सोशल मीडिया का हर तरफ बोलबाला है. इस इन्टरनेट युग मे हर तरफ ज्ञान तों जैसे प्रसाद की तरह बँट रहा है. लोगों के सोशल मीडिया प्रोफाईल देखिये तो लगता है कि हर आदमी कवि है, नेता है, शायर है, दार्शनिक है, वो सब है जो वह नही है. हर कोई प्रवचन देता फिर रहा है हर उस मुद्दे’ पर जिसके बारे मे उसे ठीक से पता भी न हो लेकिन क्या करे मज़बूरी है, सोशल मीडिया पर ट्रेंड हो रहा है. समाज़ की सेवा करने की एक प्रबल इच्छा इन दिनो काफी प्रचलित है जैसे गरीबो मे साड़ियाँ, कम्बल., अनाज आदि का वितरण करवाना और फिर उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट कर खुद को समाजिक कार्यों का मसीहा बताना. कभी कभी तो लगता है कि ये वितरण समारोह वितरित करने के लिये आयोजित हुआ था या फिर फेसबुक पर तस्वीरें डालकर पहले आत्म्प्रशंशा और फिर दूसरों से ‘जबरन’ प्रसंशा कराने के लिये था. बहर् हाल इन वितरण समारोहों के उपर कभी ध्यान नही गया जब तक कि खुद एक ऐसे ही समारोह मे जाने का मौका न मिला. मेरे एक पहचान के व्यक्ति थे. आयकर विभाग मे कार्यरत थे. अपने सेवा काल के दौरान उन्होंने अपने पद की गरिमा का भरपूर मान रखते हुए पर्याप्त मात्रा मे धनोपर्जन किया था. जैसे जैसे सेवा निवृत्ति का समय नजदीक आ रहा था उनके अंदर बैठा समाजसेवी बाहर आने को व्याकुल हो रहा था. फिर वह एक दिन सेवानिव्रित हो गये. उनकी कुर्सी नही रही लेकिन समाज कल्याण के पथ पर चलने का उनका निर्णय अटल था और इस दिशा मे जो उन्होंने सबसे पहला क़दम उठाया वह था गरीबों मे कंबल बँटवाने का वो भी जेठ के महीने मे जब गरमी अपने चरम पर होती है. आप उनकी दूरदर्शिता को समझिये..अरे जाड़े मैं तो कंबल बँटवां देना एक साधारन सी बात है लेकिन गरमी की दोपहरी में कंबल बँटवाने का साहस कोइ सच्चा समाजसेवी ही कर सकता है. समारोह के सफल आयोजन के लिये एक सरकारी स्कूल का चयन किया गया जो कि उनके पैतृक गाँव का ही था. आखिर इतना नेक काम करने जा रहे थे तो शुरुआत तो अपने ही गाँव से करनी थी. अब गाँव वाले उनकी तरक्की से जलते थे, पीठ पीछे बुराई करते थे, भ्रष्ट और रिश्वतखोर कहते थे लेकिन थे तो अपने ही गांव के. उन्हे भी तो पता चले कि जिसे वो रिश्वतखोर कहते रहे वह कितना महान समाजसेवी है. कंबल वितरण समारोह की तैयारियाँ ज़ोरों पर थी.गाँव के मुखिया, सरपंच जैसे गणमान्य लोगों को भी आमंत्रित किया गया था. लक्ष्मी माँ कीं कृपा स्वरूप चमचों का एक स्वयम्सेवी दल भी मौजूद था. गरिबो की एक लिखित सूची भी तैयार की गयी थी. मुझ जैसे पत्रकार का उपस्थित होना मेरी मज़बूरी थी जिसके लिये कई बार मैने अप्नी’ आत्मा से क्षमा याचना की थी. नियत समय और स्थान पर कार्यक्रम शुरु हुआ. सरकारी स्कुल के प्रांगण में जेठ की धूप में कम्बल कृपा प्राप्त करने हेतु गरिबो को जमीन पर बैठाया गया. प्रांगण मे बने एक बरामदे के मंच से स्वयम सेवी दल के एक चमचे ने माइक पर कमान सम्भअला और बताया कि ‘ फलान’भैया के मन मे समाज की ग़रीबी को लेकर जो दुख है उसका कोई अंत नही है. कवि की पंक्तियों के माध्यम से कम्बल कृपा प्राप्त करने के लिये धूप में बैठे उन गरीबों को बताया गया कीं भैया ने सेवनिव्रिति के बाद भी घर पर बैठना और आराम करना रुचिकर नही समझा और कूद पड़े सामाजिक उत्थान के लिये. हम तो मंच पर पीछे बैठे थे और भैया द्वारा सामाजिक उत्थान के सपनो कि बात सुनकर भी कुछ न कह्ना चाहते थे मगर भीतर बैठा पत्रकार मन हि मन बोल उठा कि अक्सर सामाजिक उत्थान की चिंता उन्हे सब्से ज्यदा होती है जिनका खुद का नैतिक पतन हो गया होता है. भीतर के पत्रकार को मन हि मन डाट कर हमने कार्यक्रम पर ध्यान केंद्रित किया जो कि अपने चरम पर था. जोरदार भाषण हो रहे थे, समाजिक सेवा की महत्ता पर प्रकाश डाला जा रहा था, नारी सशक्तिकरण की चर्चा हो रही थी, ईमानदारी के राग अलापे जा रहे थे, कवियो का उदाहरण दिया जा रहा था, शहीदों के शहादत की दुहाई दी जा रही थी. बरामदे के उस मंच से प्रांगण मे कम्बल कृपा प्राप्ति कै लिये धूप मे घंटों से इंतजार कर रहे लोगो को समर्पित ये सम्बोधन बस उनकी गरिबी का तमाशा बना रहे थे. भाषा भले न समझ आये मगर भावना समझ आ जाती है. बरामदे के मंच से आता हुआ सम्बोधन कठिन हिंदी शब्दो और वाक्यो का संग्रह था जो भाषा तो थी पर भावनारहित थी. धूप मे कम्बल लेने के लिये बैठे लोगों साए सम्वाद के नाम पर मज़ाक हो रहा था. कुछ के कपड़े फटे थे, कुछ के मैले, कुछ बहुत बूढ़े थाई और कुछ तो ठीक से चल भी नही सक्ते थे. भाषणों क दौर जारी था और एक्मात्र सम्वाद हो रहा था मेरे और धुप मे बैठे लोगो के बीच..मौन सम्वाद..कि वो भी सोच रहे थे और मै भी कि जल्दी कम्बल बँटे और घर जाऊँ. गर्मी बहुत है न.. अंदर के पत्रकार को चुप कराकर हम्ने फिर कार्यक्रम पर ध्यान दिया. भैया का भाषण शुरु हो चुका था. वह बता रहे थे कि उनके अंदर कितनी दया, कितनी करूणा और कितना सेवा भाव है. उन्होने सम्झाया कि उनकी महानता का अंदाजा इसी सई लगाया जा सकता है कि कैसे इस गरमी कि परवह न करते हुए सेवा भावना से ओत प्रोत होकर वह यहां सब के बीच मौजूद है.फिर भाषणों का सिल सिला समाप्त हुआ और वितरण प्रारंभ हुआ. पह्ले से बनी सुची से नाम पुकारा जाता और कम्बल दिया जाता. कम्बल देते और लेते हुए तसवीर निकाली गई. किस किस को कम्बल दिये गये उसका विवरण सुरक्षित रखा गया. भैया के साथ साथ स्वयम्सेवी दल के चमचों ने भी कम्बल देते हुए तस्वीरे खिचवायी. आखिर उंका भी फेसबुक के प्रति कोई उत्तर दायित्व है कि नही. वितरण समारोह के बाद भैया के चेहरे पर एक गजब का आत्मसंतोष देखा जिसे देख कर मेरे भीतर के पत्रकार को एक शायर की पंक्ति याद आ गई... “ मुझको दो रोटियां दे के वो ये समझता है रब हो गया.”
कुछ समय बाद फेस बुक पर समाज के इस अति विशिस्ट, महान समाजिक कार्य के लिये भैया सराहना का सेहरा बाँधे नज़र आये जिसमें स्वम्सेवी दल के चम्चो ने चार चाँद लगा दिये. खबर आ रही है कि भैया चार राज्नितिक पार्टियों के संपर्क में हैं जिसने भी चुनाव मे टिकट दे दिया बस उसी के हो जायेंगे. अब ideology तो कभी रही नही जिसकी परवाह करे. अवसर मिलना चाहिये बस. आयकर विभाग में सेवा काल के दौरान लक्ष्मी माता
की बड़ी कृपा रही थी अब थोड़ा खर्चा भी करना पड़ेगा तो करेंगे बस एक बार विधायक बन जाये fir पैसा और पावर दोनो जेब मे होगा. कम्बल वितरण के बाद अब साड़ी वितरित करने की सोच रहे हैं भैया. आखिर राज्नितिक जमीन भी तो तैयार करनी है..सवाल समाज सेवा का है भाई..
समाप्त.