कमसिन
सीमा असीम सक्सेना
(24)
वह राजीव के साथ अपने घर आ गई थी पर अब वो अपना घर नहीं रहा था मायका था और सच में यही महसूस भी किया, जहाँ बचपन बीता, जवानी के कुछ साल बिताये, वही घर अब पराया लग रहा था, घर के कोने कोने में उसकी यादें बिखरी पड़ी थी किन्तु मन अब यह मानने को तैयार नहीं था कि घर अपना नहीं रहा ! यहाँ उसने अपने जीवन के कुछ खुशनुमा साल बिताये हैं । उसे अब पति का घर परिवार भाने लगा, अपना लगने लगा । सच ही है, बेटियाँ ऐसी ही होती हैं जिस घर में जाती हैं, रहती हैं उसे ही अपना घर बना लेती हैं। माँ उसके आने पर बहुत खुश हुई, पापा भी मुस्कुराये और छोटे भाई बहिन तो आगे पीछे घेर कर बैठ गये साथ में उनके प्यारे जीजा जी भी जो थे । जीजा जी से बातें शुरू हो गई थीं, वे भी अपने साली सालों में मग्न हो गये। कितना बदल जाता है माहौल शादी के बाद, पराया अपना लगने लगता है। तभी छोटी बहन बोली, जीजा जी, आपने पिछली बार फिल्म दिखाने का वायदा किया था, छोटा भाई भी उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए बोला, और फिल्म देखने के बाद मेरा मनपसंद गिफ्ट भी दिलाना है।
“हाँ जीजा जी मेरा भी । राजीव भी दोनों में मग्न हो गये थे ।
हाँ भाई सब कुछ करूँगा और हँसी मजाक में उनके साथ हो गये वह उठकर रसोई में आ गई थी जहाँ माँ ने चाय नाश्ता की तैयारी शुरू कर दी थी। उसको देखते ही माँ पूँछ बैठी “ बेटा खुश तो हो ना?
हाँ मा,ँ बहुत” । उसके चेहरे को देख कोई भी अंदाजा लगा सकता था कि वह खुश और प्रसन्न है शरीर भी निखर आया था !
और सब कैसे है राजीव का व्यवहार तो अच्छा है, पर सास ससुर? माँ बातों से फ्रिक जताते हुए बोली ।
सासु माँ तो बहुत ही अच्छी हैं, आपकी ही तरह प्रेम लुटाती है और ससुर जी वे भी अच्छे है । ज्यादा मतलब नहीं कि कोई कुछ करो, कभी नहीं कहते बहुत सज्जन हैं। रिटायर होने के बाद घर में ही रहते है किन्तु कभी तेज आवाज में नहीं बोलते ।
उसके मुँह से यह बाते सुन माँ ने सकून की सांस ली, माँ तो होती ही हैं ऐसी, जिसे बेटी के जरा सी तकलीफ से दुख तो खुशी में शन्ति अनुभव होती है आखिर नौ महीने पेट में रखकर अपने रक्त से सीचकर उसे कोख में पाला होता है फिर जन्म देने की तकलीफ सहकर इस दुनिया में लाया और फिर अपने सुख दुख दर्द तकलीफ की परवाह ना करके जी जान से पाल पोसकर बड़ा किया होता है ताकि वह दुनियां में अपना आस्तित्व बना सके फिर वही बच्चा अपनी माँ की इस तकलीफ को भूल जाता है किन्तु माँ आखिरी सांस तक उस बच्चे के लिए अपनी वही भावना रखती है उसके लिए बच्चा चाहे कितना भी बड़ा क्यों ना हो जाये, वह बच्चा ही रहता है ।
माँ और वह नाश्ता लेकर आ गये, वहाँ महफिल जमी हुई थी, पापा भी एक तरफ बैठे मुस्कुरा रहे थे, कौन पापा खुश नहीं होगा, जिसकी विवाहित बेटी अपने घर परिवार में खुश सुखी और सन्तुष्ट हो और पति के रूप में राजीव जैसा पति मिला हो !
दो दिन इसी तरह कब निकल गये, पता भी ना चले । आज वह राजीब के साथ वापस चल दी थी ।
माँ ने कहा भी कल्पना तुम कुछ दिन रूक जाती राजीव जी को जाने दो ।
किन्तु वह स्वयं ही कहा रूकना चाहती थी अतः वहाना बनाती हुई बोली “माँ अब आऊँगी तो रूकूगी अभी सासु माँ ने दो दिन के लिए ही भेजा है, हाँलाकि वे कुछ नहीं कहती फिर भी ।
तो माँ ने गले लगाकर कहा बेटा अपने माँ बाबू जी को कभी भी याद करना वे हमेशा तेरे साथ है भले ही तुझे शादी कर विदा कर दिया है किन्तु यह घर हमेशा तेरा ही रहेगा माँ की यही बात सुन वह रो पड़ी थी, पापा की आँखो में भी आँसू आ गये थे !
वह बोली, माँ मैं बहुत खुश हूँ यहाँ से भी ज्यादा, आप लोग परेशान ना हो । वह आ गयी थी वापस । घर पहुँच माँ पापा भाई बहन मायका याद आ रहा था जब वहाँ थी तो यहाँ की फिक्र । यह मन भी कैसा होता है, जहाँ हो वहाँ की चिन्ता नहीं दूर हो जाओ तो विचरता रहता है उन्ही यादों में ।
घर पहुँच कर सबसे पहले उसने माँ से पूँछा “ माँ राशी आई थी कैसी है वह ”?
अरे बेटा, वह ठीक है और आई भी थी अब शाम को आयेगी । मैने कह दिया था आज तुम आ जाओगी “ ।
अच्छा माँ ” कहकर वह कमरे में आ गई जहाँ राजीव लेटे हुए थे और उनके चेहरे पर मुस्कुराहट तैर रही थी
वह बोले, कल्पना दो दिन अच्छे बीते, पता भी नही चला, कब निकल गये। तभी किसी ने कहा है “ ससुराल सुख की सार ” वाकई ऐसी ही होती है ससुराल, जहाँ सुख ही सुख पत्नि का सालियों का और माँ पापा जैसे सास का तो भाई जैसे साले का ।
कल्पना यह सुन विभोर हो उठी कि राजीव ने सबको अपना लिया है उस लड़की के जीवन का सबसे अच्छा पल यही होता है जो विदा होकर अपना घर छोड़ पति के घर को अपना बना लेती है ओर फिर वही पति उसके परिवार को अपना समझने लगता है ।
“ अच्छा तो महाशय अभी भी वही की यादों में खोये हुए हैं ” उसने चुटकी ली ।
हाँ भई, क्या करे खोना ही पडेगा जब तुम जैसी पत्नि मिली हो तो। वह उसकी ओर मुस्कुराकर देखता हुआ बोला, उस परिवार की ही तो देन है ।
क्या मतलब है आपका वह परिवार याद आ रहा है या मैं, एक बात करो घुमाओ मत बात को । वह नाराज सी होती हुइ बोली ।
अरे मेरी लवली, नाराजगी की तो कोई नहीं की, क्यों, क्या अपने मायके की याद फिर से आ गयी, तो चलो कुछ दिन और घुमा लाते हैं। उसने चुटकी लेते हुए पूछा
कल्पना चुपचाप कमरे से बाहर निकल गयी, बहस करने के मूड में नहीं थी। बाहर मां बैठी थी, जो मायके से लाये सामान को देख रही थी ।
यह क्या बेटा, तुम्हारी मां ने फिर इतना खाना मिठाई बांध कर दे दी यहाँ कौन खाने वाला है। मेरे अलावा, बाबू जी पूड़ी खाते ही नहीं। वे डायबिटीज की वजह से मिठाई नहीं खाते हैं। मैं थोड़ा बहुत खा भी लूंगी, पर यह तो कठोर पक्के परहेजी, छुएंगे भी नहीं और बचे तुम दोनों, तो कितना खा लोगे । बहन जी भी बेकार में परेशान होती हैं। यहां काम वालों को यह सब बटोर कर देना पड़ता है।
अच्छा मां आप लोगों के लिये चाय बनाऊं, मैं राजीव के लिये बनाने जा रही हूं। आज उनका चाय पीने का मन क्र रहा है ! उसने बात को बदलते हुए कहा !
नहीं बेटा, अभी बनाई थी ! हम दोनों ने पी ली है ! तुम दोनों की केतली में करके रख दी है, ले लो बिल्कुल अभी बनाई थी, तुम लोगों के आने से पहले ! वह बोली उसे आज न जाने क्यों मां की बातें बुरी लग गयी। बना के रखी थी तो पहले से बता देतीं आधा घण्टा तो हम लोग को आये हुए ही हो गया था। जब मन परेशान होता है तो ऐसा ही लगता है यानि कि हर किसी कि बात गलत या बुरी !
वो चाय लेकर कमरे में आ गयी ! राजीव फोन पर किसी से बात कर रहे थे ! उसे आता देख फोन काटते हुए बोले अच्छा रखो बाद में बात करता हूं।
कल्पना ने पूछा किसका फोन था !
आफिस से आया था कल जल्दी निकलना है।
तो काट क्यों दिया बात करनी चाहिए थी।
अरे कर ली थी, न अब तुमसे बात करूंगा दो दिन हो गये बात नहीं हुई ठीक से। वह उसकी आंखों में झांकता हुआ बोला।
आण्टी भाभी आ गयी । यह आवाज कान में पड़ते ही कल्पना बाहर निकल आइं। माँ राशी से बात कर रही थी। उसे देखते ही कल्पना के चेहरे पर रौनक आ गई ! लग रहा था न जाने कितने दिनों से देखा नहीं, बात नहीं की, आज राशी कितनी सुन्दर लग रही थी । मां से बात करते हुए जब मुस्कुरा रही है तो गालों के गढ़ढे उसमें चार चांद लगा रहे थे। राशी ने जैसे ही कल्पना को देखा वह दौड़कर उसके गले लग गई।
भाभी कहां चली थी। मुझसे बिना मिले वह रूठती हुई सी बोली ।
कल्पना कुछ नहीं बोली, बस मुस्कुरा भर दी थी सोंचते हुए कि तू भी तो व्यस्त हो गयी है, तुझे भी कहां फिक्र रही थी ।
राशी बता रही थी,
भाभी पता है कितना मिस किया आपको इन दो दिनों में । मैंने कल स्कूल से छुटटी ले ली है, आपसे पूरा दिन बातें करनी हैं। वह अपनी आंखें गोल गोल करती हुई बोली।
ठीक है, अब बैठो, मैं तुम्हें मिठाई खिलाती हूं, वह मिठाई लाने को उठी, तब तक मां एक प्लेट में मिठाई सजाकर ले आई थी । उसने झट से एक टुकड़ा उठाया और जाने लगी, भाभी आज बहुत होमवर्क है कल सुबह आऊंगी तो शाम तक आपके ही साथ ही रहूंगी। कहती हुई वह निकल गयी ।
उसकी बात सुन रिया और मां मुस्करा दी।
मां.. बोली, इस लड़की को न जाने क्या हुआ है जो अब हर समय हड़बड़ी में ही रहती है। कब आती है, कब जाती है, पता ही नहीं चलता है। रिया भी यहीं सोच रही थी। जरूर कुछ है जो राशी इन दिनों बेचैन सी है। कल उससे आराम से बात करंेगे। इतने दिन हो गये ढंग से बात ही नहीं हुई। सुबह रिया ने जल्दी-जल्दी अपने सब काम निपटाए और पति राजीव के जाते ही राशी के इन्तजार में बैठ गयी ग्यारह बजने को आये किन्तु राशी अभी तक नहीं आई वह सोच ही रही थी कि तभी दरवाजे पर हल्की सी खटखट की आवाज सुन खोलने को जल्दी से उठी वह पहुंच पाती उससे पहले ही ससुर जी ने दरवाजा खोल दिया था ।
राशी मुस्कराते हुए पापा से बोली, अंकल आज आप कमरे से बाहर, कोई खास बात है।
अच्छा तो तू मेरी खिंचाई कर रही है। कहकर वे उसे मीठी सी घुड़की देते हैं,
अरे नहीं अंकल, मैं भला आपकी मजाक कैसे उड़ा सकती हूं ।
वह उसे देखकर मुस्करा दिये। राशी बहुत सुन्दर लग रही थी। उसने नीले रंग का कुर्ता और जींस पहन रखी थी। बाल हमेशा की तरह लहरा रहे थे,। लम्बे खुले हुए बालों में वह बहुत सुन्दर दिख रही थी, चेहरे की चमक और निखार, और बढ़ा हुआ लग रहा था।
वह सीधे भाभी के पास ही आई और बोली देखो आज आपकी वजह से ही स्कूल की छुट्टी ली है आपको ढ़ेरो बाते बतानी हैं।
चल कमरे से बैठते हैं। वह भी तो इतने दिनों से राशी की राह तक रही थी कि कब मौका मिलेगा उसे बात करने का । वह दोनों कमरे में आ गये, राशी ने एक तकिया उठाया और गोद में रख लिया, रिया भी पास में बैठ गयी थी।
राशी ने गोल-गोल आंखे नचाते हुए कहा, भाभी पता है इतने दिनों से सही से सो नहीं पाई हूं। खाना पीना भी ऐसे ही चल रहा है,
क्यों क्या हुआ है तुझे? तबियत ठीक नहीं है?
अरे नहीं भाभी, बस सारी बातें पेट में गढ़बड़ हो गयी हैं क्योंकि इन्हें निकालने की जगह ही नहीं मिल पायी और आप बिना बताये मायके चली गयीं थी
राशी तू आ नहीं रही है न इन दिनों, तो मैं उदास हो गयी थी तभी राजीव मुझे ले गये थे उन्होंने सोचा सबसे मिलकर मैं खुश हो जाऊंगी किन्तु ऐसा कहां होना था क्योंकि उदास तो मैं तेरी वजह से थी,
ओहो भाभी आप बहुत अच्छी हैं । उसने गले में बाहें डाल दी थीं ।
तेरी पढ़ाई तो ठीक चल रही है न ?
हां बस ठीक ही है, आज कल पढ़ने का मन ही नहीं होता
क्यों क्या हुआ ? कहां गया मन ? यह सुन वह शरमा गयी ।
अरे यह शर्म से चेहरा लाल क्यो हो रहा है।
भाभी मैं आपको उस दिन सक्षम के बारे में बता रही थी ना, जो उस दिन क्लास के बाहर पूरे पीरियड खड़ा रहा था ।
अच्छा तो इसे उससे प्यार हो गया है, अपने ही क्लासमेट से, अभी उम्र ही क्या है इसकी । वह सोच में पड़ गई । उनको सोचता देख,।
राशी बोली, भाभी कहाँ खो गईं, भईया के ख्यालों में !
हट पगली’’ उनके नहीं, तेरे ख्यालों में, तेरे लिए ही सोच रही थी !
क्या? वह चौकती हुई मुस्कुराई और कल्पना को निहारने लगी !
चल मस्ती छोड़ बता क्या हुआ है तुझे, जो तू अपनी प्यारी भाभी को भूल गई, पहले तो इतना प्यार जताती थी, कहाँ गया तेरा प्यार ? तेरा दुलार ? क्या कोई और मिल गया ।
यह सुन वह शरमा गई फिर अपनी आँखों में एक चमक सी भरते हुए बोली, भाभी आपकी जगह तो कोई भी नहीं ले सकता।
तो कया हुआ है ?
भाभी कैसे बताऊँ, लेकिन बताना तो पड़ेगा ही
हाँ बताओ, चलो मैं आँखे बन्द करती हूँ, अब बताओ ?
भाभी मुझे प्यार हो गया है । कहकर उसने तकिये में मुँह छिपा लिया।
कल्पना ने उसके गुलाबी होते गालों पर चपत लगाते हुए कहा, मैं पहले ही समझ रही थी । यह बता, वह कौन है ? सक्षम?
नहीं भाभी, सक्षम, वो तो बच्चा है, स्कूल में दिन भर डांट खाता है, दो पैसे की अकल नहीं है उसे।
तो फिर कौन है वो अकलमंद जिसने हमारी प्यारी राशी का मन चुरा लिया।
मेरे मैथ के टीचर।
अरे वह तो बहुत बड़े होंगे तुझसे उम्र में ।
नहीं भाभी अभी 23 वर्ष के हैं, इसी साल एम0एससी0 किया है,
लेकिन वे तो तेरे टीचर हैं,
तो क्या हुआ वे मुझे बहुत पसंद करते हैं, हर समय मेरी तारीफ करते हैं, अब तो मेरी मैथ भी बहुत अच्छी हो गई है, वह बहुत अच्छा पढ़ाते हैं ना ।
लेकिन अभी तू बहुत छोटी है और क्या सर भी तुझे प्यार करते है ं?
मुझे उनका नहीं पता, करते हैं या नहीं, लेकिन मैं करती हूँ ।
इकतरफा प्यार ?
नहीं, भाभी वे मेरी तारीफ करते हैं, सब बच्चों से मेरे लिए तालियाँ बजवाते हैं ! जब मैं सम करके दिखाती हूँ। लेकिन भाभी प्यार तो एक अहसास है न ? पता चल ही जाता है !
लेकिन राशी अभी तो तेरे पढ़ने लिखने के दिन हैं, पहले तुझे पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए।
हाँ वह तो मैं करूँगी ही।
तो प्यार में पड़कर कैसे होगी, प्यार तो समय माँगता है
आप मुझे मत समझाओ, मैं सब समझती हूँ अपना बुरा-भला । वह नाराज सी होती हुई बोली थी।
कल्पना ने समझ लिया था । प्यार में व्यक्ति सब कुछ भूल जाता है । अंधा होता है प्यार । तो इस बच्ची को कैसे समझा पाऊँगी ! आण्टी भी नहीं देखती हैं इस उमर में माँ की सीख ही तो काम आती है, एक ही बेटी है, इसलिये लाड़ प्यार में बिगाड़ दिया है ।
राशी तू बैठ मैं तेरे लिए कुछ खाने को लाती हूँ, कहकर वह बाहर निकल गई और मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगी, हे भगवान इसे सद्बुद्धि देना, लेकिन भगवान भी क्या कर सकते हें जब उसने स्वयं अपने लिए गड्ढ़ा खोद लिया हैं । वह चाय और मठरी लेकर कमरे में आई तो राशी फोन पर बात कर रही थी ।
कल्पना को देखा तो उसने फोन काट दिया, बिल्कुल शन्ति से मठरी और चाय ले ली । हर समय चटर-पटर बोलने वाली राशी को इस तरह गंभीर देख कल्पना को दुःख भी हुआ लेकिन वह कर भी क्या सकती थी, राशी चली गई लेकिन पीछे छोड़ गई अनगिनत सवाल ! क्या यह बच्ची प्यार का मतलब भी समझती है । वह अब क्या करे, किससे कहे, कैसे समझायें इतने प्यार से सब मन की बातें बता गई । क्या उसे विश्वास था तभी तो कहा, अब विश्वास कैसे तोड़ें, प्यार के मद में चूर वह बच्ची उसके अविश्वास को नहीं सह पायेगी। कल्पना ने सोचा, अभी किसी को बताना ठीक नहीं, राजीव को भी नहीं, क्योंकि राशी अभी प्यार में है । वह बगावत भी कर सकती है फिर तो और भी परेशानी बढ़ जायेगी, उसने चुप रहना ही मुनासिब समझा ।
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