कमसिन
सीमा असीम सक्सेना
(10)
चलो वापस चलते हैं ! पैदल का रास्ता पार करने में ही लगभग एक घंटा लग जायेगा ! अभी 4 बज रहे हैं ! और सूर्य देव भी मध्यम होने लगे हैं ! ये पहाड़ी इलाके बड़ी जल्दी अंधेरों में डूब जाते हैं !
ये पहाड़ रात की तन्हाई में पिघलते होंगे ! जब सारा जग सो जाता है तब ये अपनी कठोरता पर रोते होंगे ! जो सिर्फ दिखाने की होती है ! क्योंकि पहाड़ कठोर नहीं होते ! इनका दिल मोम की तरह मुलायम होता है कभी कभी इनको प्यार से सहला कर देखो, निहार कर देखो पता चल जायेगा ! कितने कष्ट सहते हैं ! फिर भी अडिग खड़े रहते हैं इनसे सीखो अडिग रहना ! भले ही टूटो बिखरो रोओ चीखो चिल्लाओ पर अपने निश्चय से मत डिगो ! तब देखना कैसे सब कुछ कितना सरल हो जायेगा क्योंकि कभी कभी जीवन में मधुरता लाने के लिए कठोर भी होना पड़ता है !
राशी क्या सोच रही हो ? तुम बहुत सोचती हो ? थोडा कम सोचा करो !
ठीक है अबसे कम सोंचा करुँगी ! वो मुस्कुराते हुए बोली !
आखिर सोचते बतियाते, फल फूल के बाग़ और झाड़ियों का पहाड़ी रास्ता पार हो गया और हम पहुँच गए वहां पर जहाँ हमारी कार खड़ी थी !
सर जी यहाँ पास ही हमारी बहन का घर है ! चलिए न जरा देर को ! देव ने आग्रह पूर्वक कहा !
इतने प्यार से कही गयी बात को भला रवि कैसे ठुकराते ! हमलोग उसकी बहन के घर की तरफ चल दिए ! कुछ ही क़दमों की दूरी पर ही उनका घर था ! बाहर से छोटा सा दिखने वाला घर जिसमें एक दुकान बनी हुई थी ! राशन और घरेलू जरुरत की सारी चीजें ! दुकान तो छोटी सी पर उसमें सामान कुछ ज्यादा ही जो बाहर तक बिखरा हुआ था ! शहरों का अतिक्रमण यहाँ पहाड़ी गावों तक भी आ गया !
शहरों में जब भी प्रशाशन का मन किया सब तोड़ फोड़ के उठाकर चल दिए !
दुकान के पीछे घर ! सबसे पहले एक कमरा जहाँ सोफा सेट पड़ा हुआ था और दो तख्तों को जोडकर बेड बनाया हुआ था ! उसके ऊपर सुंदर सी फुल पत्तियों की चादर बिछी हुई थी ! बेड के पास दीवार में एक पतली खुली हुई अलमारी ! जिस पर ढेर सारी किताबें यूँ ही बिखरी पड़ी थी ! शायद स्कुल जाते समय बच्चों ने जल्दी में ऐसे कर दिया हगा फिर उनको सही करने का समय नहीं मिला होगा ! वैसे वो बड़ी बेतरतीब लग रही थी !
उस कमरे के दरवाजे को पार करके बड़ा सा आँगन ! सोफे वाले कमरे में ही एक पतली सीढ़ी नीचे की तरफ को जाती हुई ! वह लोहे की थी उस पर ऊपर की तरफ कमरे में आती हुई एक खूब मोटी महिला !
नमस्ते जी ! कहते हुए उसने अपने हाथ जोड़े !
दीदी जी नमस्ते, नमस्ते ! भाई कहाँ हैं ? राजू ने उनसे पूछा !
वो बाहर आँगन में हैं !
हमलोग आँगन में आ गए ! वहाँ एक तरफ को एक तख़्त पड़ा हुआ जिस के ऊपर सिलाई मशीन रखी हुई ! उसके पास सिले और बिना सिले कपड़े रखे हुए थे ! कुछ फूलों के पौधे और सामने की तरफ सुंदर प्राकृतिक नजारा ! ऊँचे ऊँचे हरे भरे पहाड़, नीची सी खाइयाँ और उनमे सीढ़ीनुमा खेत, सेब के बाग़ ! कमरे में घुसते समय सोंचा ही नहीं था कि अंदर इतना सुंदर नजारा देखने को मिलेगा !
इतने मनोंरम द्रश्यों से सजा हुआ होता है पहाड़ी घर !
वाह ! उसके मुँह से निकल गया ! प्रक्रति ने इन लोगों को अपने आँचल में ख़ास जगह दी है ! वो महिला अपने दोनों हाथों में एक एक प्लास्टिक की कुर्सी लेकर आ गयी और बोली, बैठ जाइये आप लोग !
जरा जल्दी से इन लोगों को गर्म पानी दो फिर चाय पिलाओ !
देव की बहन शरीर से भारी थी और उनके पाँव में भी तकलीफ जिसके कारण वे थोडा लंगड़ा कर चल रही थी फिर भी सारे काम फुर्ती से कर रही थी ! वे एक स्टील की ट्रे में 4 गिलास गर्म पानी लकर आ गयी !
पानी देकर वो जाने लगी तो राशी बोली, मैं भी आपके साथ चलूँ ?
हाँ जी, आइये न ! वे मुस्कुराती हुई बोली !
राशि उनके साथ हो ली !
रवि उनके पति से वहां की जगह और बागों के बारे में बातें करने लगे !
राशी उस पतली लोहे की सीढ़ी पर उतरने में थोडा हिचक रही थी !
आ जाओ, आ जाओ जी डरो नहीं ! दीदी पैर में तकलीफ के बाद भी जल्दी से नीचे उतर कर उससे बोली !
आखिर हिम्मत करके वो भी उस लोहे की सीढ़ी से उतरने की कोशिश करने लगी !
मन में हल्का डर कि कहीं पैर स्लिप न हो जाए कभी सीढ़ी से चढ़ना उतरना हुआ ही नहीं ! ये एकदम नया अनुभव था !
नीचे कमरेनुमा रसोई ! एक तरफ बिस्तर बिछा हुआ, दूसरी तरफ को दरवाज़ा वहीँ पर एक मेज पर गैस रखी हुई थी ! एक बड़ा बल्ब जल रहा था ! लकड़ी की अलमारी में बरतन और खाने की चीजें बड़े सलीके से रखी हुई थी ! डलिया में साफ़ किये हुए कुकर कढ़ाही आदि !
इस दरवाज़े के पीछे क्या है ? राशि के मन में यह जानने की उत्कंठा हुई ! उसने दवाजा खोलकर झाँका ! वहां पर एक गाय बंधी हुई थी !
अरे दी यहाँ पर गाय ?
हाँ ! हम लोग गाय पालते हैं घर का दूध बनाते हैं !
अच्छा ! लेकिन यह ऊपर कैसे जाती होगी ?
ऊपर क्यों ?
खुली हवा में जाने के लिए !
ये यहीं पर रहती है !
राशी के मन में आया ये लोग जानवरों के साथ कितना गन्दा व्यवहार करते हैं ! कितनी बेकद्री से एक ही कमरे में बंद रखते हैं !
शायद वे उसके मन की बात ताड़ गयी ! यहाँ से इसे नीचे की तरफ जंगल में निकाल देते हैं घास चरने को फिर ले आते हैं !
ओह हाँ उसे ध्यान आया कि वो पहाड़ों पर है ! वो भी कितनी पागल है कुछ समझती नहीं बल्कि बेकार के सवाल करके परेशान करती है !
जुगाली करती हुई गाय बड़े शांत भाव से बैठी हुई थी ! जानवर की अजीब सी महक नाक में आती है तो वो दरवाज़े को कसकर बंद कर देती है ! चाय गैस पर खौल रही थी वो महिला वही पर खड़ी थी उन्होंने एक बड़े से भगौने से करीब दो गिलास ढूध निकाला और चाय में डाल दिया !
इतना सारा दूध 4 कप चाय में ?
हाँ जी ! हम लोग दूध की चाय बनाते हैं पानी नाममात्र के लिए डालते हैं !
एकदम गाढ़ी गाढ़ी चाय तैयार हो गयी थी ! फिर उस चाय में 2 इलायची कूट कर दाल दी ! अब उस महकती चाय की खुशबु ने उस जुगाली करती गाय की महक को दूर कर दिया था !
उन्होने छोटे छोटे स्टील के गिलासों में चाय लौट ली ! वे गिलास ही उनके कप थे ! इस बीच वे अपने परिवार के बारे में बताती रही कि उनके 3 बच्चे हैं ! अभी सब स्कूल में पढ़ रहे हैं ! 2 बेटियां 1 बेटा है ! बेटियां बड़ी हैं फिर भी उनसे घर के कोई काम नहीं कराते हैं अभी उनके पढने खेलने के दिन हैं ! बाद में तो करना ही होगा !
आपके पाँव में तकलीफ है तब भी !
ये सब तो चलती ही रहती है !
आपका बेटा कितना बड़ा है ?
7 साल का है वो बहुत शैतान है सबसे छोटा सबसे खोटा ! सब बहुत लाड़ करते हैं न जी उसका !
हा हा हा हा !
पता है यहाँ पहाड़ों पर बहुत ठण्ड पड़ती है 12 महीनें रजाई ओढ़कर सोना पड़ता है !
गाय को भी गर्माहट देनी होती है !
हम पहाड़ पर रहने वाले हैं न तो हमारा मन मैदान में नहीं लगता ! अगर किसी मैदानी नीचे के सफर में जाऊं तो दो दिन ही रह पाती हूँ फिर वापस अपने घर ! वहाँ बहुत गर्मी पड़ती है !
हाँ वहां पर मौसम बदलता रहता है ! ठण्ड भी खूब पड़ती है और गर्मी भी खूब !
अच्छा चलो अब ऊपर चलते हैं वरना चाय ठंडी हो जाएगी ! उन्होंने एक हाथ में चाय पकड़ी और आराम से सीढियों पर चढ़ गयी !
राशि सोच में पद गयी इतनी चोट होने के बाद भी कोई दर्द नहीं ! कितनी सहज सरल और मेहनती होती हैं ये पहाड़ी महिलायें !
राशी भी धीरे धीरे सीढियों पर चढ़कर उपर आ गयी ! वैसे बहुत ही मुश्किल काम था इन पर चढ़ना उतरना ! खैर एक नया एक्सपीरियंस हुआ था !
सब लोग कमरे में सोफे पर आकर बैठ गए थे ! चाय से निकलती हवा में घुलती इलायची की खुशबू उसे पीने की ललक बढ़ा रही थी ! थकान और सर्द मौसम में अगर इतनी स्वादिष्ट चाय मिल जाए तो सब थकान मिट जाए !
सबको चाय दे दी गयी थी ! वाकई चाय पीकर मूड फ्रेश हो गया था !
लेकिन वो मीठी बहुत ज्यादा थी शायद यहाँ पर सब लोग बहुत ही मीठी चाय पीते हैं ! क्योंकि पिछले दो दिनों से इतनी मीठी चाय ही हर जगह पीने को मिल रही थी !
थोड़ी फीकी या कम चीनी की चाय बनाना कहने के बाद भी चाय में उतना ही मीठापन ! चाय पीने के बाद उनके घर में लगे बादाम के पेड़ से बादाम तोडकर खाए ! हालाँकि अभी वे पके नहीं थे और उनका स्वाद थोडा कच्चापन लिए हुए था मतलब दुधिया सा !
अब चलते हैं सर जी !
अभी रुको चलता हूँ !
राशि जरा कार की डिक्की से आम का पैकेट तो निकाल लाओ ! उन्होंने चाबी देते हुए कहा !
वो डिक्की खोलकर आम निकलने लगी ! वहां पर एक बड़ी सी पेटी में आम के कई पैकेट रखे हुए थे !
गाडी खोलने पर उसमे हार्न वाला सिस्टम लगा था ! राशि ने उस पर ध्यान ही नहीं दिया कि पहले बटन दबाकर उसे बंद कर दे वो तो बस आम का पैकेट निकालने में मशगूल रही !
तेज ध्वनी में बजता हुआ सायरन वाला होर्न उस शांत वातावरण में ध्वनी प्रदुषण पैदा कर रहा था ! आसपास के लोग उसकी तरफ ही देख रहे थे पर वो न जाने किस दुनियां में खोयी हुई थी ! इतने में घर से निकल कर रवि उसके पास आये ! उनके चेहरे से गुस्सा साफ झलक रहा था ! उसके हाथ से चाबी लेकर पहले उस हॉर्न को बंद किया और फिर उसे डांटते हुए बोले, क्या आपको सायरन की तेज आवाज सुनाई नहीं दे रही या फिर या अपना होश ही नहीं है ? कहाँ खोई रहती हो ? जब मुझे आना ही पड़ा तो आपको भेजने का क्या मतलब बनता है !
वो सच ही कह रहे थे, गलती उसकी ही है किन्तु डांट सुनकर उसके आंसू निकल पड़े !
जब कोई अपना डांटता है तो हमारे भले के लिए ही होता है परन्तु हम उस को सहजता से पचा नहीं पाते ! क्योंकि हम उनसे सिर्फ प्यार की अपेक्षा ही करते हैं ! जबकि उनकी डांट प्यार से भी ज्यादा मायने रखती है ! वो किस तरह इतने कठोर शब्द अपनी जुबाँ से निकालते होंगे यह भी तो सोचने की बात है ! उनके दिल में भी तो आपका भला ही छिपा होता है !
राशि की आँखों से आंसू बह निकले ! गालों से टपक कर धरती पर गिर गए, उस पहाड़ की छाती पर गिरे आंसू !
रवि ने डिक्की से आम का एक पैकेट उसे पकड़ते हुए कहा लो इसे पकडो !
अरे तुम रो रही हो ? ये रोना क्यों और किसलिए ? मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता इन आंसुओं का !
राशि ने जल्दी से अपने आंसूं पोछकर पैकेट को पकड़ लिया ! अब रोने पर भी डांट ! वह आंसुओं को जितना रोकने की कोशिश करती वो उतनी तेजी और बहने लगे !
एक काम करो, लाओ आम का पैकेट मुझे दो और तुम पहले रो लो जीभर के !
रवि ने डिक्की को बंद करते हुए कहा !
नहीं नहीं मैं ले चलूंगी ! आप चलिए ! वो भरे गले से बोली !
उसका मन आत्ममंथन करने लगा ! क्यों कर रहे हैं ये ऐसा ? पहले उसके बदन से जीभर के खेला अपना अधिकार समझ कर और अब ये डांट ? उसने जल्दी से सर को झटका ! कही फिर से न डाँटने लगे ये सोचकर तेज क़दमों से चलती हुई घर के अंदर आ गयी और वो आम का पैकेट उन महिला को दे दिया !
अरे इनकी क्या जरुरत थी जी !
ये बच्चों के लिए हैं आप उनको खिलाना इनका स्वाद बहुत बढ़िया है और शायद इधर आम होते भी नहीं हैं ?
हाँ जी इधर तो नहीं होते हैं परन्तु आ जाते हैं वैसे अब हर चीज हर जगह मिलती है बस दाम कुछ जयादा होते हैं !
हाँ आप सही कह रही हैं ! अब दुनियां का ग्लोबलाइजेशन जो हो गया है !
ठीक है जी अब चलते हैं !
हाँ जी, आना फिर !
हाँ क्यों नहीं आप लोग भी आना जब कभी भी मन चांहे या उधर मैदान की तरफ आना हो !
जरुर आउंगी जी ! उनके चेहरे से टपकती सरल सहजता मन को अभिभूत कर रही थी !
इतना कठोर जीवन जीने वाले, मेहनतकश, जीवट और चेहरे पर इतनी मासूमियत और भोलापन !
उस कठिन रास्ते को कार से सरल बनाते हुए उसी धूल उढ़ाते, कच्चे पक्के रास्ते से वापस होटल आ गए ! देव बाजार में उतर गया उसे कुछ सामान लेना था !
शाम के 6 बज रहे थे ! ठण्ड अपना असर दिखने लगी थी ! राशि हाथ मुँह धोकर और कपड़े बदल कर रजाई में घुस गयी ! भूख का अहसास हो रहा था और इस समय खाने के लिए कंटीन में सिवाय चाय के और कुछ भी मिलना असंभव था !
क्या हुआ राशि ? भूख लग रही है ?
शायद वे उसके चेहरे को देखकर भांप गए थे !
हाँ !
चलो मैं देखकर आता हूँ ! कहकर वे कमरे से बाहर चले गये !
जब लौट कर आये तो उनके हाथ में चाय के दो कप थे !
राशि केवल चाय मिली है यहाँ ! क्या बाजार से कुछ खाने पीने का सामान ले आउं ?
अरे नहीं रहने दीजिये न ! अभी इससे काम चलेगा फिर डिनर जल्दी कर लेंगे क्या दिक्कत है !
रवि अपने बेग में से दालमोठ निकाल कर ले आये !
देव का फोन आ रहा था ! वो घर आने के लिए ही कह रहा होगा ! लेकिन राशि की अब कहीं भी जाने की हिम्मत नहीं थी न ही मन ! थकन हो रही थी और सो जाने का मन हो रहा था !
अगर रवि ने हाँ कह दिया तो जाना ही पड़ेगा !
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