माँमस् मैरिज - प्यार की उमंग
अध्याय - 7
सुगंधा के पिता गणेशराम चतुर्वेदी एक सेवानिवृत्त स्कूल टीचर है। बड़े भाई संजीव चतुर्वेदी की शादी शहर के दाल मील (फ्रेक्ट्री) मालिक राजाराम असावा जी की बड़ी बेटी शालिनी के साथ हुई है। संजीव और शालिनी का एक वर्ष का बेटा है। संजीव शहर के अटल बिहारी वाजपेयी आर्ट एण्ड कामर्स महाविद्यालय में कॉमर्स विषय के सहायक प्राध्यापक पर अध्यापन का कार्य करते है। सुगंधा का बड़ा भाई नवीन होल्कर काॅलेज में गणित विषय की पढ़ाई कर रहा है।
राजराम असावा तो अपनी छोटी बेटी सौम्या का विवाह गणेशराम चतुर्वेदी जी के छोटे बेटे नवीन से करवाना चाहते है। किन्तु सौम्या की मां दुर्गा असावा ये नहीं चाहती थी। दुर्गा देवी अपने ही समान बड़े स्टेटस वाले किसी अमीर परिवार के साथ सौम्या का विवाह कराये जाने के पक्ष में है। उन्होंने तो अपनी बड़ी बेटी शालिनी और संजीव के विवाह का भी भरसक विरोध किया था। अपने पति राजाराम को वे समझा भी लेती किन्तु शालिनी की जिद के आगे दुर्गा देवी को भी घुटने टेकने पड़े। शालिनी और संजीव ने प्रेम विवाह किया था। राजाराम जी संजीव को दामाद के रूप मे पाकर प्रसन्न थे। किन्तु विवाह के कुछ महिनों में ही शालिनी और उसकी सास पुष्पलता चतुर्वेदी की आपस में छोटी-छोटी बातों को लेकर नोंक-झोंक होने लगी । शालिनी एक सम्पन्न परिवार में बिना रोक-टोक के ऐशो-आराम के साथ पली बढ़ी युवती थी। छोटी-छोटी बातों पर टोका-टाकी और अपने प्रत्येक कृत्यों पर सासू मां और ननद सुगंधा की टीका-टिप्पणी का उसने घर में विरोध कर दिया। घर में शांतिपूर्ण वातावरण बना रहे इस हेतु गणेशराम चतुर्वेदी ने संजीव को अपनी पत्नी के हाथ अलग रहने की अनुमति दे दी।
नवीन अपने माता-पिता की देखभाल के साथ ही भैया-भाभी के घर का हर छोटा बड़ा कार्य आनंद के साथ करता था। सौम्या अक्सर अपनी बड़ी बहन से मिलने उनके किराये पर ले रखे घर पर मिलने आती। जहां नवीन की पहले से उपस्थिति उसे फुटी आंख नहीं सुहाती। सौम्या और नवीन का आपस में छत्तीस का आंकड़ा बना रहता। अपने भैय्या के यहां व्यर्थ में समय व्यतीत करना और शालिनी से अपने लिए नये नये व्यंजनों को बनाने की आये दिन की मांग से सौम्या चिढ़ जाती। वह तो खुले तौर पर मुहं पर नवीन को भुक्खड़ की उपाधि से विभूषित करना चाहती थी मगर शालिनी के समझाने पर ऐसा नहीं करने पर वह मान जाती।
सदैव कुर्ता पायजामा पहनने वाले गणेशराम चतुर्वेदी की पेंशन पर उनका परिवार गुजर बसर कर रहा था। संजीव यथाशक्ति अपने मां पुष्पलता चतुर्वेदी के हाथों में मासिक अंशदान जरूर रख आता। नवीन और सुगंधा की पढ़ाई और दो अलग-अलग घरों का वित्तीय संचालन किसी तरह चल जाता।
शालिनी अपने पिता से आर्थिक सहायता नहीं ले सकती थी क्योंकि संजीव को ये पंसद नहीं था। संजीव की खिलाफत वह नहीं करना चाहती थी।
दोपहर का समय था। शालिनी ने अपने बेटे विराज को स्नान आदि से निवृत्त कराकर डाइनिंग हाॅल में खेलने छोड़ दिया। नवीन वहीं हाॅल में टीवी पर आईपीएल मैच का रिपीट टेलीकास्ट देख रहा था। शालिनी ने नवीन को बेटे का ध्यान रखने का कहकर स्वयं नहाने चली गई।
कुछ समय बाद जब शालिनी नहाकर हाॅल में आई। विराज को हाॅल में न पाकर वह चौंकी। वह उसे घर से बाहर देखने दौड़ पड़ी। बाहर का दृश्य देखकर उसका ह्रदय फट गया। आंगन की जमीन पर बनी पानी की होद का ढक्कन खुला था। विराज घिसटते हुये पानी की टंकी के एकदम मुंहाने पर पेट के बल लेटा था। वह निरंतर और आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा था। यदि शालिनी दौड़कर उसे उठाने पर कुछ पल का विलंब करती तब तक वह पानी की होद गिर चूका होता।
शालिनी की चीख सुनकर टीवी देख रहे नवीन की निन्द्रा भंग हुई और वह घर से बाहर की और भागा यह देखने के लिए की उसकी भाभी चीखी क्यों?
"क्या हुआ भाभी?" नवीन ने घर से बाहर आकर शालिनी से पुछा।
शालिनी नवीन पर आगबबूला हो गयी--
" क्या हुआ? कूछ नहीं! विराज बच गया। वर्ना तुम तो उसे मार ही देते।"
नवीन, शालिनी की बेरूखी जान चुका था। विराज का उसने उचित ध्यान नहीं रखा। उसे अपनी गलती का एहसास था। किन्तु शालिनी तो जैसे वर्षों का ज्लावा मुखी अपने अन्दर समाये हुये बैठी थी।
"आज अगर विराज को कुछ हो जाती तो इसमें तुम्हारा क्या चला जाता? कोख तो मेरी खाली हो जाती न।? मन भर-भरकर तुम्हारी मां और बहन मुझे जो बददुआएं दी है, उसका यही नतीजा है। आज तुम्हारी लापरवाही के कारण मेरा बेटा पानी में डुबकर मर जाता।"
शालिनी के आसुं बह रहे थे। नवीन ने शालिनी को उस दिन नहीं रोका।
"भाभी आज ये बना दो वो बना दो! फरमाइश पे फरमाइश करे चले जाते है। कभी घर में कुछ राशन लाकर रखा है की, लो भाभी मैं हमेशा कुछ न कुछ खाते रहता हूं सो ये राशन रख लो। मगर नहीं। उस पर अपने भैय्या से आये दिन कभी इतने पैसे चाहिए, आज वहां फीस भरना है, कल वो काम है। अरे! भैया का भी अपना भी परिवार है। पचास तरह के खर्चे लगे रहते है घर में। महिने की सारी सैलरी तुम लोगों पर ही उड़ा देगें तो हमें कैसे पालेगें? इन्हें भी इतनी बार कह चूकी हूं की मैं अगर अपने पापा से थोड़ी रूपये-पैसों की मदद ले लूं तो जैसे कोई बहुत बड़ा पाप करने की बात कह दी हो। साफ मना कर देते है।
"भाभी आप जरा सी बात का बड़ा इश्यू क्यों बना रही है। मुझसे गल़ती हो गई। मैं विराज का ध्यान नहीं सका। मुझे माफ कर दो। आगे से ये गल़ती नहीं होगी।।"
नवीन यह कहते हुये वहां से चला गया। आज नवीन की आंखे भर आई थी। उसे विराज के लिए बहुत पश्चाताप हो रहा था। नवीन के कानों में शालिनी की कहीं एक-एक बातें गुंज रही थी। उस शाम नवीन ने भोजन नहीं किया। गणेशराम चतुर्वेदी और पुष्पलता ने उसे भोजन के लिए बुलाया भी, किन्तु पेट कुछ गड़बड़ है का बहाना बनाकर उसने खाना खाने से इंकार कर दिया।
पुष्पलता चतुर्वेदी मगर कहां मानने वाली थी। जलजीरा का घोल बनाकर वे नवीन के कमरे में ले आई। नवीन दुःखी था। उसके अन्तर्मन में द्वन्द्व चल रहा था। पुष्पलता को समझते देर न लगी की हमेशा चहकने वाला उनका बेटा नवीन आज इतना गुमसुम क्यों है।
नवीन ने कुछ निश्चय कर लिया था। उसने अपनी मां से वचन लिया कि वे बड़े भैया से आज के बाद कोई वित्तीय मदद नहीं लेंगी। नवीन कल से रोजगार की तलाश में निकलेगा। अपनी पढ़ाई के साथ-साथ एक निश्चित मासिक आमदनी कमाकर वह अपनी मां के हाथों में रखेगा। जिससे घर खर्च सरलता से पुरे हो जायेंगे। पिता गणेशराम चतुर्वेदी अपने बेटे नवीन की आंखों में एक जलती हुई ज्वाला देख रहे थे। उन्होंने बेटे को पढ़ाई के साथ कामकाज करने की अनुमति दे दी। पिता की अनुमति मिलते ही नवीन अगली सुबह काॅलेज जाने के लिए रवाना हो गया।
काॅलेज के बाद उसने अखबार में प्रकाशित 'आवश्यकता है' वाले कुछ काॅलम की पेपर कटींग पर दिये गये पते पर इन्टरव्यूह देना आरंभ कर दिये। शहर के एक वकील राकेश मालवीय के यहां उसने कम्प्यूटर टाइपिंग कर्ता की नौकरी स्वीकार कर ली। नवीन की हिन्दी और अंग्रेजी की टाइपिंग स्पीड कम थी। लेकिन उसने घर में पर्सनल कंप्यूटर पर कढ़ी मेहनत से अपनी टाइपिंग स्पीड बढ़ा ली। कुछ ही दिनों की मेहनत का अच्छा परिणाम देखकर वकिल राकेश मालवीय नवीन से प्रसन्न थे। दस हजार रूपये मासिक का वेतन नवीन के लिए उन्होंने निर्धारित कर दिया। दोपहर 2 बजे से शाम 7 बजे तक नवीन टाइपिंग करता। उसके बाद घर आकर भोजन उपरांत रात 3 बजे तक पढ़ाई करता। सुबह 8 से 1:30 तक काॅलेज में रहता। उसके बाद वही से वकील साहब के यहां टाइपिंग करने पहूंच जाता।
शालिनी मन ही मन नवीन को बुरी तरह डांटने पर आत्मग्लनी से भर उठी थी। उस रात संजीव को यह सब बताने की उसकी हिम्मत न हो सकी।
कुछ दिन बाद संजीव गणेशराम चतुर्वेदी से मिलने पहूंचे। माता-पिता और बहन सुगंधा को नवीन ने उस दिन वाली घटना संजीव को नहीं बताने का वचन ले लिया था। सो चारों चुपचाप बैठे थे। संजीव ने चाय पी और पिता के हाथों में उन सबका मासिक अंशदान दस हजार रुपये देने को हाथ बढ़ाया। गणेशराम चतुर्वेदी ने पहली बार रूपये लेने से इंकार कर दिये। संजीव चौंका। तब उसके पिता ने समझाया कि संजीव का परिवार भी बढ़ रहा है। सो यह व्यय अपने परिवार के लिए रखे। उन्हें अब संजीव के रूपयों की कोई आवश्यकता नहीं है। क्योंकि नवीन भी अब कमाने लगा है और वे स्वयं मोहल्ले के छोटे बच्चों को ट्यूशन देने लगे है। संजीव का ह्रदय द्रवित हो गया। वह जानता था कि किसी बात से आहत होकर उसके माता-पिता ने उसका मासिक सहयोग लेने से इंकार कर दिया है।
तब ही नवीन घर लौटा। उसके हाथ में टिफिन था। संजीव ने नवीन से बात करनी चाही। लेकिन नवीन टिफिन रखकर सीधे बाथरूम चला गये। अपने प्रति मां पुष्पलता का व्यवहार भी शुष्क देखकर संजीव को विश्वास हो गया की कुछ बात तो अवश्य है जिससे कारण सभी उससे रूठे है। सुगंधा से दो क्षण बात कर संजीव वहां से अपने घर लौट आया। इधर शालिनी भी नवीन को अनाप-शनाप कह जाने के कारण दुःखी थी। नवीन ने शालिनी से उसके शोकाकुल होने का कारण पुछा। तब विगत पिछले दिनों नवीन से कितना कुछ कह जाने की घटना उसने संजीव को विस्तार से बता दी।
"शालिनी! ममता के वशीभूत होकर तुमने नवीन को बहुत कुछ सुना दिया। तुमने उसे इतना सब कुछ सुनाकर अपना मन तो हल्का कर लिया लेकिन तुम्हारी और मेरी मां के बीच जो दुरी थी उस दुरी को इस घटना ने और भी बड़ा कर दिया।" संजीव सोफे पर बैठते हुये बोला।
"मैं यह नहीं कहता कि तुमने कुछ गल़त कहा
विराज की सावधानी से देखभाल करना नवीन की उस समय सबसे पहले और बड़ी जिम्मेदारी थी जो उसने अच्छे से नहीं निभाई। एक पल भर की चूक ने उसे हम दोनों से कितना दूर कर दिया। जब नवीन की इस छोटी गलती, जो उसने जानबूझकर नहीं की, इतनी बड़ी सज़ा उसे मिल रही है जिसके फलस्वरूप नवीन अब पढ़ाई के साथ काम करने लगा है। परिवार के लिए धन कमाने की तीव्र ईच्छा उसके मन में जाग चुकी है। मुझे डर सिर्फ इस बात का है की अभी से कोई भी छोटी-मोटी जाॅब के चक्कर में वह अपना भविष्य खराब न कर ले?"
शालिनी की आंखे भर आई थी। वह सुबक रही थी।
"शालिनी! जरा सी असावधानी ने नवीन का जीवन कांटों से भर दिया। तब मेरी गलती की क्या सज़ा होनी चाहिए? अपने माता-पिता और परिवार को सिर्फ मासिक पैसे पहुंचाने से उनके प्रति मेरी जवाबदेही खत्म तो नहीं हो जाती न? उनकी सेवा केवल नवीन कर रहा है और आज उन्होंने महिने के पैसे लेने से भी पिताजी ने इंकार कर दिया। सोचो मेरा दुर्भाग्य कितना चरम पर है?" नवीन की आंखे भी नम हो गई। शालिनी ने संजीव के पास आकर उनसे माफी मांगी। बड़ा हृदय रखकर संजीव ने शालिनी को माफ भी कर दिया। अगले दिन शाम को शालिनी और संजीव दोनों गणेशराम चतुर्वेदी के घर आये। नवीन भी घर आ चूका था। शालिनी ने नवीन से माफी मांगी। नवीन ने यह कहते हुये अपनी भाभी का धन्यवाद ज्ञापित किया कि अगर उस दिन शालिनी उसे ये सब न सुनाती तो आज उसे अपनी गलतियों का आभास नहीं होता। एक नवयुवक आज के युग में माता-पिता के पैसों से पढ़ाई करे यह शौभनीय नहीं है। युवकों को पढ़ाई के साथ-साथ घर की वित्तीय जरूरतों को भी कुछ हद तक पुरी करने का प्रयास करना चाहिए।
नवीन की ऊंची सोच से शालिनी और संजीव को यकीन हो गया की नवीन अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं होने देगा। अपने पुर्व वर्ती व्यवहार पर पश्चाताप और क्षमायाचना कर दोनों वहां से चले गये। सभी का मन एक-दूसरे के प्रति सकारात्मक हो गया था। गणेशराम चतुर्वेदी ने संजीव से उसका मासिक सहयोग लेकर उसे और भी अधिक प्रसन्न कर दिया था।
एक दिन के दोपहर के समय नवीन अपनी भाभी के यहां गैस सिलेंडर अपनी साईकिल से पहूंचाने आया। सौम्या वहीं थी।
"आ गया भुक्खड़!" सौम्या के मुंह से निकला। सौम्या ने पिज्जा मंगवाया था। शालिनी और सौम्या वही खा रही थी।
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