Khatti Mithi yadon ka mela - 21 in Hindi Love Stories by Rashmi Ravija books and stories PDF | खट्टी मीठी यादों का मेला - 21

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खट्टी मीठी यादों का मेला - 21

खट्टी मीठी यादों का मेला

भाग - 21

(रात में बेटी के फोन की आवाज़ से जग कर वे, अपना पुराना जीवन याद करने लगती हैं. उनकी चार बेटियों और दो बेटों से घर गुलज़ार रहता. पति गाँव के स्कूल में शिक्षक थे. बड़ी दो बेटियों की शादी हो गयी थी. बड़ा बेटा इंजिनियर था, उसने प्रेम विवाह किया. छोटा बेटा डॉक्टर था, एक अमीर लड़की से शादी कर वह भी, उसके पिता के पैसों से अब विदेश चला गया. तीसरी बेटी ने विरोध करने पर विजातीय लडके से शादी कर घर छोड़ दिया. सबसे छोटी बेटी ने एम. बी. ए. में एडमिशन लिया )

मीरा के जाने के बाद तो अब घर काट खाने को दौड़ता. वे भी पति के पीछे पीछे बागवानी में रूचि लेने लगीं. सुबह घंटा भर रामायण पढ़तीं पर फिर भी समय काटे नहीं कटता. पहले सारा दिन बच्चों को घर फैलाने के लिए डांटा करती थीं. अब एक बार सहेज देतीं तो हफ़्तों चीज़ें वैसी ही संभली हुई रहतीं. बस धूल की परत जमा होती रहती, उसे झाड़ते हुए आँखें फिर एक बार लबालब हो जातीं.

बस फोन की घंटी का इंतज़ार होता. रोज़ किसी ना किसी बच्चे का फोन आ ही जाता. फिर भी नमिता की आवाज़ सुनने को कान तरसते रहते..... पर उसने भी पिता की डांट को दिल पे ले लिया था. भूले से भी कभी कोशिश नहीं करती, या फिर डरती थी कि कहीं फिर से पिता ही ना फोन उठा लें... जो भी हो पर इन पिता-पुत्री के अहम् के पाट के बीच एक माँ का दिल पीसा जा रहा था.

इस बार फोन की घंटी बजी और दूसरी तरफ... नन्ही 'रिनी' थी. उसका जन्मदिन आ रहा था और उसने जिद की कि इस बार दादा-दादी को उसके जन्मदिन पर आना ही है. उनका भी मन मीरा से मिलने को तरस रहा था. पति भी मान गए. पहली बार दोनों लोगो ने अकेले जाकर शहर से खरीदारी की. उन्हें तो रिक्शे पर भी साथ बैठने में लाज आ रही थी. पति ने भी दूसरी तरफ मुहँ घुमा रखा था. ढूंढ ढूंढ कर उन्होंने बच्चों के लिए शहरी डिजाइन के कपड़े ख़रीदे. डर था, ऐसा ना हो, बहू को पसंद ना आए तो वो पहनाये ही नहीं. ढेर सारे खिलौने लिए दोनों के लिए और जन्मदिन से एक दिन पहले बेटे के यहाँ पहुँच गए.

इतने लम्बे सफ़र की आदत नहीं थी. थक सी गयी थीं वे. पूरा दिन तो लेटे ही बीता. रात को भी पूरी तरह आराम करने के बाद, तबियत थोड़ी संभली लगी. आदतवश अल्ल सबेरे ही नींद खुल गयी. रसोई में बत्ती जलती देख और खटर-पटर होते देख सोचा, 'अरे बहू इतनी जल्दी जाग गयी है, शहर हो या गाँव औरतों को सुबह की नींद नसीब नहीं. देखूं जबतक हूँ, थोड़ा मदद कर दूँ" यह सोच रसोई में पैर रखा तो देखा, बहू की जगह मीरा काम में लगी हुई है. बिजली की सी फुर्ती सी वह कभी एक तरफ सब्जी काट रही थी तो कभी, मिक्सी में घर्रर करके कुछ पीस रही थी तो कभी गैस पर चढ़ी कढाई में करछुल घुमाती.

उन्हें देखते ही बोली, "अरे माँ... जाग गयी.... चाय पियोगी.. ?"

"ना बेटा... पर तू काम कर रही है... ला मैं कुछ मदद कर दूँ... " पर वे करतीं क्या? उन्हें तो खड़े होकर खाना पकाना आता ही नहीं. ना वे टी. वी. वालों की तरह फुर्ती से चाकू से सब्जी काट सकती हैं. बीच में चुपचाप खड़ी हो गयीं. मीरा कभी फ्रिज खोलती, कभी दौड़कर किसी डब्बे में से कुछ निकालती, बार बार उनसे टकरा जाती.

उन्होंने ही बोला... "मैं एक तरफ खड़ी हो जाती हूँ.... तुझे बार -बार टक्कर लग रही है.. "

"कोई बात नहीं माँ... "और मीरा ने एक स्टूल लाकर रख दिया... "लो बैठो इस पर"

"पर बेटा तूने कब सीखा ये सब बनाना.... और क्या तू ही रोज बनाती है, खाना... बहू नहीं आती, मदद को... "

"इसमें सीखना क्या है माँ... आ जाता है लड़कियों को सबकुछ... भाभी करती हैं.... वो कल देर रात कोई फिल्म देखी होगी ना.. इसलिए नींद नहीं खुली होगी.... एक मिनट जरा मैं बच्चों को उठा दूँ.. वरना लेट हो जायेंगे स्कूल को.. "

आँखें मलती 'रिनी' को उसने गोद में लाकर उनके पास खड़ा कर दिया और प्यार से बोली.. "आज रिनी क्या ले जाएगी टिफिन में... बोलो क्या रख दूँ"

यानि टिफिन भी मीरा ही तैयार करती है. उसके बाद वे चुपचाप देखती रहीं. बच्चों का टिफिन रखा, उन्हें तैयार किया. इस बीच राज़ एक बार गुस्से में आया भी... 'मेरा कैलेण्डर नहीं. मिल रहा... मुझे पनिशमेंट मिलेगी... " उसकी किताब खोज कर दी. रिनी के जूते के फीते बांधे... बाल ठीक किए, उन्हें दूध में डब्बे से कुछ डालकर खिलाया और दोनों बच्चे बिलकुल तैयार हो बहू के कमरे में भागते हुए गए.. बहू की उनींदी आवाज़ आई... "बाय बेटा... " और अपनी ममी के गालों पर पप्पी दे.. दोनों बच्चे गेट की तरफ भाग गए. प्रकाश उठ कर उनके पीछे गया.

वे स्कूल बस में चढ़ गए तो बाहर से अखबार लेकर आते हुए, प्रकाश ने आवाज़ लगाई.. "मीरा चाय देना, जरा"

वे हैरान हो बस देखती रही, मीरा ने कभी रसोई में काम नहीं किया था, पता नहीं इतना कुछ इतनी जल्दी कैसे सीख लिया. पसीने से नहाती मीरा बार बार एक हाथ से चेहरे से बाल हटाती जाती और पराठे बेलती जाती.

"अब ये पराठे किसके लिए बना रही है.. ??. "

"खुद के लिए और भैया के लिए, माँ.... मुझे भी तो लंच ले जाना है और अपने लिए बना लूँ, भैया के लिए नहीं तो कैसा लगेगा... "

रसोई का काम ख़त्म कर मीरा तैयार होने चली गयी. अपना लंच पैक किया, और चाय चढ़ा दी गैस पर... फ्रिज से एक पीस ब्रेड निकाला और एक टुकड़ा मुहँ में डाला और चाय छानने लगी. उन्हें लगा, अब शायद इत्मीनान से चाय पी सकेगी. पर नहीं उसने तो सिर्फ एक पीस ब्रेड खाया और चाय डाइनिंग टेबल पर रख आवाज़ दी.. "भाभी चाय रखी है... मैं जा रही हूँ... बाय"

उनींदी सी बहू जल्दी से बाहर निकल कर आई.... "आज जल्दी आ रही हो ना... और वो लिस्ट रख ली.. जो समान लाने को दी थी मैने.. "

"हाँ भाभी, लेती आउंगी वो गुब्बारे, चॉकलेट और डेकोरेशन का समान... जल्दी आ जाउंगी और रूम भी डेकोरेट कर दूंगी... आप टेंशन मत लो"

फिर कमरे में आई... "आज जल्दी आती हूँ माँ... फिर आराम से बातें करुँगी... "

"बेटा तूने सिर्फ एक सूखी सी ब्रेड खाई है... कुछ और नहीं खाएगी ??. "

"माँ सुबह सुबह खाया कहाँ जाता है... देर हो रही है.. अब चलूँ.. "

शाम को ढेर सारा समान लिए हुए मीरा आई..... बस एक कप चाय पी, कपड़े भी नहीं बदले और काम में लग गयी. बहू के साथ मिलकर कमरा सजाया, और फिर किचन में चली गयी. कामवाली को बहू ने रोक लिया था पर ज्यादा काम मीरा ही कर रही थी.

कामवाली मीरा के गुण गाते नहीं थक रही थी. "बहुत कामकाजी है बिटिया, आपकी... पूरा घर संभाल लिया है, सुबह भी सारा खाना बनाती है... और कितनी पढ़ाई भी करती है, भाभी जी को बड़ा आराम हो गया है, इसके आने से.... बस दोपहर को चावल बनाती हैं और छुट्टी.. "

पर मीरा ने डांट दिया उसे... " शारदा... काम भी करोगी या सिर्फ बातें.... ये सारी प्लेटें पोंछ कर रखो.. "

फिर उनकी बाँह पकड़ उन्हें कमरे में ले आई... उनकी अटैची खोल चुनकर एक साड़ी निकाली और बोली, "अब तुम तैयार हो जाओ, मेहमान आने ही वाले हैं... बाबू जी का भी कुरता -पायजामा दो... मैं देकर आती हूँ उन्हें "

"और तुम... "

" मुझे टाइम नहीं लगता.... दो मिनट में तैयार हो जाउंगी.. किचन में थोड़ा काम बाकी है... और अब तुम किचन में मत आना जाकर लिविंग रूम में बाबूजी के पास बैठो.. मेहमान आते ही होंगे... " सबसे छुटकी बेटी आदेश दे रही थी उन्हें.

ड्राइंग रूम में जाकर मूरत की तरह चुपचाप बैठ गयीं वे. जब कुछ काम नहीं कर रहीं तो रसोई में खड़े हो क्यूँ लोगों को सोचने का मौका दें कि दो दिन के लिए आई हैं बेटे के यहाँ और खट रही हैं.

बच्चों को बहू ने ही तैयार किया. रिनी ने जिद पकड़ ली थी, दादी की लाई हुई फ्रॉक ही पहनूंगी... बहू उनके पास आई.... "माँ, इसे समझाइये ना.. आपकी लाई फ्रॉक कल पहना दूंगी... मैने जो खरीदी है... उसके मैचिंग हेयरबैंड, जूते सब हैं. "

"रिनी, जब हम मंदिर जाएंगे ना तब वो पहनना... वो पहन कर तो भगवान को प्रणाम करना है, पहले... ठीक... " उन्होंने समझाया... प्रकाश, पास के एक बड़े मंदिर में हर बार उन्हें जरूर लेकर जाता.

रिनी ने चाबी वाली गुड़िया की तरह, सर ऊपर नीचे किया और भाग गयी तैयार होने.

प्रकाश भी थका हुआ सा आया, बच्चे आए, गेम्स हुए, केक कटा, कुछ परिवार भी थे. सबने अदब से उनलोगों को नमस्ते की. मीरा के पैरों पर तो जैसे पहिये लगे हुए थे, भागकर कभी किचेन में जाती... कभी बच्चों को गेम खिलाती.

पर एक बात अखर गयी उन्हें. इतने सारे फोटो खींचे गए, बच्चों के साथ उन बुड्ढे-बुढ़ियों के भी ढेर सारे फोटो खींचे गए. पर किसी को काम में उलझी मीरा का ख़याल नहीं आया. उन्हें हर बार लगता, अब प्रकाश आवाज़ देगा या बहू बुलाएगी... पर मशीन की तरह खटती उस लड़की का किसी को ख़याल ही नहीं था.

बारह बज गए, सारे मेहमान के जाते. मीरा ने ही कामवाली के साथ मिल कमरा साफ़ किया. बहू तो मुस्करा मुस्करा कर ही थक गयी थी. मीरा कमरे में आ कपड़े बदल, बिस्तर पर ढह सी गयी.... और बोली... "थोड़ा लेटती हूँ... फिर उठ कर पढ़ाई करुँगी"

वे चौंक कर बिस्तर पर उठ कर ही बैठ गयीं... "तू पागल तो नहीं हो गयी... एक सुबह की उठी हुई है.... कॉलेज गयी.. इतना काम किया और अब पूरी नींद भी नहीं लेगी... बीमार पड़ जाएगी इस तरह... "

"चिंता मत करो माँ... आदत हो गयी है यूँ जागने की.. कुछ नहीं होगा... तुम सो जाओ... "

पर उनकी आँखों की नींद उचट गयी थी... अपने भाई के घर में लड़की का ये हाल है... कितनी बड़ी कीमत चुका रही है... अपनी पढ़ाई के लिए.

दूसरे दिन भी, मीरा का यही रूटीन था. उसने कहा था... 'भाभी आती है मदद को'.. पर उन्होंने एक दिन नहीं देखा उसे रसोई में आते. "

उन्होंने एकाध बार मदद करने की कोशिश की पर मीरा का काम ही बढ़ा दिया. बोलीं "और कुछ नहीं तो बच्चों के पानी के बोतल ही भर देती हूँ. "

पर उन छोटी मुहँ वाले बोतल में पानी भरना भी एक कला है... नीचे पूरा पानी फ़ैल गया... जिसे मीरा ने बिजली की फुर्ती से पोंछे का कपड़ा ले हँसते हुए पोंछ डाला. ताकि वे अपराधी ना महसूस करें.

(क्रमशः )