भाग – ३३
काली घनी रातमें इन्स्पेक्टर तेजधार सूरज को सालो पहले की कुछ सच्चाइयाँ सूना रहा था | जैसे जैसे बात आगे चल रही थी वैसे वैसे तेजधार में बदलाव दीख रहा था | वो पैसो के कारन या किसी और वजह से आज अपना दिल हल्का कर करा था, ये बात तेजधार के सिवा ओर कोई नहीं जानता था | सूरज भी तेजधार की एक एक बात गोर से सुन रहा था |
तेजधारने दारु की एक घूंट लगाईं और बात आगे बढाई, ‘तुम सुलेमान को तो पहचानते होंगे | तुम जानते होंगे की वो गुलशन का अब्बू था | मगर एक सच ये भी था की सच में गुलशन सुलेमान की बेटी नहीं थी...!’
‘क्या बात करते हो ?’ सूरज ये सुनकर चौंक गया |
‘तुम्हे तो पता होगा की कोलेजमें उसका नाम क्या था ?’ तेजधारने सूरज की ओर देखते हुए कहा |
‘हाँ, हम सब उसे गुंजा कहते थे...! और सच कहू तो मुझे कभी पता भी नहीं चला था की वो मुस्लिम थी |’ सूरजने तेजधार की आँखों में देखते हुए जवाब दिया |
‘गुंजा और गुलशन दोनों मान में फर्क होता है की नहीं ?’
‘हाँ, होता हैं.. मगर ये बात तो हमने कभी सोची भी नहीं...!’ सूरज अब गहरी सोच में डूब गया था |
‘हमारे पुलिसवालों की नजरो से ये बात कभी बचके बहार नहीं जाती | उसके पूराने सर्टिफिकेटस में पहले नाम गुंजा था जिसको बदल दिया गया था | गुंजा उसके बाद तो सर्टिफिकेटमें गुलशन हो गई थी मगर सुलेमानने एक गलती की थी | उसने सर्टिफिकेट में तो नाम बदल दिया मगर अपने होठो पर तो वे उसको गुंजा के नाम से ही बुलाता था | वो कहता था की तेरी सुरीली आवाज की गूंज मुझे अच्छी लगती है इसलिए तु गुंजा है |’ तेजधार अब सूरज के साथ दोस्त की तरह पेश आ रहा था |
‘यदी वो सुलेमान की बेटी नहीं थी तो वो कौन थी और उसका नाम गुलशन क्यों हुआ ? गुंजा और सुलेमान का क्या रिश्ता था ?’ सूरज को लगा की तेजधार के पास सुलेमान की पुरी जन्मकुंडली है इसलिए कई सारे सवाल एक साथ किये |
‘सूरज ये भी एक लम्बी कहानी है.... मगर आज तेजधार का दिल और ये बोतल का ढक्कन दोनों अच्छी तरह से खुल गया है तो मेरे मुंह से बाते भी बहार निकलेगी और बोतल से दारु भी....!’ तेजधार का अंदाज और तेवर अलग दिख रहे थे |
‘एक बात कहू दोस्त..! तुम इतनी दारु मत पीओ... तुम्हारे लिए अच्छा नहीं है...!!’ सूरजने जब दोस्त कहा तो तेजधार को अपनापन लगा और उसने अपना बायाँ हाथ सूरज के कंधे पर रखकर कहा, ‘सालो बात किसीने मुझे दोस्त कहा है.... मोगेम्बो खुश हुआ...! गुड्डी भी मुझे ये दारु पीने से रोकती थी... मेरी दारु की बोतल फोड़ देती थी....!!’ तेजधार अपनी बातो का रुख बदल रहा था |
‘कौन गुड्डी...?’ सूरजने तेजधार की आँखों में झांककर देखा और कहा | सूरजने देखा की तेजधार की आँखे भर आई थी और तेजधार का ये रूप सूरजने पहलीबार देखा था |
‘कोई नहीं....कोई नहीं....! वो तो यूँ ही...!! हां तो मैं गुंजा की क्या बात कर रहा था ?’ तेजधारने अपनी नज़रे सूरज से हटा के कहा |
‘वो सर्टिफिकेट में नाम बदलना..!’ सूरज ने तेजधार को याद दिलाया |
‘हाँ....! बेटी के मरने के बाद बाप की आँख में पानी न आये ऐसा हो ही नहीं शकता | मैं मानता हूँ की कोई बाप अपनी बेटी को कभी नहीं मार शकता | उनका पोस्टमार्टम हुआ तो दोनों की मौत का कारन तो उसके शिर पर लगी चौट थी मगर मुझे पता चल गया था की वो चौट कोई एक्सीडेंट की नहीं थी मगर किसीने जानबूझकर मारा था | दूसरे दिन मैंने सुलेमान से ये बात कही तो उसने कोई ध्यान नहीं दिया | जब मैंने उससे सच जानने के लिए कहा की पोस्टमार्टम में तो मर्डर आ रहा है तो उसने मुझे वो पोस्टमार्टम रिपोर्ट बदलने को कहा | मैं तभी समझ गया था की सुलेमान की नियत में कोई खोट है | सुलेमान की आँखों में बेटी की मौत का कोई गम नहीं झलक रहा था | मैंने पैसे लेकर वो काम कर दिया मगर सुलेमान को लगा था की गुलशन के साथ कई सारे सच भी दफन हो गए | सुलेमान की रखैल हालाकी वो सालो पहले उसकी बीवी थी ऐसा वो कहती थी | वो हसीनाखाने में थी | तुम तो समझ गए होंगे की हसीनाखाने में वो क्या करती थी ? उसने एक रात मुझे सुलेमान के सालो पुरानी सच्चाई बताई | उसने कहा की गुंजा सुलेमान की नहीं मगर उसके दोस्त की बेटी थी | वो सच जानते ही मेरा सुलेमान पर जो शक था वो यकीन में बदल गया | उसने कहा था की यहाँ से काफी दूर एक गाँव में सुलेमान और उसका दोस्त साथ रहते थे | उसके दोस्त के पास जमीन जायदाद अच्छी थी मगर उसका कोई नहीं था | सुलेमान उसके लिए काम करता था | उसकी एक लड़की यानी गुंजा | एक दिन वे जमीन जायदाद लेने के लिए सुलेमान गुंजा को किडनेप करके शहर चला आया | उसके दोस्तने गुंजा के बदले अपनी सारी जमीन जायदाद सुलेमान के नाम कर दी | मगर उसके बाद भी सुलेमानने गुंजा के बाप को मार दिया | गुंजा उसवक्त दो साल की भी नहीं थी उसने गुंजा को अपनी लड़की गुलशन बनाकर अपने पास रखा था | कुदरत का खेल भी देखो की सुलेमान को कभी औलाद नहीं हुई इसलिए उसकी सभी माल मिल्कत अब गुंजा को ही मिलनेवाली थी | गुंजाने श्रीधर से शादी की तो सुलेमान को लगा की उसका सारा पैसा अब श्रीधर ले जाएगा जो उसे कभी पसंद नहीं था | सुलेमान चाहता था की गुंजा उनके मजहब के मुस्ताक से निकाह पढ़े मगर गुंजाने तो उनकी एक नहीं सूनी तो फिर शुरू किया खूनी खेल...!’
‘क्या मुस्ताक भी शामिल था उनके मर्डर में ?’ लम्बी बात के बीच सूरजने बीच में कहा |
‘जब गुंजा और श्रीधरने कोर्ट में शादी कर ली तो सुलेमान और श्रीधर दोनों को पसंद नहीं आया | उन्होंने श्रीधर को अपना मजहब बदलने को कहा...!! मगर श्रीधर राजी नहीं हुआ...! वे दोनों सुलेमान और मुस्ताक से दूर भागना चाहते थे....! एक रात को सुलेमान की रखैल उससे कुछ पैसे लेने आई थी मगर सुलेमानने उसे बुरी तरह से पिटा | वह औरत सुलेमान बदला लेने के लिए सब सच्चाई गुंजा और श्रीधर को बता दी | गुंजा उसी रात सुलेमान के पास गई और दोनों के बीच सभी रिश्ते ख़त्म हो गए | दूसरे दिन श्रीधर को लेकर गुंजा सब से दूर हंमेशा के लिए जा रही थी तो सुलेमानने उनका पीछा किया | उस दिन ही श्रीधर और गुंजा का एक्सीडेंट हुआ मगर दोनों को ज्यादा चौट नहीं आई थी | सुलेमानने इस मौके का फायदा उठाते दोनों को ऐसे मार दिया की सबको लगे की एक्सीडेंट हुआ हो | गुंजा का आखिर महिना था वो तो मर गई मगर पेट में जो बच्ची थी वो बच गई | वो अब तुम्हारी कोलेजवाली सरगम के पास है |’ तेजधार बाते करते करते अब थक चूका था, उसकी आँखे भी अब बारबार बंध हो रही थी मगर फिर भी आज दिल खोल के बाते कर रहा था |
‘ये बात तुम कैसे जानते हो ? और मेरे रूम में से जो ड्रग्स मिला वो किसने रखा था ?’ सूरज तेजधार को होंश में लाकर पूछने लगा |
‘सूरज सभी सच्चाइयाँ जानकर तु क्या करेगा ? कुछ बाते न जानो तो अच्छा है |’ शायद तेजधार अब आगे कुछ बताने के लिए राजी नहीं था |
‘तुम्हे जीतने चाहो इतने पैसे दूंगा....!!’ सूरजने जब तेजधार से पैसो की बात की तो वो जोर जोर से हंसने लगा और बोला, ‘तु कहाँ से लायेगा पैसा ? और तु समजता है की ये सब मैं तुम्हे पैसे के लिए बता रहा हूँ ?’
‘हाँ.... पैसे के लिए नहीं तो फिर किसके लिए ?’ सूरज तेजधार को समझ नहीं पा रहा था |
‘तेरी आँखों की ये सच्चाई और अच्छाई के लिए.... मेरी गुड्डी की आँखे भी तेरे जैसी ही थी.. वो सच्ची और अच्छी बाते करती थी | मैंने आज इतनी रात गए तुम्हे यहाँ क्यूँ बुलाया है ? तुम ये मानते हो की ड्रग्स बेचने के लिए ? सूरज मैं गलत रास्ते पर चला गया था और भगवान ने मुझे उसकी सजा भी दी... मगर मैं नहीं समझ पाया.... मगर तुम्हे मिलते ही लगा की तुममें कुछ अलग बात है...!!’ तेजधार आज अजीब सा लग रहा था | वो बारबार गुड्डी की बात कर रहा था और जब उसका नाम उसकी जबान पर आता तो उसकी आँखे भर आती थी |
सूरज को लगा की शायद तेजधार अब आगे ज्यादा बात करना नहीं चाहता इसलिए इतना कहा, ‘ तुम और सुलेमान दोस्त हो या दुश्मन वो मैं समझ नहीं पा रहा हूँ और तुम डी.के को क्यूँ मारना चाहते हो ?’
ये दोनों बाते सुनकर तेजधार की आँखे गुस्से से बड़ी हो गई | उसने जीप स्टार्ट की और उसको शहर की ओर मोड़ दिया | वो अब कुछ बताना नहीं चाहता था | वो शहर वापिस आ रहा था मगर वो खामोश था |
‘मेरा विश्वास करना की तुम्हे मैं पैसे दूंगा... ये मेरा वादा है...!’ सूरजने रास्ते में एक दो बाते करी मगर अब तेजधार कही खो गया था वो शहर आया तब तक चुप ही रहा |
सूरज को जब नीचे उतारा तो इतना कहा, ‘पता नहीं अब किस मोड़ पर मिलेंगे मगर आज तुमने सालो बाद मेरी गुड्डी की याद दिला दी...!! तुम अपना ख्याल रखना...!’
‘ये गुड्डी कौन है ?’ सूरजने आखीर बार पूछा |
तेजधारने अपनी वोलेट निकाली और उसमे राखी एक छोटी सी परी जैसी दिखनेवाली लड़की की तस्वीर निकाली और कहा, ‘ये थी मेरी गुडियारानी...!!
‘ये थी मतलब ? वो अब कहाँ है ?’ सूरज के इस प्रश्नों पर तेजधार ने ध्यान नहीं दिया और वहां से निकल गया | सूरज नहीं समझ रहा था की वो क्या कहना चाहता था मगर आज सूरज को तेजधार में कोई अच्छा इन्सान दिख रहा था |
क्रमश : ....