Mannu ki vah ek raat - 14 in Hindi Love Stories by Pradeep Shrivastava books and stories PDF | मन्नू की वह एक रात - 14

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मन्नू की वह एक रात - 14

मन्नू की वह एक रात

प्रदीप श्रीवास्तव

भाग - 14

उसका उत्तर सुन कर मैं फिर अपने कमरे में आ गई। आते ही मैंने तेज लाइट ऑफ कर दी और नाइट लैंप ऑन कर दिया और बेड के पास आकर खड़ी हो गई। नजरें मेरी उस कम रोशनी में भी जमीन देख रही थीं। अपने पैरों के करीब ही। तभी चीनू कमरे में दाखिल हुआ। मैं सोच रही थी कि वह डरा सहमा संकोच में कुछ सिकुड़ा सा होगा। लेकिन नहीं ऐसा नहीं था उस पर कोई ख़ास फ़र्क नहीं था। वह बेड के दूसरे कोने के करीब खड़ा हो गया। हां नजरें उसकी भी नीचे थीं। मैंने उसे बैठने को कहा तो वह वहीं एक क़दम और आगे बढ़ कर बेड पर बैठ गया। उसे बुलाने से पहले मैंने वह बेड-शीट बदल दी थी जिस पर मेरे उसके कुकर्म के धब्बे लगे थे। कुछ देर हम दोनों चुप रहे फिर मैं धीरे से बोली,

‘गुस्सा हो तुम।’

'‘नहीं।'’

‘मैं .... मैं ये कह रही थी कि जो हुआ उसके बारे में कहीं बात नहीं करना।’

‘'ठीक है।'’

‘अपने दोस्तों, अपनी मां किसी से भी नहीं ...... ।’

इस बार वह न जाने क्यों कुछ न बोला। मुझे लगा कि उसने सहमति में सिर हिलाया था। मगर कम रोशनी के कारण मैं ठीक से देख नहीं पाई थी तो कंफर्म करने को मैं व्याकुल हो उठी। मैं जाकर उसके करीब बैठ गई। फिर कहा -

‘चीनू अगर तुमने कहीं कहा तो बात फैलते देर नहीं लगेगी। हम दोनों की बहुत बदनामी होगी। हम दोनों मुंह दिखाने के काबिल न बचेंगे। तुम्हारे मां-बाप, भाई-बहन ...... सोचो सब क्या सोचेंगे। तुम्हारे पापा तो बहुत गुस्से वाले हैं तुम्हें घर से निकाल दिया तो। और मैं ..... मुझे तो तुम्हारे चाचा जिंदा नहीं छोड़ेंगे। ..... या ये समझ लो कि मेरे लिए सिवाय आत्महत्या के और कोई रास्ता नहीं बचेगा। तुम समझदार हो बात की गंभीरता को समझना, तुम्हारी जरा सी बात से मेरी जान चली जाएगी। क्या तुम चाहोगे कि मैं आत्महत्या कर लूं।’

यह कह कर मैं सिसक पड़ी, आंसू बहाने लगी। तो वह बेहिचक एकदम मुझसे सट कर बैठ गया और निसंकोच मेरे आंसू पोछते हुए बोला,

‘'आप परेशान मत होइए मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगा। मगर मैं नहीं जानता था कि चाचा आपको मारते भी हैं।'’

चीनू की हिम्मत और उसकी बात से कहीं नहीं लग रहा था कि जो पौन घंटे पहले घटा उससे वह जरा भी हैरान परेशान है। मैंने उससे जरा अलग हटते हुए कहा,

‘चीनू पति-पत्नी के बीच यह सब होता रहता है। यह कोई असामान्य बात नहीं है। तुम्हारे चाचा बहुत अच्छे हैं। वह मेरा बहुत ख़याल रखते हैं।’

'‘तो फिर इस तरह मारते क्यों हैं।'’

‘मैंने कहा न पति-पत्नी के बीच यह सब चलता रहता है। जब तुम्हारी शादी होगी तब तुम इन सारी बातों को समझोगे और फिर दिन में तुम भी तो बता रहे थे कि तुम्हारे मां-बाप के बीच भी यह सब होता ही रहता है।’

‘'पता नहीं ...... कई बार पापा ने भी अम्मा को मारा है लेकिन उन्होंने कभी किसी और के सामने नहीं।'’

‘चलो बंद करो इन सब बातों को, बस तुम किसी से कोई भी बात न कहना ..... नहीं तो मुझे मरा हुआ पाओगे।’

'‘मैंने कहा न चाची ...... मैं कहीं भी किसी से कुछ नहीं कहूंगा। मगर चाची एक बात कहूं.......?’'

‘बोलो’

‘'ये जो मीनाक्षी गई है न चाचा के साथ यह अच्छी नहीं है। चाचा के साथ इसके संबंधों के बारे में पापा को अम्मा से बात करते समय मैंने कई बार सुना है। पापा ने कई बार बताया है कि यह दोनों लोग अक़सर गाड़ी में कहीं चले जाते है घंटों बाद लौटते हैं, ऑफ़िस में तो सब इनके संबंधों को लेकर बहुत मजाक उड़ाते हैं।'’

एक छोकरे के मुंह से अपने पति के लिए ये बातें सुन कर गुस्से से मन भर गया, सुसुप्त पड़ चुकी आग फिर से धधकने को फड़क उठी। और इस बात पर बड़ा क्षोभ हुआ कि वह चुड़ैल मेरे आदमी को अपने कब्जे में करके गुलछर्रे उड़ा रही है। उस कमीनी के ही कारण यह महीनों मेरी तरफ देखना भी पसंद नहीं करते। तमाम कोशिशें भी इनकी भावना को हवा नहीं दे पाती थीं। और आज जो यह समस्या आ खड़ी हुई है कि मैं उनके आते ही संबंध बनाने के लिए सारी जुगत लड़ा रही हूं, एक पत्नी होकर अपने पति से कैसे एक बार संबंध बना लूं इसके लिए मुझे हैरान-परेशान होना पड़ रहा है इन सारी स्थितियों के लिए वह चुड़ैल ही ज़िम्मेदार है। मन हुआ कि वह मिल जाए तो उसकी बोटी-बोटी काट डालूं। मगर विवश थी मैं। किसकी ताक़त पर यह करती इन सब का किसके सहारे विरोध करती और किसका करती। जब मुकाबिल खुद अपना ही पति हो। यह मैं सोच ही रही थी कि चीनू फिर बोला,

'‘आप चाचा को मना क्यों नहीं करतीं कि वह उससे बात न किया करें।'’

चीनू की बात सुनकर मुझे लगा कि वह कुछ ज़्यादा ही हमारी ज़िंदगी में ताक-झांक कर रहा है। इसे यहीं लगाम न लगाया तो यह मुसीबत बन जाएगा। वैसे भी उसे देखकर अब न जाने क्यों मेरे मन में गुस्सा भर रही थी। मैंने चैप्टर क्लोज कर उसे उसके कमरे में भेजने की गरज से बड़े रूखे अंदाज में कहा,

‘चीनू ये सब हम लोगों की पर्सनल बातें हैं हम लोग सॉल्व कर लेंगे। मियां-बीवी के बीच यह सब चलता रहता है। तुम्हें इस बारे में कुछ नहीं सोचना चाहिए। फिर अभी तुम बच्चे हो पढ़ाई-लिखाई में अपना ध्यान लगाओ। अच्छा चलो अब बहुत रात हो गई है जाओ अब जा के सो जाओ।’

इतना कह कर मैं बाथरूम चली गई। सोचा यह जल्दी चला जाएगा। बाथरूम से लौटी तो मैं दंग रह गई। वह अब भी वहीं बेड पर आराम से बैठा था। मैंने फिर कुछ खीझ कर कहा,

’चीनू जाकर सो जाओ, बहुत रात हो गई है। मैं भी सोने जा रही हूं।’

मेरी इस बात का उसने जो जवाब दिया उससे मैं अंदर तक कांप उठी, पूरे शरीर में पसीना सा महसूस होने लगा। मेरी हालत सांप- छछूंदर की हो गई थी।

‘उसने ऐसा क्या कह दिया था।’

‘मेरी बात पर वह बड़े अधिकार से बोला’

'‘मैं यहीं आपके साथ सोऊंगा।'’

‘क्या ?’

‘हां ....... उसने यह इतने अधिकार इतना जोर दे कर कहा कि मेरा रोम-रोम कांप उठा। मगर ऊपर से अपने को मज़बूत दिखाने की कोशिश करते हुए कहा,

‘चीनू तुम्हारा दिमाग खराब हो गया। तुम मेरे साथ नहीं सो सकते। जाओ अपने कमरे में।’

मेरी बात सुन कर कुछ देर चुप रहा फिर एक झटके में मेरे सामने आकर बोला,

‘'मैंने कहा न मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगा ।'’

‘हां ...... लेकिन यह नहीं हो सकता कि मेरे साथ सोओ। इसलिए जाओ ऊपर।’

मेरे इतना बोलते ही वह भी अपनी आवाज़ में तेजी लाते हुए बोला,

‘'क्यों नहीं हो सकता ?'’

उसके इस अकड़ भरे प्रश्न से मैं झल्ला उठी, और उसके इरादे भांप गई। मुझे लगा अगर मैं कमजोर पड़ी तो यह सिर पर चढ़ जाएगा। और जब चाहेगा मनमानी करेगा। तो मैंने एक बार फिर हिम्मत कर एकदम उसके करीब जाकर कहा,

’तुम पागल हो गए हो क्या ? बच्चे हो बच्चे की तरह रहो। चुपचाप अपने कमरे में जा कर सो जाओ समझे।’

‘'न मैं पागल हूं, न बच्चा, समझी चाची, आपने मुझे बहुत बड़ा बना दिया है, अब मैं आपके साथ सो सकता हूं। जब आपका मन था तब बड़ा हो गया था, आपका मन भर गया तो मैं बच्चा हो गया। ये नहीं हो सकता चाची। फिर मैं बार-बार कह रहा हूं कि मैं किसी से नहीं कहूंगा, कभी नहीं कहूंगा तब आपको क्यों परेशानी हो रही है बताइए।'’

इतना कहते-कहते उसने आकर धीरे से मेरे दोनों हाथों को पकड़ लिया। पूरे अधिकार के साथ की जा रही उसकी यह हरकतें मेरे होश उड़ाए दे रही थीं। मैं नर्वस हुई जा रही थी। बार-बार किसी से न कहने की बात कह कर वास्तव में वह यही धमकी दे रहा था कि वह जो कर रहा है करने दो नहीं तो भांडाफोड़ देगा। वह मेरे हाथों को पकड़े मेरे इतना करीब खड़ा था कि उसकी गर्म साँसों को मैं महसूस कर रही थी। उसकी लंबाई मुझे अहसास करा रही थी कि वह जो कह रहा है कि वह बच्चा नहीं बड़ा हो गया है वही हक़ीक़त है। और मुझे यह भी अहसास हो गया कि उसे मैं जितना धूर्त मक्कार समझ रही थी वह उससे हज़ार गुना ज़्यादा कमीना, धूर्त है। और इस धूर्त के जाल में स्वयं को ऐसा फंसा चुकी हूं कि निकलने का कोई रास्ता नहीं बचा है। मैं कुछ निर्णय ले पाती, कुछ करती कि उसके पहले ही वह मेरे हाथ जो पहले से पकड़े हुए था उसे पकड़े-पकड़े बेड की तरफ चल पड़ा मेरे पास सिवाय उसके इशारे को मानने के और कुछ नहीं बचा था।

मैं विवश उसके साथ बैठ गई बेड पर। इतना बेबस मैं जीवन में उससे पहले कभी नहीं हुई थी। वह धूर्त इतना कमीना और चालाक निकला था। जिस हरामी बाबा से ऐन वक़्त पर आ कर ज़िया ने मेरी इज़्जत बचाई थी आज उसी ज़िया का लड़का मेरी इज़्जत तार-तार करने के लिए मुझे अपने जाल में ऐसा फंसा चुका था कि बचने का कोई रास्ता नहीं था। यहां तक की चाह कर भी ज़िया को भी नहीं कह सकती थी। उसने मुझे बेड पर लिटा दिया और खुद लेट गया।

हैरान-परेशान मैं एक झटके से उठ कर जाने लगी तो उसने फिर बिजली की तेजी से मेरा हाथ पकड़ लिया। उसकी पकड़ में उसकी जवानी की ताकत साफ अपना अहसास करा रही थी। और साथ ही उसकी मंशा का भी। उसने मुझे खींच लिया, विवश मैं फिर लेट गई। मगर नफ़रत के कारण मैं करवट लेकर दीवार की तरफ मुंह करके लेटी तो कुछ देर बाद वह भी करवट लेकर ठीक मेरे पीछे सट कर लेट गया। तो मैंने खीझ कर कहा,

‘चीनू ठीक से लेटो, उधर खिसको।’

मगर बजाय खिसकने के उसने बड़ी बेशर्मी से अपना एक हाथ पीछे से मेरे पेट पर रख दिया, मैंने हटाने की कोशिश की तो असफल रही उसके आगे मैं बेबस थी। अंततः मैंने बचने का आखिरी प्रयास किया। उससे कहा,

‘तुमने अगर बदतमीजी बंद नहीं की तो मैं अभी आत्महत्या कर लूंगी और सुसाइड नोट में तुम्हारा नाम लिख कर जाऊंगी। सोच लो पुलिस तुम्हें पकड़ कर ले जाएगी और फांसी हो जाएगी तुम्हें।’

'‘ठीक है चाची सुसाइड नोट में जो मन आए लिख देना। उससे मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा। पोस्टमार्टम में सब पता चल जाएगा। पूरी दुनिया जान जाएगी कि जो किया तुमने किया। मैंने कुछ नहीं। अब मर्जी आपकी जो चाहें कर लें।'’

निहायत कमीनेपन से यह जवाब देकर वह बड़ी बेशर्मी के साथ मुझ से कस कर पीछे से चिपक गया। उसकी बातें सुन कर साफ पता चल रहा था कि सड़क छाप किताबें पढ़-पढ़ कर वह एकदम पक्का हो चुका है। उसे मामूली लड़का समझना मूर्खता होगी। अब मुझे सारे रास्ते बंद नजर आ रहे थे। मुझे यकीन हो गया कि मैं सब कुछ खो चुकी हूं , सब हार चुकी हूं अब मेरे पास कुछ नहीं है।’

***