पल जो यूँ गुज़रे
लाजपत राय गर्ग
(14)
कुछ वर्ष पूर्व तक सर्दी का मौसम होता था तो सर्दी ही होती थी। तापमान में दो—चार डिग्री का उतार—चढ़ाव तो सामान्य बात होती थी, जिसका कारण होता था, दूर—पास के क्षेत्रों में बरसात का हो जाना अथवा उत्तर दिशा की ठंडी हवाओं का रुख परिवर्तन। किन्तु एक—दो वर्षों से सर्दी का मौसम निरन्तर सिकुड़ता जा रहा था। जनवरी के तीसरे सप्ताह की बात है। एक दिन प्रातः निर्मल उठा तो उसे लगा, यह अचानक इतनी गर्मी कैसे? कमरे में जैसे दम घुटता—सा लगा। उसने उठकर बालकनी का दरवाज़ा खोला तो ताज़ी हवा से राहत अनुभव हुई। बाहर निकलकर बालकनी में खड़ा हुआ तो और सुकून मिला। ठंड तो जैसे नदारद थी। कमरे के बाहर के दरवाज़े पर दस्तक के साथ उसका नाम पुकारा गया। आवाज़ मनोज की थी। निर्मल स्वगत बुड़बुड़ाया — ‘यह आज सुबह—सुबह कैसे आ ध्मका', अनमने भाव से दरवाज़ा खोला — ‘निर्मल, आज का अखबार देखा?'
‘नहीं। मैं तो अभी उठा हूँ। मेरा अखबार तो अभी आया नहीं। क्यों क्या बात है?'
अखबार निर्मल की ओर करते हुए मनोज ने कहा ‘अरे, ये देख, रिज़ल्ट आ गया।'
‘तेरा क्या रहा?'
‘एज एक्सपेक्टिड।'
मनोज के जवाब का अर्थ समझते हुए भी निर्मल ने पूछा — ‘मीन्ज़?'
‘हाथ—पैर मारे, पर काम ना आये। लेकिन कोई गम नहीं। तू अपना नम्बर देख ताकि मुँह मीठा करने का जुगाड़ बने।'
निर्मल ने अखबार खोला। नज़र दौडाई। रोल नम्बर क्रमांक में छपे हुए थे। पहले जाह्नवी के रोल न. पर नज़र पर पड़ी। देखते ही उसके चेहरे पर भाव—परिवर्तन हुआ। फिर अपना भी नम्बर दिखाई दिया तो खुशी से उछल पड़ा।
‘धन्यवाद मनोज भाई। आज तो तूने खुश कर दिया। तेरी मिठाई पक्की। लेकिन तेरे न पास होने का अफसोस है।'
‘अरे, अफसोस छोड़। मेरा तो मुझको पता ही था। तू अपनी शिमला वाली का बता, उसका भी रिज़ल्ट देख लिया कि नहीं?'
आज मनोज का जाह्नवी के बारे में इस तरह पूछना निर्मल को बिल्कुल नहीं अखरा, बल्कि उत्साह के साथ उत्तर दिया — ‘वह भी क्वालीपफाई कर गई है।'
‘फिर तो भाई, डबल डबल बधाई। आज पहले फिल्म दिखा, फिर डिनर करवा, तब मज़ा आयेगा।'
‘जैसा तू चाहता है, वैसा ही होगा। आज सुबह—सुबह तूने खुश कर दिया यार। तू बैठ, मैं बॉथरूम हो आऊँ, फिर चाय पीते हैं।'
निर्मल ने आकर चाय बनाई और अलमारी में से दो पिियाँ निकालकर प्लेट में रखीं और मनोज की ओर बढ़ाते हुए कहा — ‘ले भाई, पहले मुँह मीठा कर।'
मनोज ने पिी को दाँतों से काटा, क्योंकि सर्दी में घी जमने के कारण पिी काफी सख्त थी।
‘अरे भई, पिी तो बड़ी स्वादिष्ट है! कहाँ से लाया?'
‘माँ ने बना कर दी थीं।'
‘तो भई, मेरे लिये एक और निकाल।'
चाय पीने तथा मनोज को विदा करने के पश्चात् निर्मल सोचने लगा, जाह्नवी से किस तरह इस समाचार की खुशी साझा करूँ? मन में उमंग थी कि कुछ ऐसा साधन बने कि जाह्नवी से तुरन्त बात हो जाये। लेकिन ऐसा सम्भव नहीं था, फोन को छोड़कर ऐसी अन्य कोई सुविधा नहीं थी बात करने की। फोन पर बात पोस्ट ऑफिस में जाकर ही हो सकती थी। अभी उसे डिपार्टमेंट जाने के लिये तैयार भी होना था। और अगर वह तैयार होने के बाद फोन करने जाता है तो पता नहीं कितनी देर लग जाये फोन मिलने में। दूसरे, पहला पीरियड ‘मिस' भी नहीं कर सकता था। आज ऑबराय सर ने एक नये प्रोजेक्ट पर गाईडलाइन्स देनी हैं जो फाइनल एग्ज़ाम के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। यह सब सोचकर उसने जाह्नवी को और साथ ही घर पर फोन करने का विचार दोपहर तक के लिये स्थगित कर दिया।
मशोबरा में समाचार पत्र तो दोपहर तक ही पहुँचता था। जब अनुराग ऑफिस पहुँचा तो रूटीन के अनुसार उसने टेबल पर रखी फाइलें देखनी शुरू कीं। अभी कुछ फाइलें ही निपटा पाया था कि चपड़ासी ने आकर कहा कि उसे बड़े साहब ने याद किया है। जैसे ही उसने बॉस के कमरे में प्रवेष किया और बॉस को गुड मॉनग की तो बॉस ने पूछा — ‘अनुराग, हाऊ इज जाह्नवी'स रिज़ल्ट?'
‘रिज़ल्ट आ गया सर?'
‘यस, हिअर इट इज। सी फॉर योरसेल्फ। आई डिडअंट हैव हर रोल नम्बर।'
अनुराग ने समाचार पत्र पकड़ा और देखा। उसका चेहरा प्रसन्नता से चमक उठा।
‘सर, शी हैज क्वालीफाइड।'
‘कांग्रेचुलेशन्ज़। टेल हर, एण्ड कॉन्वे माय कांग्रेचुलेशन्ज़ टू हर आलसो।'
अनुराग ने वहीं से घर पर फोन किया। जाह्नवी ने अनुराग को निर्मल का नम्बर बताते हुए उसका रिज़ल्ट भी देखने के लिये कहा। अनुराग ने समाचारपत्र को दुबारा देखा और निर्मल के रिज़ल्ट की भी पुष्टि कर दी। जाह्नवी को जितनी खुशी अपने पास होनेे की हुई, उससे कहीं अधिक निर्मल के पास होने के समाचार को सुनकर हुई। वह तो खुशी के मारे जैसे पागल ही हो गयी। वह ‘भाभी जी, भाभी जी' चिल्लाती हुई श्रद्धा के गले से जा लिपटी।
‘क्या बात हो गयी मेरी लाडो, जो इतनी खुश हो?'
‘भाभी जी, भइया का अभी—अभी फोन आया था। हम दोनों रिटन क्वालीपफाई कर गये हैं।'
श्रद्धा ने उसे चूमते और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बधाई दी और पूछा — ‘निर्मल का फोन नहीं आया?'
‘नहीं। पता नहीं, उसे पता भी लगा होगा या नहीं। भइया को भी तो उनके बॉस ने बताया है।.....निर्मल तो अभी डिपार्टमेंट में होगा। उससे फोन पर भी बात नहीं हो सकती। भाभी जी, भइया को निर्मल को टेलिग्राम से सूचित करने के लिये कह दूँ?'
‘हाँ, क्यों नहीं।'
निर्मल डिपार्टमेंट से हॉस्टल आने की बजाय सीधा पोस्ट ऑफिस चला गया। सार्वजनिक टेलिफोन केन्द्र पर जाह्नवी और घर के फोन नम्बर दिये। कॉल बुक करवाने के थोड़ी ही देर में पहले घर का नम्बर मिल गया। फोन माँ ने उठाया। निर्मल ने अपने उत्तीर्ण होने की सूचना दी। उधर से आशीर्वाद मिला। कुछ ही मिनटों में दूसरी कॉल भी मिल गयी।
निर्मल — ‘हैलो जाह्नवी, बहुत—बहुत बधाई।'
‘निर्मल, तुम्हें भी बहुत—बहुत बधाई। भइया ऑफिस गये तो उनके बॉस ने रिज़ल्ट के बारे में बताया। भइया ने फोन करके मुझे बताया। मैंने सोचा कि तुझे शायद पता न लगा हो, इसलिये भइया को कहकर टेलिग्राम भी दिया था।'
‘रिज़ल्ट का पता तो मुझे सुबह ही लग गया था। आज पहला पीरियड मिस करना मुश्किल था, इसलिये सोचा कि छुट्टी के बाद ही तुमसे बात करूँगा। डिपार्टमेंट से सीधा फोन करने ही आ गया।...... अब आगे का क्या प्रोग्राम रहेगा, पत्र लिखना। भाई साहब और भाभी जी को मेरी ओर से बधाई भी देना और नमस्ते भी कहना। मीनू को प्यार देना। ओ.के., बॉय।'
हॉस्टल आकर ऑफिस से पता किया तो टेलिग्राम आई हुई थी। टेलिग्राम का लिफाफा खोला, लिखा था — कांग्रेचुलेशन्ज़। यू एण्ड जाह्नवी बोथ हैव क्वालीपफाइड रिटन — अनुराग।
रिज़ल्ट आने के चौथे दिन जब निर्मल क्लास लगाकर हॉस्टल पहुँचा तो उसे जाह्नवी का पत्र मिला। जैसे ही उसने पत्र खोला, उसे जाह्नवी के स्नेहसिक्त चेहरे की रेखाएँ अक्षरों में से उभरती महसूस हुर्इं।
प्रिय निर्मल,
मधुर स्मरण!
वैसे तो हम बधाई का आदान—प्रदान फोन पर कर चुके हैं, फिर भी कुछ लिखूँ, उससे पहले मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें। मैं मानती हूँ कि तुम में आत्मविश्वास की जो थोड़ी—बहुत कमी थी या यूँ कहिये कि रिज़ल्ट को लेकर तुम्हारे मन में जो हल्का—सा डर समाया रहता था, वह अब दूर हो गया होगा। कितना अच्छा लगता यदि रिज़ल्ट के दिन हम साथ—साथ होते! वैसे तो हर पल, हर क्षण तुम्हारा ही ख्याल रहता है, लेकिन जिस दिन रिज़ल्ट आया था, उस दिन रात के समय बिस्तर पर लेटी—लेटी बहुत देर तक खुली आँखों से तुम्हें लेकर भविष्य के सपने देखती रही।
भइया हमारे रिज़ल्ट से इतने उत्साहित हैं कि उन्होंने दिल्ली में रहने वाले अपने एक मित्र को कहकर मॉक—इन्टरव्यू के लिये हमारे नाम से दो सीटें बुक करवा ली हैं तथा होटल में दो कमरे भी बुक करवा लिये हैं। मैं तीन फरवरी को शिमला से सुबह चलूँगी, क्योंकि चार से कोचग आरम्भ होनी है। मैं तो चाहती हूँ कि अगर तुम्हें किसी तरह की दिक्कत न हो तो तुम भी मेरे साथ ही चले चलो। मेरी बस ग्यारह बजे के लगभग चण्डीगढ़ पहुँचेगी।
इन्टरव्यू के लिये कॉल अल्फाबेटिकल ऑर्डर में आती है। मेरे और तुम्हारे इन्टरव्यू की तारीखों में एक—दो दिन से अधिक का अन्तर नहीं होना चाहिये। अपने हॉस्टल के टेलिफोन का नम्बर मुझे बताना। हम लगातार एक—दूसरे के सम्पर्क में रहेंगे तो बेहतर होगा। तुम चार फरवरी से पन्द्रह—बीस दिन की छुट्टी एप्लाई कर दो।
अंकल जी और आंटी जी को तो तुमने जरूर बता दिया होगा! भाभी जी ने भी तुम्हें बधाई देने को कहा है।
मिलन की प्रतीक्षा में,
तुम्हारी,
जाह्नवी
निर्मल सोचने लगा कि जाह्नवी के भाई और भाभी कितने संवेदनशील तथा विचारशील हैं। दिल्ली जाकर कोचग में प्रवेष लेने आदि में जो एक—आध दिन खराब होता, वह भी बचा दिया। अब सीधे जाकर इन्टरव्यू की तैयारी करनी है। एक ही होटल में दो कमरे। इससे एक—दूसरे का सामीप्य तो मिलेगा ही, स्वयं इन्टरव्यू की मॉक प्रेक्टिस करने में भी मदद मिलेगी। उसने मन में निर्णय लिया कि अब पत्राचार की बजाय एक—आध बार टेलिफोन पर ही बातचीत करके एक—दूसरे के विचार जानना बेहतर रहेगा। अतः उसने शाम को जाह्नवी से बात करने की मन में सोची।
दूसरे दिन उसे कमला का पत्र मिला। लिफाफा खोला तो उसमें दो पत्र थे — एक कमला का, दूसरा सुनन्दा का। कमला ने लिखा थाः
मेरे प्यारे भइया,
नमस्ते।
आपके रिज़ल्ट का समाचार आने के बाद से घर में उत्सव जैसी खुशी का माहौल बना हुआ है। कोई—न—कोई बधाई देने वाला आता ही रहता है। जुगल चाचा और वीणा चाची भी बधाई देने के लिये आये थे। बड़े खुश थे। माँ उसी दिन हनुमान जी के मन्दिर में प्रसाद चढ़ा आई थी। नदी मन लगाकर पढ़ रहा है। मेरी सहेलियों ने पार्टी माँगी, लेकिन मैंने कह दिया कि पार्टी फाइनल रिज़ल्ट आने के बाद दूँगी। फिर भी सबका मुँह मीठा तो करवाना ही पड़ा। अब तो बस उस दिन की प्रतीक्षा है, जब आप आईएएस ऑफिसर बनकर परिवार का नाम रोशन करोगे। मैं भी सबको गर्व के साथ कह सकूँगी कि मेरा भाई इतना बड़ा ऑफिसर है।
भइया, आपने मेरी एक छोटी—सी माँग अभी तक पूरी नहीं की। अब तो आप और भाभी पन्द्रह—बीस दिन दिल्ली में इकट्ठे रहोगे, प्लीज़ वहीं से उनकी एक फोटो जरूर भेजना। घर कब आओगे? शायद इन्टरव्यू के बाद ही आ पाओगे!
माँ और पापा ने आशीर्वाद दिया है और तुम्हारी छोटी बहिन भी तुम्हारी सफलता के लिये दुआ करती है।
तुम्हारी बहिन,
कमला
इसके बाद निर्मल ने दूसरा पत्र खोला।
मेरे प्यारे देवर जी,
नमस्ते।
सबसे पहले देवर जी, आपको बहुत—बहुत बधाई। ‘इन्होंने' मुझे बताया था कि अभी इन्टरव्यू बाकी है। कोई बात नहीं, वो भी आप पार कर लोगे। मैंने जब ‘इनको' कहा कि बधाई का पत्र लिख देना तो कहने लगे, तू ही लिख दे। अब मैं इतनी पढ़ी—लिखी तो हूँ नहीं। जो मन में है, टूटे—फूटे शब्दों में लिख रही हूँ।
लो, कमला दीदी भी आ गयी। एक बार उनसे मिल लूँ।.....दीदी, आपकी सफलता पर मुँह मीठा करवाने आई हैं। दीदी की लाई मिठाई तो ठीक है, मुझे तो तब पूरी खुशी होगी जब आप खुद अपने हाथों मेरा मुँह मीठा कराओगे। दीदी से मैंने जानबूझ कर नहीं पूछा, पता नहीं उनको पता है भी या नहीं, आपकी फ्रेंड का रिज़ल्ट कैसा रहा? मुझे यकीन है, जब आपकी फ्रेंड है तो वो भी जरूर पास हो गयी होगी। मेरे पास तो आपका पता है नहीं, इसलिये यह पत्र मैं दीदी को ही दे रही हूँ, वे ही इसे डाक में डाल देंगी।
माँ जी भी आपको आशीर्वाद दे रही हैं। मेरी और ‘इनकी' ओर से नमस्ते।
आपकी भाभी,
सुनन्दा
निर्मल को सुनन्दा द्वारा लिखे पत्र में भाभी—देवर के प्यार की महक ने मोहित कर दिया। सुनन्दा ने स्वयं कम पढ़ी—लिखी होने का उल्लेख किया था। निर्मल सोचने लगा कि रिश्तों की महक बिना भारी—भरकम शब्दों के अधिक अच्छी तरह सम्प्रेषित की जा सकती है। जितेन्द्र जैसे दोस्त को सुनन्दा भाभी के रूप में एक सही जीवन—साथी मिलने पर उसके मन को अत्यन्त प्रसन्नता थी। उसने दोनों पत्र तह किये, लिफाफे में डाले और अलमारी में रख दिये और दोनों पत्रों के उत्तर लिखने बैठ गया। पत्र लिखने के बाद शाम तक का इन्तज़ार न करके वह पत्र डालने तथा जाह्नवी को पफोन करने के लिये चल दिया।
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