Pal jo yoon gujre - 17 in Hindi Moral Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | पल जो यूँ गुज़रे - 17

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पल जो यूँ गुज़रे - 17

पल जो यूँ गुज़रे

लाजपत राय गर्ग

(17)

दोनों के इन्टरव्यू आशानुरूप ही नहीं, अपेक्षा से कहीं बेहतर सम्प हुए। दोनों अति प्रसन्न थे। शाम को विकास के घर जाना था। यूपीएससी से लौटते हुए जाह्नवी ने कहा — ‘निर्मल, विकास भाई साहब की पाँच—छः साल की बेटी है और दो—एक साल का बेटा है। बच्चों के लिये कुछ खरीद लें, बच्चों को अच्छा लगेगा।'

‘बच्चों के लिये जो तुम्हें अच्छा लगे, ले लो। एक डिब्बा मिठाई का भी ले चलते हैं। बंगाली मार्किट चलते हैं। वहाँ कुछ खा—पी भी लेंगे और जो लेना है, ले भी लेंगे। विकास जी के घर तो शाम को ही चलना होगा?'

‘हाँ, भाई साहब छः बजे के लगभग घर पहुँचेंगे। अगर होटल से साढ़े पाँच बजे भी निकलेंगे तो भी उनके बराबर ही पहुँच जायेंगे।'

‘फिर तो बंगाली मार्किट से फ्री होने के बाद दो—एक घंटे होटल में आराम करने को भी मिल जायेंगे।'

होटल पहुँचकर निर्मल बोला — ‘जाह्नवी, आज कई महीनों के बाद मानसिक तौर पर मुक्ति का अहसास हो रहा है। खुद को बहुत हल्का महसूस कर रहा हूँ। ऐसा लगता है कि मैंने अपना कर्त्तव्य पूरी निश्ठा व लगन से निभा दिया है, फल कैसा होगा, कोई चता नहीं। अब सोने को मन करता है, तुम्हारा क्या विचार है?'

‘तुम आराम से सोओ। मैं अपने कमरे में जाती हूँ।'

‘नींद आती हो तो यहाँ भी सो सकती हो।'

‘मुझे नींद नहीं आ रही। अगर तुम स्वयं नहीं उठे तो मैं पाँच बजे जगा दूँगी,' कहने के साथ ही वह अपने कमरे में चली गयी।

जब वे विकास के घर से वापस आये तो ग्यारह बजने वाले थे। निर्मल बहुत प्रभावित था विकास और श्रीमती विकास के सद्‌व्यवहार से। विकास की धर्मपत्नी ने उनका बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया था तथा बड़ी प्रीत से खाना खिलाया था। जब जाह्नवी ने बच्चों के लिये लाई हुई फ्रॉक, खिलौने तथा मिठाई का डिब्बा दिया तो उन्होंने जाह्नवी को ये सब औपचारिकताएँ करने के लिये टोका भी तथा धन्यवाद भी दिया। उन्होंने एक रात अपने साथ रुकने के लिये बहुत आग्रह किया। चलते समय उन्होंने न केवल जाह्नवी को शगुन दिया, बल्कि निर्मल को भी उसके मित्र होने के नाते शगुन देना नहीं भूले। निर्मल और जाह्नवी को सुबह आठ बजे वाली बस पकड़नी थी, इसलिये सोने से पहले पैकग करनी जरूरी थी। सामानादि की पैकग समाप्त करने के पश्चात्‌ जब निर्मल अपने लिये गद्दा नीचे लगाने लगा तो जाह्नवी ने उसे रोकते हुए कहा — ‘आज होटल में आखिरी रात है। तुम नीचे सोते हो तो कोई बात नहीं हो पाती। आज मुझे बहुत—सी बातें करनी हैं। गद्दा नीचे लगाने की आवश्यकता नहीं, बेड पर ही सो जाओ।'

निर्मल ने उसे छेड़ने के अन्दाज़ में कहा — ‘आज फिर नींद के आलम में आगरा जैसी घटना घट गयी तो....'

‘आज नींद के आलम में नहीं, पूरे होशो—हवास में हम आलगनबद्ध होकर सोयेंगे। यह भी मेरा वादा है कि मर्यादा भंग नहीं होगी।'

‘इतनी कड़ी परीक्षा तो यूपीएससी ने भी नहीं ली, जितनी कड़ी परीक्षा की बात तुम कर रही हो। यूपीएससी की परीक्षा में पास होने के प्रति तो मैं आश्वस्त हूँ, किन्तु....'

‘उस परीक्षा में पास होने के प्रति तुम आश्वस्त हो और इस परीक्षा में तुम पास होगे, इसका मुझे यकीन है,' जाह्नवी ने मुस्कराते हुए कहा।

जब मुस्कराहट विश्वास से सराबोर होती है तो व्यक्ति की आँखों में एक अलग किस्म की चमक उतर आती है। इसी चमक को लक्ष्य कर निर्मल ने कहा— ‘देख रहा हूँ कि अग्निपरीक्षा लिये बिना तुम मानोगी नहीं।'

अगले दिन बस जब चण्डीगढ़ बस—स्टैंड में पहुँची और निर्मल बस से उतर गया तो पीछे—पीछे जाह्नवी भी नीचे उतर आई। बस ने दस मिनट रुकना था। दोनों मौन थे। एक—दूसरे पर नज़रें टिकी थीं। निर्मल ने लक्ष्य किया कि जाह्नवी की भावुकता उसके चेहरे से झलक रही थी। उसकी आँखें नम होने को थीं। लगता था, जैसे उसे बहुत जब्त करना पड़ रहा है कि आँसू बाहर न आयें। कंडक्टर ने सीटी बजाई। निर्मल ने जाह्नवी का हाथ दबाकर ‘बाय' कहा। प्रत्युत्तर में जाह्नवी ने कहा — ‘पत्र लिखते रहना।'

***