माँमस् मैरिज - प्यार की उमंग
अध्याय - 12
एक दिन सीमा को पता चला कि उसकी होने वाली सास मनोज की मां जिन्हें घर और बाहर वाले सभी 'अम्मा' कहकर बुलाते थे, वह तीर्थ यात्रा कर घर लौट आई है। आते ही उन्होंने अपनी होने वाली बहु सीमा को देखने की ईच्छा जताई। मनोज के मुंह से उसने अम्मा के कठोर व्यवहार के किस्सें सुन रखे थे। अम्मा जी नियम-कानून का गंभीरता से पालन वाली भारतीय पुरातन संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती थी। उनके सम्मुख मनोज की बोलती बंद हो जाती थी। अम्मा जी के सम्मुख अगर कोई खुलकर बोल सकता था तो वह उनका पोता श्लोक था। श्लोक भी अम्मा जी से बहुत प्रेम करता था।
तनु और बबिता ने सीमा को हिम्मत बंधाई और उसे अम्मा जी से मिलने जाने के लिए तैयार किया। तनु और बबिता भी सीमा के साथ ही चल दी। उन दोनों की भी अम्मा जी से ये पहली मुलाकात थी।
दोपहर 2 बजे सीमा अम्मा जी से मिलने उनके घर आई।
अम्मा जी घर के हाॅल में टीवी पर प्रसारित प्रवचन सुन रही थी। सीमा ने अम्मा के पैर छूकर आशिर्वाद लिया। अम्मा ने सौभाग्यवती भवः का आशिर्वाद देकर उसे अपने पास सोफे पर बैठाया। तनु और बबीता ने भी अम्मा जी के पैर छूकर आशिर्वाद लिया।
तनु बहुत छोटा स्कर्ट पहनकर आई थी। जिसके कारण वह सोफे पर आरामदायक तरीके से बैठ नहीं पा रही थी। तनु बार-बार अपने स्कर्ट को नीचे की ओर खींच रही थी। उसके यह सब हरकते अम्मा जी नोट कर रही थी।
"तनु!" अम्मा ने बगल में बैठी तनु को आवाज लगाई। तनु चौंक पडी।
"जीsss!" तनु ने कहा।
उसे आभास नहीं था कि अम्मा जी उसे नाम से पुकार लेगीं।
"बेटा इधर आओ!" अम्मा जी ने तनु को अपने पास बुलाया।
"जाओ उपर जाकर कपड़े बदल लो।" अम्मा जी ने कहा।
" जीsss क्या मतलब? " तनु हैरत में थी। बबीता और सीमा भी यह सब देखकर चौक गये थे।
" मतलब ये कि मैं आधुनिक कपड़ पहनने के विरूद्ध नहीं हूं। लेकिन हम सभी को कपड़े पहनते समय परिस्थिति और स्थान अनुरूप ही कपड़ो का चयन करना चाहिए। तब ही तो हर जगह कम्फर्टेबल रहेंगे न? बबीता और सीमा ने जो कपड़े पहने है वे आरामदायक भी है और आज के इस अवसर पर फिट भी बैठते है। जाओ। ऊपर कमरे में चली जाओ। जो अच्छा लगे और कम्फर्टेबल भी हो, वह पहनकर आ जाओ। तुम सबसे मुझे बहुत सारी बाते करनी है।" अम्मा जी ने मुस्कुराते हुये कहा।
तनु वहां से सीधे उपर की सीढ़ियां पर चढ़ते हुये मनोज की पहली पत्नी के कमरे में चली गई। बबिता भी उसके साथ चल दी। घर की नौकरानी ने तनु को अलमारी से सलवार-कुर्ती पहनने को दिया।
अम्मा जी के आधुनिक विचारों से पुरानी सभ्यता और संस्कृति की छलक देखकर सीमा उनसे प्रभावित हुये बिना न रह सकी।
सीमा और अम्मा बातों ही बातों में मनोज के बचपन की तस्वीरें और उसकी शैतानी हरकतों पर चटखारे मारकर हंस रहीं थी। तनु और बबीता उपर से नीचे इन दोनों होने वाली सास-बहू को हंसते हुये देखकर बहुत प्रसन्न हो गयी। सीमा ने कुछ ही देर में अम्मा जी का दिल जीत लिया था। अम्मा जी के मन को भी सीमा भां गई थी।
अम्मा जी ने बगैर देरी किये मनोज और सीमा की शादी का मोहर्रम निकलवा दिया। आने वाली देव उठनी ग्यारस पर धूमधाम से मनोज और सीमा की शादी होना सुनिश्चित किया गया।
सौम्या का ह्रदय उसके नाम की तरह ही नवीन के प्रति सौम्य हो गया। राजाराम असावा और सौम्या घर लौट आये। सौम्या के मन में अब कोई दुविधा नहीं थी। पिता के साथ बिताये गये कुछ घण्टों ने उसके व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन उभार दिये थे। उसने शालिनी को यह सब बताया और कह दिया कि उसे नवीन पसंद है। शालिनी और संजीव प्रसन्न हो गए।
सब खुश थे सिवाए दुर्गा देवी के।
पार्टी शुरू हो चूकी थी। गणेशराम चतुर्वेदी अपने पुरे परिवार के साथ पार्टी में सम्मिलित थे। असावा जी ने सपत्नीक गणेशराम चतुर्वेदी और पुष्पलता चतुर्वेदीके पैर छूकर आशिर्वाद लिया। मेहमान यह दृश्य देखकर गदगद हो गये। मनोज अपनी मंगेतर सीमा के साथ पार्टी में सम्मिलित थे। तनु और बबिता भी साथ में आये थे। तनु की आंखे रवि को ढुंठ रही थी। और बबीता अपने साजन आर्यन के लिए बैचेन थी। राजेश और काजल एक साथ बहुत ही सुन्दर दिखाई दे रहे थे। मनोज और सीमा उन दोनों से बातचीत करने मे व्यस्त नजर गये।
रवि अपने पिता के साथ पार्टी में आ चूका था। तनु अपने प्रिय रवि को देखकर प्रसन्न हो उठी। दीनानाथ सिसोदिया भी अपने पुरे परिवार के साथ पार्टी में पधार रहे थे। बबिता और आर्यन की आंखे एक-दूसरे से बहुत कुछ कह रही थी।
पार्टी की चकाचौंध और वैभव से सभी मेहमान अभिभूत थे।
राजाराम असावा और दुर्गा देवी ने केक काटकर पार्टी की शुरुआत कर दि। दोनों कुछ ऊंचाई पर बने खुबसूरत साज-सज्जा लिये स्टेज पर चढ़कर सिंहासन आरूढ़ हो गये। उन्हें बधाई देने वालों का तांता लग गया।
इन दोनों के स्टेज की बाई और स्थित स्टेज पर आर्केस्ट्रा वाले फिल्मी गीत गुनगुनाने रहे थे। दाई तरफ भव्य पांडाल में स्वरूचि भोज प्रारंभ हो चुका था। शालिनी ने सौम्या को स्टेज पर नृत्य करने के लिए कहा। थोड़ी ना-नुकुर के बाद वह तैयार हो गयी। असावा दम्पति जहां विराजमान थे उन्हीं के सामने व्यवस्थित जमाई गई कुर्सियों पर ढेरों मेहमान बैठे थे। मेहमान स्टेज पर असावा दम्पति को सीधे देख पा रहे थे और बगल में ऑर्केस्ट्रा का आनंद भी उठा रहे थे। ऑर्केस्ट्रा की स्टेज पर सौम्या नृत्यांगना की पोशाक में पहूंच गई। फिल्मी गीतों का गायन रोककर सौम्या के भरतनाट्यम नृत्य को देखने में सभी मेहमान व्यस्त हो गये। उसकी मनमोहन प्रस्तुती जारी थी। नवीन भी स्वयं को रोक नहीं सका सौम्या के नृत्य को देखने से।
तालियों की गड़गड़ाहट से पुरा गार्डन गुंज उठा। सभी मेहमानों की तालियों से ज्यादा उसे नवीन की तालियां स्वयं के लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं दिख रही थी। नवीन सामान्य मुस्कान बिखेरे सौम्या को देख रहा था। और सौम्या उसे प्यार भरी नजरों से निहार रही थी।
शालिनी ने नवीन को नृत्य करने को कहा। नवीन चौंक पड़ा। पिताजी के सम्मुख नृत्य कैसे करे? संजीव ने पिता से उसे अनुमति दिलवा दी। गणेशराम चतुर्वेदी ने नवीन के शिव तांडव स्तोत्र की धुन पर नृत्य करने की बहुत प्रशंसा सुन रखी थी। आज पहली बार सम्मुख देखने का अवसर वे भी खोना नहीं चाहते थे। शालिनी ने पुर्व से ही सौम्या और नवीन का नृत्य कार्यक्रम तय कर लिया था। ताकी दोनों एक-दूसरे के विषय में ओर अधिक विचार कर नजदीक आये।
नवीन ने स्टेज पर पहूंचेते ही शिव तांडव स्तोत्र पर नृत्य की प्रस्तुती शुरू कर दी। आसपास की लाइट्स धीमी कर नवीन पर स्पेशल इफेक्ट्स लाइटिंग की बौछारों ने वातावरण को शिव भक्ति मय बना दिया। सभी की नजरे नवीन पर जम गई। नवीन की आकर्षक प्रस्तुती के समाप्त होने तक पीन ड्राप साइलेंस चलता रहा। नवीन की एकल नृत्य प्रस्तुति को भी बहुत सराहना मिली। सौम्या ने हृदय तल से नवीन के नृत्य पर बधाई दो। भोजन शुरू हो चुका था। पार्टी चरम पर थी। नवीन के लिए भोजन की थाली स्वयं सौम्या ने तैयार की। शालिनी ने दोनों की बातचीत शुरू करवायी। नवीन सौम्या के सौन्दर्य पर अभिभूत था। उसने सौम्या को माफ कर दिया था। सौम्या से अपने लिए भोजन की थाली स्वीकार कर उसने सौम्या के प्यार को भी स्वीकार कर लिया था। सौम्या और नवीन को एक साथ खाना खाते देखकर राजाराम असावा प्रसन्न हो गए। उनकी सौम्या के प्रति चिंता भी जाती रही।
गणेशराम चतुर्वेदी और पुष्पलता चतुर्वेदी असावा दम्पति को शुभकामनाएँ देकर पार्टी से जल्दी चले गये। रात बारह बजे का वक्त हो रहा था। पार्टी अभी जारी थी।
असावा हाउस का नौकर चंदन दौड़ते हुये आया। मेहमानों की आवभगत में लगे राजाराम असावा के कान में चन्दन ने कुछ कहा। असावा जी चौंक पड़े। वे गार्डन से बाहर की तरफ भागे। स्वागत द्वार पर एक व्यक्ति की लाश देखकर राजाराम असावा के होश उड़ गये। देखते ही देखते वहां मेहमानों की भीड़ जमा होने लगी। किसी ने पुलिस को सुचना कर दी। पुलिस की पीसीआर वेन तुरंत वहां पहूंच गई। पार्टी थम चुकी थी। सारे मेहमान कुर्सियों पर बैठ गये। क्योंकि पुलिस ने किसी भी मेहमानों को जांच-पड़ताल पुरी करने के पुर्व घर जाने की अनुमति नहीं दी। शुरूआती जांच-पड़ताल में लाश की पहचान शंशाक अग्रवाल के रूप में हुई। शंशाक पेट्रोल पम्प निर्माण करने का व्यवसाय करता है। तेल कम्पनियों से टेंडर प्राप्त कर पुरे भारत में स्थान-स्थान पर हाइवे किनारे जमींन स्वामी को पेट्रोल पंप आरंभ करने की ईच्छा जगाकर उसे पेट्रोल पंप का मालिक बनाकर ही दम लेता है। शंशाक की महत्वाकांक्षा दिनों दिन बढ़ती ही जा रही थी। असावा जी की इन्दौर-उज्जैन मार्ग पर जमींन थी। तेल कम्पनियों ने उस मार्ग पर पेट्रोल पंप आरंभ करने के लिए जमीन स्वामियों से आवेदन मांगे थे। असावा जी की ईच्छा के विरूद्ध शंशाक ने उन्हें पेट्रोल पंप आरंभ करने के लिए तैयार कर ही लिया। मार्ग के दोनों और असावा जी की जमींन पर दो पेट्रोल पंप आरंभ करने का कार्य शंशाक कर रहा था। कुछ वित्तीय अनियमितताओं के कारण असावा जी ने शंशाक को अच्छी-खासी डांट भी पिलाई थी।
तब से शंशाक सतर्क हो गया था। पेट्रोल पम्प निर्माणाधीन ही थे कि अचानक शंशाक की हत्या हो गई। पुलिस का प्रारंभिक संदेह राजाराम असावा जी पर था। क्योंकि शंशाक की पत्नी महिमा ने बताया कि शंशाक और असावा जी की बीच कुछ दिनों पुर्व पैसों के लेन-देन के विषय में बहुत बहस हुई थी।
मेहमानों के नाम और पते नोट कर पुलिस इन्सपेक्टर विजय कुमार सिंह ने सभी मेहमानों को घर जाने की अनुमति दे दी। शंशाक के शव को पोस्टमार्टम हेतु एमवाय हाॅस्पीटल भेज दिया गया।
इन्सपेक्टर विजय कुमार सिंह और सहायक इन्सपेक्टर विनोद जाट इस हाई-प्रोफाइल मर्डर केस को सुलझाने के लिए प्रकरण को हर एंगल से देखकर जांच-पड़ताल कर रहे थे।
इस हत्याकांड का प्रभाव असावा जी के पारिवारिक मित्रों के साथ व्यापारिक दोस्तों पर भी पड़ रहा था। इन्सपेक्टर विजय कुमार सिंह अपने सहायक के साथ बारी-बारी से उस दिन पार्टी में सम्मिलित सभी मेहमानों के घर जाकर पुछताछ कर रहे थे। कुछ दिनों के बाद पुलिस ने संदेह वश सचिन नाम के एक युवक को शंशाक के घर में ताका-झांकी करते हुये पकड़ा। पुछताछ में उसने कई रोचक खुलासे किये।सचिन जीवन ने बताया कि वह राजबाड़ा बाजार में एक कपड़े की दुकान पर काम करता है। इस दुकान पर शंशाक की पत्नी महिमा अक्सर कपड़े खरिदने आया करती थी। सुमित ही महिमा को साड़ी आदि दिखाया करता था। महिमा की चिकनी चुपडी बातें करने के स्वभाव के कारण सुमित उस पर मोहित हो चूका था। महिमा का मोबाईल नम्बर प्राप्त कर वह उसे फोन कर बातें करने लगा।
पुलिस ने महिमा को भी पुछताछ के लिए पुलिस स्टेशन बुलवाया। पुलिस स्टेशन पर पहले से ही सचिन को देखकर महिमा घबरा गई। महिमा ने स्वीकार किया कि वह सचिन को जानती है। महिमा ने पुलिस को बताया कि सचिन उसे अक्सर फोन पर परेशान किया करता था। महिमा की थोड़ी हंस मुस्कुरा कर बातें कर लेने भर से सचिन उसके प्रति प्यार समझ बैठेगा यह महिमा को अन्दाजा नहीं था। शुरूआत में महिमा ने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया लेकिन फिर एक दिन साड़ी डिलीवरी करने घर आये सचिन ने महिमा को प्रणय निवेदन कर दिया। महिमा ने उसे समझाया कि वह एक शादी-शुदा महिला है। सचिन उसे भूल जाये। किन्तु सचिन नहीं माना। तंग आकर महिमा ने सचिन की शिकायत अपने पति शंशाक से कर दी-
"तो मैं क्या करूं यार। सचिन को दो थप्पड़ लगा दो। नहीं तो पुलिस को बता दो। वह उसे ठीक कर देंगे। मुझे परेशान मत करो।" शंशाक बहुत तनाव में था। उसने अपना ऑफिस बेग तैयार किया और बिना चाय-नाश्ता किये ऑफिस के लिए निकल गया। शंशाक का इस प्रकार का व्यवहार देखकर महिमा को बहुत दुःख हुआ।
महिमा ने पुलिस को फिर आगे बताया- "शंशाक से मैंने अपने माता-पिता से झगड़ा करके शादी की थी। मुझे भी बहुत सारा पैसा कमाने की अभिलाषा थी।
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