Moumas marriage - Pyar ki Umang - 13 in Hindi Love Stories by Jitendra Shivhare books and stories PDF | माँमस् मैरिज - प्यार की उमंग - 13

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माँमस् मैरिज - प्यार की उमंग - 13

माँमस् मैरिज - प्यार की उमंग

अध्याय - 13

जब शंशाक को मनोज जी नेमाँल की नौकरी से निकाल दिया तब शंशाक और मैंने अपना खुद का बिजनेस स्टार्ट किया। शंशाक के बेहतर बिजनेस के लिए मैंने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया। मैं शुरू से ही बहुत महत्वाकांक्षी महिला रही हूं। पेट्रोल कम्पनियों से टेंडर हासिल करने के लिए मैंने अपनी ईज्जत तक की परवाह नहीं की। फिर एक दिन मैंने यही बात शंशाक को बताई की टेंडर हासिल करने के लिए मुझे आला-अधिकारीयों के साथ पुरी रात गुजारनी पड़ी है, तब बजाये नाराज होने के उसने डायलॉग मारा- 'प्यार और जंग में सब जायज है मेरी जान महिमा।' फिर तो जैसे बड़े अधिकारियों के सम्मुख मुझे प्रस्तुत करने का शंशाक कोई भी अवसर नहीं छोड़ता। शंशाक दिन-रात रूपयों के पीछे भाग रहा था। जबकी मैं अकेली रह गई थी। अकेलेपन ने मुझे सचिन की तरफ मोड़ दिया। सचिन और मैं एक-दूसरे के प्यार में गिरफ्तार हो गये थे। सचिन मुझसे शादी करना चाहता था लेकिन शंशाक मुझे सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी के अलावा कुछ नहीं समझता था। वह मुझे तलाक देने को तैयार नहीं था।" महिमा बोलते-बोलते चुप हो गई।

महिमा और सचिन बार-बार यही कह रहे थे कि उन्होंने शंशाक को नहीं मारा।

पुलिस की तहकीकात में यह बात चली की शंशाक एक ठग था। कई सारे बिजनेस बदल चुके अन्य शहर से यहां आकर रहने वाला शंशाक ने शहर में बहुत से लोगो को ठगा था। एक-दो मामूली धाराओं में उसके विरुद्ध पुलिस थानों में प्रकरण दर्ज भी किये गये। लेकिन ठोस सबूत के अभाव में वह छुट कर बरी हो चूका था।

वृद्ध मूलचंद रनसौरे और उनकी पत्नी कौशल्या रनसौरे को विजय नगर पुलिस ने शंशाक हत्याकांड की पुछताछ के लिए पुलिस स्टेशन बुलवाया। वृद्ध मूलचंद रनसौरे ने शंशाक पर अपनी खण्डवा रोड स्थित जमींन पर कब्जा करने के विरुद्ध कैस न्यायालय में लगाया था। निचली अदालत में केस हार जाने के बाद मूलचंद ने हाईकोर्ट में शंशाक के विरुद्ध कैस फाइल किया था।

पुलिस को संदेह था कि कही पुरानी दुश्मनी के चलते मूलचंद ने ही तो नहीं मार दिया शंशाक को? मूलचंद ने बताया कि अपनी थोड़ी सी सड़क किनारे की जमीन पर जब सिंचाई हेतु पानी की समस्या होने लगी तब हम दोनो बांझ पति-पत्नी किसी तरह दिहाड़ी कर गुजर बसर कर रहे थे। एक दिन शंशाक उनकी जमींन पर पेट्रोल पंप खोलने का प्रस्ताव लेकर आया। खेती तो सुख गई थी ऊपर से बुढ़ापे के कारण मजदूरी भी नहीं हो पाती थी। इसलिए हम दोनों ने अपनी जमींन पर पेट्रोल पंप खोलने की अनुमति दे दी। महिने में बहुत सारे रूपयों की कमाई के लालच में आकर हम दोनों ने बिना देखे ही बहुत सारे कागजों पर साइन कर दिये। हमारी कोई संतान नहीं थी, सो जमींन के वारिस में धोखे से शंशाक ने स्वयं का नाम लिखवा दिया था। इतना ही नहीं उसने हमारे दत्तक पुत्र होने के नकली कागजात भी अदालत में पेश कर दिये। अदालत ने उसे दस हजार रुपये मासिक भरण-पोषण भत्ते हमें देने का आदेश देकर केस बंद कर दिया। जबकी हमें तो हमारी जमींन चाहिये थी। अदालत ने ये भी कहा वृध्दावस्था में घर बैठकर आराम करे और अपने दत्तक पुत्र को काम करने देवे।

इन्दौर हाईकोर्ट खण्ड पीठ में रनसौरे दम्पति पिछले चार सालों से केस लड़ रहे थे। उनकी हिम्मत जवाब दे चुकी थी। तब ही मूलचंद की भेंट नेहरू पार्क में गणेशराम चतुर्वेदी से हुई। मूलचंद की पुरी बातें सुनकर अमराई की चौपाल ने शंशाक को समझाइश देना शुरू कर दिया। गणेशराम चतुर्वेदी अक्सर शंशाक के घर चौपाल सदस्यों को लिए पहूंच जाते। वे मूलचंद की जमींन के बदले वाजिब दाम की मांग शशांक से करते। एक करोड़ रुपये की जमीन के बदले शंशाक पांच लाख रुपये और शहर में वन बी एच के फ्लेट मूलचंद को देने के लिए राजी हो गया। मूलचंद ने भी विचार किया कि अब कितना ओर जीना शेष है? सो इसी में सहमती प्रदान कर दी।

मूलचंद और कौशल्या ने दृढ़ता से पुलिस से कहा कि उन्होंने शंशाक को नहीं मारा।

चतुर्वेदी परिवार में हलचल मच गई जब पुलिस पुछताछ के लिए गणेशराम चतुर्वेदी को पुलिस थाने ले गयी। चूंकि गणेशराम चतुर्वेदी बार-बार शंशाक के घर आते-जाते रहते थे और शंशाक पर मूलचंद की जमीन लौटाने का दबाव बनाते हुए शंशाक और गणेशराम की बहस भी हुई थी। घर में अशांति का माहौल देखकर महिमा ने गणेशराम चतुर्वेदी को अब से उनके घर नहीं आने की धमकी थी। जब सचिन को यह पता चला कि गणेशराम चतुर्वेदी महिमा को परेशान कर रहे है तब उसने सायंकाल मुसाखेड़ी सब्जी मण्डी से सब्जी खरिद रहे गणेशराम चतुर्वेदी को महिमा के घर नहीं जाने के लिए धमकाया। ऐन वक्त पर संजीव और नवीन के पहूचने से वह डर कर भाग खड़ा हुआ। इंदौर पुलिस की निरंकुश कार्य शैली से सभी परिचित थे। उस पर चुनाव आचार संहिता लागू थी। अतएव किसी भी राजनीतिक दल अथवा प्रतिष्ठित व्यक्ति ने गणेशराम चतुर्वेदी का पुलिस के समक्ष पक्ष नही लिया। असावा हाउस पर मनोज और सीमा पहूंचे। पुर्व से रवि और उसके पिता वहां उपस्थित होकर गणेशराम चतुर्वेदी को पुलिस गिरफ्तारी से बाहर निकालने पर शहर के बड़े वकिल राकेश मालवीय से चर्चा कर रहे थे। संजीव सपत्नीक अपने पिता के लिए चिंतित थे। सिसोदिया परिवार ने फोन पर असावा जी को गणेशराम चतुर्वेदी के लिए हर संभव मदद देने की बात कह कर ढांढस बंधाया। पुलिस स्टेशन में अपने पिता से मिलने गये नवीन को सौम्या दिलासा दे रही थी। चोरल गांव में अपने भूतपूर्व टीचर गणेशराम चतुर्वेदी के लिए राजेश भी चिंतित था।

आर्यन और बबिता भी इस विषय पर चतुर्वेदी परिवार के साथ ही थे।

तीन दिन पुलिस ने पुछताछ कर गणेशराम को छोड़ दिया। एक माह के बाद भी शंशाक का हत्यारा पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा था।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ चूकी थी। शंशाक की मौत सांसे रूक जाने से हुई थी। गले पर दबाव के कोई निशान नहीं थे। फाॅर्रेसिंक विभाग के डाक्टर्स ने संभावना जताई की शंशाक के मुहं को तकिये से दबाकर मारा गया है या फिर उसे ऐसी जगह उसे रखा गया जहां आक्सीजन नहीं हो या बहुत कम मात्रा में हो जिससे की दम घुटने के कारण उसकी मौत हो चुकी थी। पुलिस एक-एक संदिग्ध से पुछताछ कर चूकी थी। लेकिन परिणाम कुछ नहीं निकल रहा था। पुलिस प्रशासन पर हत्या के हत्यारों को पकड़ने का बहुत अधिक था। कार्यवाही चल रही है। मीडीया को यह दिखाने के उद्देश्य से पुलिस जब-तब पुछताछ के लिए कभी असावा जी को पुलिस स्टेशन ले आती तो कभी गणेशराम चतुर्वेदी को। मनोज ने शंशाक को कुछ वर्ष पुर्व नौकरी से बाहर निकाल दिया था। सो संदेह के घेरे में मनोज भी था। उसे भी पुछताछ के लिए पुलिस स्टेशन बुलवाया जाता। घण्टे दो घण्टे यहां-वहां के वहीं सवाल बारम्बार पुछकर छोड़ दिया जाता। राजेश को भी आजाद नगर पुलिस ने पुछताछ के लिए बुलाया। पुलिस का राजेश पर संदेह जानकर काजल व्याकुल हो गई। राजेश ने ही ऑफिस में शशांक के रूपये गबन करने का षड्यंत्र सामने लाया था जिससे शशांक और राजेश में खुब हाथापाई हुई थी। राजेश द्वारा शंशाक के रूपये गबन का मामला मनोज की नजरों में आया था। फलस्वरूप मनोज ने शंशाक को नौकरी से बाहर निकाल दिया था। संदेह के वशीभूत राजेश से भी पुलिस ने पुछताछ की। काजल ने निर्णय लिया कि जब तक शशांक के हत्यारे का पता नहीं चल जाता वो और उसकी मां दोनों मनोज के घर ही रहेंगे।

रवि के पिता श्याम परिहार ने कुछ वर्ष पूर्व शंशाक पर धोखाधड़ी से पैसे ऐंठने की एफआईआर दर्ज करवाई थी। रवि के पिता श्याम परिहार ने अपने खाली पड़े प्लाट पर भवन निर्माण का कार्य शंशाक को दीया था। शंशाक ने अखबार में स्वयं को भवन निर्माण ठेकेदार बनाकर बताकर विज्ञापन प्रकाशित करवाये थे। रवि के पिता श्याम परिहार, शंशाक के झांसे में आ गये थे। शंशाक ने रवि के पिता श्याम परिहार के प्लाट पर भवन निर्माण कार्य आरंभ कर तो दिया, किन्तु आये दिन किये गये काम से अधिक रूपयों की मांग से रवि के पिता परेशान हो गये। उन्होंने पहले ही शंशाक को आवश्यकता से अधिक रूपये दे दिये थे। जब उन्होंने शंशाक को और अधिक रूपये देने से मना कर दिया तब शंशाक ने काम अधूरा छोड़कर भवन निर्माण बंद कर दिया और फरार हो गया। उसने मोबाइल नंबर भी बंद कर लिया। परेशान होकर रवि के पिता श्याम परिहार ने शंशाक पर धोखाधड़ी का केस दर्ज करवा दिया। किन्तु पुलिस शंशाक को पकड़ नहीं सकी। थक-हारकर रवि के पिता ने अपने अधूरे मकान का कार्य अन्य ठेकेदार से पुर्ण करवाया। उन्होंने शंशाक को भुला दिया।

शंशाक से अनबन के चलते रवि के पिता श्याम परिहार को भी पुलिस स्टेशन आना पड़ा। किन्तु उन्हें भी औपचारिक पुछताछ कर छोड़ दिया गया।

पुलिस को एक दिन एक सीडी मीली। किसी अज्ञात व्यक्ति ने वह सीडी थाने तक पहूंचाई थी। सीडी में मनोज और महिमा के अंतरंग पलों को चुपके से हिडन कैमरे द्वारा फिल्माया गया था। पुलिस ने मनोज और शंशाक की पत्नी महिमा को पुनः पुलिस स्टेशन बुलवाया। पुलिस ने सख्ती बढ़ा दी थी। किन्तु न ही मनोज और न ही महिमा ने स्वीकार किया कि उनमें से किसी एक ने शंशाक की हत्या की है। महिमा ने यह स्वयं स्वीकार किया कि मनोज की नशे की अवस्था में उसने और शंशाक ने जानबूझकर झुठा वीडियों तैयार किया था। जिसके ऐवज में शंशाक मनोज को ब्लैकमेल कर रहा था। उसने सीडी के बदले पचास लाख रूपये मांग कर सीडी नष्ट कर दी थी।

जब यह सीडी नष्ट कर दी गई थी तब दोबारा ये कैसे बाहर आ गई? इसका मतलब सीडी नष्ट नहीं की गई थी? बल्कि आगे भी मनोज को ब्लैकमेल करने की शंशाक की योजना थी। यह भी हो सकता है किसी दूसरे आदमी के हाथों यह एमएमएस की सीडी लग गई हो और वह मनोज और महिमा को शंशाक की हत्या में फंसाना चाहता हो? ऐसे अनगिनत प्रश्नों पर इन्सपेक्टर विजय कुमार सिंह और उनके सहयोगी सहायक इन्सपेक्टर विनोद जाट पुलिस स्टेशन पर मंथन कर रहे थे।

शंशाक ने अपने क्रियाकलापों से बहुत से दुश्मन बना लिये थे। किन्तु उसका हत्यारा अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर था। पुलिस ने शंशाक की फोन डिटेल और उसके घर की सीसीटीवी कैमरे की फुटेज चेक किये। सभी कुछ अच्छे से निरिक्षण करने के उपरांत भी वे सही कातिल का पता नही लग पा रहा था।

शंशाक अक्सर शहर की होटलों में अपने काम की मीटिंग आदि करने जाया करता था। शंशाक अपनी पत्नी को भी उन मींटीगस में ले जाया करता था। लेडिज इफेक्ट्स के फायदे वह जानता था। ऐन-केन प्रकारेण उसे अपने बिजनेस को ऊंचाई पर ले जाना था। महिमा ने पुलिस को उन होटल्स का एड्रेस दिया जहां शंशाक अपने क्लाइंट से मिला करता था। पुलिस ने उन होटल्स की संघनता से जांच की। सीसीटीवी कैमरे में एक नयी महिला उसके साथ दिख रही थी। इन्सपेक्टर विजय कुमार सिंह के होंठ स्वतः ही गोल हो गये। माजरा वे भांप चूके थे। वे सीधे सीमा के घर पहूंचे महिला कांस्टेबल के साथ। उनके साथ सहायक इन्सपेक्टर विनोद जाट भी थे।

राधा अपनी दोनों बेटीयों को लेकर गांव जाने की तैयारी कर ही थी।

"कहां जा रही है मिसेज राधा?" घर के अन्दर आते ही इन्सपेक्टर विजय कुमार सिंह ने राधा से पुछा।

वह चौंक पड़ी।

सीमा और उसकी दोनों बेटियां बबिता और तनु भी वहीं थी। हाॅल के अन्दर आकर लेडी काॅन्सेटबल ने राधा को पीछे से पकड़ लिया। राधा छटपटने लगाने लगी।

"इन्सपेक्टर साहब ये क्या है? आपने राधा को क्यों पकड़ रखा है?" सीमा ने पुछा।

"मैडम सीमा! ये मिसेज राधा ने ही शंशाक की हत्या की है।" इन्सपेक्टर विजय कुमार सिंह ने बताया।

सीमा भौंच्चकी रह रह यह सुनकर।

"क्या सबूत है आपके पास, की मैंने शंशाक को मारा है।" राधा चिखी।

"मैडम! पिछले दो तीन महिनों में आपकी शंशाक से बहुत ज्यादा नजदीकियां बढ़ गई थी। शहर के बहुत से बड़े होटल्स में आप दोनों को साथ में देखा गया है। सीसीटीवी कैमरे में आप शंशाक के साथ दिखाई दे रही है।" सहायक इन्सपेक्टर विनोद जाट ने आगे बताया।

" थोड़ी और जांच करने पर पता चला कि राधा जी शंशाक की बिजनेस पार्टनर बन गई थी। शंशाक के बिजनेस डॉक्यूमेंट्स में शंशाक के बिजनेस पार्टनर के नाम के आगे राधा का नाम लिखा था। इतना ही नहीं जब राधा का बैंक अकाउंट चेक किया गया तब लाखों रूपये की क्रेडिट इनके खाते में जमा की गई थी। वह भी शंशाक के द्वारा। अब राधा जी आप स्वयं हत्या करना स्वीकार करेंगी या फिर हमें आपसे विवशता के चलते कुबूल करवाना होगा?"

इन्सपेक्टर विजय कुमार सिंह ने कहा।

राधा की दोनों बेटियां सुबक रही थी।

"हां मैं स्वीकार करती हूं कि मैंने ही शंशाक की हत्या की है।" राधा का गला भर आया था।

सीमा और उसकी दोंनो बेटियां राधा की स्वीकृति सुन कर चौंक पड़े।

***