Khushiyon ki Aahat - 9 in Hindi Moral Stories by Harish Kumar Amit books and stories PDF | खुशियों की आहट - 9

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खुशियों की आहट - 9

खुशियों की आहट

हरीश कुमार 'अमित'

(9)

अगले दिन शनिवार था. स्कूल से वापिस आते हुए मोहित सोच रहा था मैथ्स का टैस्ट तो उसका अच्छा नहीं हुआ था, पर हिन्दी के टैस्ट में अच्छे नम्बर लाने ही हैं. पिछले सोमवार को हुए मैथ्स के टैस्ट के नम्बर उसे आज पता चल गए थे. दस में से सिर्फ़ पाँच अंक ही आए थे उसके. 'मम्मी-पापा को कैसे बता पाएगा वह कि इतने कम माक्र्स (अंक) आए हैं इस बार'- यही बात उसके मन में बार-बार आ रही थी. 'मगर कुछ भी हो, हिन्दी के टैस्ट के लिए वह बहुत मेहनत करेगा और अच्छे मार्क्स लेकर ही दिखाएगा.'

यही सब सोचते हुए वह स्कूल बस से उतरकर घर पहुँचा. उसने सोच रखा था कि आज वह दिन में सोएगा नहीं. क्रिकेट खेलने आज भले ही चला जाए, कल तो बिल्कुल नहीं जाएगा. टैस्ट की तैयारी के लिए टाइम भी तो चाहिए.

घर के दरवाज़े की घंटी बजाने पर रोज़ की तरह शांतिबाई ने ही दरवाज़ा खोला.

''मम्मी, बड़ी भूख लगी है. खाना लगवाओ.'' घर में घुसते ही मोहित ने ज़ोर से कहा और अपने कमरे की ओर जाने लगा.

''मेम साहब तो हैं नहीं घर में.'' शांतिबाई ने रसोई की तरफ़ जाते हुए कहा.

मोहित अपने कमरे की ओर जाते-जाते रूक गया और सिर पीछे की तरफ़ घुमाकर शांतिबाई से पूछने लगा, ''कहाँ गई हैं मम्मी?''

''बूटी पालर गई हैं मेम साहब.'' शांतिबाई ने जवाब दिया.

'ओह, तो मम्मी ब्यूटी पार्लर गई हैं.' उसने सोचा. तभी उसके दिमाग़ में आया कि आज तो टिंकी की सगाई है. मम्मी को उसमें जाना है, इसीलिए मम्मी ब्यूटी पार्लर गई होंगी.

उसकी भूख जैसे मर-सी गई. 'अब शांतिबाई के हाथ की बनी रोटी खानी पड़ेगी. मम्मी तो न जाने कब आएँगी.' कपड़े बदलते हुए वह सोच रहा था.

कुछ देर बाद मुँह-हाथ धोकर वह डाइनिंग टेबल पर पहुँचा. शांतिबाई खाना लगा रही थी. वह अनमना-सा कुर्सी पर बैठ गया.

''क्या बनाया है आज?'' मोहित ने बुझी-सी आवाज़ में शांतिबाई से पूछा.

''कढ़ी-चावल बनाए हैं मेम साहब ने.'' शांतिबाई ने चावलों की ट्रे डाइनिंग टेबल पर रखते हुए कहा. शांतिबाई को भी पता था कि मोहित को अपनी मम्मी के हाथ के बने खाने के अलावा दूसरा कोई खाना पसन्द नहीं आता.

'कढ़ी-चावल' सुनते ही उसका मन खिल उठा. कढ़ी-चावल तो उसे बहुत अच्छे लगते थे. उसने झट-से कटोरी उठाई और डोंगे से कढ़ी डालने लगा. फिर प्लेट में ख़ूब सारे चावल ले लिए. सलाद की प्लेट से सलाद लिया, उस पर नींबू निचोड़ा और खाना खाने लगा.

'कढ़ी तो बहुत स्वाद बनी है. मम्मी की बनाई कढ़ी खाकर तो हर कोई उंगलियाँ चाटता रह जाता है. आज बहुत दिनों बाद बनाई है कढ़ी मम्मी ने.' कढ़ी-चावल खाते हुए यही सब बातें आ रही थीं मोहित के दिमाग़ में.

''कब गई थीं मम्मी ब्यूटी पार्लर?'' खाना खाते-खाते मोहित ने शांतिबाई से पूछा.

''अभी तुम्हारे आने से थोड़ी देर पहले ही गईं मेम साहब.'' जवाब दिया शांतिबाई ने.

'तब तो अभी टाइम लगेगा मम्मी को वापिस लौटने में.' मोहित के मन में बात आई. तभी यह ख़याल भी उसके दिमाग़ में आया कि मम्मी तो ब्यूटी पार्लर से आने के बाद तैयार-वैयार होकर टिंकी की सगाई में चली जाएँगी. अगर हिन्दी के टैस्ट की तैयारी करते समय उसे कुछ पूछना हुआ, तो वह सब आज तो पूछ ही नहीं पाएगा. मम्मी जब वापिस आएँगी सगाई से, बहुत थकी-सी होंगी तब तो. चलो, जो कुछ पूछना होगा मम्मी से, वह कल दिन में पूछ लेगा. कल तो रात को जाना है न मम्मी को टिंकी की शादी में.

इन सब विचारों में खोए-खोए उसने खाना ख़त्म किया और फिर बाथरूम में जाकर कुल्ला करने लगा. उसके बाद अपने कमरे में जाकर उसने म्यूज़िक सिस्टम पर अपने मनपसन्द फिल्मी गाने लगाए और बिस्तर पर लेट गया. पढ़ाई शुरू करने से पहले वह एकाध घंटा आराम करना चाहता था, मगर गाने सुनते-सुनते उसे गहरी नींद आ गई.

जब उसकी नींद खुली तो शाम के साढ़े चार बज चुके थे. पूरे घर में ख़ामोशी छाई थी. उसने देखा म्यूज़िक सिस्टम बन्द कर दिया हुआ था. इसका मतलब मम्मी कमरे में आईं होंगी.

वह बिस्तर से उठा और पापा-मम्मी के कमरे की तरफ़ गया. मम्मी वहाँ नहीं थीं, पर पलँग पर बिखरे कपड़ों और दूसरे सामान से उसने अंदाज़ा लगा लिया कि मम्मी ब्यूटी पार्लर से वापिस आने के बाद तैयार होकर जा चुकी हैं - टिंकी की सगाई में शामिल होने.

उसका दिल कुछ खाने के लिए कर रहा था, उसने शांतिबाई को आवाज़ देकर खाने की कोई चीज़ मँगाने की सोची, पर उसे लगा कि वह अभी सो रही होगी. वह अपने कमरे में आ गया और मुँह-हाथ धोकर स्टडी टेबल पर बैठ गया.

'होमवर्क ही इतना ज़्यादा मिला है जो बड़ी मुश्किल से पूरा होगा. ऊपर से मंडे का हिन्दी का टेस्ट!' उसका दिमाग़ यह सोचकर ही परेशान-सा होने लगा.

उसने पहले होमवर्क पूरा कर लेने की सोची और वही करने लगा.

तभी शांतिबाई उसके कमरे के दरवाज़े पर आई और पूछने लगी, ''खाने को क्या लाऊँ, मोहित?''

''मम्मी कब गई हैं?'' मोहित ने शांतिबाई की बात का जवाब न देकर अपना सवाल पूछा.

''मेम साहब चार बजे के आसपास गई हैं. तुम तो सोता था तब.'' शांतिबाई ने जवाब दिया.

शांतिबाई का उत्तर सुनकर मोहित चुप रहा. बस यही बात उसके दिमाग़ में आई कि मम्मी तो अब रात के आठ-नौ बजे से पहले आएँगी नहीं.

तभी शांतिबाई फिर से पूछने लगी, ''खाने को क्या लाऊँ?''

मोहित का मन कर रहा था कि मैंगोशेक पिया जाए, पर जैसा मैंगोशेक मम्मी बनाती हैं, वैसा शांतिबाई नहीं बना सकती. मोहित ने सोचा कि कल इतवार वाले दिन मम्मी को मैंगोशेक बनाने के लिए कहेगा. यही सोचकर उसने शांतिबाई को बोल दिया, ''दो केले ले आओ.''

''दूध भी लाऊँ साथ में?'' शांतिबाई ने सवाल किया.

मोहित का मन न जाने कैसा-कैसा हो रहा था. मम्मी न दोपहर को स्कूल से आने पर मिलीं और न अब घर में हैं. उसने शांतिबाई को कह दिया कि उसे दूध नहीं चाहिए.

शांतिबाई के जाने के बाद मोहित फिर पढ़ाई करने लगा. तभी शांतिबाई दो केले और एक आम एक प्लेट में डालकर उसकी मेज़ पर रख गई. आम को देखकर पहले तो मोहित का जी चाहा कि वह शांतिबाई को कह दे कि उसे आम नहीं चाहिए, फिर न जाने क्या सोचकर वह चुप रहा.

शांतिबाई के कमरे से बाहर जाने के बाद मोहित कुर्सी से उठा और ब़ाथरूम में जाकर हाथ धोकर आया. फिर एक-एक करके केले खाने लगा. केले खाकर उसने आम उठा लिया और उसे चूसकर खाने लगा. मम्मी तो आम को चूसकर खाने नहीं देतीं. कहतीं हैं आम को काटकर खाना चाहिए. मगर मम्मी जब घर में नहीं होतीं, तो मोहित चूस-चूसकर आम खाया करता है. वैसे मम्मी को भी यह बात पता है. कूड़ेदान में पड़े छिलकों से उन्हें यह बात कई बार मालूम हो चुकी है. मम्मी के सामने न होने पर तो मोहित कई बार आम के छिलके का बड़ा-सा टुकड़ा भी खा जाया करता है. इसमें भी उसे एक अजीब-सा मज़ा मिलता है. आज भी उसने आम खाने के बाद उसके छिलके का एक टुकड़ा खा लिया. उसने शांतिबाई को आवाज़ देकर कहा कि प्लेट और छिलके ले जाए. फिर मुँह-हाथ धोने बाथरूम में चला गया.

बाथरूम से बाहर आया तो उसकी नज़र दीवार घड़ी पर पड़ी. पौने छह बजने ही वाले थे. 'क्रिकेट खेलने जाने के लिए तैयार होना शुरू कर देना चाहिए.' यह बात उसके दिमाग़ में आई, मगर तभी उसे सोमवार के हिन्दी टैस्ट की बात याद आ गई. इस बार तो टैस्ट में अच्छे मार्क्स लाने ही हैं - यही सोचकर उसने तय किया कि वह आज भी क्रिकेट खेलने नहीं जाएगा और घर में ही बैठकर पढ़ाई करेगा.

वह फिर से अपनी स्टडी टेबल पर बैठ गया और अपना होमवर्क पूरा करने लगा. 'पता नहीं इतना सारा होमवर्क क्यों मिल जाता है. पूरा करते-करते जान निकल जाती है' उसके दिमाग़ में यही सब घूम रहा था.

तभी उसका मोबाइल फोन बज उठा. उसने फोन उठाकर देखा. अजय का फोन था. 'अरे! होमवर्क और हिन्दी टैस्ट के बारे में सोचते-सोचते वह अजय को फोन करना तो भूल ही गया था!' उसने अजय को कह दिया कि उसे बहुत-सा होमवर्क मिला है और उसका हिन्दी टैस्ट भी है मंडे को, इसीलिए वह नहीं आ पाएगा क्रिकेट खेलने. उसकी बात सुनकर अजय कुछ नाराज़-सा हो गया.

अजय का नाराज़ होना उसे अच्छा नहीं लगा, पर वह करे भी तो क्या. जितना टाइम है उसके पास, उसमें टैस्ट की तैयारी इतने आराम से हो ही कैसे सकती है. कहीं-न-कहीं से तो बचाना ही है उसे टाइम. अजय तो दूसरे स्कूल में पढ़ता है. उनके हर हफ्ते क्लास टैस्ट होते ही नहीं. यही सब सोचते-सोचते वह अपना होमवर्क करने लगा.

होमवर्क करते-करते वह थक गया. तो उसने दीवार घड़ी की तरफ़ देखा. पौने सात बजने वाले थे. मम्मी तो पता नहीं कब आएँगी. पर पापा भी नहीं आए अब तक. लेट हो गए होंगे ऑफिस में ही. यही सब सोचते हुए वह स्टडी टेबल से उठ गया और आराम कुर्सी पर बैठकर टी.वी. देखने लगा.

लेकिन टी.वी. देखने में उसका मन लग नहीं रहा था. उसकी नज़र बार-बार दीवार घड़ी की ओर उठ जाती. सात बजने वाले थे और पापा अब तक नहीं आए थे. वे तो साढ़े छह के करीब ऑफिस से लौटकर पौने सात के आसपास ट्यूशन पढ़ाने के लिए चले भी जाते हैं. सात बजे से तो उनकी पहली ट्यूशन शुरू हो जाती है. और ये तो सात बजने ही वाले हैं. कहाँ रह गए पापा? उसकी चिन्ता घबराहट में बदलने लगी थी.

आख़िर उससे रहा नहीं गया और उसने टी.वी. की आवाज़ बिल्कुल धीमी करके पापा को फोन मिला दिया. घंटी बजती रही काफ़ी देर तक, पर फोन नहीं उठाया पापा ने. या तो गाड़ी चला रहे होंगे या फिर ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर चुके होंगे. उसने अपने आप को समझाने की कोशिश की, पर इसके बावजूद उसकी घबराहट बढ़ने लगी.

घबराहट में उसने मम्मी को फोन मिला दिया. एक-दो घंटियाँ बजने के बाद मम्मी ने फोन उठा लिया.

फोन पर मम्मी ने जैसे ही 'हेलो, बेटू' कहा, मोहित बोल उठा, ''मम्मी, पापा नहीं आए अब तक. पता नहीं क्या बात हो गई है. फोन भी नहीं उठा रहे हैं.'' एक ही साँस में वह सब कुछ कह गया.

''बेटू, फोन आया था पापा का. वे ऑफिस के ज़रूरी काम की वजह से लेट हो गए थे, इसलिए घर आने के बदले सीधे ही ट्यूशन पढ़ाने गए हैं.'' मम्मी ने बताया.

मम्मी की बात सुनकर मोहित का मन हलका हो गया. वह मम्मी से पूछने लगा, ''आप कब वापस आओगे मम्मी?''

''बेटू, अभी कुछ देर में डिनर शुरू होने वाला है. डिनर करके चल पडूँगी.'' मम्मी ने जवाब दिया.

''इसका मतलब नौ बजे तक ही आओगे आप.'' मम्मी की आवाज़ में निराशा का हलका-सा भाव आ गया था.

''हाँ, बेटू, नौ से पहले तो नहीं आ पाऊँगी.'' मम्मी कह रही थीं.

''ठीक है, मम्मी. बॉय.'' कहते हुए मोहित ने फोन काट दिया.

फोन रखने के बाद मोहित के मन में बात आई कि पापा ने अपने देर से आने की बात मम्मी को तो बता दी, पर उसे नहीं बताई. लेकिन तभी यह बात भी उसके दिमाग़ में आई कि शाम को छह बजे तो वह क्रिकेट खेलने जाता है. पापा जब शाम को साढ़े छह बजे के आसपास ऑफिस से वापिस लौटते हैं, तो वह घर में होता ही कहाँ है उस वक्त. इसलिए ऑफिस से सीधे ट्यूशन पढ़ाने के लिए जाने की बात पापा उसे बताते भी तो क्या. यह सोचते ही उसके दिमाग़ का बोझ मानो और भी हल्का हो गया.

उसने टी.वी. बन्द कर दिया और फिर से स्टडी टेबल पर बैठकर अपना होमवर्क पूरा करने लगा. 'टैस्ट की तैयारी तो आज शुरू हो नहीं पाएगी. होमवर्क ही पूरा हो जाए तो बड़ी बात है. ठीक है, आज होमवर्क ख़त्म कर लेता हूँ और कल टैस्ट की तैयारी कर लूँगा. मम्मी भी शाम तक तो घर पर ही होंगी. जो कुछ उनसे पूछना हुआ, पूछ लूँगा.' यही ख़याल चक्कर काट रहे थे उसके दिमाग़ में.

होमवर्क करते-करते वह थक गया था. वह स्टडी टेबल से उठकर आरामकुर्सी पर आ बैठा और उसने फिर से टी.वी. लगा दिया.

वह टी.वी. देख तो रहा था, पर उसका ध्यान मम्मी की ओर ही लगा था. नौ बजने वाले थे. उसे लग रहा था कि कभी भी दरवाज़े की घंटी बजेगी और मम्मी आ जाएँगी.

मगर मोहित का अंदाज़ा ग़लत निकला. घड़ी की सूइयाँ आगे सरकती रहीं, पर दरवाज़े की घंटी नहीं बजी. मोहित को चिन्ता होने लगी थी. पहले उसका दिल किया कि मम्मी को फोन कर ले, पर फिर यह बात उसके दिमाग़ में आई कि वे गाड़ी चला रही होंगी, इसलिए इस वक्त फोन करना ठीक नहीं.

इन्हीं ख़यालों में उलझे हुए वह टी.वी. में अपना ध्यान लगाने की कोशिश करता रहा. तभी दरवाज़े की घंटी बजी. मोहित को लगा कि मम्मी आ गई होंगी. वह अपने कमरे से निकलकर ड्राइंगरूम में आया. पापा आए थे.

''पापा, मम्मी तो आईं नहीं अभी तक.'' पापा को देखते ही मोहित के मुँह से निकल पड़ा.

''मम्मी आने वाली हैं थोड़ी देर में. मेरी बात हुई थी कुछ देर पहले.'' पापा ने कहा और अपने कमरे की ओर बढ़ने लगे.

मोहित को लग रहा था कि पापा उससे मैथ्स के टैस्ट में नम्बरों के बारे में पूछेंगे, पर पापा ने इस बारे में कुछ बात ही नहीं की. सोमवार को हुए क्लास टैस्ट के नम्बर शनिवार को बताए जाते थे. अगर शनिवार को स्कूल की छुट्टी हो, तो सोमवार को नम्बर पता चलते थे. तभी मोहित के मन में यह बात भी आई कि यह अच्छा ही हुआ नहीं तो यह पता चलने पर कि उसके दस में से सिर्फ़ पाँच नम्बर ही आए हैं, पापा उसे ज़रूर डाँट पिलाते.

मोहित को पता था कि पापा अब नहाने जाएँगे. वैसे तो वे शाम को ऑफिस से आने के बाद ट्यूशन पढ़ाने के लिए जाने से पहले ही नहा लिया करते थे, पर आज क्योंकि वे ऑफिस से सीधे ट्यूशन पढ़ाने चले गए थे, शाम को नहा नहीं पाए थे.

मोहित अपने कमरे में आ गया और फिर से टी.वी. देखने लगा. उसे भूख लग आई थी. पापा नहाकर आ जाएँ, तब ही खाना खाया जा सकता है. पर मम्मी भी तो आए न. तभी उसे याद आया कि मम्मी तो खाना खाकर ही आएँगी.

दरवाज़े की घंटी फिर से बजी. मोहित उठकर ड्राइंगरूम में गया. शांतिबाई दरवाज़ा खोलने जा रही थी. दरवाज़ा खुलने पर मोहित ने देखा कि मम्मी आ गई थीं.

***