Kamsin - 13 in Hindi Love Stories by Seema Saxena books and stories PDF | कमसिन - 13

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कमसिन - 13

कमसिन

सीमा असीम सक्सेना

(13)

उफ़ अब इस कार को क्या हो गया ?

क्या हुआ ?

पता नहीं यार, समझ ही नहीं आ रहा शायद कार में पंचर हो गया है ! आसपास कोई दुकान भी नजर नहीं आ रही अब खुद ही बदलना पड़ेगा ! वे डिक्की से स्टेपनी निकाल कर लाये ही थे कि राशि को एक पहाड़ी के पास एक दूकान दिखी !

रवि वो देखिये, दुकान पास ही है ! ! !

हाँ चलो फिर वही पर जाकर सही करवा लेते हैं !

एक पहाड़ को काटकर उसके अंदर वो दुकान बनी थी !

वहां पर एक मोटे से व्यक्ति बैठे हुए थे ! रवि ने उनसे बात की और कार सही करने को दे दी !

रवि उनसे बातें करने लगे ! राशि को उनकी इस आदत का पता चल गया था कि वे हर किसी से बोलते हैं और एकदम अपनेपन के साथ बात करते हैं, लोगों को लगता ही नहीं कि वे पहली बार उनसे मिल रहे हैं ! ऐसा लगता है जैसे आपस मे बरसों का नाता है !

वे सज्जन भी खूब अच्छे से उनसे बात करने लगे ! वो बता रहे थे, ये सब जगह उनकी ही है ! यह पहाड़ उनके ही हैं !

राशि उनकी बातें सुनकर सोच में पड गयी ! जब से वो यहाँ पर आई है सब लोग पहाड़, खेत, बाग़ और किसान यह बातें ही कर रहे थे परन्तु आज पहली बार वो इस बात को समझने की कोशिश करने लगी कि किसी पहाड़ को किस तरह बांटते होंगे ? किस तरह से अपना या दुसरे का समझते होंगे !

यह हमारे पुश्तैनी पहाड़ हैं, हमारे पूर्वज ही इन्हें बाँट गए थे ! वे लोग अपनी सुविधा से खेती करते थे और बाग़ बना लेते थे किन्तु मैंने इस पहाड़ को काट कर इसलिए समतल किया, ताकि मैं यहाँ पर अपना बिजनेस कर सकूँ क्योंकि इस पर कुछ और काम करना संभव ही नहीं था ! काफी बड़ा और ऊँचा है तो खेती या बाग़ करने में दिक्कत होती और सड़क किनारे होने का फायदा यह मिला कि मैंने इस पर अपना और काम करने को यूज़ कर लिया जैसे की दुकान बना ली !

सच में काफी जगह निकल आई थी ! जो आधा कटा हुआ पहाड़ था वो सफ़ेद सफ़ेद चमक रहा था ! बाक़ी ऊपर हरियाली थी !

हरे भरे पहाड़ देखने में बहुत सुंदर लगते हैं ! नमी से भरे हुए ऐसा लगता है मानों इनके भीतर कोई दरिया बह रहा हो, जिस के कारण ये हर वक्त भीगे भीगे, गीले गीले से रहते हैं !

न जाने कितने ग्लेशियर इनके अंदर समाहित है !

अपने दुःख दर्द को अपने भीतर ही दबाये अडिग खड़े रहते हैं !

कितना आकृष्ट करते हैं ये पहाड़ !

देखो भाई जल्दी से, क्या हुआ इस टायर को ?

रवि की इस आवाज पर राशि अपनी सोच से बाहर निकल आई !

जा बेटा, जरा तू जाकर देख ले हवा कम हुई है या पंचर हुआ है ? काम करने वाले लड़कों में से सबसे अनुभवी लड़के को आवाज देते हुए दुकान के मालिक ने कहा!

वो अपने औजार लेकर कार के पास गया जो सडक पर खड़ी थी !

साब्ब जी इसमें पन्चर हुआ है !

चल भाई जोड़ दे पंचर और ये स्टेपनी डिक्की में डाल दे !

जी साब्ब जी अभी पांच मिनिट में सही कर देता हूँ आप बेफिक्र रहें !

तब तक दुकान के मालिक ने चाय मंगा ली थी ! चाय की दुकान भी वही पर उनकी ही थी ! जिस पर एक कम उम्र का लड़का बड़ी तन्मयता से काम कर रहा था !

चाय में चीनी तो कम हैं न ! रवि ने पूछा था !

हाँ जी !

लेकिन चाय उतनी ही मीठी थी जितनी वो पिछले दो दिनों से पीती आ रही थी !

इतनी मीठी चाय ! उसे नहीं पी जाएगी !

कार सही हो गयी और रवि कार लेकर चल पड़े !

हलकी हलकी बूंदा बंदी शुरू हो गयी थी ! इन पहाड़ों पर जरा सी देर में ही बादल घिर आते हैं और बारिश शुरू हो जाती है !

कार के वाईपर्स बड़ी मुस्तैदी के साथ बारिश की गिरती बूंदों को शीशे से साफ कर रहे थे ! बाहर बारिश में भीगती हुई पहाड़ियां कुछ और ज्यादा हरी हरी हो गयी थी !

राशि चुपचाप उधर ही देखती हुई अपने मन को लगाने की कोशिश कर रही थी ! क्योंकि मन बड़ा बैचैन सा हो रहा था ! न जाने कैसी अकुलाहट सी भरी हुई लग रही थी ! उसका दिल चाह रहा था कि रवि उससे कुछ बातें करे, पर वे तो एकदम शांत और सपाट चेहरे के साथ कार ड्राइव करने में मगन थे !

कि रवि का फोन बजा !

राशि जरा देखो तो किसका फोन है ?

देव जी का ! फोन अपने हाथ में पकड़ कर राशि ने कहा !

चलो फिर इसको काट कर इधर से मिला लो !

हाँ जी, ठीक है !

उसने देव को फोन मिलाया और बात करने लगी ! कहाँ पर हो आप ?

दीदी जी मैं ढाबे पर बैठा हूँ, आप लोग कितनी देर में आ रहे हैं ?

बस रास्ते में हैं ! थोड़ी सी देर में आ जायेंगे !

आप लोग खूब देर बाग़ में घूमते रहे !

अरे नहीं भाई, वो कार का पंचर हो गया था ! आप वही पर रुको हम अभी आ रहे हैं !

धुली धुली, साफ सुधरी सड़क पर कार दौड़ती फिसलती चली जा रही थी !

बूंदा बाँदी रुक गई थी और वाईपर्स ने अपना काम रोक लिया था ! कार अपनी ही स्पीड में दौड़ती चली जा रही थी ! उसी तरह उन दोनों के मन भी दौड़ रहे थे परन्तु मौन रहकर !

देव ढाबे के पास नीचे सड़क पर दिख गया था ! ढाबा थोड़ी सीढियां चढकर उपर को बना हुआ था ! उसके मुँह से सिगरेट लगी हुई थी ! कल तो मना कर रहा था कि मैं बीढ़ी, सिगरेट आदि कुछ नहीं पीता ! और आज ! यह क्या है ?

कितने झूठे होते हैं लोग, जो अपनी झूठी बात को भी सच साबित करने के लिए न जाने कितना और झूठ बोलते चले जायेंगे ! न जाने क्यों, कुछ लोग खुद को हमेशा सही और दूसरों को गलत साबित करने में लगे रहते हैं ! अपने आगे किसी की चलने भी नहीं देंगे जबकि वे स्वयं एक नंबर के लफाड़ी होते हैं ! देव को झेंप न महसूस हो यह सोच कर रवि सड़क के दूसरी तरफ को रुक गया !

जब उसकी सिगरेट ख़त्म हो गयी तो उसे आवाज लगाते हुए बोले, चल भाई देव जल्दी से आ जा नहीं तो फिर से बारिश शुरू हो जाएगी !

उसने मुडकर देखा, अरे सर जी आप आ गए ! मैं आ रहा हूँ !

वह जल्दी से तेज तेज कदम बढाता हुआ, लपकता हुआ आया और कार में पीछे वाली सीट पर बैठता हुआ बोला, ठीक है अब घर चलिए ! रोड बन गया होगा !

हाँ भाई तेरे घर ही चल रहे हैं !

थोड़ी सडक पार करके उसके गाँव की तरफ जाने वाली सड़क पर गाड़ी मोड़ दी ! एक दुकान के पास से गुजरते हुए राजू बोला, सर जी जरा यहाँ पर एक मिनिट को रोकना ! कार के रुकते ही वह नीचे उतर गया ! उस दुकान में घरेलू जरुरत की सब चीजें थी मसलन राशन का सामान, फल सब्जी, नमकीन बिस्कुट ब्रेड के साथ ही कैप जैकेट्स और चप्पलें भी ! एक सुंदर सी लड़की वहां पर बैठी हुई थी ! राशि उसे देखकर मुस्कुराई वो भी हँस दी ! कितनी प्यारी होती हैं यह पहाड़ी लड़कियां, लाल लाल गालों वाली !

वहां से देव ने 10 रूपये वाला नमकीन और 5 रूपए वाला ग्लूकोस के बिस्किट का पैकेट खरीदा !

दीदी जी आपके लिए आम ले लूँ ? उसने राशि से पूछा !

अरे भाई तू जल्दी कर, आकर कार में बैठ जा ! आम डिक्की में पड़े हैं !

वो जल्दी से सामान हाथ में लेकर कार में बैठ गया ! यहाँ पर पोलीथिन नहीं चलती हैं ! साफ सुंदर चमकती हुई नई सड़क पर कार फिसलती चली जा रही थी ! सकरे घुमावदार रास्तों पर गाडी चलना कोई आसान बात तो नहीं होती है न ! एकदम सधे हाथों से चलाते हुए, लग ही नहीं रहा था कि वे पहली बार इस रस्ते पर आये हैं ! आगे एक मोड़ था वहां से दो रास्ते जुड़ रहे थे ! देव ने एक रस्ते की तरफ ऊँगली उठाते हुए कहा कि इस तरफ को चलिए !

देखिये सर जी यहाँ से हमारे बाग़ शुरू हो गये हैं !

अच्छा ये देवदार के पेड़ों के पीछे वाले ?

हाँ जी ! हाँ जी ! !

क्या क्या पैदा होता है तुम्हारे बागों में ?

सेब, प्लम, आडू, बबूगोशा, शक्करपारा, और मटर, पालक, गोभी ! राजू ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया !

फल सब्जी सब पैदा होते हैं !

हाँ जी !

अखरोट, बादाम, नहीं होते ?

हाँ वे भी होते हैं ! इनके कुछ पेड़ ही घर के आसपास लगा रखे हैं !

साफ मौसम पर एकदम से फिर से काले काले बादल छा गये !

यह बादल तो बरस के ही जायेंगे ! रवि बोले !

और उनकी बात सच ही हो गयी ! बरसात शुरू हो गयी ! हलकी हलकी बौछारें कार की खिड़की से अंदर आकर चेहरे को भिगोने लगी थी !

राशि ने अपना हाथ बाहर निकाल कर बादलों की सौगात को अपनी मूठ्ठी में बंद करने की कोशिश की लेकिन तब तक रवि ने पावर बटन से सब बिंडो बंद कर दी ! !

ओह्ह ! ! ये रवि भी न, बड़ा इरिटेड करते हैं !

कितनी देर से उससे बिना बोले कार चलाये जा रहे हैं ! उनका न बोलना मतलब उससे नाराज होना ! इतने दिनों से रवि के बारे में वो इतना तो समझ ही गयी है ! जरुर मन ही मन गुस्सा हो रहे होंगे कि यह इतना क्यों बोल रही है ! वो भी देव से जिसे वो जाहिल या गवार समझ रहे हैं ! राशि ने अपने होठों पर ऊँगली रख ली ! सच में कभी कभार बहुत ज्यादा बोलती है, इतना नहीं बोलना चाहिए ! नहीं बोलेगी अब !

बस बस यहीं पर रोक लो ! देव ने कहा !

वो कार से नीचे उतर गया और एक किनारे खड़ी करा दी ! बारिश थोड़ी तेज हो गयी थी ! वे लोग नीचे उतरते कि तब तक एक लड़की हाफती हुई सी तीन छाते हाथ में पकडे चली आई !

शायद देव ने उसे फ़ोन कर दिया होगा ! लेकिन कब किया उसे तो सुनाई नहीं आया !

उफ़ राशि तू बहुत सोचती है ! क्या करना बेकार फिजूल की बातें सोच कर उसने अपने सर को झटका दिया ! कार से निकलते ही उस लड़की ने छाता देते हुए कहा लो जी दीदी जी इसे लगा लो वरना भींग जाओगी !

बादलों से बड़ी ठंडी बर्फ जैसी बूंदें गिर रही थी ! छाता लगा लेने के बाद भी वे उससे टकरा रही थी ! वो ठण्ड से कांपने लगी ! उसके हाथ एकदम से ठन्डे हो गए ! थोड़े से ढलान को पार करके देव का घर आ गया ! तीन कमरे, एक रसोई वाला घर जिसके बीच में एक आँगननुमा सा ! सबसे पहले रसोई दिखी ! कमरे के बराबर जिसमें एक मेज जो रैक भी थी ! उसके ऊपर गैस रखी थी और रैक में सामान व बरतन रखे हुए थे ! नीचे बुखारी रखी थी और उसके चारो तरफ कालीन जैसी गरम चादर बिछी हुई थी ! उसके सामने वाले कमरे में वे बैठे हुए थे, जिसके चारो तरफ शीशे की खिड़कियाँ लगी हुई थी ! वहां से सबकुछ साफ़ दिखाई दे रहा था !

अँधेरा गहरा गया था ! दूर दिखती पहाड़ियां जिन पर छिटपुट जलती हुई लाड़टे दिवाली जैसा आभास दे रही थी !

जो लड़की छाते लेकर आई थी, वही पानी लेकर आ गयी, गुनगुना पानी !

देव ने उसे नमकीन और बिस्किट के पैकेट देते हुए कहा, जाओ चाय बना लाओ !

प्लीज मेरे लिए नहीं !

क्यों दीदी जी ? आप भी पी लीजियेगा !

नहीं भाई सुबह से कई बार पी चुकी हूँ ! एक्चुली राशि यहाँ की मीठी चाय से घबरा गयी थी !

इतनी सर्दी हो रही है और आप तो ठण्ड से कॉप भी रही हैं !

हाँ ठण्ड तो लग रही है पर चाय पीने का मन नहीं, कम्बल ओढकर लेटने का मन है ! एक तो दिन भर की थकान और ऊपर से ठंडा मौसम ! कम्बल में लिपटकर राहत और ठण्ड में गर्माहट दोनों ही मिल जाएगी ! कमरे में बेड और सोफा पड़े हुए थे बीच में एक मेज रखी थी ! पूरे कमरे में कालीन जैसा कुछ बिछा हुआ था !

पीका दीदी जी को कम्बल लाकर दे दो वो ओढकर लेट जाएगी !

कम्बल आते ही राशि दुबक कर लेट गयी !

पीका ट्रे में चाय लेकर आ गयी थी, गर्म भाप निकलती हुई चाय देखकर उसका मन हुआ, वो भी ले ले लेकिन यहाँ के मीठे स्वाद के कारण वो चाय रहने ही दो !

उसका शरीर भीतर तक ठण्ड से कांप रहा था ! उसने मुँह ढककर अपनी आँखें बंद कर ली !

कम्बल की गर्माहट में उसे नींद आने लगी, तभी रवि ने उसे आवाज लगाते हुए कहा, राशि जरा यह आम टेस्ट करके बताओ तो ? कैसा है ? मीठा तो है न !

रवि ने चाकू से आम को अपने हाथों से काट कर उसे देते हुए कहा !

राशि ने मुँह ढके ढंके ही अपना हाथ निकाला और थोडा सा सर कम्बल से बाहर निकाल आम का एक छोटा सा टुकड़ा अपने मुँह में रखा ! वो वाकई बहुत स्वादिष्ट था !

आम बहुत मीठा है रवि, आप भी खा कर देखिये न !

मैंने अभी अभी चाय पी है !

अरे आप चाय पी चुके ?

हाँ क्यों ?

मुझे पता ही नहीं चला, शायद मैं सो गयी थी !

हाँ तुम सो रही थी !

मैं झपकी भी ले चुकी और मुझे पता भी न चला !

आम खाने से हाथ थोड़े चिपचिपा रहे थे लेकिन उठने का और हाथ धोने का बिलकुल मन नहीं हो रहा था !

उसने अपने दोनों हाथो को आपस में मसल कर साफ़ किया !

हो गए हाथ साफ़ ? रवि मुस्कुरा कर बोले !

जवाब में वो भी मुस्कुरा दी !

पानी मंगाता हूँ !

एक मग में गुनगुना पानी लेकर फिर से पीका आ गयी ! लो हाथ धो लो ! उसने उस पानी के अंदर ही हाथ डालकर हाथ धो लिए ! रवि ने हाथ पोछने के लिए अपना हैंकी निकाल कर उसे दे दिया ! रवि ने बड़ी प्यारी सी स्माइल उसकी तरफ फेंकी ! यह रवि भी न मुस्कुरा कर जान ही ले लेते हैं !

आज पूरा दिन भूखा रख कर ही तुम्हें घुमाया है न !

हाँ आज तो पुरे दिन कुछ खाया ही नहीं उसने ! याद भी नहीं रहा !

अब खाना खा कर सो जाओगी, तो देखना सुबह तक थकान छू मंतर हो जाएगी !

अभी आम खा लिया, अब खाना नहीं खाऊँगी !

तू तो चिड़िया की तरह से खाती है ! चलो फिर ठीक है, अब मुँह ढको और आराम से सो जाओ !

कितने प्यारे हैं रवि, कितना ज्यादा ख्याल रखते हैं ! परन्तु कभी कभी क्या हो जाता है, जो इतने सख्त और कठोर हो जाते हैं ! यह क्यों नहीं समझते कि राशि को कितना बुरा लगता होगा, बिना सोचे समझे ही उसका दिल दुखा देते हैं ! जो अपनी जान की बाजी लगाने को तैयार रहती है, सब कुछ लुटाने को तैयार है और पूरी दुनियां से उनके लिए अकेले ही लड़ सकती है !

जब रवि नाराज होते हैं उस वक्त उसे बिलकुल भी और कुछ भी अच्छा नहीं लगता है ! उस समय लगता है कि ये पल जिन्दगी का आखिरी पल बन जाए !

सच में, वे दिल के बुरे बिलकुल नहीं हैं ! वे तो बड़े सच्चे और अच्छे व्यक्ति हैं ! बहुत प्यारे हैं तभी तो वो उनको प्यार करती है ! खुद को कुर्बान कर दिया और कर देगी !

दीदी जी सो गयी है क्या ? पीका की आवाज उसके कानों में पड़ी !

हाँ थक गयी हैं ! पूरा दिन घूमती रही और फिर उसे ठण्ड भी लग रही है !

वो खाना नहीं खायेंगी ?

अब सो गयी हैं, तो सोने दो !

जगा देते हैं न !

नहीं, सोते से जगाना, ठीक नहीं !

सर जी, पता है भूखे पेट नहीं सोते !

उसने आम खा लिया था !

आम बस ! उनका पेट भर गया !

हाँ बहुत कम खाती हैं न ! अब सो गयी है तो सोने दो, कल सुबह खा लेगी !

ठीक है जी !

राशी उन लोगों की यह बातें सुनते सुनते कब सो गयी ! जब उसे महसूस हुआ कि किसी ने कोई भारी सी चीज उसके ऊपर डाल दी और वह उसके दवाब से दब गयी है !

आँखें नींद से भरी हुई थी फिर भी उसने महसूस किया कि वो एक मोटी सी रजाई है ! कानों में हलकी हलकी सी आवाजें सुनाई दे रही थी कि यहाँ तो येसे ही भारी भारी राजाईयाँ होती हैं ! सर्दियों और गर्मियों दोनों में ओढ़नी पड़ती हैं न तो दोनों मौसम के हिसाब से अलग अलग भारी या हल्की बनाई जाती हैं !

यहाँ रात को बहुत ठण्ड पड़ती है ! यह तो गर्मियों के लिए बनाई गयी रजाईयां हैं !

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