Khushiyon ki Aahat - 5 in Hindi Moral Stories by Harish Kumar Amit books and stories PDF | खुशियों की आहट - 5

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खुशियों की आहट - 5

खुशियों की आहट

हरीश कुमार 'अमित'

(5)

मोहित का अंदाज़ा ग़लत निकला. चाय-नाश्ते के बाद मोहित ने कुमुद आंटी को अपनी कविताएँ सुनाईं. फिर मम्मी कपड़े बदलकर नए सिरे से तैयार होने में लग गईं. मोहित ने उनके कमरे में जाकर उनसे पूछा, ''आप फिर से जा रही हो मम्मी कहीं?''

''हाँ, बेटे. ये कुमुद आंटी आई हैं न, इन्हें डिनर करवाने ले जा रही हूँ.'' मम्मी ने लिपस्टिक लगाते-लगाते कहा.

''लेकिन मम्मी, इन्हें डिनर पर ले जाने की ज़रूरत ही क्या है?'' मोहित को हैरानी हो रही थी कि कुमुद आंटी को बाहर होटल या रेस्टोरेंट में ले जाकर खाना खिलाने की क्या ज़रूरत है.

''अरे बेटू, ये लखनऊ से आई हैं. रोज़-रोज़ थोड़े ही न आना है इन्होंने.'' मम्मी ने जवाब दिया.

''वो तो ठीक है मम्मी, पर इन्हें घर पर ही खाना नहीं खिलाया जा सकता क्या?'' मोहित ने फिर पूछा.

''अरे तुम नहीं समझोगे, बेटू. ये आंटी बहुत ख़ास हैं.'' मम्मी ने जूड़े में लगाने के लिए क्लिप चुनते हुए कहा.

''कैसे खास हैं मम्मी?'' मोहित की आवाज़ में हैरानी थी.

''ज़रा धीरे बोलो. कहीं सुन न लें वे.'' मम्मी ने धीमी-सी आवाज़ में कहा. फिर वे कहने लगीं, ''तुम्हें पता नहीं कि ये कौन हैं. ये साहित्य परिषद् की अध्यक्षा हैं. बड़े काम आ सकती हैं.''

''ये तो लखनऊ में रहती हैं. ये आपके किस काम आ सकती हैं मम्मी?'' मोहित ने फिर प्रश्न किया.

''अरे बेटू, तुम्हें नहीं पता. ये मुझे कोई बड़ा पुरस्कार वगैरह दिलवा सकती हैं. समझे?'' मम्मी ने अपना पर्स संभालते हुए कहा.

''मगर मम्मी, मुझे तो आपसे कुछ पूछना था हिन्दी और इंगलिश के होमवर्क के बारे में.'' मोहित की आवाज़ हल्की-हल्की काँप रही थी यह कहते समय.

''भई, इस समय तो मैं कुछ नही बता पाऊँगी. पहले ही देर हो गई है. डिनर के बाद इनको स्टेशन छोड़ने भी जाना है. नौ चालीस की ट्रेन है इनकी.'' मम्मी ने जल्दी-जल्दी कहा.

फिर जैसे उन्हें कुछ याद आ गया और वे कहने लगीं, ''तुम खाना खा लेना. पापा की वेट (इन्तज़ार) मत करना. पता नहीं वे कब आएँ. शांतिबाई चने की दाल बना रही है. ओ.के. बाय!'' कहते-कहते मम्मी ने ड्राइंगरूम की तरफ़ तेज़ी से कदम बढ़ा दिए.

''आप वापस कब तक आओगे मम्मी?'' मोहित ने उनके पीछे-पीछे चलते हुए कहा.

''साढ़े दस तक आ जाऊँगी.'' मम्मी ने चलते-चलते जवाब दिया. फिर सोफ़े पर बैठी कुमुद आंटी से कहने लगीं, ''आइए कुमुद जी, चलते हैं.''

कुमुद जी सोफे से उठ खड़ी हुईं. मोहित ने उन्हें नमस्ते की और आँटी ने उसे प्यार किया. फिर मम्मी और आंटी घर से बाहर चली गईं.

उन दोनों के जाने के बाद मोहित बालकनी में आ गया और नीचे झुककर देख़ने लगा. मम्मी और आंटी मम्मी की गाड़ी में बैठीं. मम्मी ने गाड़ी स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी. मोहित उन लोगों को जाते हुए देखता रहा.

उनके जाने के बाद भी वह कुछ देर बालकनी की रेलिंग पर हाथ रखे खड़ा रहा. सूरज छिप चुका था और आसमान काला-काला-सा दिख रहा था. मोहित का मन बड़ा बुझा-बुझा-सा था.

'न पापा घर पर मिलते हैं और न मम्मी. उसके बारे में कोई नहीं सोचता. सोचना तो बाद की बात है, उससे बात करने के लिए भी उन दोनों के पास टाइम नहीं होता. कितना मन करता है उसका कि जी-भरके मम्मी-पापा से बातें करे, उनसे गप्पें लड़ाए, पर हो ही कहाँ पाता है ऐसा. उसका कोई भाई-बहन होता तो वह उससे ही बातचीत कर लिया करता, पर उसका तो कोई भाई या बहन है ही नहीं, उसकी क्लास में पढ़ने वाले दूसरे बच्चों के तो भाई या बहन हैं. किसी-किसी का तो भाई भी है और बहन भी, पर वह अकेला है, बिल्कुल अकेला.' बालकनी में खड़े-खड़े यही सब सोच रहा था मोहित.

घर में हर समय बस शांतिबाई ही होती थी. मम्मी ने एक बार बताया था कि शांतिबाई का दुनिया में कोई नहीं है. शांतिबाई उन्हीं के घर में कई सालों से काम कर रही थी.

कुछ देर बालकनी में खड़े रहने के बाद मोहित अपने कमरे में आ गया. पहले तो उसके जी में आया कि कुछ देर टी.वी. देख लिया जाए या कोई कम्प्यूटर गेम खेल ली जाए, पर फिर न जाने क्यों उसका जी नहीं किया. वह स्टडी टेबल पर बैठकर अपना होमवर्क पूरा करने लगा.

तभी शांतिबाई ने ड्राइंगरूम वाला टी.वी. लगा लिया. टी.वी. की आवाज़ उसके कानों तक आ रही थी. इससे उसे उलझन हो रही थी. उससे सही तरह से काम नहीं हो पा रहा था. उसने शांतिबाई को आवाज़ दी.

कुछ देर बाद शांतिबाई उसके कमरे के दरवाज़े पर आ गई. मोहित बोला, ''टी.वी. की आवाज़ धीरे कर लो. मैं पढ़ाई कर रहा हूँ.''

मोहित की बात सुनकर शांतिबाई ने 'हाँ' में सिर हिलाया और कहने लगी, ''खाना कब खाओगे?''

''भूख नहीं है अभी, बाद में खाऊँगा.'' कहते-कहते मोहित फिर अपनी कॉपी पर झुक गया. यह बात अलग थी कि उसे हल्की-हल्की भूख लग रही थी और वह चाहता तो खाना खा सकता था. शांतिबाई के बदले अगर मम्मी पूछतीं तो वह ज़रूर खाना खा लेता, पर शांतिबाई का बनाया खाना उससे आराम से खाया नहीं जाता था. किसी तरह निगला करता था वह शांतिबाई के बनाए खाने को.

शांतिबाई ने टी.वी. की आवाज़ कम कर दी थी. हालाँकि हल्की-हल्की आवाज़ उसे अब भी सुनाई दे रही थी. पर इससे उसे कोई ज़्यादा परेशानी हो नहीं रही थी.

होमवर्क पूरा करने के बाद मोहित ने कुछ देर आराम किया और फिर मैथ्स के टैस्ट की बाकी तैयारी शुरू कर दी. कल की तरह आज भी बहुत से सवाल उससे हल नहीं हो पा रहे थे. 'रात को पापा देर से आएँगे. अब कल सुबह ही पापा से कुछ पूछ पाएगा.' उसने सोचा, मगर यह सोचते हुए यह बात भी उसके दिमाग़ में आई कि सुबह-सुबह तो टाइम ही कहाँ होता है किसी के पास. मम्मी-पापा दफ्तर जाने की भागदौड़ में रहते हैं और वह स्कूल जाने की. मम्मी-पापा तो फिर भी आठ बजे घर से निकलते हैं, पर उसकी स्कूल बस तो सात दस पर ही आ जाती है. 'चलो, देखेंगे' सोचते हुए उसने मैथ्स के सवाल करना जारी रखा.

कुछ देर बाद उसने सिर उठाकर दीवार घड़ी की ओर देखा. साढ़े नौ बजने वाले थे. पढ़ते-पढ़ते वह थक-सा गया था. उसे भूख भी ज़ोरों की लग आई थी.

उसने अपने कमरे से ही शांतिबाई को खाना लगाने के लिए कहा और हाथ धोने बाथरूम की तरफ़ चला गया.

हाथ पोंछकर वह डाइनिंग टेबल पर आया, तो शांतिबाई खाना लगा रही थी. मोहित ने कटोरी उठाकर चने की दाल डालनी शुरू की. हालाँकि यह दाल उसे बहुत अच्छी लगा करती थी, पर उसे पता था कि इसे मम्मी ने नहीं शांतिबाई ने बनाया है, उसने थोड़ी-सी ही दाल ली.

डाइनिंग टेबल पर एक डोंगे में सुबह वाले राजमा भी थे. मोहित ने एक कटोरी उठाकर उसे राजमा से भर लिया. फिर अपनी प्लेट में सलाद भी रख लिया.

तभी शांतिबाई रसोई से गरमागरम रोटी ले आई और उसे मोहित की प्लेट में रख दिया. मोहित ने जी कड़ा करके रोटी का कौर तोड़ा और राजमा के साथ उसे खाने लगा. उसकी पहली रोटी अभी ख़त्म भी नहीं हुई थी कि शांतिबाई दूसरी रोटी ले आई, मगर मोहित ने वह रोटी नहीं ली. कह दिया कि उसे ज़्यादा भूख नहीं है. पहली रोटी को उसने किसी तरह खाया.

उसके बाद मोहित ने मन पक्का करके चने की दाल किसी तरह ख़त्म की और फिर राजमा की कटोरी से राजमा खाने लगा. राजमा खाने में उसे बहुत मज़ा आ रहा था. मम्मी ने जो बनाए थे. कटोरी में डाले सारे राजमा ख़त्म हो गए, पर मोहित को अभी भी हल्की-हल्की भूख लगी थी. उसने राजमा के डोंगे का ढक्कन उठाया. उसमें बहुत ज़्यादा राजमा नहीं बचे थे. 'पापा ने तो दिन में राजमा खाए ही नहीं. शांतिबाई को भी लेने होंगे.' सोचते हुए उसने ढक्कन डोंगे पर रख दिया.

तभी मोहित की नज़र डाइनिंग टेबल पर रखी फलों की टोकरी पर पड़ी. उसमें केले रखे थे. मोहित ने गुच्छे से एक केला तोड़ा और उसे छीलकर खाने लगा. केला ख़त्म करके उसका छिलका प्लेट में रखते हुए मोहित को लगा कि उसकी भूख अभी पूरी तरह मिटी नहीं है. उसने गुच्छे से एक केला और तोड़ा और उसे खाने लगा. दूसरा केला खाते-खाते मोहित को लगा कि उसका पेट पूरा भर गया है.

वह डाइनिंग टेबल से उठ खड़ा हुआ और बाथरूम में जाकर कुल्ला करने लगा.

बाथरूम से बाहर आते-आते उसे लगा कि उसे नींद आ रही है. तभी उसके दिमाग़ में आया कि अभी तो उसे मैथ्स के टैस्ट की बहुत-सी तैयारी करनी है.

खाना खाने के एकदम बाद पढ़ाई नहीं करनी चाहिए - यह बात तो उसके पापा ने कई बार बताई थी और उसकी साइंस टीचर ने भी. 'थोड़ी देर आराम कर लूँ, फिर पढ़ूँगा.' यही सोच मोहित ने म्यूज़िक सिस्टम पर अपने मनपसन्द फिल्मी गाने लगा लिए और बिस्तर पर आँखें बन्द करके लेट गया, लेकिन कुछ ही देर में उसे गहरी नींद ने आ घेरा.

***

मोहित की नींद सुबह ही खुली. उसने खिड़की से बाहर देखा. सूरज निकलने ही वाला था. तभी उसका ध्यान अपने कपड़ों पर गया, 'अरे, कपड़े बदले बगैर ही सो गया था वह रात को!' उसके दिमाग़ में आया. एक-एक करके उसे पिछली शाम की सभी घटनाएँ याद आने लगीं. खाना खाने के बाद वह तो थोड़ी देर आराम करने के लिए बिस्तर में लेटा था, मगर कब नींद आ गई, उसे पता ही नहीं चला.

उसने देखा कि म्यूज़िक सिस्टम बन्द कर दिया हुआ था और कमरे की बत्ती भी नहीं जल रही थी. शांतिबाई को तो म्यूज़िक सिस्टम बन्द करना आता नहीं. इसका मतलब रात को घर आने के बाद मम्मी या पापा उसके कमरे में ज़रूर आए होंगे और उन्होंने ही म्यूज़िक सिस्टम को बन्द किया होगा. मम्मी के ही पापा से पहले वापिस आने की उम्मीद थी. शायद वहीं आई होंगी उसके कमरे में.

वह बाथरूम जाने के लिए उठा. बाथरूम से बाहर आकर वह ड्राइंगरूम में आया. उसने देखा मम्मी-पापा के कमरे की बत्ती जली हुई है और पापा सैर करने जाने के लिए तैयार हो रहे हैं.

मोहित लपककर मम्मी-पापा के कमरे में गया और पापा से कहने लगा, ''पापा, आपको याद है न आज मैथ्स का क्लास टैस्ट है मेरा. बहुत कुछ पूछना है मुझे आपसे.''

''यार, मैं तो वॉक पर जाने लगा था.'' पापा ने मजबूरी भरे स्वर में कहा.

''आप तो आधे घंटे से पहले आओगे नहीं पापा. तब तक तो मैं स्कूल के लिए तैयार हो रहा होऊँगा.'' मोहित कहने लगा.

''तुम्हारी बात ठीक है. पर.... चलो, मैं वॉक पर नहीं जाता. तुम ले आओ अपनी बुक और कॉपी.'' कहते-कहते पापा सैर करते समय पहने जाने वाले जूते उतारने लगे.

मोहित को अजीब-सा लग रहा था कि उसने पापा को सैर करने जाने से रोक दिया, लेकिन इसके अलावा और कोई तरीका भी तो नहीं था. 'पापा अगर सैर करने चले जाते, तो उनके वापिस आने के बाद इतना टाइम ही कहाँ होना था कि वह उनसे कुछ पूछ सकता. अच्छा हुआ उसकी नींद कुछ पहले खुल गई, अगर उसके उठने से पहले पापा सैर करने जा चुके होते, तो.....?' यही सब सोचते हुए वह अपने कमरे से मैथ्स की किताब और कॉपी उठा लाया और डाइनिंग टेबल पर बैठ गया.

पापा भी डाइनिंग टेबल पर आ गए और उसे मुश्किल लग रहे सवाल हल कर-करके बताने लगे. मोहित जानता था कि उसे बहुत मुश्किल लगने वाले सवाल भी पापा चुटकी में हल कर देते हैं. 'अगर पापा हर रोज़ उसे एक-डेढ़ घंटे तक मैथ्स और साइंस पढ़ा दिया करें, तो उसके लिए कितना अच्छा हो.' उसके मन में पहले भी कई बार आ चुका यह ख़याल फिर से आया. 'पर टाइम ही कहाँ होता है पापा के पास.' तभी यह बात भी उसके मन में आई.

वैसे तो उसने पापा से बहुत से मुश्किल सवाल हल करवाने थे, पर घड़ी की सूइयाँ आगे खिसकती जा रही थीं. छह बीस पर मम्मी ने उन दोनों को टोक दिया और कहने लगीं, ''मोहित, स्कूल के लिए तैयार होना शुरू कर दो. नहीं तो स्कूल बस निकल जाएगी.''

अचानक मोहित के दिमाग़ में एक विचार आया और वह पापा से कहने लगा, ''पापा, अगर स्कूल बस को छोड़ दिया जाए और आधा-पौना घंटा और पढ़ाई कर ली जाए, फिर मुझे स्कूल छोड़ते हुए आप ऑफिस नहीं जा सकते क्या?''

मोहित की बात सुनते ही पापा एकदम से बौखला-से गए और कहने लगे, ''अरे, नहीं मोहित. तुम्हारा स्कूल एक तरफ़ है और मेरा ऑफिस दूसरी तरफ़. तुम्हें छोड़ने के चक्कर में मैं ख़ुद लेट हो जाऊँगा. आज तो साढ़े नौ बजे एक जरूरी मीटिंग भी है ऑफिस में.''

पापा की बात सुनकर भी मोहित ने हिम्मत नहीं हारी. उसने रसोई में काम कर रही मम्मी को पुकार कर पूछा, ''मम्मी, आप जा सकते हो मुझे स्कूल छोड़ने जब ऑफिस जाओगे?''

मोहित की बात सुनकर मम्मी रसोई से बाहर आईं और कहने लगीं, ''बेटू, मैं तुम्हें छोड़ तो देती, पर अभी तो मुझे बालों में मेंहदी लगानी है. कल-परसों तो टाइम मिला नहीं. आज तो मैं देर से ही जाऊँगी ऑफिस.''

मम्मी की बात सुनने के बाद मोहित के सामने तैयार होकर स्कूल बस से ही स्कूल जाने के अलावा और कोई चारा था ही नहीं. उसने तो अभी पापा से बहुत कुछ पूछना था, पर अब और कुछ नहीं पूछा जा सकता था. घड़ी छह पच्चीस बजा रही थी. मोहित ने अपनी किताब और कॉपी को समेटा और कुर्सी से उठ खड़ा हुआ.

***