खुशियों की आहट
हरीश कुमार 'अमित'
(8)
कनॉट प्लेस से घर वापिस आते हुए वे रास्ते भर चुप ही रहे, क्योंकि पापा तेज़ी से गाड़ी चला रहे थे. कनॉट प्लेस में खाना खाते, खरीद्दारी करते और इधर-उधर घूमते हुए काफ़ी समय निकल गया था. इस कारण पापा को ट्यूशन पढ़ाने जाने के लिए कुछ देर हो गई थी.
जैसे ही वे लोग घर के पास पहुँचे, पापा ने मम्मी और मोहित को गाड़ी से उतारा और ख़ुद वहीं से ट्यूशन के लिए चले गए.
सात बजने वाले थे तब. क्रिकेट का समय तो निकल चुका था. अजय को तो उसने कनॉट प्लेस से ही फोन पर बता दिया था कि वह आज भी क्रिकेट खेलने नहीं आ सकेगा.
वे लोग लिफ्ट से अपनी मंज़िल पर पहुँचे. घर की घंटी बजाने पर जैसे ही शांतिबाई ने दरवाज़ा खोला, मम्मी उससे बोलीं, ''शांतिबाई पहले तो पानी पिलाओ और फिर कड़क चाय बनाओ. थक गई मैं तो बहुत. सिर दर्द भी हो रहा है.'' कहते हुए मम्मी अपने कमरे में चली गईं.
''तुम्हारे वास्ते क्या लाऊँ, मोहित?'' शांतिबाई ने पूछा.
''मुझे कुछ नहीं चाहिए.'' कहते हुए वह अपने कमरे में आ गया और कपड़े बदलने लगा. 'अभी तो सारा होमवर्क करना बाकी है' उसके दिमाग़ में आया. कपड़े बदलकर और मुँह-हाथ धोकर वह पढ़ने बैठ गया. उसने सोचा कि सबसे पहले इंगलिश का होमवर्क कर लिया जाए. उसने इंगलिश की किताब और कॉपी निकाली और काम करने लगा. कुछ देर बाद उसे कुछ पूछने की ज़रूरत महसूस हुई.
'अभी तो मम्मी घर में ही है' सोचते हुए वह इंगलिश की किताब लेकर पापा-मम्मी के कमरे की ओर गया. पर मम्मी तो मुँह ढाँपे लेटी थीं और ट्यूबलाइट के बदले नाइट बल्ब जल रहा था.
''क्या हो गया, मम्मी?'' मोहित ने पूछा.
''बेटू, सिरदर्द हो रहा है बड़ा तेज़.'' मम्मी ने बग़ैर मुँह से चादर हटाए उसे जवाब दिया.
''कोई दवाई ले लो, मम्मी.'' मोहित ने सलाह दी.
''सिरदर्द की दवा ली है अभी चाय के साथ. अभी मुझे आराम करने दो. तुम जाकर अपना पढ़ो.'' कहते हुए मम्मी ने करवट बदलकर मुँह दूसरी तरफ़ कर लिया.
मोहित किताब हाथ में पकड़े-पकड़े वापिस अपने कमरे में आ गया. 'अब होमवर्क में कुछ गलती रह जाएगी. इन्हीं छोटी-छोटी गलतियों पर ही तो टीचर होमवर्क की कॉपी में उल्टा-सीधा लिख देती हैं.' यही बात मोहित के मन में आई, पर अब किया भी क्या जा सकता था. मम्मी तो मुँह ढाँपे बिस्तर में लेटी थीं.
उसे समझ नहीं आ रहा था कि मम्मी को अचानक यह सिरदर्द कैसे हो गया. कनॉट प्लेस में तो मम्मी बिल्कुल ठीक-ठाक थीं और बहुत ख़ुश थीं. वहाँ से वापिस आते वक्त भी मम्मी का मूड अच्छा था. फिर घर में घुसते ही सिरदर्द हो जाने की बात मोहित को समझ नहीं आई.
वह किसी तरह अपना काम पूरा करने लगा. साइंस और मैथ्स के होमवर्क में भी उसे कुछ पूछना था, पर यह तो पापा के ट्यूशन पढ़ाकर आने पर ही हो सकता था. पापा ने साढ़े नौ बजे से पहले लौटना नहीं था.
होमवर्क करते-करते मोहित को थकान-सी महसूस होने लगी. कनॉट प्लेस में भी एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए काफ़ी चलना-फिरना पड़ा था. मोहित ने कुछ देर आराम करने की सोची और कानों में इयरफोन लगाकर अपने मोबाइल फोन से गाने सुनने लगा.
कुछ देर बाद उसे दरवाज़े की घंटी बजने की हल्की-सी आवाज़ सुनाई दी. उसने दीवार घड़ी की ओर देखा. नौ बजकर बीस मिनट हुए थे. 'पापा जल्दी कैसे आ गए आज?' सोचते हुए उसने कानों से इयरफोन हटाया और मोबाइल फोन को मेज़ पर रखकर ड्राइंगरूम में आ गया.
मोहित ने देखा कि दो फ्लैट छोड़कर रहने वाले शर्मा अंकल और शर्मा आंटी ड्राइंगरूम में खड़े थे. मोहित ने उन दोनों को नमस्ते की और सोफे पर बैठने के लिए कहा. वह ख़ुद भी एक सोफे पर बैठ गया. शांतिबाई मम्मी को बुलाने चली गई. मोहित ने देखा कि उन दोनों के पास निमन्त्रण पत्र और मिठाई का डिब्बा था. 'कोई शादी वगैरह हो रही है क्या?' मोहित के दिमाग़ में आया.
कुछ ही देर में मम्मी भी अपने कमरे से आ गईं और सोफे पर बैठ गईं. शांतिबाई कोल्ड ड्रिंक ले आई थी शर्मा अंकल और आंटी के लिए.
''टिंकी की शादी है परसों. कल सगाई है आप सबको ज़रूर आना है.'' शर्मा आंटी ने निमन्त्रण पत्र और मिठाई का डिब्बा मम्मी की ओर बढ़ाते हुए कहा.
''इस तरह अचानक?'' मम्मी ने हैरानी से पूछा.
''हाँ, एक रिश्ता देख रहे थे जी. पसन्द आ गया. लड़का लंदन में रहता है जी. अगले हफ्ते उसे वापिस जाना है. इसलिए बस सब काम अचानक ही हो रहे हैं जी.'' शर्मा अंकल ने सारी बात बताई.
तभी दरवाज़े की घंटी बज उठी. शांतिबाई ने दरवाज़ा खोला. पापा आ गए थे. पापा ने शर्मा अंकल से हाथ मिलाया और शर्मा आंटी को नमस्ते की. फिर पापा भी एक सोफे पर बैठ गए.
शर्मा अंकल ने पापा को भी टिंकी की सगाई और शादी के बारे में बताया और उन सब लोगों को आने का निमंत्रण फिर से दिया.
शर्मा अंकल की बात सुनकर पापा कुछ पल सोचते रहे और फिर कहने लगे, ''ठीक है, शर्मा जी, आएँगे, ज़रूर आएँगे.''
''अच्छा, चलते हैं. और भी जगह जाना है.'' कहते हुए शर्मा अंकल सोफ़े से उठ खड़े हुए. शर्मा आंटी भी खड़ी हो गईं.
उसके बाद वे दोनों घर से बाहर जाने लगे. मम्मी-पापा उन दोनों को लिफ्ट तक छोड़ने के लिए उनके साथ गए.
मोहित ने शादी का निमंत्रण पत्र उठा लिया और उसे अच्छी तरह पढ़ने लगा. तभी मम्मी-पापा वापिस आ गए.
''भई, मैं तो न कल सगाई में जा पाऊँगा और न परसों शादी में. कल दिन में दफ्तर जाना पड़ेगा. कुछ बहुत ज़रूरी काम हैं. शाम को ही वापिस आ पाऊँगा वहाँ से. फिर ट्यूशनों के लिए जाना होगा. किसी वजह से कल कोचिंग कॉलेज की छुट्टी है, पर परसों तो कोचिंग कॉलेज जाना है न. इसलिए तुम और मोहित चले जाना दोनों दिन.'' पापा ने एक बार में ही बहुत कुछ कह दिया.
''पर पापा, मेरा तो हिन्दी का क्लास टैस्ट है मंडे को.'' मोहित ने पापा की बात सुनते ही कहा.
''पर शादी में बुलाया है, तो जाना तो पड़ेगा ही न. और कल तो सगाई भी है.'' मम्मी ने अपनी राय दी.
''सगाई में जाना ज़रूरी है क्या?'' पापा पूछने लगे.
''अरे, इतना अच्छी तरह जानते हैं ये लोग हमें. एक ही लड़की है इनकी. उसकी सगाई में भी नहीं जाएँगे क्या?'' मम्मी ने कहा.
''पर, मम्मी मेरा तो क्लास टैस्ट है न.'' मोहित ने अपनी बात फिर दोहराई.
''तो ठीक है, तुम अकेली ही चली जाना सगाई में भी और शादी में भी.'' पापा ने जैसे फैसला सुनाते हुए मम्मी को कहा.
''अकेले जाती अच्छी लगूँगी मैं?'' मम्मी ने कहा.
पापा ने कुछ देर सोचा और फिर कहने लगे, ''तो ऐसा कर लेते हैं. सगाई तो शाम को है. तुम अकेली चली जाना. शादी वाले दिन तो नौ-दस बजे बारात आने से कुछ पहले पहुँचना ही ठीक रहेगा. तुम ऐसा करना कि नौ बजे के आसपास वहाँ पहुँच जाना. मैं भी कोचिंग कॉलेज से खाली होकर वहाँ आ जाऊँगा सवा ग्यारह बजे तक.''
''पर इतनी देर तक मैं अकेली करूँगी क्या वहाँ पर?'' मम्मी बोलीं.
''भई, तुम अकेली कहाँ होगी. सैंकड़ों लोग होंगे वहाँ पर.'' पापा ने समझाते हुए कहा.
अचानक मोहित को एक बात सूझी और वह कहने लगा, ''मम्मी, आप एक काम और भी कर सकते हो.''
मम्मी-पापा ने प्रश्नवाचक नज़रों से मोहित की ओर देखा.
''मम्मी, आप अपनी कुछ कविताएँ ले जाना साथ और वहाँ शादी में आए लोगों को सुनाना शुरू कर देना. फिर तो अकेली नहीं रहोगी न आप.'' मोहित ने मुस्कुराते हुए कहा.
मोहित की बात सुनकर पापा कहने लगे, ''भई, यह कविताएँ सुनाने लगेगी तो शादी में आए सारे लोग भाग नहीं जाएँगे वहाँ से!''
तभी मोहित कहने लगा, ''हाँ पापा, कहीं दूल्हा भी न भाग जाए.''
''चुप कर शैतान.'' मम्मी ने झूठ-मूठ का गुस्सा जताते हुए मोहित से कहा. फिर पापा से कहने लगीं, ''आप भी हमेशा मज़ाक उड़ाते रहते हैं मेरी कविताओं का. एक कविता भी लिखकर दिखाइए तो जानूँ.''
''दिखाएँगे, भई दिखाएँगे लिखकर, पर फिलहाल तो लगी है ज़ोरों की भूख. इसलिए खाना लगवाओ जल्दी से.'' कहते हुए पापा अपने कमरे की तरफ़ चले गए.
मोहित भी हाथ धोने के लिए बाथरूम की तरफ़ चल पड़ा.
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