kya yahi pyaar he - 1 in Hindi Fiction Stories by Deepak Bundela AryMoulik books and stories PDF | क्या यही प्यार है - 1

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क्या यही प्यार है - 1

क्या यही प्यार है.....?

क्लास नॉर्सरी से आठवीं तक की पढ़ाई में काफ़ी नियम और क़ानून थे, वजह ये थी कि स्कूल स्वामी दीपनंद जी का था जिन्होंने समाज में अपनी छवि महान साध्विक जीवन जी कर बनाई थी उनके अनुयायी लाखों में थे और है भी स्कूल भारती निकेतन जो उसूलों और संस्कारो में पक्का भारतीय..... सुबह 7 बजे स्कूल शरू होता था जिसमें सबसे पहले बन्दे मातरम और फिर हनुमान चालीसा मौजूदा शिक्षक शिक्षिकाओं को भैयाजी और दीदी कहा जाता था वही सहपाठिकाओं को बहन और दीदी.....

आठवीं के बाद नए स्कूल में पहुँचे जहाँ का माहौल बेहद बदला था खासकर मेरे लिए मानो मै किसी जेल से छूट कर सही मानव जीवन की दुनियां में कदम रखा था....

बिंदास माहौल वेबाक बोलचाल जो मेरे लिए काफ़ी हद्द तक स्वीकार कर पाना बेहद कठिन था जिसके चलते मेरी शुद्ध हिंदी के उच्चार्णो का मज़ाक़ उड़ाया जाने लगा था इसलिए में अपने आप में और अकेला ही रहा करता था...
अकेले बैठ कर लंच करना अकेले ही गेम्स पीरियड में गुमसुम बैठे रहना...

मुझें नहीं पता था कि शाबा मेरे करीब आ रहीं है उसकी मुस्कुराहट और देखने का अंदाज़ का पता मुझें तब लगा जब शाबा ने उस दिन मेरा हाथ पकड़ कर प्यार का इज़हार कर दिया और मै मानो प्यार के कोमा मै चला गया मेरी हालत कुछ ऐसी ही हो चुकी थी....

कई दिनों तक तो मुझे शाबा के इज़हार का दृश्य ऐसा लगता रहा मानो अभी ही उसने कहा हो...

मेरी हर बातों का ख्याल वो करने लगी थी लेकिन मै अपनी मनसा अभी तक ज़ाहिर नहीं कर पाया था जिसके चलते हमारी नोकझोक भी होती थी मै जब भी उसके लिए कुछ भी लाता तो वो ये कह कर नकार देती कि मैंने तुम्हे ilove you कहा है तो तुम्हे मेरी हर चीज लेनी होंगी, तुमने मुझें ilove you नहीं कहा है इसलिए मै तुम से कोई भी चीज नहीं लें सकती, और मै फिर भवर जाल में फस जाता और वो मुझसे रूठ कर चली जाती..... लेकिन बामुश्किल एक दिन ही गुजरता और में ये वादा कर के मना लेता कि किसी अच्छे दिन में उससे प्यार का इज़हार करूंगा... ऐसा करते करते कब 4साल गुजर गये पता ही नहीं चला एग्जाम ख़त्म हुए तो बिछड़ने का वक़्त आ गया लेकिन में उनसे अपने दिल की बात का इज़हार नहीं कर पाया... उनकी आँखों में आंसू थे वही मेरा दिल भी बैठा जा रहा था.... इस गर्मियों की छुट्टियों में शाबा अलीगढ जा रहीं थी 10th के बाद शाबा की पढ़ाई आगे जारी रहेगी या नहीं ये फैसला उनके घर वालों के हांथो में था....

अगर एक बार जानिब तुम कह दो तो में अलीगढ़ नहीं जाउंगी....
शाबा विचारों में बहुत बिंदास थी लेकिन ज़माना अभी भी मोहब्बत के प्रति नर्म नहीं था... मै चाह कर भी उन्हें नहीं रोकना चाहता था क्योंकि अभी मै खुद ही इस काबिल ना था....

तुम मुझें अलीगढ का पता दो...?
क्यों...?
मै खत मै लिखूंगा...
जानिब मै पिछले तीन साल से इंतज़ार कर रहीं हूं...
मै जनता हूं...
देखो जानिब कही देर ना हो जाये... मै तुम्हे पहले खत लिखूँगी उसी में पता लिख कर भेजदूँगी...
ठीक है...
कल स्टेशन तो आ सकोगे ना..?
हा...
लो ये टी - शर्ट है... आप पर खूब जचेगी... लो अब देख क्या रहें हो...?
मै सिर्फ देखता ही रहा था और वो टी -शर्ट मेरे हाथों में रख कर मुझें किस कर के चली गई.... मेरी आँखो में सिर्फ आंसूओ के सिबाय कुछ नहीं था बस एकबार उसने प्लाट कर देखा था मुझें.... मेरा शरीर उसके पास जाने को तड़प रहा था पर दिल ऐसा ना करने को मज़बूर कर रहा था.... लेकिन मै सोचता ही रहा और वो मेरी आँखों से ओझल हो गई....

एक अनजान सा डर लिए मै स्टेशन पहुंचा था स्टेशन पर काफ़ी भीड़ थी... लेकिन शाबा ने मुझें पीछे से आकर कहा...

मुझें पता तुम ज़रूर आओगे... टी -शर्ट में जांच रहें हो..
उनकी आँखे काफ़ी सूजी हुई थी और वही हाल कुछ मेरा भी था हम दोनों एक दूसरे को निहारते रहें फिर मैंने एक लिफाफा निकल कर उनके हांथो में रखते हुए कहा जिसका तुम्हे इंतज़ार था वो इस में लिख दिया है...
उन्होंने ने झाट से लिफाफा अपने आँचल में छिपा लिया
अब मै नहीं जाउंगी...
तुम्हे मेरी कसम है... मै मज़ाक़ कर रहा हू शाबा..
उनके चेहरे पर हलकी सी मुस्कान बिखर गई
जो लड़का पिछले तीन साल में मज़ाक़ नहीं कर सका उसे आज मज़ाक़ सूझ रहा है.... लेकिन आज मै बहुत खुश हूं...
ओके अब तुम जाओ ट्रेन आने बाली है तुम्हारे मम्मी पापा इंतज़ार कर रहें होंगे...
एक बार बोलोना...
मै फिर चुप हो गया था
देखो ट्रेन आने बाली है
आ आ आई लव यू...
और वो एकदम खुश होकर उछाल सी पड़ी थी मेरी अंदर का डर भी जा चुका था मैंने फिर शाबा को बिना हिचके बिना रुके आई लव यू कह दिया था...
अब तुम जाओ शाबा देर हो रहीं है...
उन्होंने जाते जाते कहा था
मै खत लिखूंगी इंतज़ार करना जानिब...
और मैंने भी सह मती से सिर हिला दिया और वो भीड़ में गुम हो गई...

अब मै बहुत हल्का महसूस कर रहा था.... शाबा का 15दिन बाद खत आया मानो जान में जान आगी थी हर पल हर लम्हा वो महसूस होती थी लेकिन दो खातों के बाद शाबा का फिर कोई खत नहीं आया.... छुट्टियां ख़त्म होने में 2 दिन बचें थे वो मुझें हमेशा सरप्राइज करती थी लेकिन इसबार मै उसे सरप्राइज़ करने बाला था....

भाग-2 में ज़री है...