हिमाद्रि(16)
भारत को आज़ादी मिले ग्यारह साल हो गए थे। जॉर्ज अब तीस वर्ष का हो गया था। जेम्स और मृदिनी दोनों ही दुनिया छोड़ कर जा चुके थे।
जॉर्ज कोमल ह्रदय व प्रकृति प्रेमी व्यक्ति था। वह बहुत ही कुशल चित्रकार था। उसने बंबई के जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स से पढ़ाई की थी। अपनी पेंटिंग्स के माध्यम से उसने वहाँ रह कर बहुत नाम कमाया था। लेकिन उसका अपना मन उस महानगरी की भीड़ भाड़ से ऊब गया था। वह किसी शांत स्थान में आकर रहना चाहता था।
जेम्स ने हिमपुरी के जंगलों का एक बड़ा हिस्सा खरीद लिया था। वहाँ से वह अपने टिम्बर का व्यापार करते थे। उनकी मृत्यु के बाद उनकी सारी संपत्ति जॉर्ज को मिल गई थी। जब वह हिमपुरी गया तो वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य तथा शांत वातावरण के जादू में खो गया। उसने मन बना लिया कि वह यहीं अपना बाकी का जीवन बिताएगा।
जॉर्ज ने जंगल का एक हिस्सा अपना बंगला बनवाने के लिए साफ करवा लिया। बंबई से अपने एक आर्किटेक्ट दोस्त फर्ज़ान कांट्रैक्टर को बुला कर बंगले का नक्शा तैयार करवाया। जॉर्ज चाहता था कि उसका बंगला हर तरफ से खुला हुआ और बड़ा बनना चाहिए। फर्ज़ान ने उसकी ज़रूरतों को ध्यान में रख कर बंगले का बहुत सुंदर डिज़ाइन तैयार किया।
जॉर्ज ने बंगला बनवाने में दिल खोल कर खर्च किया। जब बंगला बन कर तैयार हुआ तो वह बहुत भव्य था। प्रकृति की गोद में बना यह बंगला जॉर्ज को बहुत प्यारा था। बंगला बनवाते समय जॉर्ज ने कुछ पेड़ नहीं कटवाए थे। यह पेड़ बंगले की चारदीवारी के भीतर आ गए। इनमें मौलश्री का पेड़ भी था। यह पेड़ जॉर्ज को बहुत पसंद था। अक्सर वह यहाँ सुंदर पेंटिंग्स बनाता था। कई सालों तक बंबई जैसे शहर की आपाधापी में रहने के बाद हिमपुरी की शांति उसे बहुत सुकून देती थी।
जॉर्ज की शादी इलियाना नाम की एक पियानो वादक से हुई थी। लेकिन यह शादी लंबे समय तक नहीं चल पाई। दो साल के तल्ख रिश्ते के बाद दोनों अलग हो गए। उसके बाद जॉर्ज ने दोबारा किसी से रिश्ता जोड़ने का प्रयास नहीं किया।
करीब पच्चीस साल हिमपुरी में बिताने के बाद 1984 में जॉर्ज ने यह बंगला अपने कज़िन स्टुअर्ट स्मिथ को बेंच कर फ्रांस चला गया।
स्टुअर्ट स्मिथ जॉर्ज के पिता के चचेरे भाई का बेटा था। वह उम्र में जॉर्ज से कोई ग्यारह साल छोटा था। स्टुअर्ट बंबई के एक नामी पाँच सितारा होटल में शेफ था। किंतु स्वास्थ संबंधी समस्या के कारण महज़ पैंतालीस साल की आयु में उसे अपना काम छोड़ना पड़ा। स्टुअर्ट के पास पैसों की कमी नहीं थी। उसके पिता बंबई, पुणे और दिल्ली में उसके लिए कुछ जायदाद छोड़ गए थे। उसने भी अच्छा पैसा कमाया था।
डॉक्टरों ने उसे किसी शांत पहाड़ी जगह पर जाकर बसने की सलाह दी थी। उसने जॉर्ज से इस विषय में बात की। उस समय जॉर्ज फ्रांस जाकर बसने की सोंच रहा था। उसने प्रस्ताव दिया कि यदि वह चाहे तो हिमपुरी वाला उसका बंगला खरीद ले। स्टुअर्ट ने बंगला देखा था। वह उसे पसंद था। वह मान गया।
स्टुअर्ट के परिवार में उसकी पत्नी एलिस और बेटी नोरा थे। हिमपुरी आने से पहले स्टुअर्ट ने उसे एक अच्छे बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया। स्टुअर्ट एलिस के साथ हिमपुरी में आकर रहने लगा।
स्कूल के बाद नोरा ने फिल्म इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया। नोरा फिल्म मेकिंग का एडवांस कोर्स करने के लिए विदेश जाना चाहती थी। अतः स्टुअर्ट ने उसे अपने बड़े भाई के पास अमेरिका भेज दिया।
पंद्रह साल तक पति पत्नी उस बंगले में सुख से रहे। वहाँ रहते हुए स्टुअर्ट का स्वास्थ बहुत अच्छा हो गया था। किंतु नोरा के अमेरिका जाने के साल भर बाद ही एलिस अचानक दिल का दौरा पड़ने से चल बसी। एलिस के जाने के बाद स्टुअर्ट एकदम अकेला पड़ गया। वह कुछ दिनों के लिए अपने बड़े भाई के पास जाकर रहने लगा। लेकिन अमेरिका जाकर भी उसका दुख कम नहीं हुआ।
वहाँ रहते हुए स्टुअर्ट को अपने बंगले की याद आती थी। बंगले में उसने एलिस के साथ जीवन के सबसे खूबसूरत साल बिताए थे। वह बड़ी मुश्किल से छह महीने बिता कर वापस लौट आया।
हिमपुरी में वह एकदम अकेला पड़ गया था। तभी गोवा में रहने वाली उसकी सबसे छोटी बहन और उसके पति एक कार दुर्घटना में मारे गए। उनका दस साल का बेटा फिलिप अनाथ हो गया। स्टुअर्ट ने फिलिप को अपना लिया।
फिलिप को उसने बंबई के एक बोर्डिंग स्कूल में दाखिल करा दिया। वह वहाँ रह कर पढ़ाई करता था। कभी जब लंबी छुट्टियां होती थीं तब वह हिमपुरी आ जाता था।
फिलिप एक शर्मीला लड़का था। सदा अपने में खोया रहने वाला फिलिप शांत स्वभाव का था। जॉर्ज की तरह उसे भी चित्रकारी का शौक था। स्टुअर्ट उसके इसी शौक को बढ़ावा देता था।
सन 2011 चल रहा था। 71 वर्षीय स्टुअर्ट ने समय के साथ हिमपुरी में बहुत से बदलाव देखे थे। अब वह इंटरनेट के माध्यम से अपनी बेटी नोरा के साथ वीडियो चैट करते थे। हिमपुरी के पास के गांव में भी लोगों के रहन सहन में फर्क आया था। कुछ हद तक आधुनिकता ने ग्रामीण जीवन को भी छुआ था। पैसा कमाने के लिए गांव के युवक शहर जाकर बस रहे थे। अधिकांश अपने बच्चों व बूढ़े माता पिता को गांव में ही छोड़ जाते थे।
हिमपुरी में अब और भी कई सुंदर बंगले बन चुके थे। लेकिन स्टुअर्ट के बंगले की शान कुछ और थी। हिमपुरी को एक पर्यटन स्थल में बदलने की बातें हो रही थीं। लेकिन इतना सब होने के बावजूद भी अभी यहाँ का वातावरण स्वच्छ व माहौल शांत था।
अपना ग्रैज्यूएशन करने के बाद फिलिप यह नहीं तय कर पा रहा था कि आगे क्या करना है। अतः वह हिमपुरी आ गया था। जवान होने के बाद भी फिलिप के स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आया था। वह अभी भी शर्मीला और अपने आप में सिमटा हुआ था।
अक्सर शाम को वह हिमपुरी के पास बसे जगता गांव में टहलने चला जाता था। महानगरी में काफी वक्त बिता चुके फिलिप को गांव वालों का सादगी से भरा जीवन बहुत पसंद आता था। वह किसी से कुछ बोलता नहीं था। बस गांव में कुछ पल घूम फिर कर चला आता था।
हिमपुरी में रह कर वह पेंटिंग के अपने शौक को बढ़ा रहा था। बेसमेंट में उसे जॉर्ज का एक ईज़ल और कलर प्लेट मिली। उसने कलर और ब्रश खरीदे। बेसमेंट में प्रकाश की व्यवस्था थी। अतः वह बेसमेंट में ही अपनी पेंटिंग्स बनाता था।
फिलिप ने अपने सोशल एकाउंट पर एक पेज बना कर अपनी बनाई हुई पेंटिंग्स का प्रचार शुरू किया। लोगों को उसका काम पसंद आया तो उसे ऑनलाइन आर्डर मिलने लगे। उसका काम चल निकला। फिलिप को हिमपुरी बहुत रास आ रहा था। स्टुअर्ट को भी उसका साथ रहना पसंद था। अतः फिलिप ने वहीं रह कर अपना काम करने का फैसला किया।
फिलिप और स्टुअर्ट दोनों को ही मछली बहुत पसंद थी। फिलिप ने सुझाव दिया कि बंगले के बैकयार्ड में एक फिश पांड बनवा कर मछलियां पाली जाएं। कुछ हमारे काम आएंगी। बाकी की पास के शहर के रेस्त्रां में सप्लाई कर दिया करेंगे। स्टुअर्ट को सुझाव पसंद आया। उसने सहमति दे दी।
फिलिप ने इसके लिए बैकयार्ड में जगह चुन ली। कुछ पेड़ हटाने की ज़रूरत थी। इनमें मौलश्री का पेड़ भी था। स्टुअर्ट ने कुछ मजदूर बुला कर पहले पेड़ कटवाए। उसके बाद दो मजदूरों को फिश पांड के लिए खुदाई का काम करने को कहा। छगन व मगन नाम के दोनों मजदूर भाई थे। उन्हें आवश्यक निर्देश देकर स्टुअर्ट बंगले में आ गया।
छगन और मगन अपने काम में लग गए। दोनों अपने काम में लग गए। खुदाई करते हुए मगन का फावड़ा किसी चीज़ से टकराया। टन्न की आवाज़ हुई। मगन काम रोक कर खड़ा हो गया। छगन भी उसके पास आ गया। छगन ने पूँछा।
"क्या हुआ ?"
मगन ने उसे शांत रहने का इशारा करते हुए इधर उधर देखा। कोई नहीं था। वह मगन के कान के पास मुंह ले जाकर धीरे से बोला।
"लगता है धन से भरा कोई घड़ा है। पहले अक्सर लोग सोने चांदी के सिक्के घड़ों में भर कर जमीन में गाड़ देते थे।"
यह सुन कर छगन की आँखों में चमक आ गई।
"मतलब की अब हम अमीर हो जाएंगे।"
मगन परेशान सा बोला।
"पर इस घड़े को बाहर कैसे ले जाएंगे ?"
"हाँ यह समस्या तो है।"
दोनों भाई सोंच में पड़ गए। बहुत अधिक काम नहीं था। अतः उन्हें जल्द ही कोई उपाय सोंचना था। मगन बोला।
"ऐसा करते हैं कि पहले घड़े को बाहर निकाल कर नौकरों वाले क्वार्टर में छिपा देते हैं। वहाँ कोई नहीं रहता है। फिर सोंचेंगे कि बाहर कैसे ले जाएंगे।"
छगन नज़र रखे था कि कोई आ ना जाए। मगन ने खोद कर घड़ा बाहर निकाल लिया। दोनों ने उसे सर्वेंट क्वाटर में छिपा दिया।
दोनों का ही मन काम में नहीं लग रहा था। वह बस घड़े के बारे में सोंच रहे थे। छगन इधर उधर नज़र दौड़ा कर देख रहा था। उसने देखा कि बंगले की चारदीवारी बहुत ऊँची थी। लेकिन दो पेड़ ऐसे थे जो पीछे की दीवार के पास थे। छगन को एक उपाय सूझा।
उसने मगन से कहा कि मैं पेड़ पर चढ़ कर घड़े को रस्सी की सहायता से दीवार के उस तरफ लटका दूँगा। तुम किसी बहाने से बंगले से निकल कर इसे अपने ठिकाने पर ले जाकर छिपा देना।
छगन ने कहे के अनुसार घड़े को दीवार के दूसरी तरफ लटका दिया। मगन बीमारी का बहाना कर छुट्टी लेकर चला गया। बंगले के बाहर निकलते ही वह बंगले के पिछले हिस्से में पहुँचा और घड़ा लेकर अपने ठिकाने की तरफ चल दिया।