Khatti Mithi yadon ka mela - 19 in Hindi Love Stories by Rashmi Ravija books and stories PDF | खट्टी मीठी यादों का मेला - 19

Featured Books
Categories
Share

खट्टी मीठी यादों का मेला - 19

खट्टी मीठी यादों का मेला

भाग – 19

(रात में बेटी के फोन की आवाज़ से जग कर वे, अपना पुराना जीवन याद करने लगती हैं. उनकी चार बेटियों और दो बेटों से घर गुलज़ार रहता. पति गाँव के स्कूल में शिक्षक थे. बड़ी दो बेटियों की शादी हो गयी थी. बड़ा बेटा इंजिनियर था, उसने प्रेम विवाह किया. छोटा बेटा डॉक्टर था, एक अमीर लड़की से शादी कर वह भी, उसके पिता के पैसों से अब विदेश चला गया. तीसरी बेटी नमिता, पिता के विरोध करने पर एक विजातीय लडके के साथ घर छोडकर चली गई )

गतांक से आगे --

उन सबमे मीरा ही सबसे दिलेर निकली. थोड़ी देर बाद कमरे में आई, " इतना रोना-पीटना क्यूँ मचा हुआ है. कोई मर नहीं गया है, चलो, माँ हाथ मुहँ धो... पापा जी मैं चाय लेकर आ रही हूँ " और वह चाय बनाने चली गयी.

पति ने कहा, "प्रकाश से बात करता हूँ... " और टेलीफोन के नुचे तार ठीक करने लगे. किसी तरह तार जुड़ा और प्रकाश को फोन लगाया, इतनी खडखडाहट, कि आवाज़ ना सुनाई पड़े.

प्रकाश ने सुना और बोला, "पापा जी क्या कर सकते हैं... नमिता २१ साल की हो गयी है. बालिग़ है. हमलोग कुछ नहीं कर सकते... हाँ, समझा बुझा कर घर ला सकते हैं, कहिये तो पता करूँ... कोशिश करता हूँ. पर शादी तो उस लड़के से ही करनी पड़ेगी पर ये है कौन... नमिता कैसे जानती है उसे... "

"उसकी शादी तो मैं नहीं कर सकता... उस छोटी जाति का लड़का मेरा दामाद बनेगा... ये मैं नहीं बर्दाश्त कर सकता.... ये लो अपनी माँ से पूछो... इन्हीं के नाक के नीचे सब होता रहा... और इनको कुछ मालूम ही नहीं.. खाली खाना बनाने और कपड़ा सहेजने में ही लगी रहीं.. " पति ने हिकारत से उनकी तरफ देखा और फोन पकड़ा दिया.

उनके आँसू निकल आए पर पीती हुई बोलीं, "उसकी सहेली का भाई है... इंजिनियर है... किसी कंपनी में नौकरी करता है... बेटा यहाँ तक बात पहुँच जायेगी, मुझे नहीं पता था... "

"वो हो गया माँ... अब आगे क्या करना है सोचो... मैं पता कर सकता हूँ... पर, घर लाकर उसकी शादी तो उसी लड़के से करनी पड़ेगी... पर पापा जी मान नहीं रहें. "

"बेटा पता करो.. कहाँ गए है... लड़के के घर वाले भी तैयार नहीं थे..... दोनों अकेले पता नहीं कहाँ गए हैं?"

"उसकी चिंता मत करो, माँ.. लड़का नौकरी में है तब सब इंतज़ाम कर लिया होगा.... यार दोस्त होंगे साथ में.. मंदिर में या कोर्ट में शादी भी कर लेंगे... पापा जी मान ही नहीं रहें... नहीं तो मैं कोशिश करता... "

"लो... अपने पापा जी से ही बात करो... "

फिर दोनों बाप-बेटे में कुछ देर बात हुई... और पति ने कहा.. "ठीक है तुम ऑफिस जाओ.. "

तभी मीरा चाय लेकर आई... और पति ने कहा... "जाओ पिलाओ अपनी माँ को... मुझे नहीं चाहिए "

और छत की सीढियां चढ़ ऊपर कमरे में चले गए.

काफी देर तक वह अवसन्न सी बैठी रहीं फिर नहा धोकर पूजा घर में जाकर बैठ गयीं. यही प्रार्थना की भगवान से... " जहां भी हो.. मेरी बेटी को सुखी रखना, भगवान"

पति स्कूल नहीं गए, खाना भी नहीं खाया... वे भी परेशान सी बैठी रहीं. सोच रही थीं, गाँव वालों से कह देंगी... 'नमिता बम्बई गयी है.. स्मिता के पास..., सबको पता तो चलना ही है, एक दिन पर जब तक टाली जा सके.... '

पर गाँव वालों को सारी खबर हो गयी. दिलीप और मनमोहन की माँ, सीधा आँगन में आ गईं... और जोर जोर से बोलने लगीं... "ममता माँ.. नमिता कहाँ है... घर में नहीं है.. का"

वे कुछ कहतीं, इस से पहले ही उनमे से एक बोली... "त ठीके, कह रहा था मनमोहना.... सुबह वाली बस से उतरा... तांगा मिला नहीं, पैदले आ रहा था तो देखा कि नमिता एगो बैग लिए कौनो लरिका के साथ मोटरसाइकिल पर जा रही है... मैने कहा,... ना तूने ठीक से नहीं देखा होगा... कौनो और लरकी होगी..... पर इहाँ त सच्चे में नमिता घर में नहीं है... कौन लरिका था.... ??"

वे सर झुकाए चुप रहीं. तो उनके करीब आ कंधे पर हाथ रख के बोली... " कुल का नाम डूबा गयी लड़की.... कालिख पोत गयी अपने खानदान के मुहँ पर.... अब रोने के सिवा का करोगी... उसका लच्छन त सुरुये से ठीक नहीं था "

" कौन बिसबास करेगा.... बिसेसर बाबू की पोती.... मास्टर साहब की बेटी... एगो भाई, इंजिनियर एगो डागदर और उस लरकी का ई लच्छन... ई सब जादा पढ़ाने का नतीजा है... अब छोटकी को संभालो... बंद कर दो इसका भी कॉलेज जाना... ".. दूसरी बोलीं.

वे सर झुकाए सब सुनती रहीं... पर मीरा से बर्दाश्त नहीं हुआ... बाहर आ बोली, "चाची.. दीदी ने चोरी की है.... डाका डाला है, किसी को सताया है..... खून किया है, किसी का??... ऐसा क्या किया है कि कालिख पुत गयी. और ये सब आपलोग, गांवालों के चलते ही हुआ.. कि आपलोग दूसरी जाति में शादी करने से हँसेंगे. नहीं तो पापा जी मान जाते और दीदी को ऐसे नहीं जाना पड़ता... "

"अरे बाप रे... छोकरी की बोली तो देखो.... बित्ता भर की लड़की और गज भर की जबान... हम त तुम्हारी माँ को दिलासा देने आए थे.... पर ये लड़की तो हमें ही भाषण दे रही है... इनरा गांधी बनी बैठी है... चलो मनमोहन की माँ... इनके घर का चाल ही निराला है... "

वे लोग बाहर निकली तो चार औरतें उनके ही घर की तरफ टकटकी लगाए, खड़ी थीं... ये दोनों औरतें उनसे हाथ चमका कर बोलने लगीं, "अरे जाओ जाओ... अपने घर, अपना काम देखो... यहाँ किसी को कोई दुख नहीं है... कुछ बोलोगी तो वो इनरा गांधी बैठी है, भाषण देने लगेंगी. "

मीरा ने दरवाजा बंद कर दिया. बरसों में पहली बार दिन में इस घर के दरवाजे बंद हुए.

पति दिन भर वैसे ही बिना खाए पिए पड़े रहें.... शाम को मुश्किल से दो निवाले खाए और सोने चले गए.

दूसरे दिन मीरा कॉलेज जाने को तैयार होने लगी तो उन्होंने मना किया, "कुछ दिन मत जा... लोग बातें बनायेंगे "

मीरा फिर भड़क उठी.. "माँ मुझे कोई डर नहीं, जो मुझे एक कहेगा.... वो दो सुनेगा.... दीदी ने कोई अपराध नहीं किया है.... मुझे तो बस ये अफ़सोस है, दीदी को मुझपर भरोसा नहीं था... मुझे कुछ भी नहीं बताया उसने " कहती उसकी आँखें भर आईं. हैरान रह गयीं वो.. इतनी छोटी उम्र में कैसी कैसी बातें करती है वो... इतनी किताबें जो पढ़ती रहती है. लगता था, मीरा एक रात में ही बड़ी हो गयी.

पति भी सर झुकाए, स्कूल जाते. लोग जानबूझकर रास्ते में राम-राम बोलते कि आगे टोकें. पर पति जबाब ही नहीं देते उनकी राम-राम का कि आगे बात बढे.

दो दिन बाद फोन की घंटी बजी.. पति ने ही फ़ोन उठाया और जिस तरह से चिल्ला पड़े, दिल दहल गया उनका. नमिता का फ़ोन था. पति ने बहुत बुरा-भला कहा और यहाँ तक कह दिया, " मेरे मरने के बाद ही इस घर में कदम रखना. जीते जी, अपना चेहरा भी मत दिखाना कभी और आज के बाद, कभी फोन करने की कोशिश मत करना " वे दौड़ती हुई गयीं.. "ये क्या कह रहें हैं.... मुझे फोन दीजिये... " पर पति ने फोन पटक दिया था.

बहुत दुख हुआ उन्हें,. किसी के साथ इतने बरसों तक रहकर भी उसे पूरी तरह नहीं जाना जा सकता. धीमा बोलने वाले, अच्छी अच्छी किताबें पढनेवाले, शिक्षक पति का असली रूप ये है? जब बेटों की शादी में दहेज़ नहीं लिया, दूसरी जाति की बहू लाने को तैयार हो गए, बेटियों को कॉलेज में पढने भेजा तो कितना गर्व हो आया था उन्हें पति पर. लेकिन नमिता के साथ उनका व्यवहार देख, ऐसा लग राह था किसी अजनबी के साथ वे इतने दिनों रहती आयीं, पहचान में ही नहीं आ रहें थे. अपनी गोद में खेली संतान के साथ कोई ऐसा कर सकता है, भला.

(क्रमशः )