भी जाना है, चलो न अभी चलते है। "

"हाँ, हाँ चलते है न सोनू कल मैं स्कूल से छुट्टी ले लूँगी फिर चलते है।"

"मौसी कल? नहीं आज ही चलते हैं ।" जिद्द करते हुए कहा।

"हाँ बाबा! चलते हैं। लेकिन कल, आज तो शाम हो चुकी है। कल सुबह मैं स्कूल से छुट्टी लेकर जल्द आ जाऊँगी फिर चलते है। " पावनी ने कहा।

रात को रोज़ की तरह पवित्रा से बात हुई। पावनी ने नयी मेहमान उस बच्ची की बारे में पूछा, पवित्रा की आवाज़ बहुत कमजोर लग रही थी लेकिन उसकी बातों से ख़ुशी के मोती टपक रहे थे। शतायु भी पवित्रा और उसके बाबूजी के साथ बहुत देर तक बातें करता रहा। रात भर पावनी से वह अपनी बहन के बारे में तरह तरह के सवाल करता रहा। सोने से पहले ही शतायु ने बहन के लिए तोहफे में क्या क्या खरीदना है सब कुछ तय कर लिया था।

***

सुबह दरवाजे के खड़कने की आवाज़ सुन कर पावनी चौंक कर उठ बैठी। समय ५ बजकर कुछ मिनट ही हुए थे। 'इतनी सुबह! अभी कौन हो सकता है?' सोचते हुए शतायु के ओर देखा, शतायु गहरी निद्रा में सोया हुआ था। पावनी ने टेबल से पानी की बोतल उठाकर कुछ पानी पिया। शतायु के कमरे का दरवाज़ा धीरे से बंद कर कपड़े ठीक करके बाल संवारते हुए दरवाजे की लेंस से बाहर देखा। उसकी सहेलियाँ वीणा और आरती खड़े थे। इतनी सुबह उनका आना उसे अजीब सा लगा। पावनी ने दरवाज़ा खोला।

उन्हे देखकर आश्चर्य से पूछा "वीणा, आरती क्या बात है? इतनी सुबह तुम दोनों?" शंका उसके मन को घेरने लगी थी।

'इतने सुबह इन दोनों के आने का कारण क्या हो सकता है? कुछ प्रॉब्लम तो नहीं है?' मन में कई प्रश्न उठ रहे थे। उनकी चुप्पी पावनी को परेशान कर रही थी। वे चुप चाप एक दूसरे को देखते और फिर पावनी को देखते। उनकी आवाज़ जैसे बैठ ही गयी थी। पावनी ने दोनों को अंदर बुलाया। दोनों अंदर आ कर सोफे पर बैठ गये। वीणा ने पानी के लिए इशारा किया।

"मैं अभी ले कर आती हूँ।" कह कर पावनी वहाँ से किचेन में चली गयी।

"वीणा तू बोल, मेरी जुबान से कुछ नहीं निकल रहा।" आरती ने धीमी आवाज़ में कहा।

"कैसे कहूँ इतनी बड़ी बात मुझसे नहीं होगी यार तू ही बता दे।" वीणा ने कहा।

"लेकिन किसी न किसी को कहना तो पड़ेगा ही।" आरती ने सोचते हुए कहा।

"नहीं सोनिया मैडम को आने दो वही संभाल सकती है, मुझ में इतनी हिम्मत नहीं है।"

पावनी पानी लेकर आई। दोनों को चुप देखकर बोली, "क्या बात है वीणा! कुछ तो बोलो, क्या बात है ?"

वे दोनों चुप रहे, "अरे बताओ। इतनी सुबह सुबह सब ठीक तो है न?"

"वो सोनिया मैडम।"

"सोनिया मेडम ?… सोनिया मैड़म को क्या हुआ?"

"नहीं नहीं सोनिया मैडम को कुछ नहीं हुआ। वे आ रही हैं, वे ही बताएंगी ।"

"सोनिया मैडम? यहां क्यों आएँगी? तुम लोग मुझसे कुछ छुपा रहे हो? बताओ वीणा मेरा दिल बैठा जा रहा है क्या बात है? क्या हुआ?"

आरती और वीणा चुप रही, इतने में सोनिया आ पहुँची।

"सोनिया मैडम! इतने सुबह आप सब यहां क्या बात है?

"पावनी तुम्हें कुछ दिनों की छुट्टी दी गई है, तुम तुरंत ही भोपाल चली जाओ, अपनी दीदी के पास।"

"क्या हुआ? मैं तो आज जाने ही वाली थी, शतायु बहुत जिद्द कर रहा है, बस छुट्टी लेने स्कूल आना था।"

"शतायु को यहां रहने दो, हम संभाल लेंगे, पहले तुम जाकर आओ।"

"लेकिन .... क्यों? क्या हुआ? मेरी दीदी और घर में सब... कुछ ठीक तो है?" पावनी को शक हुआ कुछ है जो उससे छिपाया जा रहा है...। उसी वक्त राहुल सर भी वहां आ पहुँचे।

सोनिया ने पावनी का हाथ पकड़ कर कहा, "तुझे धैर्य रखना होगा पावनी, भोपाल में कुछ भी ठीक नहीं है.. वहां से फ़ोन आया था। तुम्हारे जीजू जिस कंपनी में काम करते हैं उस कंपनी में जहरीली गैस के रिसाव होने से बहुत लोग इसके चपेट में आ गए हैं, बहुत लोगों की मौत भी हो चुकी है। हमें आशा है तुम्हारे परिवार के लोग सही सलामत होंगे.."

***