पल जो यूँ गुज़रे
लाजपत राय गर्ग
(19)
अनुराग ने निर्मल को सूचित किया कि मैं रविवार को आऊँगा। तदनुसार अनुराग शिमला से प्रातः पाँच बजे अपने ड्राईवर को लेकर चल पड़ा। रास्ते में एक—आध बार रुककर भी वे दोपहर के खाने से पूर्व सिरसा पहुँच गये। निर्मल के पापा ने यथाशक्ति अतिथि—सत्कार की प्रत्येक तैयारी की हुई थी। सावित्री और कमला ने दो दिन लगकर ऊपर से नीचे तक सारे घर की सफाई की थी। निर्मल नर्सरी से चमेली, गुलाब, रजनीगन्धा, जूही, गुलदाऊदी, चाँदनी आदि फूल—पौधों के आठ—दस गमले और एक गमला—स्टैंड ले आया जो उसने ड्योढ़ी में रखे। घर में प्रवेष करते ही इनकी उपस्थिति आगन्तुक का मनमोह लेने लगी। कमला ने रविवार प्रातः बैठक में दिवान पर नई चादर बिछाई और सोफे के सामने पड़े आयताकार टेबल पर ताजे फूलों का गुलदस्ता सजाया।
अनुराग के डोरबेल की तरफ हाथ बढ़ाने से पहले ही निर्मल ने उठकर दरवाज़ा खोल दिया क्योंकि वह परमानन्द के साथ बैठक में ही बैठा हुआ था, जिसका केवल जाली वाला दरवाज़ा बन्द था। निर्मल ने नमस्ते की। अनुराग ने सोफे पर बैठे परमानन्द के चरणस्पर्श किये। परमानन्द ने आशीर्वाद देते हुए उसे अपने पास बिठाया।
परमानन्द ने पूछा — ‘घर ढूँढ़ने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई बेटे?'
‘नहीं अंकल। निर्मल से फोन करते समय घर का रास्ता समझ लिया था। भगत सह चौक पर आकर पूछा और सीधे घर आ गये।'
‘अनुराग बेटे, तुम्हारे पापा की छोटी उम्र में डेथ का पता लगने पर बड़ा दुःख हुआ। निर्मल बता रहा था कि जाह्नवी बिटिया तो अब तक भी सदमे से पूरी तरह उबरी नहीं है। अब कैसी है वह? वैसे तुम्हारी भी उम्र अभी क्या है? तुम्हारे कंघों पर सारा बोझ आ गया है। मेरी माँ का सत्तर पार की उम्र में देहान्त हुआ, फिर भी उनकी याद भुलाये नहीं भूलती। असल में माँ—बाप का साया ईश्वर के बाद सबसे बड़ा सहारा होता है.....'
इसी बीच दुकान का नौकर छोटू पानी के गिलास रख गया। उसके पीछे ही कमला चाय—नाश्ता ले आई। आते ही उसने अनुराग को ‘भाई साहब' बुलाते हुए हाथ जोड़कर नमस्ते की। अनुराग ने खड़े होकर बड़े भाई की भाँति उसके सिर पर हाथ धरा।
निर्मल — ‘कमला, छोटू को कहकर कार में से ड्राईवर को बुला लो। उसको ऊपर कमरे में बैठा दो। वहीं उसके लिये चाय—नाश्ता भिजवा देना। लम्बी ड्राइवग करके आया है, थोड़ा आराम कर लेगा।'
चाय का कप रखते हुए अनुराग ने कहा — ‘अंकल, शहर तो आपका वैल—प्लैंड सिटी लगता है। आते—आते जितना मैं देख पाया हूँ, गलियाँ—बाज़ार बिल्कुल सीधे चौपड़ की शक्ल में एक—दूसरे को काटते चले जाते हैं। पुराने शहरों में बहुत कम ऐसे प्लैंड सिटी हैं। मेरी जानकारी के मुताबिक तो जयपुर ही एक ऐसा सिटी है, जहाँ बाज़ार और गलियाँ चौपड़ की तरह हैं।'
‘बेटे, हमारा काहे का शहर है! हम तो अपना सब—कुछ छोड़छाड़ कर उजड़ कर आये थे। परमात्मा ने बाँह पकड़ी और आज जैसे भी हैं, उसी की कृपा है।'
‘अंकल, मेरे यहाँ आने का मकसद तो आपको पता ही है। यह भी आपको पता ही होगा कि निर्मल और जाह्नवी एक—दूसरे को चाहते हैं। दोनों समझदार हैं, काफी समय उन्होंने एक साथ बिताया है। एक—दूसरे को जाना—परखा है। पापा नहीं रहे तो जाह्नवी के लिये पापा—मम्मी का फर्ज़ तो अब मुझे और मेरी वाइफ को ही निभाना है। उसकी खुशी में ही हमारी खुशी है। मैं आपका आशीर्वाद लेने आया हूँ।'
‘निर्मल, तेरी माँ को बुला ले।.....अनुराग बेटे, आशीर्वाद तो हमारा तुम्हारे साथ ही है, किन्तु मैं एक बात कहना चाहता हूँ, इसे अन्यथा न लेना, कि आपके परिवार के रुतबे के आगे हम कुछ भी नहीं हैं। कहीं कल को जाह्नवी बिटिया को हमारे माहौल में खुद को एडजस्ट करने में दिक्कत न आये, इस पर विचार कर लो......'
सावित्री को कमरे में प्रवेष करते देख अनुराग अपनी जगह से उठा और ‘आंटी जी नमस्ते' कहकर उसके चरणस्पर्श करने के लिये झुका।
सावित्री ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा — ‘सदा खुश रहो बेटे। बैठो।'
परमानन्द — ‘सावित्री, अनुराग निर्मल और जाह्नवी के रिश्ते की बात करने आया है। मैं कह रहा था कि इनके परिवार के आगे हमारी कुछ भी हैसियत नहीं है। विवाह जन्म—भर का रिश्ता होता है। कल को कहीं जाह्नवी को तालमेल बिठाने में दिक्कत न आये।'
अनुराग — ‘अंकल, आप यह क्या बात कर रहे हैं? हैसियत केवल रुपये—पैसे से ही नहीं आंकी जाती। व्यक्ति अथवा परिवार का मूल्यांकन संस्कारों के आधार पर किया जाये तो कहीं अधिक श्रेयस्कर होता है। और आप लोगों के सद्व्यवहार तथा कर्मठता का प्रत्यक्ष प्रमाण मेरे सामने है। रही बात जाह्नवी की, तो अंकल, निर्मल ने भी आपको उसके बारे में बताया होगा, मेरी छोटी बहिन है, लेकिन हमारे लिये बच्ची ही है। निर्मल ने जो कुछ उसे बताया था, वह सब उसने हमें बता दिया था। कुछ भी छुपाया नहीं। मेरी वाइफ ने अपने ढंग से उसके दिल की थाह ले ली है और वह इसी नतीजे पर पहुँची है कि जाह्नवी के लिये निर्मल से अच्छा जीवन—साथी नहीं मिल सकता।'
‘क्यों सावित्री, क्या कहती हो?'
‘अनुराग समझदार है। बड़ा अफसर है। जैसा निर्मल ने बताया है कि जाह्नवी की भाभी भी बहुत सुलझी हुई औरत है। इन्होंने सोच—समझकर ही फैसला लिया होगा। बच्चों की खुशी में ही हमारी खुशी है।'
‘अंकल जी, आंटी जी, बहुत—बहुत बधई।'
‘निर्मल, कमला को कह, प्लेट में मिठाई रख कर लायेगी।'
‘अनुराग बेटे, मैं एक बात कहना चाहता हूँ।'
‘हाँ अंकल जी, कहिये, क्या कहना चाहते हैं?'
‘बेटे, हम ना भी चाहते तो भी यह सम्बन्ध तो जुड़ना ही था, क्योंकि ऊपरवाले की मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। मेरी तो इतनी ही गुज़ारिश है कि इस रिश्ते को इनका रिज़ल्ट आने तक हम अपने दोनों परिवारों तक ही सीमित रखें और औपचारिक ज़ामा रिज़ल्ट आने के बाद ही पहनायें।'
‘आपकी सोच बिल्कुल सही है।'
‘सावित्री, जाओ, खाने का प्रबन्ध करो।... निर्मल, तू अनुराग को अपनी दुकान दिखा ला।'
‘ठीक है पापा।'
‘अंकल जी, खाना खाकर मैं जल्दी वापस जाना चाहूँगा।'
‘ऐसी भी क्या जल्दी है? रात को तो हमारे पास रुको।'
‘अंकल जी, कल मेरी एक मीटग है। इसलिये जाना जरूरी है।'
‘फिर तो मैं कहूँगा कि दुकान नेक्सट टाइम देख लेना।.... निर्मल, कमला को कहकर खाना लगवाओ। जब जाना ही है तो अधिक देरी करना अच्छा नहीं, लम्बा सफर है।'
खाना खाने के उपरान्त अनुराग ने अपनी पॉकेट में से दो लिफाफे निकाले। एक निर्मल को दिया, दूसरा कमला को।
निर्मल — ‘यह क्या भइया?'
‘निर्मल, आज से तुम महज़ जाह्नवी के मित्र नहीं रहे, हमारे परिवार के माननीय सदस्य बन गये हो। इस खुशी में यह तुच्छ भेंट है।'
कमला — ‘भाई साहब, भाभी जी को मेरी नमस्ते कहना।'
अनुराग ने हँसते हुए पूछा — ‘जाह्नवी की भाभी या तुम्हारी भाभी?'
‘ओह्ह, दोनों को।'
‘चल, मेरे साथ शिमला चल, दोनों को मिल लेना।'
‘नहीं भाई साहब, अभी तो मेरी वार्षिक परीक्षा होने वाली है। लेकिन आप जाह्नवी भाभी को कहना कि अपनी फोटो जरूर भेज दें।'
परमानन्द — ‘निर्मल, तू भागकर मिठाई का एक डिब्बा ले आ और कमला, तेरी माँ को बुला।'
सावित्री ने जैसे ही बैठक में प्रवेष किया, परमानन्द ने उससे कहा — ‘मिठाई लाने के लिये तो मैंने निर्मल को भेज दिया है। जाह्नवी बिटिया के लिये भी कोई शगुन दो।'
सावित्री ने अपने गले से सोने की ‘लड़ी' उतारते हुए कहा — ‘यह मेरी सास ने मुझे पहनाई थी। मेरी होने वाली बहू मेरे सामने तो नहीं है, लेकिन अनुराग बेटे, यह ‘लड़ी' जाह्नवी को हमारी ओर से पहना देना।'
‘अरे वाह सावित्री, तूने तो बिना पूछे, मेरे मन की कर दी।.... अनुराग, यह ‘लड़ी' हमारे परिवार की विरासत है। मेरी माँ को भी मेरी दादी ने पहनाई थी।'
अनुराग ने ‘लड़ी' को माथे से लगाते हुए कहा — ‘अहोभाग्य हमारी जाह्नवी के कि उसे इतनी पीढ़ियों का प्यार और आशीर्वाद मिल रहा है।... अब आज्ञा दीजिये, आप सभी से मिलकर मैं तो धन्य हो गया।'
सभी उसे कार तक छोड़ने आये।
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