Khatti Mithi yadon ka mela - 15 in Hindi Love Stories by Rashmi Ravija books and stories PDF | खट्टी मीठी यादों का मेला - 15

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खट्टी मीठी यादों का मेला - 15

खट्टी मीठी यादों का मेला

भाग - 15

(रात में बेटी के फोन की आवाज़ से जग कर वे, अपना पुराना जीवन याद करने लगती हैं. उनकी चार बेटियों और दो बेटों से घर गुलज़ार रहता. पति गाँव के स्कूल में शिक्षक थे. बड़ी दो बेटियों की शादी हो गयी थी. बड़ा बेटा इंजीनियरिंग और छोटा बेटा, मेडिकल पढ़ रहा था. ससुर जी और सास का निधन हो गया और सारी जिम्मेवारी पति पर आ पड़ी. बड़े बेटे ने उनलोगों की रजामंदी से प्रेम-विवाह किया)

गतांक से आगे ---

जब प्रकाश अकेला ही हनीमून से लौट कर आया तो मान ने घबराकर पूछा, “दुल्हिन कहाँ है ? “

"वो अपने मायके में रुक गयी हैं माँ..... अब मेरे साथ चली जाएगी तो माँ-बाप के साथ रहने का समय नहीं मिलेगा, ना और फिर पैकिंग भी करनी थी. "

"तू इतनी जल्दी, नौकरी पर ले जायेगा बहू को?".. उन्हें लग रहा था कुछ दिन बहू उनके साथ ससुराल में रहेगी. फिर प्रकाश अच्छा घर खोजेगा. तब वे भी साथ में जाएँगी. ये कल की लड़की क्या जानेगी, गृहस्थी कैसे जमाते हैं? कौन सी चीज़ कहाँ रखनी है?. चूल्हा किस दिशा में रखना होगा. मंदिर किस कोने में ठीक होगा, रखना? कल तक किताब कॉपी में घुसी रहने वाले लड़की को ये घर-गृहस्थी की बातें क्या मालूम?.. पर प्रकाश ने तो चौंका दिया एकदम. पर ये सब उस से बोलीं नहीं वे.

" फिर छुट्टी नहीं मिलेगी ना माँ, और मुझे खाने -पीने की इतनी तकलीफ हो रही है. प्रीति को साथ ही ले जाऊँगा.... सारी छुट्टी ख़तम हो गयी है, कल ही निकलना होगा. घर में फोन भी तो नहीं, नहीं तो मैं फोन पर ही बता देता... पर तुमलोग चिंता करोगी, इसलिए चला आया बताने. " और फिर मीरा को आवाज़ दी.

"मीराssss... जा जरा गोपाल चाचा को बुला ला तो, उन्हें घर पर टेलीफोन लगवाने का जिम्मा देता हूँ. उन्हें ही पैसे थमा देता हूँ, जल्दी से लगवा देंगे. आज फोन ना होने की वजह से लंबा चक्कर पड़ गया"

वे खुश तो हुईं फोन लगने की खबर से, अब अपनी बेटियों से बात कर सकेंगी. पर जिस वजह से प्रकाश फोन लगवा रहा था. वह खल गयी, घर ना आना पड़े, फोन पर ही बात कर छुट्टी पा ले फिर ऐसा फोन किस काम का?

000

प्रमोद, स्मिता, ममता सब बड़े खुश हुए फोन लगने की खबर सुन. ममता ने कहा भी... "देखा माँ, कमाऊ पूत होने का फायदा. घर में नई चीज़ें आने लगी. "

उनसे क्या कहती अपनी सुविधा के लिए लगवा कर गया है.

प्रमोद ने भी चैन की सांस ली, "बहुत अच्छा किया भैया ने, अब मुझे चिट्ठी नहीं लिखनी पड़ेगी. कितना झंझट लगता था.. क्या लिखो... अब बस फोन पर हाल-चाल ले लिया करूँगा" मन में आया कहें, 'पहले कौन सा तू हाल-चाल लेने के लिए चिट्ठी लिखता था जब पैसे की जरूरत पड़े, तब ही दो लाइन की चिट्ठी आती थी. और वे घंटो नमिता की मिन्नतें कर उसके स्वास्थ्य की खबर जानने को लम्बी चिट्ठी लिखवाया करती थीं. पर कहा नहीं.

यही कहा, "हाँ! बेटा तेरी आवाज़ सुन लिया करुँगी, अब "

लेकिन प्रमोद के फ़ोन भी बस पैसों के लिए ही आया करते. और पति के माथे पर चिंता की लकीरों में एक और इज़ाफ़ा कर जाया करते. उन्हें अब प्रमोद की पढ़ाई से ज्यादा चिंता दोनों बेटियों की शादी की हो रही थी. वो तो अच्छा था, कि अभी समय था, पर नमिता भी दसवीं में आ चुकी थी. बस एक-एक दिन यही सोचते गुजरता कहाँ से आयेंगे पैसे उसकी शादी के लिए? बेटों पर से भरोसा तो उठी ही चुका था. वे बाग़-बगीचे, खेत-खलिहान वापस लौटने की कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी.

उन्होंने कहा भी, " प्रमोद का अभी अंतिम वर्ष है... ना हो, एक साल के लिए प्रकाश से कह दीजिये, प्रमोद को पैसे भेज दिया करेगा. आखिर बड़ा भाई है... उसका भी कुछ कर्त्तव्य है. "

लेकिन आदर्शवादी पति ने कहा, "नहीं... प्रमोद मेरी जिम्मेवारी है.... उसकी पढ़ाई के पैसे मैं ही दूंगा. चाहे जैस इंतज़ाम करूँ. "

"और बेटियों की शादी??"

" अभी तो सामने का खर्चा निबटाऊँ, ना... जब समय आयेगा देखा जाएगा.. बेच दूंगा सारी जमीन... हम दोनों को बुढापे में क्या चाहिए, मुट्ठी भर अन्न,... उतना जुगाड़ तो मेरी पेंशन से हो ही जाएगा... बेकार की चिंता मत करो"

पर चिंता थी की जाती ही नहीं थी... प्रमोद की डाक्टरी की पढ़ाई पूरी हो गयी. और एक किसी अनजान आदमी का फोन आया घर पर कि मिलना चाहते हैं, आपके डाक्टर बेटे के बारे में, बात करनी है. मन एक बार धड़का. कौन सी बात?खैर पतिदेव ने बुला लिया.

इनकी कार कुछ और लम्बी थी. कपड़े कुछ और चमकदार. बहू प्रीति के दूर के चाचा लगते थे. इन सज्जन ने बताया कि वे प्रकाश की बारात में ही प्रमोद को देखकर अपनी लड़की के लिए पसंद कर चुके थे. और प्रमोद को आगे की पढ़ाई के लिए विदेश भेजने का खर्चा उठना चाहते हैं. उन्हें समझाने लगे कि खाली साधारण डाक्टरी की डिग्री, कुछ काम नहीं आएगी. विदेश से पढ़कर आएगा, तो बहुत बड़ा डाक्टर बन जाएगा. आपलोगों की सम्मति हो तो आप लड़के से बात कर के बताइये. वे लड़की का फोटो भी लाये थे. शहर की लड़की लोग का फोटो तो कपड़े और बाल के डिजाइन से ठीक ही लगता था.

वे सज्जन एक नई चिंता उन्हें सौंप कर चले गए. पति भी असमंजस में थे. उनका तो बिलकुल मन नहीं था कि बेटे को सात समंदर पार भेजें. फिर मन में दबी हुई ये चाह भी थी कि जब प्रमोद की किसी लड़की से दोस्ती नहीं तो उसके लिए अपनी जाति वाली लड़की लायें. दो दिन तक पति सोचते रहें, फिर बोले.. "ऐसा मौका प्रमोद को नहीं मिलेगा. हमारी तो औकात नहीं कि हम विदेश भेज सकें. सोचो गाँव का पहला डाक्टर वो भी 'फोरेन रिटर्न '.. कितना रुतबा रहेगा.... सबलोग ये भूल जाएंगे कि अब हमारे पास उतनी जमीन जायदाद नहीं. हमारी खोयी हुई इज्ज़त वापस आ जाएगी"

वे ठंढी सांस भर कर रह गयीं... "इस इज्ज़त की चिंता इंसान से क्या क्या नहीं करवाती... " अब तो बेटे की सूरत देखने को भी तरसेंगी. फिर भी एक क्षीण आशा थी कहीं बेटे मना कर दें. बोली, "प्रकाश से तो बात कर लीजिये, बड़ा बेटा है... उसकी राय जरूरी है"

प्रकाश सुनते ही खुश हो गया, "ये लोग तो प्रीति के पिता से भी कहीं अमीर हैं.. प्रमोद के तो नसीब खुल गए.... लड़की भी ठीक ही है.. " थोड़ा अटकते हुए बोला... फिर जल्दी से कहा, "मैं बताता हूँ.. प्रमोद को.. आपको बाद में फोन करता हूँ"

फिर सबकुछ प्रकाश और बहू ने ही तय किया. कैसे शादी होगी... कहाँ बारात जाएगी... पति-पत्नी दर्शक से बने देखते रहें. उनमे पहले वाला उत्साह भी नहीं रह गया था. बस मशीन की तरह सारे रस्म निबटाती रहीं. बेटियाँ भी बारात में गयी थीं. दुल्हन की कार से पहले इनलोगों की बस आ गयी. लौटीं तो थोड़ी बुझी बुझी थीं... "क्या बात है, बहुत थक गयी हो तुमलोग?"

"हाँ... माँ... " ममता और स्मिता ने एक साथ कहा पर नमिता कहाँ चुप रहती.

"माँ.. दीदी लोग दुखी है... भाभी जरा भी भैया की जोड़ी की नहीं.... भैया तो राजकुमार सा लग रहा था.. भाभी ने इतना लम्बा हील (उसने बित्ता फैला कर दिखाया) पहना था फिर भी भैया के कंधे तक पहुँच रही थी. रंग भी... "... पर आगे कुछ बोलती क़ि ममता ने जोर से डपट दिया... "तू चुप करेगी या कपड़ा ठूंस कर मुहँ बंद कर दूँ, तेरा... बहुत चटर चटर जुबान चलती है.... ये सब गलती से भी भाभी के कान में पड़ गया तो. ??... खुद को पता नहीं फिल्म की हिरोईन समझती है.. सब भगवान के बनाए होते हैं... पता नहीं कब अक्कल आएगी इस लड़की को.. "

"नमिता,... प्रमोद ने प्रकाश के घर पर देखा है उसे.. देख के पसंद किया है... अब एक बार भी इस तरह की बात मत करना " उन्होंने समझाया उसे. और पहली बार नमिता ने बिना बहस किए सीधी गाय की तरह सर हिला दिया. शायद सचमुच थक गयी थी, वह.

लेकिन वे सोचने लगीं, हर लड़के की इच्छा होती है, उसे परी सी ख़ूबसूरत लड़की मिले, प्रेम-विवाह हो तब तो ये चीज़ें मायने नहीं रखतीं. शकल से ज्यादा उसके मन की पहचान होती है. पर यहाँ प्रमोद ने अपनी विदेश की पढ़ाई के लिए, समझौता कर लिया. भगवान करे, लड़की मन की बहुत अच्छी हो. तन का रूप तो दो दिन का होता है.

अच्छा किया लड़कियों ने पहले से बता दिया, जब उन्होंने प्रमोद की दुल्हन को देखा तो अचंभित नहीं हुईं ना ही मन मलिन किया. रंग कम था पर नाक-नक्श कटीले थे और उन्हें ममता ही हो आई उस पर कहीं वो हीन ना समझे, सबके बीच खुद को.

प्रमोद भी प्रकाश की तरह हनीमून पर गया. अब टेलीफोन था घर में तो चिंता नहीं थी कि रोज खाना बना कर रखें. पर इस बार प्रकाश ने छठे दिन में ही फोन किया कि माँ दोपहर को पहुँच रहा हूँ... जल्दी जल्दी खुद ही चौके में लगीं. खाना बनाया. पूजा की थाली तैयार की. कार की आवाज़ सुन, पूजा की थाली संभालती दरवाजे की तरफ दौड़ीं कि, बहू की आरती करेंगी, तिलक लगाएंगी. पर ये प्रमोद किसके साथ कार से उतर रहा है. ? बहू कहाँ है? उस लड़की ने पैंट पहने थे और लम्बा सा कुरता. मीरा उन्हें अचम्भे में देख हंस पड़ी.. "माँ... भाभी हैं "

पास आकर पैर छुए, उन्हें समझ नहीं आ रहा था, बिना सर पर पल्लू के वे टीका कैसे लगाएं?

उसने चप्पल उतारी, हैंडपंप पर पैर धोये और सीधा चौके में चली गयी, "मुझे तो बड़ी भूख लगी है"

बहू के चौके में जाने की रस्म होती है यह तो बेधड़क अंदर चली गयी. किसी तरह नमिता को बुला कर खाना परोसा. फिर वो खुद ही पूरे घर में घूमने लगी, " दो दिन तक तो आपलोगों ने घर में कैद कर दिया था.. मैने तो कुछ देखा ही नहीं. "

जब वो छत पे जाने लगी तो वे घबरा गयीं, "नमिता उसे रोक किसी बहाने... आस-पास किसी ने देख लिया तो क्या कहेंगे?"

"माँ, सोचेंगे मेरी सहेली है.... कौन सोचेगा... नई बहू होगी.. जाने दो, ना.. मैं भी जाती हूँ, साथ में" नमिता तो जैसे खुश हो रही थी उसके जैसी कोई आ गयी इस घर में.

(क्रमशः)