Gumshuda ki talaash - 1 in Hindi Detective stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | गुमशुदा की तलाश - 1

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गुमशुदा की तलाश - 1



गुमशुदा की तलाश

(1)



रंजन चर्च में प्रार्थना कर बाहर निकल रहा था। आज उसका जन्मदिन था। उसे पंद्रह साल पहले का अपना जन्मदिन याद आ रहा था। वह अंतिम जन्मदिन था जब उसके पिता उसके साथ थे।
चर्च के आहते में रंजन को फादर फ्रांसिस मिल गए।
"हैप्पी बर्थडे रंजन।"
"थैंक्यू फादर.."
"तुम्हारा काम कैसा चल रहा है ?"
"बहुत अच्छा फादर। मेरे बॉस सरवर खान पर लोगों का भरोसा बढ़ता जा रहा है। एक के बाद एक केस की लाइन लगी रहती है।"
"अब शर्ली को तुम्हारे इस जासूसी के काम से कोई ऐतराज़ तो नहीं है ?"
"मम्मी को अब कोई ऐतराज़ नहीं है। कहती हैं कि जो तुम्हें सही लगा वह चुना। तुम खुश रहो।"
"तो अब उसे भी खुश कर दो। शादी कर लो।"
"अब आप भी मम्मी की तरह बात करने लगे। पर जब कोई मिलेगी तो मम्मी और आपकी यह इच्छा भी पूरी कर दूँगा।"
फादर फ्रांसिस हंस दिए। रंजन उनसे विदा लेकर अपने ऑफिस के लिए निकल गया।
रंजन ऑफिस पहुँचा सुनीता उसकी राह देख रही थी। उसने उसे बुके देते हुए बर्थडे विश किया।
"तो पार्टी कहाँ दे रहे हो ?"
"जहाँ तुम कहो ?"
"क्यों बर्थडे की पार्टी नहीं रखी तुमने ?"
"नहीं...जब तुम जैसी सुंदर लड़की साथ जाने को तैयार हो तो भीड़ बढ़ाने का क्या फायदा।"
उसकी बात सुन कर सुनीता हंस कर बोली।
"शटअप....किसी मुगालते में ना रहो..."
रंजन गंभीर होकर बोला।
"मज़ाक की बात अलग है। पर तुम पर पहले की ट्रीट भी बाकी है। जैसे ही मौका मिलेगा तुम जहाँ चाहोगी ले चलूँगा।"
सुनीता अपनी सीट पर बैठ गई। रंजन ने पूँछा।
"बॉस केबिन में हैं ?"
"हाँ और कुछ ही देर पहले फ्री हुए हैं। कोई मिसेज़ दास उनसे मिल कर गई हैं।"
रंजन बॉस के केबिन की तरफ बढ़ गया। दरवाज़ा नॉक कर वह भीतर चला गया। सरवर खान अपनी कुर्सी पर गंभीर मुद्रा में बैठे थे।
"गुड मार्निंग सर..."
सरवर खान ने रंजन को देखा तो उन्हें याद आया।
"सालगिरह की बहुत मुबारकबाद।"
रंजन ने उनके साथ हैंड शेक करते हुए कहा।
"शुक्रिया सर...."
रंजन कुर्सी पर बैठ गया।
"बहुत सीरियस हैं...नए केस के बारे में सोंच रहे थे।"
"हाँ... कुछ अजीब सा केस है।"
"बताइए ना सर क्या केस है।"
सरवर खान रंजन को केस के बारे में बताने लगे।

सुबह जब सरवर खान दफ्तर पहुँचे तो कुछ ही देर बाद एक महिला उनसे मिलने आई। उम्र चौंसठ साल थी। अर्थशास्त्र की रिटायर्ड प्रोफेसर थीं। नाम था नीलिमा दास। नीलिमा ने उन्हें बताया कि वह अपने बेटे की गुमशुदगी का केस लेकर उनके पास आई हैं। उनका बेटा बिपिन करीब दस महीने पहले अपने कॉलेज के हॉस्टल से गायब हो गया। पुलिस ने बहुत खोजा पर कोई सुराग नहीं मिला। इसलिए वह यह केस उनके पास लेकर आई हैं।
बिपिन दास धनवंत्री इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंसेज़ से पीएचडी कर रहा था। वह चौथे सेमेस्टर में था तब अचानक एक दिन वह अपने हॉस्टल से गायब हो गया। मामला पुलिस के पास दर्ज़ कराया गया। पुलिस ने बिपिन दास को तलाश करने का प्रयास किया लेकिन लगभग दो साल बाद भी बिपिन का कोई पता नहीं चला।
सारी बात सुन कर सरवर ने नीलिमा दास से पूँछा।
"नीलिमा जी आपकी अपनी क्या राय है ? क्या बिपिन किसी बात को लेकर परेशान था जिसके कारण वह अपनी मर्ज़ी से कहीं चला गया। आप तो माँ हैं। आपसे ज़रूर उसने कुछ बताया होगा।"
सरवर खान का सवाल सुन कर नीलिमा कुछ गंभीर हो गईं। कुछ ठहर कर बोलीं।
"सरवर जी दरअसल बिपिन और मेरे बीच का रिश्ता थोड़ा जटिल था। वह कई सालों से मुझसे दूर चला गया था।"
"ऐसा क्यों हुआ ?"
"जब बिपिन कोई दस साल का था तब मेरे और उसके पिता जतिन का तलाक हो गया था। बिपिन की कस्टडी मुझे मिल गई। जतिन अपना कारोबार समेट कर साउथ अफ्रीका अपने भाई के पास चला गया। उसके बाद उसने हमारी कोई खबर नहीं ली। बिपिन के मन में ना जाने कैसे यह बात बैठ गई कि उसे उसके पिता से अलग करने की गुनहगार मैं हूँ।"
सरवर अपनी सीट से उठ कर खिड़की तक गए। बाहर देखते हुए उन्होंने कहा।
"अगर आपको ऐतराज़ ना हो तो क्या आप मुझे जतिन और आपके तलाक की वजह बता सकती हैं।"
अपना सवाल पूँछ कर सरवर वापस अपनी सीट पर आकर बैठ गए। नीलिमा अपने मन में सवाल के जवाब की रूपरेखा बना रही थीं।
"ऐतराज़ कैसा...पति पत्नी के रिश्ते में दरार का कारण विश्वास और समझ की कमी ही होता है। हमारा रिश्ता टूटने का भी यही कारण था। लेकिन शुरुआत जतिन ने की थी। वह मेरे एक कुलीग एसिस्टेंट प्रोफेसर मंदार भट्टाचार्या का नाम लेकर मुझ पर बेवजह लांछन लगाता था। हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं था। बिपिन के बारे में सोंच कर मैंने शांति से उसे सारी बात समझाने का प्रयास किया। लेकिन दिन पर दिन जतिन का व्यवहार मेरे साथ गलत होता जा रहा था। उसकी भाषा अमर्यादित हो गई थी। वह मुझ पर हाथ भी उठाने लगा था। मैंने भी विरोध करना शुरू कर दिया। तभी मुझे पता चला कि जतिन का माधुरी पुंज नाम की औरत से संबंध है। यह सब वह इसी कारण से कर रहा था कि मैं उसे तलाक दे दूँ और वह माधुरी के साथ रह सके। अब मैंने भी आसानी से उसे तलाक ना देने की ठान ली। मैं भी माधुरी का नाम लेकर उस पर इल्ज़ाम लगाने लगी। हमारे झगड़े अब और अधिक बढ़ गए। इन सबका बिपिन पर बुरा प्रभाव पड़ने लगा। वह सहमा सा रहता था। उसके बारे में सोंच कर मैंने तलाक लेने का निर्णय लिया। जतिन कभी भी ज़िम्मेदार इंसान नहीं रहा था। उसने बिपिन की कस्टडी लेने की कोई कोशिश नहीं की। बिपिन की कस्टडी मेरे पास आ गई।"
नीलिमा रुकीं। उन्होंने सरवर से दवा खाने की इजाज़त मांगी।
"पानी मंगा दूँ।"
"जी नहीं है मेरे पास।"
नीलिमा ने पर्स से दवा का एक पत्ता निकाला। पर्स में पानी की एक छोटी सी बोतल थी। एक कैप्सूल निकाल कर नीलिमा ने पानी के साथ निगल लिया। कुछ रुक कर नीलिमा ने आगे कहा।
"तलाक के बाद मैं टूट सी गई थी। तब मंदार ने ही मुझे संभाला। इस सिलसिले में उसका अक्सर हमारे घर आना जाना होता था। हमारे बीच दोस्ती से अधिक कुछ नहीं था। पर बिपिन को लगा कि मैंने मंदार के लिए उसे उसके पापा से अलग कर दिया। इस सबको देखते हुए मंदार हमारे जीवन से चला गया। लेकिन बिपिन के मन में मेरे लिए कड़वाहट आ चुकी थी। जैसे जैसे वह बड़ा होता गया वह मुझसे दूर होता गया। एक उम्र के बाद उसने मुझे मम्मी की जगह नीलिमाजी कहना शुरू कर दिया। केवल एक बात अच्छी रही। मेरे लिए नफरत के बावजूद वह भटका नहीं। उसने सारा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया।"
"आपके मुताबिक आपके और बिपिन के बीच वार्तालाप ना के बराबर थी।"
"जी बहुत पूँछने पर ही वह सवालों के जवाब कम से कम शब्दों में देता था। अपने मन की बात तो कभी नहीं बताता था।"
"मतलब गायब होने से पहले उसकी मनोदशा क्या थी आप नहीं बता सकती हैं।"
"जी..बारहवीं तक जब वह मेरे साथ रहता था मैं उसके कुछ दोस्तों के ज़रिए उसके बारे में पूँछताछ कर लेती थी। पर जब वह बी.एस.सी करने के लिए हॉस्टल में रहने लगा तब ऐसा कोई ज़रिया नहीं बचा।"
नीलिमा अचानक भावुक हो उठीं। उनकी आँखें नम हो गईं।
"मैं हमेशा से बिपिन को बहुत प्यार करती थी। उसका मुझसे खिंचा खिंचा रहना मुझे बहुत तकलीफ देता था। पिछले कई सालों से वह घर से दूर हॉस्टल में था। वहाँ से कभी मुझे फोन भी नहीं करता था। लेकिन तसल्ली थी कि वह जो चाहता था वह कर पा रहा था। पर उसके गायब होने के बाद से एक एक दिन काटना कठिन हो रहा है।"
नीलिमा ने चश्मा उतार कर अपनी आँखें पोंछीं फिर बोलीं।
"मैं इस केस के अधिकारी इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह के साथ संपर्क में थी। वह मुझे तसल्ली दे रहे थे कि जल्द ही बिपिन का कोई सुराग मिल जाएगा। पर पिछले हफ्ते उन्होंने बताया कि जांच जारी है किंतु कई अन्य आवश्यक केस सामने होने के कारण बिपिन का केस कुछ समय के लिए पीछे चला गया है। तब मैं यह केस लेकर आपके पास आ गई। अब आप प्लीज़ बिपिन को खोज निकालिए।"
सरवर खान ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह अपनी सामर्थ्य के अनुसार पूरी ईमानदारी से इस केस पर काम करेंगे। सरवर की बात से एक नई उम्मीद लेकर नीलिमा चली गईं।