Shaam hone wali hai in Hindi Travel stories by Manjeet Singh Gauhar books and stories PDF | शाम होने वाली है

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शाम होने वाली है

दिल्ली में रहने वाले दो दोस्त अपने स्कूल की तरफ़ से पिकनिक पर उत्तर प्रदेश के एक शहर आगरा में स्थित ताजमहल घूमने गये। उनके साथ उन्हीं के स्कूल के कुछ और बच्चे भी थे। और उन सबके के साथ उनके दो अध्यापक थे। जो उन्हें पी.टी(योगा-व्यायाम) का अध्ययन कराते थे। कुल मिलाकर वो सभी 9 लोग थे। सभी बच्चों ने आगरा जाते समय बस में ख़ूब मस्ती, ख़ूब मज़ा किया। और आगरा पहुँचने से पहले एक रेस्टोरेंट जो दिल्ली से क़रीब 82 कि.मी. आगे और आगरा से क़रीब 142 कि.मी. पीछे था, उस रेस्टोरेंट में उन सभी ने खाना खाया। और फिर क़रीब डेढ़ से दो घण्टों में वे सभी बच्चे आगरा जहॉं शाहजहाँ द्वारा बनवायी गयी इमारत 'ताजमहल' था, वहॉं पहुँच गये। जब वो सभी लोग आगरा में ताजमहल के गेट के पास पहुँच कर बस में से उतर रहे थे, तो जो बच्चा सबसे आख़िर में उतर रहा था, जिसका नाम हिमांशू था, और उसकी उम्र क़रीब 11 या 12 वर्ष थी। उतरते समय उसका पैर बस में निकल रही एक छोटी-सी कील में फस गया। और वो बच्चा यानी कि हिमांशू मुँह के वल बस के दरवाज़े से सीधा नीचे ज़मीन पर आ गिरा। उसे गिरता हुआ देख-कर सभी बच्चे हँसने लगे। लेकिन वहीं पर खड़े उनके पी.टी. के दोनों अध्यापक उन सभी बच्चों को डाटने लगे जो हिमांशू को गिरने के कारण उस पर हँस रहे थे। और वो दोनों अध्यापक उन बच्चों को डाटते हुए जल्दी से उस गिरे हुए बच्चे (हिमांशू) के उठाने के लिए उसकी तरफ़ दौड़ पड़े। उन्होने जल्दी से पहुँच कर हिमांशू को ज़मीन पर से उठाया, और फिर उनमें से एक अध्यापक ने उस बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया। और फिर वहॉं सड़क से थोड़ा-सा हटकर उसे अपनी गोद में से नीचे ज़मीन पर उतार कर उसके पूरे शरीर को चैक करने लगा कि कहीं गिरने से इसके चोट तो नही लग गयी। और दूसरा अध्यापक उन वाक़ी बच्चों के सड़क से साइड़ में फ़ुटपाथ पर खड़ा करने लगा। चूंकि उस सड़क पर जहॉं बच्चे बस से उतरे थे, वहॉं और बड़ी-बड़ी गाड़ियॉं बहुत ही तेज़ी से चल रही थी। वो दूसरा अध्यापक जो हिमांशू के शरीर पर चोटें देख रहा था। हिमांशू का पूरा शरीर देखने के बाद जब उसे हिमांशू के शरीर पर सिर्फ़ उसके हाथ में थोड़ी-सी चोट के सिवाय कहीं भी चोट नही लगी दिखी, तो उसने भगवान को धन्यवाद किया कि उस बच्चे के ज़्यादा चोट नही लगी। क्योंकि उस समय उन सभी बच्चों की ज़िम्मेदारी उन दोनों अध्यापको की थी। अगर किसी भी बच्चे के साथ कुछ ग़लत घटना हो जाती, तो उसका ख़ामियाज़ा उन्हीं दोनों अध्यापको को भुगतना पड़ता। बस में से गिरने के कारण हिमांशू के हाथ में थोडी-सी चोट आ गयी थी। और वो दोनों अध्यापक सभी बच्चों को साथ लेकर हिमांशू की दवाई गोली के लिए पास में ही एक डॉक्टर के पास गये। लेकिन वहॉं जाकर उन्होने देखा कि डॉक्टर के क्लीनिक में तो काफ़ी भीड़ थी। और ये उन लोगों की भीड़ थी, जो उन अध्यापकों से भी पहले के आए हुए थे अपनी दवाई लेने के लिए। हालांकि हिमांशू को ज़्यादा चोट नही लगी थी। पर फिर भी बच्चों को पूरी तरह से सुरक्षित और ज़िम्मेंदारी के साथ घर लाना उन दोनो अध्यापकों की ज़िम्मेदारी थी। कई घण्टें बीत जाने के बाद उनका नम्बर आया। और फिर उसकी दवाई गोली लेने में व चोट पर पट्टी कराने में काफ़ी समय हो गया था। जब वो लोग हिमांशू का इलाज़ करा कर डॉक्टर के क्लीनिक से बाहर आए, तो दोपहर का समय कम होने लगा था। मतलब कि दोपहर की कड़क की धूप अब पहले से कम हो चुकी थी। उनमें से एक अध्यापक ने अपनी जेब से फ़ोन निकालकर समय देखा, तो समय 4:30 से भी ऊपर हो चुका था। तो फिर दोनो अध्यापकों ने मिलकर एक सलाह बनाई कि ताजमहल फिर कभी देखने आ जायेंगे। और फिर जैसी उन दोनो ने आपस में सलाह की। वैसा ही उन बच्चों से कहा कि ' बच्चों अब समय ज़्यादा हो गया है। अब हमारे पास ताजमहल को देखने का समय नही बचा है। अब हम सभी को बग़ैर देखे ही जाना पड़ेगा। अध्यापक की बात को बीच में ही काटकर उन दो दोस्तों में से एक ने कहा कि 'सर, आपको जाना है तो जाओ, हम दोनो तो ताजमहल देखकर ही जायेंगे।' ये दोनो बच्चे वो थे जिनसे इस कहानी की शुरूआत हुई थी। वो दोनो बच्चे वाक़ी सभी बच्चो जो उस समय उनके साथ थे, उनमें सबसे बड़े थे। फिर उनमें से एक अध्यापक ने कहा कि 'नही बेटा, अब हमारे पास ताजमहल देखने का समय नही है। अब शाम होने वाली है। और हमें अभी दिल्ली भी पहुँचना है। समय बहुत हो जायेगा, अगर हम अब ताजमहल देखने जाते हैं तो।' लेकिन उन दोनो ने अपने अध्यापकों की एक ना सुनी। अध्यापकों ने कई बार उन दोनो से कहा कि ' बेटा, शाम होने वाली है- बेटा, शाम होने वाली है।' पर उन दोनो बच्चों सो वे दोनो अध्यापक नही जीत सके। और हारकर दोनो अध्यापकों ने मिलकर उन्हें ताजमहल देख जाने की अनुमति दे दी। लेकिन वो दोनो अध्यापक वाक़ी बच्चों को लेकर वहीं खड़े हो गये। और उन दोनो के अाने का इंतज़ार करने लगे। क्योंकि सभी बच्चों सुरक्षित घर लाना उन दोनो अध्यापकों की ज़िम्मेदारी थी। वो दोनो ही कुछ समय में वापस अपने अध्यापक व अपने साथियों के पास आ गये। जब उनसे उन दोनो अध्यापकों ने इतनी जल्दी वापस आ जाने का कारण पूछा तो उन्होने बताया कि '' हमने एक अंकल से पूछा कि ताजमहल जाने का रास्ता किधर है, तो उन्होने कहा कि बेटा, अब तो ताजमहल का टिकट काउन्टर बन्द भी हो गया होगा, क्योंकि अब - 'शाम होने वाली है'।"
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मंजीत सिंह गौहर