Pal jo yoon gujre - 25 in Hindi Moral Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | पल जो यूँ गुज़रे - 25

Featured Books
  • आखेट महल - 19

    उन्नीस   यह सूचना मिलते ही सारे शहर में हर्ष की लहर दौड़...

  • अपराध ही अपराध - भाग 22

    अध्याय 22   “क्या बोल रहे हैं?” “जिसक...

  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

Categories
Share

पल जो यूँ गुज़रे - 25

पल जो यूँ गुज़रे

लाजपत राय गर्ग

(25)

पन्द्रह हफ्ते पलक झपकते बीत गये। जाह्नवी की नियुक्ति सोलन डिस्ट्रिक्ट में बतौर अस्सिटेंट कमीशनर हुई। निर्मल को आगे की ट्रेनग के लिये राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, माउँफट आबू जाने का आदेश—पत्र मिला। एक सप्ताह के ज्वाइनग पीरियड में वे सिरसा आये। उनके आगमन पर घर—परिवार ही नहीं, सारे शहर में हर्षोल्लास था। कॉलेज में निर्मल और जाह्नवी के सम्मान में एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। कॉलेज प्रांगण में उनसे स्मृति—वृक्ष लगवाये गये। शहर की संस्थाओं ने भी अपने—अपने ढंग से उन्हें सम्मानित किया। जाह्नवी सोचने लगी कि यह छोटे शहर की ही फितरत है जो इतना सम्मान मिल रहा है, बड़े शहर में तो आदमी कितनी भी उपलब्धि अर्जित कर ले, भीड़ का एक हिस्सा बनकर ही रह जाता है। शिमला में रिज़ल्ट वाले दिन जरूर पत्रकार आये थे, लेकिन उसके बाद किसी संस्था ने तो क्या कॉलेज या यूनिवर्सिटी वालों ने भी कोई अता—पता नहीं लिया। यह तो हो नहीं सकता कि किसी को खबर तक न हो, क्योंकि रिज़ल्ट के दूसरे दिन लगभग हर अखबार में मेरी फोटो सहित समाचार छपा था।

चार—पाँच दिन कार्यक्रमों और पार्टियों आदि में ही निकल गये। जब जाने का समय आया तो परमानन्द ने निर्मल को कहा — ‘निर्मल, बहू के साथ कुछ दिनों के लिये तेरी माँ चली जाती है। तू साथ होता तो कोई बात नहीं थी।'

‘पापा, सोलन में रहने के लिये रेस्ट हाउस होगा। जाह्नवी मैनेज कर लेगी। माँ को भेजने की जरूरत नहीं है। दूसरे, सोलन से शिमला अधिक दूर नहीं है, कोई जरूरत पड़ेगी तो अनुराग भी देख सकता है। सर्विस भी ऐसी है कि अकेले रहने की तो आदत डालनी ही पड़ेगी।'

निर्मल के इतना कहने के बाद परमानन्द के पास कहने को कुछ बचा न था। तदुपरान्त पूर्व—नियोजित कार्यक्रमानुसार निर्मल शाम की ट्रेन से बठिण्डा चला गया। वहाँ से रात को चलने वाली अहमदाबाद एक्सप्रेस में आबू रोड रेलवे स्टेशन के लिये लिये बर्थ बुक करवाई। दूसरे दिन प्रातः जाह्नवी चण्डीगढ़ वाली बस से चण्डीगढ़ होते हुए सोलन पहुँची। अनुराग उसके सोलन पहुँचने से पहले ही श्रद्धा और मीनू के साथ वहाँ पहुँचा हुआ था। उसने चाहे जाह्नवी के लिये पीडब्लयूडी रेस्ट हाउस में कमरा बुक करवा रखा था, फिर भी वे होटल में ठहरे। बस से उतरते ही जाह्नवी श्रद्धा से लिपट गयी। मीनू भी अपनी बुआ की टाँगों से लिपट गयी। भाभी से अलग होकर जाह्नवी ने मीनू को गोद में उठाया और प्यार किया। तत्पश्चात्‌ अनुराग को नमस्ते की।

श्रद्धा — ‘जाह्नवी कुछ कमज़ोर लग रही हो।'

‘नहीं भाभी जी, मैं बिल्कुल ठीक हूँ। कमज़ोर नहीं, बल्कि अधिक पिफट हूँ। विवाह के बाद के दो महीनों में शरीर पर बहुत चर्बी चढ़ गयी थी, मसूरी की ट्रेनग ने सब ठीक कर दिया है। मैं अपनी इस हालत में बहुत खुश हूँ।'

‘चलो, बाकी बातें होटल में।'

और उन्होंने कुली से सामान उठवाया और होटल आ गये।

अगले दिन प्रातः जाह्नवी और अनुराग उपायुक्त, सोलन से मिले। अनुराग ने अपना तथा जाह्नवी का परिचय दिया। अधेड़ावस्था के उपायुक्त महोदय जोकि डायरेक्ट आईएएस ऑफिसर न होकर प्रमोशन से आईएएस कैडर में आये थे, ने उनका स्वागत किया तथा जाह्नवी को बधाई दी। स्टेनो को बुलाकर जाह्नवी की ज्वाइनग रिपोर्ट टाइप करके लाने को कहा। साथ ही कहा — ‘जब तक प्रॉपर अकमोडेशन का प्रबन्ध नहीं हो जाता, जाह्नवी तुम पीडब्लयूडी रेस्ट हाउस में रहो।'

अनुराग — ‘सर, मैंने शिमला से इस सप्ताह के दो दिन के लिये तो रेस्ट हाउस बुक करवा लिया था।'

‘मि. अनुराग, जाह्नवी आईएएस ऑफिसर हैं, इस जिले में ट्रेनग के लिये आई हैं। जितना समय ये चाहें, रेस्ट हाउस में आराम से रह सकती हैं।'

जाह्नवी— ‘धन्यवाद सर।'

‘कल से तुम्हारे बैठने के लिये रूम आदि की व्यवस्था हो जायेगी। आज तुम अनुराग जी के साथ जाना चाहो तो जा सकती हो और अगर बैठना हो तो मेरे ऑफिस में बैठो।'

‘सर, आज तो मैं भइया के साथ जाना चाहूँगी।'

‘ओ.के., लेकिन जाने से पहले अपनी ज्वाइनग रिपोर्ट साइन कर देना।'

‘थैंक्यू सर, थैंक्यू वैरी मच।'

ट्रेनग शड्‌यूल के अनुसार जाह्नवी ने जिले के भि—भि दफ्रतरों में जाकर वहाँ के कामकाज को देखा—परखा, समझा और सीखा। सभी दफ्तरों में अधिकारियों और कर्मचारियों ने उसे पूरा सम्मान तथा सहयोग दिया, क्योंकि सभी जानते थे कि ट्रेनग के पश्चात्‌ कभी भी वह उनकी बॉस लग कर आ सकती है। जाह्नवी की ज्वाइनग के महीने—भर बाद ही गणतन्त्र दिवस था। स्टेट लेवल का फंक्शन सोलन में मनाये जाने का निर्णय राज्य सरकार कर चुकी थी और इस अवसर पर मुख्यमन्त्री ने झण्ड़ा फहराना था। इस कार्यक्रम के आयोजन के लिये उपायुक्त महोदय ने जो कमेटी गठित की, जाह्नवी को उसका मुख्य संयोजक बनाया। जाह्नवी ने कमेटी में सम्मिलित सभी अधिकारियों तथा जिले के गणमान्य नागरिकों के साथ विचार—विमर्श करके तथा उनसे अपेक्षित सहयोग लेकर जिस तरह सारे कार्यक्रम को सफल बनाया, उसकी प्रशंसा मुख्यमन्त्री ने भी की तथा जाह्नवी को राज्य की प्रथम महिला आईएएस होने पर विशेषरूप से सम्मानित भी किया। उपायुक्त ने उसके उल्लेखनीय योगदान व कार्य—कुशलता के लिये उसे बधाई दी तथा आभार प्रकट किया।

निर्मल का पत्र आये हुए कई दिन हो गये थे, किन्तु गणतन्त्र दिवस समारोह की तैयारियों की व्यस्तता के कारण जाह्नवी उत्तर नहीं दे पाई थी। पन्द्रह—बीस दिनों की भागदौड़ के बाद तथा समारोह के अगले दिन अवकाश होने के कारण आज जाह्नवी को लग रहा था, जैसे बहुत बड़ा बोझ सिर से उतर गया हो। सुबह भी वह देर तक बिस्तर में घुसी रही थी। नाश्ता करने के बाद उसने समाचार पत्र उठाया। सारा समाचार पत्र विभि नगरों में मनाये गये गणतन्त्र दिवस समारोहों तथा सोलन में मनाये गये राज्य—स्तरीय गणतन्त्र दिवस समारोह के समाचारों तथा चित्रों से भरा पड़ा था। मुख्यमन्त्री द्वारा उसे सम्मानित किये जाने वाला चित्र प्रथम पृश्ठ पर छपा था। उसने यह पृश्ठ अलग करके महत्त्वपूर्ण डाक्यूमेंट्‌स की अपनी फाईल में रख लिया। तदुपरान्त उसने निर्मल को पत्र लिखने का मन बनाया। उसने लिखाः

माय डियर निर्मल,

स्वीट लव!

तुम भी मन में सोच रहे होगे और मुझे कोस रहे होगे कि क्यों मैंने तुम्हारे पत्र का इतने दिनों तक उत्तर नहीं दिया। जैसे ही मैं ड्‌यूटी पर आई, डीसी ने मुझे कहा कि इस बार के गणतन्त्र दिवस समारोह के आयोजन का उत्तरदायित्व तुम पर रहेगा। बाद में जब सूचना मिली कि मुख्यमन्त्री ध्वजारोहण करेंगे तो अतिरिक्त दबाव आ गया। लेकिन सभी के सहयोग से मेरी पहली असाइनमेंट पूरी तरह सफल रही। डीसी बहुत खुश है। तुम्हें यह जानकर प्रसन्नता होगी कि मुख्यमन्त्री ने राज्य की प्रथम महिला आई.ए.एस. ऑफिसर बनने के लिये मुझे विशेषरूप से सम्मानित किया तथा यह फोटो आज के समाचार—पत्रमें प्रथम पृश्ठ पर छपी है। तुम्हें दिखाने के लिये मैंने इसे सम्भाल कर रख लिया है।

एक दिन मोहन ब्रीयूरीज़ के सीनियर ऑफिसर कर्टसी—कॉल के लिये आये थे। कहने लगे, मैडम, जब तक सरकारी हाउस नहीं मिलता, आप हमारे गेस्ट हाउस में रहिये। वहाँ रहने, खाना आदि की हर सुविधा है। मैंने धन्यवाद करते उनकी ऑफर यह कहकर कि मैं सरकारी रेस्ट हाउस में ठीक हूँ, मुझे कोई तलीपफ नहीं है, अस्वीकृत कर दी। मैंने ठीक किया न, निर्मल?

निर्मल, इस आयोजन के सिलसिले में बिजली विभाग का एक युवा ऑफिसर मेरे सम्पर्क में आया है। उसका जब परिचय लिया तो पता चला कि छः मास पूर्व ही उसने एसडीओ के पद पर ज्वाइन किया है। लड़का अविवाहित है, देखने में सुन्दर है, मण्डी जिले का रहने वाला है। दो बहिनें हैं, दोनों विवाहित हैं। पिता बैंक में हैड कैशियर है। लड़का मुझे तो कमला दीदी के लिये सर्वथा उपयुक्त लगता है। यद्यपि मैंने अभी इस तरह की कोई बात उससे नहीं की है। तुम एक दिन छुट्टी लेकर आ जाओ, देख लेना और बातचीत भी कर लेना। अब ऑफिस में मेरी टेबल पर फोन लग गया है, रेस्ट हाउस के फोन की एक्सटेंशन मैंने रूम में ले ली है। अब जब तुम्हें ठीक लगे, बात भी कर सकते हो।

इस बहाने हम भी मिल लेंगे, बहुत दिन हो गये तुमसे अलग रहते हुए। लगता है, युग बीत गये तुम्हें देखे हुए! तुमसे अलग रहते हुए रातें भी बहुत बड़ी लगती हैं, काटे नहीं कटतीं। जब जाग रही होती हूँ तो कभी—कभी रात के साटे में झींगुरों की आवाज़ें एक किस्म की संगीत—लहरी सी प्रतीत होती हैैं और नींद आने पर तुम्हारे साथ बिताये पलों की यादें स्वप्न बन मन बहला जाती हैं और हाथ बेड पर तुम्हें ढूँढ़ने लगते हैं, लेकिन जब कहीं कुछ पकड़ में नहीं आता तो हताशा में सीने के साथ आ लगते हैं। कभी—कभी ऐसा भी होता है कि यहाँ की ठंडी हवाएँ मन को कुरेद कर आँखों से नींद चुरा लेती हैं और सपनों में तुम्हें पाने के सुख से भी वंचित रह जाती हूँ। पढ़ा करती थी प्रेमी से दूर रहती प्रेमिका की विरह—गाथाएँ और अब स्वयं को सहन करना पड़ रहा है वियोग। चाहे मैंने अपने अकेलेपन का साथ देने के लिये कुछ क्लासिक बुक्स अपने पास रखी हुई हैं, लेकिन कहानी—उपन्यासों की भी एक सीमा है। इन्हें चौबीस घंटे तो नहीं पढ़ सकते ना? ऐसे में तुम्हारे बिन जीवन निरर्थक लगने लगता है, एक उदासी—सी सारे अस्तित्व पर छा जाती है। जैसे नमक बिन भोजन बेस्वाद लगता है, वैसे ही तुम्हारे बिन जीवन फीका—फीका सा लगता है। एक अवसर उपस्थित हुआ है और मुझे विश्वास है कि तुम भी इसे व्यर्थ नहीं जाने दोगे।......हाँ, इतना ज़रूर है कि नौकरी करते हुए कुछ कर गुज़रने का अहसास तो होता है, कुछ मानसिक तृप्ति भी मिलती है, फिर भी एक अन्य प्रकार की अतृप्ति—सी महसूस होती है जिसे आदिम भूख भी कह सकते हैं.....उसे तो दबाना ही पड़ता है। और किया भी क्या जा सकता है? जो कुछ लिखा है, हो सकता है, तुम्हें बचकाना लगे। लेकिन तुम्हीं बताओ, ऐसी बातें तुम्हारे साथ शेयर न करूँ तो किसके साथ करूँ?

आशा है, शीघ्र ही मिलन हो पायेगा!

प्यार सहित,

मिलन की आशा में,

जाह्नवी

जाह्नवी का पत्र मिलने पर निर्मल ने फोन पर पापा से बात की और उन्हें जाह्नवी द्वारा कमला के लिये लड़का देखने तथा लड़के के सम्बन्ध में जो जानकारी पत्र में लिखी गयी थी, से अवगत करवाया।

निर्मल — ‘पापा, आप सोलन हो आओ। चाहे लड़का जाह्नवी को ठीक लग रहा है, फिर भी आपका देखना बनता है।'

परमानन्द जाह्नवी की समझदारी से मन—ही—मन बहुत खुश था। उसने कहा — ‘निर्मल, बहू बहुत समझदार है, उसने लड़के के बारे में पूरी जानकारी लेकर तथा उसके व्यवहार को परखने के बाद ही तुम्हें सूचित किया है। तुम समय निकालकर सोलन जा आओ। अगर बातचीत के बाद तुम्हें ठीक लगे तो लगे हाथ लड़के के परिवार वालों से भी मिल आना। प्रभु भली करेंगे, बहू द्वारा की गयी पहल जरूर सिरे चढ़ेगी। बेटे, खर्चे की मत सोचना, जाने—आने की टैक्सी कर लेना। समय बच जायेगा।'

‘पापा, खर्चे की बात नहीं है। टैक्सी में टाइम अधिक लगेगा। मैं एक्सप्रेस ट्रेन का पता करता हूँ। अगर रिजर्वेशन मिल गयी तो शुक्रवार की रात को निकल लेता हूँ।'

निर्मल ने ट्रेन की बुकग के बाद जाह्नवी को अपने कार्यक्रम के बारे में फोन पर बताने के साथ ही बिजली विभाग के उस ऑफिसर को वीकेन्ड में सोलन में ही रहने के लिये ही कहने को कहा। पहले तो जाह्नवी सोच में पड़ गयी कि क्या कारण बताकर उस ऑफिसर को रोका जाये। वह अभी उसे अपनी प्लान के बारे में नहीं बताना चाहती थी। अन्ततः उसने उस ऑफिसर को यह कहकर कि एक सार्वजनिक शिकायत डिस्कस करनी है, शनिवार को रेस्ट हाउस में दोपहर बाद मिलने को कहा। शिमला भी सूचित कर दिया कि इस बार शनिवार—इतवार को नहीं आ पाऊँगी।

ओवरनाईट ट्रेन का सफर करने के बाद निर्मल ने दिल्ली से टैक्सी ले ली। रेस्ट हाउस पहुँचने के बाद स्नानादि किया। खाना खाया और फिर उन्होंने उस ऑफिसर को रेस्ट हाउस में बुलवा लिया। वह अपनी जगह चतित था कि ऐसी कौन—सी शिकायत हो सकती है, जिसको डिस्कस करने के लिये मैडम आईएएस ने उसे बुलाया है। जब वह रेस्ट हाउस पहुँचा तो जाह्नवी ने ड्राईंग—रूम में खुद जाने की बजाय उसे अपने रूम में ही बुलवा लिया। रूम में प्रवेष करके उसने जाह्नवी को नमस्ते की, किन्तु एक अन्य व्यक्ति को देखकर अचम्भित हुआ। खाली कुर्सी की ओर संकेत कर जाह्नवी ने कहा — ‘मि. नरोत्तम, बैठिये।'

उसके बैठने पर जाह्नवी ने निर्मल का परिचय दिया। परिचय पाते ही नरोत्तम ने खड़े होकर निर्मल को नमस्ते की और पूछा — ‘कहिये मैडम जी, कैसे याद किया था?'

अब बातचीत की डोर अपने हाथ में लेते हुए निर्मल ने बोलना आरम्भ किया — ‘जाह्नवी जी, पियून को कहकर चाय—वाय मँगवाओ.......नरोत्तम जी, आप रिलैक्स होकर बैठें। सर्वप्रथम, आपका वीकेन्ड खराब करने के लिये क्षमा करें।'

‘नहीं सर, ऐसा न कहें। हुक्म करें?'

‘दरअस्ल, आज आपको व्यक्तिगत कारण से बुलाया है। जाह्नवी जी को आप अच्छे लगे। मेरी छोटी बहिन के लिये आप उन्हें योग्य लगते हैं। मेरा इधर आने का प्रोग्राम पहले से था। मैंने सोचा कि आपको कष्ट तो होगा, फिर भी मिलने के लिये आपको रोक लिया। मेरी बहिन ने बी.ए. करने के बाद जुलाई में बी.एड. किया था और हमारे पैतृक शहर सिरसा में एक स्थानीय स्कूल में पढ़ा रही है। यदि आप इस मुलाकात को रिश्ते में बदलने को तैयार हों तो लगे हाथ आपके पैरेंट्‌स से भी मुलाकात की जा सकती है।'

नरोत्तम ने सोचा भी नहीं था कि इस तरह की सिचूयेशन भी आ सकती है। इतने बड़े दो अफसरों को क्या जवाब दे, सोच में पड़ गया। उसे असमंजस से उबारते हुए निर्मल ने कहा — ‘नरोत्तम जी, किसी तरह का दबाव मत मानना। हमने यही सोचकर बात चलाई है कि आप की आयु विवाह योग्य है। अच्छी नौकरी पर आप हैं। अगर मेरी बहिन की फोटो देखना चाहें, वह भी आपको दिखा देते हैं।'

‘सर, मैं कुछ और सोच रहा था।'

‘हाँ—हाँ, निःसंकोच होकर कहिये।'

‘सर, आप दोनों इतने बड़े अफसर हैं, लेकिन मैं एक मामूली परिवार से हूँ। मैडम जी को तो मैं बता चुका हूँ कि मेरे पिता जी बैंक में कैशियर हैं।'

‘नरोत्तम जी, आप भूल कर रहे हैं। व्यक्ति का मूल्यांकन रुपये—पैसे से नहीं होता। जाह्नवी जी से आप दो—तीन बार मिले हैं। वे आपके पॉजिटिव एटीट्‌यूड्‌ से बहुत प्रभावित हुई हैं। अगर आप सहमत हों तो आज शाम को या कल सवेरे हम आपके माता—पिता से मिल लेते हैं।.....जाह्नवी जी, इन्हें कमला की फोटो दिखा दो।'

जाह्नवी के पास कमला की अकेली की तो फोटो थी नहीं; ननद—भाभी की फोटो थी। वही उसने बैग से निकालकर नरोत्तम के आगे कर दी। नरोत्तम ने सरसरी—सी नज़र डालकर फोटो वापस कर दी। जाह्नवी ने रखने के लिये कहा भी, किन्तु उसने रखी नहीं। कमला की अकेली की फोटो होती तो और बात होती।

‘सर, मुझे घंटे—दो घंटे का समय दो, मैं पापा जी से बात करके बताता हूँ।'

‘नो प्रॉब्लम। आप बात कर लीजिये।'

नरोत्तम ने दोनों को नमस्ते की और बाहर जाने लगा। निर्मल भी उसे छोड़ने के लिये उठने लगा तो उसने कहा — ‘सर, आप बैठिये।'

नरोत्तम के जाने के बाद निर्मल ने कहा — ‘जाह्नवी, नरोत्तम की बातों से तुम्हें क्या लगता है?'

जाह्नवी ने चुहलबाज़ी करते हुए कहा — ‘नरोत्तम के सामने तो जाह्नवी जी, जाह्नवी जी कह रहे थे, अब वही जाह्नवी?'

उसी के अन्दाज़ में ही निर्मल ने कहा — ‘जाह्नवी जी कहलाना पसन्द है तो जाह्नवी जी ही कहूँगा, लेकिन फिर प्यार की तव्वको मत करना। प्यार में एक बड़ा, एक छोटा नहीं होता, दोनों समान होते हैं। प्यार में हमारा अहं मर जाता है।'

‘ओह निर्मल, कब से तुम्हारे प्यार के लिये तड़प रही हूँ और तुम यह बड़े—छोटे का भेद करने लग गये।'

‘मैंने नहीं, तूने ही शुरुआत की है।'

‘अब सॉरी कहलवाना चाहते हो?'

‘सॉरी नहीं, प्यार चाहता हूँ।......नरोत्तम वाली बात तो बीच में ही रह गयी।'

‘अच्छा लड़का है, यह तो तुम ने भी देख लिया। जिस तरह से उसने फोटो देखकर वापस कर दी, इससे भी उसके संस्कार लक्षित होते हैं।'

‘सो तो है।'

‘मुझे तो लगता है कि कमला उसे अच्छी लगी है। वैसे ना—अच्छा लगने की कोई वजह भी नहीं हो सकती। कमला पढ़ी—लिखी, सुन्दर—सलोनी युवती है।'

नरोत्तम के घरवालों से मिलने के बाद कमला और नरोत्तम के रिश्ते के पक्का करने तथा विवाह सम्बन्धी आगे की कार्यवाही की सूचना जब निर्मल ने परमानन्द को दी तो परमानन्द और सावित्री की खुशी का वारापार नहीं था। वे मन—ही—मन जाह्नवी को आशीष दे रहे थे। कमला भी भाभी के प्रति कृतज्ञता अनुभव कर रही थी और उसने इस आशय का पत्र जाह्नवी को लिखा भी। नरोत्तम के पिता और निर्मल—जाह्नवी के बीच तय हुआ कि अक्षय—तृतीया पर विवाह और उससे एक दिन पूर्व सगाई की रस्म, और यह सारा आयोजन दोनों परिवार मिलकर सोलन में ही करेंगे।

निर्मल को बड़ी मुश्किल से तीन दिन की छुट्‌टी मिली। चाहे विवाह से चार दिन पूर्व परमानन्द और सावित्री कमला को लेकर सोलन आ गये थे, बाकी रिश्तेदार विवाह से एक दिन पहले सोलन पहुँचे, फिर भी जाह्नवी ने ही सारे प्रबन्ध अपनी देखरेख में सिरे चढ़ाये। विवाह निर्विघ्न सम्प हुआ।

***