कमसिन
सीमा असीम सक्सेना
(26)
कल्पना ने सोचा उसने ऐसा क्या कर दिया जो राजीव इतना नाराज हो गया और अभी पूजा में तल्लीन थी पापा टी0वी0 में तो उसने सोचा थोड़ी देर छत पर घूम आया जाये अभी खाने का भी समय नहीं है आठ ही तो बजा था, और फिर उसका मूड भी छत पर टहल कर अच्छा हो जायेगा थोड़ा ! मन समझा बुझा कर ठीक भी किया तो अब राजीव ने और ज्यादा डिप्रेस कर दिया वह छत पर आ गई ज्येष्ठ का महीना था उमस भरा, उस रात को चाँदनी रात पूर्णिमा के कारण पूरा चाँद आसमान में जगमगा रहा था। चाँदनी पूरे शबाब पर थी । तारे टिमटिमा रहे थे हल्की-हल्की हवा भी चल रही थी । पेड़ से टकरा कर आती वह वयार उसे रोमांचित कर रही थी । वह वहाँ पड़ी कुर्सी पर बैठ गई, तभी उसके कानों में हल्के हल्के फुसफुसाने की आवाज पड़ी, उसने ध्यान से सुनने की कोशिश की, तो पता चला यह तो राशी ही बोल रही है लेकिन क्या बोल रही है । यह पता ना चला क्योंकि वह बहुत ही हल्के हल्के बोल रही थी कल्पना का सिर घूम गया । यह जैनरेशन भी ना जाने क्या करेगी, वह भी इसी जैनरेशन की है लेकिन । जिस परेशानी से बचने को ऊपर आई थी, वह कम होने की जगह बढ़ गयी थी। राजीव भी नाराज होकर चले गये थे । उसने मन को झटका। करने दो, इस लड़की को, जो चाहें करे, उसकी जिन्दगी उसे क्या मतलब। उसका बुरा भला सोचने वाले उसके माँ-बाप हैं और वह चुपचाप नीचे आ गई अन्यथा राशी सोचती कि भाभी उसकी पहरेदारी कर रहीं हैं।
नीचे आई तो देखा राजीव आ गये हैं और हाथ में रसमलाई का डिब्बा भी है वह मन ही मन मुस्करा दी कि वह कितना गलत सोच रही थी राजीव तो उसके लिए उसकी पसंदीदा मिठाई लेने गये थे उसने देखा 9 बजने ही वाले हैं तो वह रसोई में जाकर रोटियाँ सेकने लगी क्योंकि पापा जी तो नौ बजे खाना खा लेते हैं तभी माँ भी आ गई और उन्होंने दो प्लेटों में खाना लगा लिया ! तुरई कटोरी में डाल रही थी तो उसमें अरबी के टुकड़े देख बोली, यह जमुना भी क्या-क्या एक्सपेरीमेन्ट करती रहती है कभी गोभी में बैंगन तो मटर में भिन्डी डालकर बना देती है मना करो तो कहेगी ‘‘आप खाकर देखो फिर बताना कैसी बनी है’’
वाकई स्वाद तो बहुत है इस जमुना के हाथों में, जब कभी छुट्टी कर लेती है तो अपने हाथ का स्वाद भी फीका लगता है राजीव तो कह देता है, जमुना काकी जब छुट्टी किया करो तो मेरे लिए सब्जी बनाकर फ्रिज में रख जाया करो।
राजीव की पैदाइश से पहले ही लगाया था इसे काम पर ! पहले सासुमाँ थी तो दोनो बेंटियाँ पैदा भी हो गयीं और पल पुस भी गईं लेकिन जब राजीव गर्भ में आया तो कोई सहारा ना था सासुमाँ परलोक सिधार गयीं थीं तो मजबूरी वश जमुना को सब काम के लिए रख लिया था बेटियाँ तो बहुत ही छोटी थीं वे कुछ काम करने लायक कहाँ थीं फिर उनकी पढ़ाई लिखाई भी तो थी, लेकिन जमुना ने आते ही जो घर संभाला तो लगा ही नहीं कि वह एक काम वाली है उसे हर बात की फिक्र रहती थी, सुबह छः बजे से रात के सात बजे तक ड्यूटी बजाती थी अब उसकी उम्र हो गयी है तो शाम को चार बजे ही चली जाती है सब्जियाँ बनाकर आटा गूँदकर रख जाती है।
माँ-माँ कहाँ खो गयी ? रोटियाँ ठन्डी हो रही हैं ! कल्पना की आवाज सुन कर चौंक गयी!
अरे जमुना की यादों में ऐसा खोई कि कुछ याद ही ना रहा ! वह प्लेट में रोटियाँ रखकर बाहर निकल आई।
कल्पना ने अपनी और राजीव की रोटियाँ भी सेंक ली थीं वे दोनो भी साथ ही खाते थे लेकिन राजीव ग्यारह बजे से पहले खाना नहीं खाते थे वे कहते तुम रोटी सेंक कर रखों मुझसे गरम रोटियाँ खाई नहीं जाती। रोटियाँ हाटकेस में डालकर बाहर आ गई थी ! माँ पापा खाना, खा चुके थे राजीव ने रसमलाई का डिब्बा उसे दे दिया ! पर वह कुछ बोले नहीं, उसने डिब्बा खोलकर माँ को एक प्लेट में डालकर दे दी पापा तो खाते नहीं हैं उन्हें डायबिटीज है ! वे परहेज करते हैं मीठे से।
खाना खाकर माँ पापा कुछ देर टी0वी0 देखने बैठ गये राजीव भी वहीं बैठा था ! वह क्या करे उसे न्यूज देखना पसंद नहीं और पापा जी टी0वी0 देख रहे हैं तो क्या करती वहाँ अकेले में राशी उसके ख्यालों में डेरा जमा लेती तो वह भी राजीव के पास सोफे पर बैठ गयी और मन मार के न्यूज देखने लगी चैनल पर आ रहा था प्यार के झूठे जाल में फंसाकर एक अध्यापक ने अपनी ही शिष्या को हबस का शिकार बना लिया और फिर वह उसे रोज ब्लैकमेल करने लगा अन्ततः वह शिष्या गर्भवती हो गई जब वह बात उसने अपने अध्यापक को बताई और कहा कि अब उससे शादी करले अन्यथा वह किसी को क्या मुँह दिखायेगी पर उस अध्यापक ने उसे गर्भपात के लिए तैयार कर लिय लेकिन पाँच माह के गर्भ को गिराने के साथ ही वह शिष्या भी दम दोड़ गयी अपने माँ-बाप की इकलौती सन्तान वह अपने माँ-बाप को जिन्दगी भर का दुःख दर्द दे गयी यहाँ किसकी गलती थी क्या माँ-बाप की या उस मासूम लड़की की जो ब्लैकमेल होती रही या उस वहशी दरिन्दे की जिसने अपनी बेटी की उम्र के बराबर एक लड़की को झूठे जाल में फँसाकर मौत की डेहरी तक पहुँचा दिया ऐसे वहशी को उम्र कैद की सजा मिलनी ही चाहिए नहीं तो वह ना जाने कितनी और लड़कियों की जिन्दगी से खेलेगा और ना जाने कितने ही लड़कियों को उसने अब तक बरबाद किया होगा जो दबी छुपी रही होगी।
यह न्यूज सुनकर तो कल्पना फिर उन्हीं ख्यालों में खो गयी थी जिसे वह भूलना चाह रही थी राशी की छवि ही नजर आ रही थी उस शिष्या में। यह सच भी है हम जिन बातों को भूलना चाहते हैं वह बाते हमें हरदम आस-पास घटित होती दिखती हैं और उनसे उबरने नहीं देती जिसे जितना दिमाग से निकालना चाहों वे उतनी ही गहरी पैठ बनाती जाती हैं आखिर यही तो कल्पना के साथ भी हो रहा था। माँ-पापा अपने कमरे में चले गये थे वह और राजीव शांत बैठे थे कोई बोल नहीं रहा था। यह खामोशी भी कभी-कभी कितनी चुभती है और यह इतनी अच्छी लगती है कि मन चाहता है बस यूँ ही एकान्त में शान्ति में जीवन गुजार दो और जीवन को समझ लो क्योंकि यह जीवन इतनी बड़ी पहेली है जो कभी हल नहीं हो सकती। राजीव ने चैनल बदलकर उसका मनपसन्द धारावाहिक लगा दिया था अच्छा तो महाशय की यह नाराजगी ऊपरी दिखावा ही है अन्दर से तो वही कर और चाह रहे हैं जो कल्पना को पसन्द है।
उसने धारावाहिक देखने के बाद खाना लगा लिया दोनो ने शान्तिपूर्वक खाना,खाया था वह रसमलाई भी लगाकर ले आई थी वह भी राजीव ने खाई हालाँकि राजीव को रसमलाई पसन्द नहीं लेकिन कल्पना को बहुत पसंद है अत‘ अब उसने भी खाना शुरू कर दी थी पहले तो वह खाता क्या चखता भी नहीं था लेकिन जबसे पता चला कल्पना की फेवरेट स्वीट डिश है तो अब घर में हमेशा रसमलाई ही आती थी। कभी-कभी वो अपने आप को बेहद खुश नसीब समझती थी और इस दुनियाँ की सबसे प्यारी पत्नी का दर्जा देती थी लेकिन कभी-कभी घर का अकेला पन उसे खाने को दौड़ता तो लगता कहाँ इस जेल में कैद करवा दिया है उसके मम्मीपापा ने उसका सपना ही तो नहीं था शादी घर परिवार बच्चे बन्धन रीरि-रिवाज परम्परायें रिश्तेदार समाज क्या एक लड़की को इन सबमें बंधकर ही रहना पड़ता है क्या उसका अपना कोई वजूद नहीं होता या वह क्या चाहती है यह किसी के लिए कोई मायने नहीं रखता।
वह सब समेट कर कमरे में पहुँची तो देखा राजीव ने कमरे में अंधेरा कर रखा है उसने लाइट जलानी चाही लेकिन यह सोचकर नहीं चलाई शायद राजीव सो गये हों और उनकी नींद खराब हो जाये। वह जाकर बैड पर लेट गयी कमरे में चल रहा ए0सी0 इस भयंकर गर्मी में भी ठन्ड का एहसास करा रहा था उसने तकिया टटोलना चाहा क्योंकि अंधेरे में कुछ पता नही चल रहा था उसका हाथ राजीव के सिर पर लगा था कुछ टटोलता हुआ सा उसका हाथ बालों में घूमने लगा था वह सोच रही थी कि राजीव उस समय इसी बात पर तो नाराज हो गये थे कि उसने उसके बालों को सहलाया नहीं था वह धीरे-धेरी अंगुलियों से बालों को सहलाने लगी उसे भी अच्छा लग रहा था इस तरह बालों से खेलना कुछ देर वह सहलाती रही फिर उसने हाथ हटाना चाहा तो राजीव ने बिना कुछ बोले उसके हाथ को पकड़कर चूम लिया था और उसे बाहों में भींचकर चुम्बनों की बौछार कर दी थी वह प्रेम से विभोर होने लगी थी लेकिन राजीव था कि प्रेम लुटाता ही जा रहा था आज उसका प्यार करने का यह ढग उसे बेहद अच्छा लगा था वह सोंच रही थी काश यह रात क्या पूरी जिन्दगी इसी तरह गुजर जाये कभी सुबह न हो कभी दिन ना निकले ना यह लम्हें कभी भी गुजरें वह पूरी रात राजीव की बाहों में ही रही थी जबसे शादी हुई है आज उसने राजीव के प्यार को दिल से महसूस किया था अन्यथा तो एक काम चलाऊ प्यार होता था।
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