Kamsin - 29 in Hindi Love Stories by Seema Saxena books and stories PDF | कमसिन - 29

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कमसिन - 29

कमसिन

सीमा असीम सक्सेना

(29)

हर बात वो उनसे ही तो कह लेती थी इसीलिए आज माँ से ज्यादा भाभी की याद आ रही थी ! जो उसकी अपनी होकर भी अपनों से ज्यादा थी ! लेकिन वो उनको यह कैसे बताती कि उसे रवि धोका देकर चले गए हैं ! यही सब सोचते हुए वो बेंच से उतर कर कब प्रांगण के फर्श पर आ गई उसे पता ही नहीं चला, पूरी रात गुजर चुकी थी ! एक पल को झपकी नहीं आई, आंखों में भरे सुंदर सपने, अब आंसुओं में तब्दील हो गये थे। उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था, वह वापस घर नहीं जायेगी आत्महत्या भी नहीं करेगी। वह जियेगी, अपने प्रेम के लिए क्योंकि उसके भीतर का प्रेम जिंदा था, पूरी तरह से उबाल पर था ! जो किसी भी तरह नीचे नहीं आने वाला, धधकती हुई आग उसके अंतस के उस उबाल को कैसे शांत होने देगी और हाँ उसे अडिग विश्वास था कि उसका प्यार कभी भी स्वार्थी, छली या फरेबी नहीं हो सकता। बिल्कुल भी नहीं हो सकता।

जरूर मन में कुछ भेद है, जो वे छुपा गये ! न जाने किस वजह से बता नहीं सके या फिर उसे बताना ही नहीं चाहते थे। उसने उन को जितना जाना था उससे भी ज्यादा पहचानती थी। जरूर कोई बात उनके मन में थी। उसने तोड़ दिया था भीतर से लेकिन वह अपने विश्वास को जीवित रखेगी, कोई डिगा नहीं पायेगा उसके विश्वास को।

वह अपने सिर पर चोट मार कर सब कुछ भूलने का झूठा नाटक करती है और इसी गाँव में रहकर अपने प्रेम वापस लौट आने का इंतजार वे जरूर उसे ढँूढ लेंगे एक दिन। लौट आयेंगे पहले से ज्यादा प्यार लेकर। ये सोंच उसके गिरे हुए आत्म सम्मान, हताशा निराशा और उदासी को कुछ हद तक कम कर गये ! कुछ कुछ जीवन का संचार हुआ उसने अपनी सारी शक्ति समेट कर उठने की कोशिश की। परन्तु पैरों में जान ही नहीं लग रही थी। किसी तरह से अपना सिर उठाया और उस लोहे की बेंच पर जोर से मार दिया। खून का भब्बारा सा फूट पड़ा उसके सिर से दर्द की तीखी लहर उठी, किंतु वह दर्द उतना असहनीय नहीं था जो उसके दिल में उठ रहा था, वह वेदना तो उसके दिल के गोशे गोशे को चीर कर रखे थी। वह कल से कुछ न खाने के कारण वैसे भी कमजोरी महसूस कर रही थी और अब यह खून का बहना उसको वाकई बेहोशी की हालत में पहुँचा दिया। आँखे खुल ही नहीं रही थी ! जब आँख खुली तब उसने खुद को एक घर में पाया, जहाँ वह लेटी थी ! कोई गाँव जैसे घर का एक कमरा लग रहा था ! वह तख्त पर बिछे बिस्तर पर लेटी हुई थी, उसका मुँह प्यास से उमठ गया था। उसका हाथ सिर पर चला गया जहाँ पर चोट लगी थी लेकिन अब वहां पर पट्टी बंधी थी। दर्द कुछ कम हो गया था। पानी उसके मुँह से आवाज निकली। करीब 40 वर्षीय एक व्यक्ति उसके लिए स्टील के एक गिलास में पानी लेकर आया था। उसे सहारे से उठाते हुए गिलास उसके मँुह में लगा दिया। उसने तो तीन घूँट पानी पिया। और लेट गई, आँखें भी बंद कर ली। कमजोरी बेतरह से हाबी हो रही थी।

कैसी हो दीदी जी आप?

किसी लड़की की आवाज सुनकर कुछ तसल्ली हुई थी लेकिन वो कुछ नहीं बोली ! कैसे बोलती, उसे अपनी पहचान छिपा कर यही इसी गांव में जो रहना था। ईश्वर ने उसकी ये प्रार्थना सुन ली थी और उसे कोई ग्रामीण अपने घर में ले आये थे। अब आगे देखें, उसकी किस्मत उसे कौन सा रूप दिखाती है। वहाँ उस घर में 3 भाई दो बहने माँ और बूढ़ी दादी माँ। दोनों भाईयों की शादी हो चुकी एक भाई जो सबसे छोटा था वह हाॅस्टल में रहकर पढ़ रहा ! वह फुटवाल का नेशनल प्लेयर था ! सरकार की तरफ से पढ़ाई रहने खाने का पूरा खर्चा मिलने के साथ ही हर महीने कुछ पैसों का वजीफा भी। दोनों बहनों की भी शादी हो गई, वे उसी गांव में व्याही थी तो रोज उनका आना जाना लगा रहता। उनके बच्चे दोपहर का खाना वहीं आकर खाते।

बड़े वाले भाई मंदिर के पुजारी और छोटे (मंझले) खेती बारी का काम करते। वे लोग उससे बात करते ध्यान रखते पर वह चुप, एकदम से शांत, कुछ नहीं कहती ! वे लोग बोलते आप बिल्कुल परेशान न होना आप हमारी छोटी बहन हो । अगर कभी कोई परेशानी हो तो मुझे जरुर बताना। इस घर को हमेशा अपना ही समझना ! कोई भी तुम्हें कुछ नहीं कहेगा, तुम्हारे बारे में नहीं पूछेगा।

पूछेगा भी, तो वह बतायेगी नहीं और बतायेगी भी क्या? कि उसका विश्वास, उसका प्यार और जिंदगी सब उससे रूठ गये हैं । उसे इन सबके बिना जीना है ! बेहद दुःखद और भयावह सा लगता है ! सबके साथ होते भी उसे लगता कि वह एकदम अकेली है पूरी तरह तन्हाँ। जब रात को हड़बड़ा कर चौंक कर उठ जाती, तब लगता जैसे कोई आवाज लगा रहा है किसकी है ये आवाज। घबराहट से पसीने में लथपथ हो जाती, बैचेनी से भरी हुई, वो जोर जोर से उनका नाम लेकर पुकारना चाहती ! शरीर की पूरी ताकत लगाकर पेट दबाकर जोर से मुँह फैलाकर रवि, कहाँ हो तुम?

आ जाओ, लौट आओ वापस। तुम्हारे बिना ये जीवन कैसे जिऊँ ? तुम इस तरह तन्हा छोड़कर नहीं जा सकते। पूरी रात यूँ ही बार बार चौंक चौंक कर जग जाती और रात आँखों में ही कट जाती। एक आध बार आँख लगती तो रवि का चेहरा सामने और वे उसे सपने में बेइंतहा प्यार करते। उसका विश्वास उस पल और अडिग हो जाता और वह रवि के प्यार को भूलने की बजाय और ज्यादा प्यार में डूबने लगती।

उसके पास में पिंकी लेटती, उसकी तरफ देखती तो घर और मम्मा पापा की बेहद याद आती ! राशि इस बात का हमेंशा ध्यान रखती कि कहीं उसकी आँख न खुल जाये ! बड़े वाले भाई की बेटी पिंकी उसे बहुत प्यार करती। हम उम्र होने के नाते उसके साथ बिलकुल सहेली जैसा व्यवहार हो गया था। उसे देखकर पीका की याद आती ! वो भी तो बिलकुल ऐसी ही थी ! एक दिन में ही कितना प्यार और मान सम्मान दिया था !

वो अपने कालेज जाती, आकर वहाँ के अनुभव बताती ! ! परन्तु उसे किसी भी बात को सुनने में कोई भी इंट्रेस्ट ही नहीं। पूरी तरह दर्द में डूब गई थी उसकी जिंदगी ! आंखों के बहते आँसू उसे किसी भी तरह शांत नहीं कर पाते। कोई ज्वालामुखी सा उसके भीतर जलता रहता और वो उसमें तपती चली जाती। वैसे तप कर ही तो सोना कुंदन बनता है। ये प्रेम अगन उसे तपा कर और भी ज्यादा प्रेम में डुबा देती। वो सोंचती रहती हर वक्त आत्म मंथन चलता रहता, कभी मन में आता ! क्या उसका प्यार एक ज्वार भांटे की तरह था जो उफनता हुआ आया और उतर गया, नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता। ज्वारभाटा समुद्र में आता है उतर जाता है परन्तु दुगुने बेग के साथ उफनने के लिए। वह खत्म नहीं होता बल्कि कुछ ठिठक कर पहले से अधिक तेज बेग के साथ उमड़ पड़ता है। उसके प्रेम का ज्वार भाटा अभी भीतर ही भीतर पनप रहा है और पहले से ज्यादा उफान के साथ वापस लौट आयेगा। हाँ लौट पड़ेगा उसका प्यार, अवश्य और तेज उफान के साथ। शायद वक्त की तासीर अभी उसके लिए सख्त थी बहुत गर्म। सच तो यह है कि ये वक्त ही होता है जो हमें सही गलत, ऊँच नीच का मान कराता है, दिन सरकने लगे थे धीरे धीरे। राशि प्रेम के अडिग विश्वास में डूबी हुई थी, उसे किसी हाल में उससे उबरने का मौका ही नहीं मिल रहा था ! अनेकों लोगों के साथ रहकर भी उसे अपने आस पास कोई अहसास नहीं होता ! उसने अपनी मन की एक दुनियां सी बना ली थी !

वह पूर्णतया अपने प्रेम की गिरफ्त में ही थी। अक्सर दिल तेजी से घबराहट लाता, वेदना की तीखी लहर उठती, वह हल्के-हल्के अपने सीने को सहलाती, गले पर हाथ फिराती। यह विरह वेदना सच में बेहद असहय हो जाती है जो किसी भी हाल में चैन नहीं लेने देती। ये विरह भी एक तपस्या की तरह होता है जो इस तपस्या को जी लेता है वो हर हाल में अपना अभीष्ट पा ही लेता है।

एक दिन जब पिंकी अपने कालेज से आई। वह बीए फाइनल इयर की छात्रा थी। तो आते ही अपनी किताबें निकाल कर पढ़ने बैठ गयी। उसकी माँ खाना राजमा चावल परोस कर उसके लिए ले आई और अनुनय करते हुये बोली, बेटा पहले खाना खा लो फिर पढ़ना।

नहीं मम्मी, पहले ये प्रौजेक्ट पूरा कर लेना है, नहीं तो सर नाराज होंगे और फिर मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा।

वह अपने काम में लग गई और मम्मी अपने हाथों से खाना खिलाने लगी। ये माँ कितनी प्यारी होती है, उनका प्यार एकदम निश्छल। चाहे वे किसी भी देश प्रांत की हो, पर मायें सारी एक सी होती है। उसे अपने घर की याद आई, माँ कैसे रह रही होगी और पापा ? अब उसके वापस न लौटने से तो कालेज से घर तक खबर पहुँच भी गई होगी। माँ का जीना मरने के समान हो गया होगा और पापा वे तो वैसे भी बहुत कमजोर दिल के है। हाय रे, उसने अपने प्रेम की खातिर सब बर्बाद कर दिया और खुद को भी बरबादी की राह पर ढकेल दिया। वह उमंगों भरा जीवन जीने चली थी ! ये जीवन तो मरने से भी बदत्तर है। आज उसका जी चाहा कि वह अपनी माँ से बात करे पापा के हाल पूछें। चलो मम्मी से अपनी पहचान बदलकर वो उनसे बात कर लेगी, उनकी आवाज सुन लेगी और पापा का हालचाल ले लेगी, या पापा ने फोन उठाया तो उनकी आवाज सुन लेगी और मम्मी का हालचाल। वही पास में पिंकी का फोन पड़ा था। मिला ले नं. लेकिन फिर ये नं. उनके पास पहुँच जायेगा और अगर उधर से वे फोन करेगी फिर पिंकी उठायेगी और सब कुछ बता देगी। पता जगह गाँव आदि। नहीं, नहीं, अभी माँ की आवाज नहीं सुननी। उसने इतना कुछ संयम किया तो कुछ और सही ! अब अपने खोये आत्मविश्वास को लौटाने का प्रयास करना है ! अभी जीना है पूरे विश्वास और आत्मविश्वास के साथ। जब इसी तरह पल पल मरना था तो खुद को उस दिन क्यों रोकती ! कूदकर किसी खाई में खुद को खत्म कर लेना था।

ये सब हुआ वो अचानक नहीं हुआ बरसों से इसकी पृष्ठभूमि बन रही थी और शायद हमारा मिलना जन्मों जन्मांतरों का मिलन था क्योंकि कोई भी रिश्ता अचानक नहीं बनता, बल्कि उसे पहले ही तय किया जा चुका होता हैं हमारा मिलना था मिले, बिछुड़ना था बिछुड गये। बचा रह गया प्रेम विक्षोभ के साथ दर्द के साथ। बहुत गहराई तक जुड़े रिश्ते अक्सर दिल के रिश्ते होते हैं जिन्हें चाहकर भी भुलाना मुश्किल होता है। वह अब इस तरह घर के अंदर कैद होकर जीना नहीं चाहती थी ! उसे जीने के लिए खुला आकाश चाहिए, कैद में जीवन नहीं मरण होता है, स्वर्ग नहीं नरक होता है और उसने अपना स्वर्ग बनाना होगा ! अपना आकाश तय करना होगा। अपने भीतर दहकती आग जो ज्वालामुखी की तरह दहक रही है उसे स्वयं को नष्ट नहीं करना है बल्कि उसी से अपना मार्ग प्रशस्त करना है। कितना रोयेगी और रोने वाले का साथ कब और किसने दिया है वक्त भी रोने वाले को रोता कलपता छोड़ देता हैं उसे मुस्कुराना है अपने दर्द को भीतर ही भीतर दबाकर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ना है। मुस्कुराने वाले का सब साथ देने को तत्पर हो जाते है। उसने जानबूझ के जबरदस्ती थोड़ी सी मुस्कुराहट अपने होठों पर लाने की कोशिश की। लेकिन जब दर्द की इंतहा होती है तो मुस्कुराहट आनी बहुत मुश्किल होती है। दर्द भरी मुस्कराहट ही सही उसे मुस्कुराना पड़ेगा, जीवन जीने के लिए थोड़ी सी मुस्कुराहट तो जरूरी है। भले ही वह अपनों से घरवालों से दूर है परन्तु उसे इस घर का संबल मिला हुआ है ! दो भाई भी मिले हैं, जो उसके सगे से भी बढ़कर है कितना ध्यान रखते हैं। ईश्वर ने शायद इसीलिए उसे कोई भाई नहीं दिया क्योंकि उन्होंने उसके लिए पहले से ही दो भाईयों का बंदोबस्त कर रखा था। वह हौले से मुस्कुरा उठी। किसी अपने का होना भर ही मुस्कुराने का मौका दे देती है। अरे दीदी आप मुस्कुराते हुए कितनी सुंदर लग रही है। पिंकी ने खाना खत्म करे हुए कहा। हाँ सच में मुस्कुराहट ही चेहरे का श्रृंगार होती है। सिर्फ एक हल्की से मुस्कुराहट ही चेहरे के लिए काफी होती है, जो उसे बिना मेकअप के भी खूबसूरत बना देती है। अब ये हमेशा ऐसे ही रखना दीदी। उसकी तरफ देखती हुई वह यही बोल पड़ती । कितने प्यारे लोग हैं कितने भोले। उसकी खुशी के लिए कुछ भी करने वाले !

ठीक है पिंकी, ये अब ऐसे ही रहेगी। क्या पढ़ रही हो?

मैथ कर रही हूँ, ये मैथ मुझे सबसे खराब विषय लगता है लेकिन न जाने कैसे जब भी विषय चुनने का अवसर आता है मैं मैथ सबसे पहले चुनती हूँ।

अच्छा ऐसा क्यों? क्योंकि एक तो इसमें नं. अच्छे मिलते है और दूसरे रटना नहीं पड़ता। मुझे याद करते रहने वाले विषय बिल्कुल भी पसंद नहीं है।

और क्या विषय है तुम्हारे पास? हिन्दी व मैथ।

अच्छा बीए फाइनल ईयर है न।

हाँ ये मेरा फायनल ईयर है।

फिर पिंकी आगे की पढ़ाई किस सबजेक्ट से करोगी?

मैथ। उसने बिना सोंचे ही कह दिया।

ठीक है अब से मैं तुम्हें पढ़ाया करूँगी मैथ।

आप पढ़ाओगे पहले आप ठीक तो हो जाओ।

मैं जब तुम्हें पढ़ाऊँगी। तो देखना कितनी जल्दी सही हो जाऊँगी।

ठीक है वह खुशी से चमक पड़ी।

अचानक से उसके सीने में दर्द की चुभन हुई इतनी भयंकर वेदना जैसे कोई उसे आवाज लगा रहा हो, उसने हल्के से अपने सीने को सहलाया और रवि प्लीज लौट आओ। उसके मुँह से निकल गया। ये विरह वेदना इतनी भयंकर होती है, जो इंसान को मारती तो नहीं बल्कि तड़पाती बहुत है। जो सच्चा प्रेम करता है वही जान और समझ सकता है इस वेदना को, इस तडप को !

आपने कुछ कहा, रवि न । यह कौन है रवि?

रवि, अरे सूर्य को कहते हैं न। उसने बात बनाते हुए कहा। मन में अन्र्तद्वन्द सा छिड़ा जाता। ये स्त्रियां क्या आदि काल से ही छली जाती रही है और हमेश ही छली जाती रहेंगी ?

क्या पुरूष सच में स्वार्थी होता है? जो अपने स्वार्थ के लिए उसे छल बल से अपना बना लेता है और सिसकता छोड़ देता है फिर उसे परवाह नहीं होती। अब वह भी परवाह नहीं करेगी पर सोचे से कभी कुछ हुआ है। सीने में उठते ज्वार भाटे से भयंकर दर्द को झेलना इतना आसान काम नहीं है।

दीदी उठो आप इसी तरह सोंचती रहोगी अगर अकेले बैठोगी तो।चलो आज अपने गांव की सहेलियों से मिलवाने ले चलती हूँ।

नहीं पिंकी आज रहने दो फिर कभी चलूंगी। आज तो कही भी जाने का बिल्कुल भी मन नहीं है। तीन महीने दर्द गम विरह में काटने बड़े मुश्किल थे पल पल यादों का सांप डसता रहता ।

बस एक ही तस्वीर हर तरफ। हर अक्स में सिर्फ रवि। हर पहर में उसकी यादें। उस शख्स को कैसे भुलाया जाये, जो दिल में बसा हो या फिर उसके बिना कैसे जिया जाये, जो जान हो क्योंकि जिस्म से जान को अगर जुदा कर दिया जाये तो जिस्म बेजान भर ही तो रह जाता है खुद को कैसे संभाले हुए थी कुछ भी पता नहीं ! तीन महीने किसी तीन सदियों के समाने गुजरे थे ! अब सेब पकने लगे थे चारों ओर सिर्फ सेब के बाग ही बाग हर ओर ताल और गोल्डन सेंबों के पेड़।

आज तो आपको हमारे साथ चलना ही पड़ेगा। एक बार साथ में चलो तो देखों कैसे मन बहल जायेगा। अपने बाग में चलते हैं।

बाग में पेड़ों पर सजे फूल जो अब फल बनके पके तैयार हो गये थे। थोड़ी सी कसर अभी बाकी थी बस पन्द्रह दिनों के बाद इनको तोड़ना शुरू हो जायेगा। घर में काम बढ़ जायेगा। फलों को तोड़ना, एक एक करके छाटना, पेटी में रखकर ट्रकों में लदवाना और उसके बाद मण्डी स्थल तक पहुँचाना। घर के सभी सदस्य एक महीने तक बहुत व्यस्त रहेंगे। घर की महिलाओं के दोहरे काम हो जायेंगे। तो पुरूष भी पूरे महीने तक घर से बाहर ही गुजारेंगे। बाग में सेबों को तोड़ने में घर की महिलायें भी हाथ बटायेगी और पुरूषों के पास ठेकेदारों से बातचीत व खरीद फरोख्त के लिए ट्रक की लदान के संग संग दूसरे मैदानी क्षेत्रों में जाना भी पड़ेगा। यह सब बाते वो राशि को बताती रहती !

उस दिन राशि भी पिंकी के साथ बाग में चली आई थी। वह बड़ी खूबसूरत सुबह थी, जब बादल रात भर मंडराते हुए थक चुके थे। पानी से भरे वे बादल कहीं बरस न पाने के कारण, अपने ही बोझ से थक गये थे, और अलसाये से एक ऊँचें से पहाड़ के आँचल में अपना मुँह दुबका कर बेफिक्र होकर आराम से सो गये थे। सूर्य ने अपनी किरणें फैली दी थी, गरम गरम, गुनगुनी सी धूप तन मन को सुकून देती हुई अब धीरे-धीरे पहाड़ी से उतरती हुई बाग के पौधों से छन छन कर उसके शरीर में गरमाहट का अहसास जगा रही थी। लगातार दो दिन से हो रही बारिश को थोड़ा सुकून भरा विश्राम मिल गया था। बच्चे घर से निकल लिये थे। सब बच्चे अधिकतर पैदल ही दौड़ते बतियाते चले जा रहे थे। उन्हीं सबके बीच एक लम्बी सी सफेद कार जिसमें तीन बच्चे बैठे थे खूबसूरत से। उधर से गुजरी। और ठीक उसके बाग के सामने आकर रूक गई। क्या हुआ अचानक से, उसे समझ नहीं आया। शायद कार खराब हो गई थी या जान बूझकर रोकी गई लगती थी। पिंकी आगे बढ़कर कार के करीब आ गई वो भी उसके साथ ही बढ़ आई थी।

क्या हुआ चाचा? पिंकी ने सवाल कर दिया था।

न जाने क्या हुआ ? शायद पंचर।

चाचा मुझे भी यही लग रहा है। कार का पिछला पहिया लग रहा है ! उसमे ही हो गया है ।

उसकी नजर भी उधर ही उठ गई पहिया पूरी तरह फुस्स हो चुका था। कार में बैठे बच्चे खिड़कियों से झाँकते हुए राशि पर अपनी नजरें गड़ाये हुए थे। वे सब हल्की सी शरमाहट के साथ मुस्कुराते हुए उसकी तरफ ही ताकने लगे। कितने खूबसूरत बच्चे है ! रंग एकदम गुलाबी सा गाल सुर्ख और होंठ उससे भी ज्यादा सुर्ख लाल। बच्चे बराबर उसकी तरफ ही देखे जा रहे थे और मुस्कुरा रहे थे। अब यह पहिया चेंज करना पड़ेगा, कहकर वह लंबा सा इकहरे बदन का बेहद खूबसूरत युवक कार का दरवाजा खोल कर बाहर निकल आया था और डिक्की में से स्टेपनी निकाल कर खुद ही बदलने की कोशिश में लग गया था। इस बीच बच्चे कार से निकलकर उसके आस पास ही खड़े हो गये थे। मानों उससे कोई रिश्ता हो उनका।

वह एक बच्चे के करीब बैठती हुई बोली, क्या नाम हैं बेटा आपका।

खुशी। उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

नीले रंग की पैंट, चैक की शर्ट व उसके ऊपर नीले रंग का हाफ स्वेटर पहले वह बच्ची कहीं से भी लड़की नजर नहीं आ रही थी। एक दम लड़के जैसा लुक देती वह लड़की लगातार उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देख रही थी। सचमुच राशि चौंक ही गई थी। अच्छा तो आप लड़की हैं ?

ये आपके भाई है ? वे दोनों बच्चे भी इसी तरह की स्कूल यूनिफार्म पहने हुए थे।

नहीं नहीं दी, मेरी बहने हैं ! खुशी ने मुस्कुराते हुए कहा। ये भी बहनें मतलब लड़कियाँ। वह फिर से एक बार और चौंक गई थी।

ये मुस्कान है और ये परी। ये दोनों ट्यूनश है। यह पांच साल की हैं और मैं 7 साल की ! उसने मुस्कुराते हुए सब कुछ एक ही श्वांस में बता दिया था।

राशि को हँसी हा गई थी ! यह बच्चे कितने मासूम और भोले होते हैं।

ये आपके पापाजी हैं !

नहीं दीदी, ये मेरे पापा ही नहीं बल्कि मम्मी भी है वैसे हम इन्हें चाचा कहते हैं। वो सात साल की बच्ची इतनी समझदार है ! सब कुछ ऐसे बोल रही थी जैसे कितनी बडी हो। चेहरे से भोली मासूम खुशी, उसे बहुत प्यारी लगी। मुस्कुराते समय खुशी के छोटे-छोटे दांत एक दम मोती जैसे चमचमा रहे थे। मुस्कान और परी भी उसकी तरफ ही मुस्कुराते हुए ताके जा रहे थे। पिंकी चाचा के साथ पहिए को बदलवाने में मदद कर रही थी। सच में बड़े जीवट होते है यह लोग, बहुत ही मेहनती और किसी भी काम से जी न चुराने वाले ।

आप लोगों को स्कूल पहुँचने में देर हो जायेगी न?

नहीं दीदी, अभी तो बहुत जल्दी है वैसे भी चाचा घर से एक घंटे पहले ही स्कूल जाने को निकल जाते है।

शायद इसीलिए ही कि कहीं कोई समस्या न हो जाये। राशि ने मन ही मन में सोचा। पहाड़ का जीवन कोई इतना सरल थोड़े ही न होता है । दरअसल देखा जाय तो ये लोग ही सच्चा जीवन जीते हैं। कठिन और परिश्रम से भरा हुआ।

कपड़े से हाथ पोंछते हुए बच्चों के चाचा ने उसकी तरफ एक नजर डाली और बच्चों की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा, अच्छी बातूनी,अब तुम्हारी बातें खत्म हो गई हैं तो कार में बैठ जाओ देवियों। आप का काम हो गया। जय माता दी?

चलो बैठ जाओ अब। चाचा ने जोर से कहा तो बच्चे फ़ौरन बैठ गये थे और उसकी तरफ हाथ हिलाते रहे थे जब तक कार आँखों से ओझल नहीं हो गई।

कितने प्यारे बच्चे हैं, हैं न पिंकी। राशि ने कहा।

हाँ, बहुत प्यारे, लेकिन बहुत अभागे भी।

वो कैसे? क्योंकि दो साल पहले मम्मी पापा और इनके दादी बाबा सब लोग कार में बैठे थे और कार अचानक से पहाड़ी ढलान से उतरती हुई खाई में समा गई थी। ये चाचा ही अब इनको पाल रहे है। किसी नौकर की मदद् नहीं लेते, इन बच्चों का सारा काम वे स्वयं ही करते है। तीन साल हो गये हैं । अपनी पढ़ाई छोड़कर इन लोगों के कारण घर में ही रहते है शादी का नाम लो तो नाराज हो जाते है। आर्किटैक्चर की पढ़ाई कर रहे थे, जब भाई भाभी व मम्मी पापा की कार एक्सीडेंट में मौत हुई। तब से चाचा ने खुद को इन बच्चों के नाम ही समर्पित कर दिया है।

उसे नाज हो आया उन पर ! यह होती है सच्चे प्रेम की परिभाषा, जो निःस्वार्थ भाव से की जाती है। बह नतमस्तक हो गई थी। वह भी अपने प्रेम के लिए ऐसे ही जीती रहेगी ! अडिग विश्वास मन, में लिए तपस्या करती रहेगी, हर परेशानी, तकलीफ को भूलकर उनके लिए ही जियेगी ! पल पल मन ही मन रवि के नाम का सुमिरण करते हुये और देखना उसका सच्चा प्रेम अवश्य लौट आयेगा । वापस आ जायेगा उसके जीवन में खुशियों की सौगात लिए हुए। ओफ्फो हर बात रवि से जोडकर देखना शुरू कर देती है ! राशि ने अपना सर झटका !

उसके मन में उन बच्चियों क लिए अथाह प्यार उमड़ आया था और उनके चाचा के लिए मन में श्रद्धा। रात में जब पिंकी उसके पास सो रही थी। तो उसने उसे जगा कर पूछा था, क्या चाचा ही सारा काम अकेले करते है?

हाँ भई हाँ।

अच्छा कोई और काम, जैसे नौकरी या व्यापार?

नहीं वो जमींदार हैं ! कई करोड़ के सेब उनके बागों में हो जाते है। चलो दीदी अब सो जाओ सुबह बात करेंगे। परन्तु राशि को नींद नहीं आ रही थी। उन मासूम प्यारी सी मासूम बच्चियों के चेहरे लगातार जेहन में घूम रहे थे।

***