Garibi ke aachran - 6 in Hindi Fiction Stories by Manjeet Singh Gauhar books and stories PDF | ग़रीबी के आचरण - ६

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ग़रीबी के आचरण - ६

श्रीकान्त अंकल जी बस इसी बात को बार-बार सोच कर परेशान हुआ करते थे, कि ' मेरे होते हुए मेरे बीवी बच्चों को कमाना पड रहा है। और मैं उनकी कमाई को आराम से बैठ कर खा रहा हूँ। मुझ जैसा बदक़िस्मत व्यक्ति शायद ही कोई हो इस दुनिया में।' ये सब सोचने के सिवाय कोई और चारा भी तो नही था। क्योंकि उन को एक ऐसी बीमारी ने जक़ड लिया था। जो हफ़्ते में सिर्फ़ एकाध बार श्रीकान्त अंकल जी को अपने होने का अहसास दिला देती थी। और जिसके चलते श्रीकान्त अंकल जी के घर वालो ने उन्हें कहीं भी काम करने से सीधा मना किया हुआ था। लेकिन श्रीकान्त अंकल जी चाहते थे कि वो कहीं काम करें। चाहे काम छोटा हो चाहे बड़ा हो। क्योंकि श्रीकान्त अंकल जी का घर में पड़े पड़े बिल्कुल भी मन नही लगता था। और वो घर में बैठे बैठे ऊव जाते थे। वो पूरे दिन घर से बाहर रहना चाहते थे। क्योंकि उनके घर में उन्हें और उनकी मॉं को छोड़ कर पूरे दिन कोई नही रहता था। क्योंकि वाक़ी सभी लोग काम (जॉब) करने जाते थे।
एक बार श्रीकान्त अंकल जी बहुत परेशान से अपने घर की बालकनी में एक लकड़ी कुर्सी पर बैठे हुए थे। वहीं जहॉं वो बैठे थे उनके दायीं ओर बिल्कुल उनके पास ही एक गमले में एक फूलों का पौधा लगा हुआ था। और उस पौधे पर बहुत सारे फूल लगे हुए थे। उन्हीं फूलों को श्रीकान्त अंकल जी बहुत ही ध्यान से देख रहे थे। और काफ़ी देर तक उन फूलों को देखते रहने के बाद वो बहुत तेज़ी के साथ उस लकड़ी की कुर्सी पर से खड़े होकर सीधा उन फूलों के पौधे की तरफ़ बढे। और वहॉं उस पौधे के पास जो एक आधी कटी हुई प्लासटिक की बाल्टी में लगा हुआ था। वहॉं बैठने के लिए जैसे ही नीचे की तरफ़ झुके तो उन्होने देखा कि उस अधकटी बाल्टी में से जो श्रीकान्त अंकल जी और उनके घर के सभी लोगों के लिए फूल पौधे का गमला था, उसमें से पानी निकल कर नीचे फ़र्श पर बिखरा हुआ था। उस पानी को देख कर श्रीकान्त अंकल जी वहॉ नही बैठे। और फिर वहॉं से थोडा-सा दूसरी ओर खिसक कर उस पौधे के एक-एक फूल और पत्ते को अपने हाथ से इधर-उधर करके उसे जड़ से सिरे तक निहारा। वो दरअसल, श्रीकान्त अंकल जी कुर्सी पर से उस पौधे की तरफ़ बहुत तेज़ी से इसलिए आये थे कि उन्हें कुर्सी पर से बैठे फूलों के बीच में एक कीड़ा दिखाई पड़ा। वो कीड़ा उस छोटे से पौधे पर लगे बहतु ही प्यारे और सुन्दर फूलों को काट रहा था। जिसे देखते ही श्रीकान्त अंकल जी कुर्सी से खड़े होकर तेज़ी के साथ गये। ताकि उस कीड़े को वहॉं से हटा या भगा सके। लेकिन वहॉं जाकर उन्होनें देखा, तो उन्हें वो कीड़ा नही मिला। और श्रीकान्त अंकल जी फिर वहीं उस फूलों के छोटे से पौधे के पास बैठ गये। और उस पौधे के छोटे-छोटे और रंग-बिरंगे फूलों के साथ खेलने लगे।
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मंजीत सिंह गौहर