आज एक लेख प्रस्तुत कर रहा हूँ कृपया समीक्षा अवश्य लिखें।
"सागर का तूफान", !!
आप सोच रहे होंगे ये क्या नाम हुआ । सागर और तूफान दो विपरीत गुण दो उलट शख्शियत ।
एक मे गंभीरता है, गहराई है ,शांति और प्रेम का द्योतक है।
वहीं दूसरा विध्वंसक, विनाशक ,भयावह अशांति का प्रतीक।
किन्तु क्या जो हमेशा शांत है गम्भीर है उसमें कभी क्रोध कभी असंतोष नही होता होगा।
खासकर पर्वत को अपनी ऊंचाई पर अभिमान करते ,या हवा को अपने वेग पर गर्व करते ,आत्ममुग्ध होते देख ।
आ जाता होगा सागर के 'हृदय सागर' में भी अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करने का विचार।
या उन दोनो को अपनी शक्तिपरिचय से अवगत कराने का भाव।
और उठा देता होगा अपनी लहरों को ऊंचा पर्वत को खुद में समेटने के लिए।
उछाल देता होगा अपनी अतुलनीय जलराशि को; हवा को निज अंक में समेट लेने के लिए।
और फिर जो तबाही होती है उससे हम सभी परिचित हैं ।
इसी प्रकार मेरे हृदय सागर में भी उठते हैं तूफान। कभी सामाजिक कभी धार्मिक अस्थिरता को देख कर । उबल पड़ता है मेरा साहित्य क्रंदन।
और बन जाती है कोई नई शब्द रचना जिसे मैं कहता हूं सागर का तूफान।
मैं कौन?
मैं भी सगार की तरह शांत गम्भीर हूँ मेरा ह्रदय भी सदा भावो से भरा है।
किन्तु मानवी अवगुण मुझमें भी बहुत हैं ।
मैं एक ऐंसा पौधा(केक्टस) हूँ जिसे प्यार करने के लिए भी हाथ बढ़ाओगे तब भी आपको चुभन ही दूँगा।
और ये सब बातें मैं आज कह रहा हूँ क्योंकी मेरा हृदय छलनी हुआ है कुछ अमानवीय विचार रखने वाले असुर रूपी मानवों के दुष्कृत्य से।
कुछ लोगों ने आज फिर ललकारा है हमारे शान्ति सागर को ।
आज फिर अवश्यकता हो रही है सागर में तूफान की , क्यों नहीं आज हिन्द की शांति गंभीर होकर एक जुट होकर तूफान बन जाये एक ऐसा तूफान जिसमें उड़ जाए अमानवीय सोच वाले सभी मानव वेष धारी असुर।
आज बहुत जरूरत है सागर के एक तूफान की।
अपने भारत की अखंडता सम्प्रुभता बचाये रखने के लिए। जिसे कुछ लोग अपने व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्धि हेतु फिर से तोड़ने में मन्सूबे संजो रहे हैं और इस लोभ संवर्धन हेतु वह लोग भड़का रहे हैं हमारे अपने नौजवानों को।
आज मैं आवाहन करता हूँ अपने सभी नौजवान साथियों का अपने देश की संप्रभुता बनाये रखने में उनके योगदान का।
और आशा करता हूँ कि हम अपने देश की अखंडता, एक देश एक ध्वज एवं एक नियम की सरसता को अब कभी टूटने मिटने नहीं देंगे।
।।जय हिंद।।
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नृपेंद्र शर्मा "सागर"