Ghumakkadi Banzara Mann ki - 13 in Hindi Travel stories by Ranju Bhatia books and stories PDF | घुमक्कड़ी बंजारा मन की - 13

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घुमक्कड़ी बंजारा मन की - 13

घुमक्कड़ी बंजारा मन की

(१३)

इंदौर ( mp गजब है )

बंजारा मन कहीं देर तक टिकता नहीं न, जिन्हें घूमने का शौक हो रास्ता निकल ही जाता है, कहीं पढ़ा था, ट्रेवेल के बारे में कि, "आप कहाँ पैदा हो, यह आपके बस में नहीं, पर आप कहाँ कहाँ घुमे, दुनिया देखे यह आपके बस में जरुर है, "बस यही सोच का कीड़ा जब काटने लगता है तो अपना सफरबक्से में दो दिन के कपडे ले कर चल पड़ते हैं,. मध्यप्रदेश की एड देख देख कर, दिल में बच्चे सा उत्साह भर उठता है, बेटी पहले ही कुछ समय पहले घूम आई थी मध्य प्रदेश की उसने इतनी सुंदर तस्वीर खींची थी कि पढ़ा हुआ और सुना हुआ देखने का बहुत समय से दिल था।

मध्यप्रदेश का दिल माने जाने वाला "इंदौर " मध्यप्रदेश में सबसे अधिक घनी आबादी वाले प्रमुख शहर है। सुबह दिल्ली से ९ बजे के इंडिगो फ्लाईट से यात्रा शुरू की, हवाई यात्रा भी अब भी मुझ में बच्चे सा उत्साह भर देती है, पहले की हवाई यात्रा में बच्चे साथ थे, तो जैसा वो करवाते गए, जैसे यह दिखाओ, यहाँ चेकिंग करवाओ, तो कठपुतली से बच्चो को देख देख के हम भी सब वही दोहराते गए, गलत नहीं कहा गया कि ज़िन्दगी के एक मोड़ पर बच्चे बड़े और आप बच्चे बन जाते हैं :) इस बार की यात्रा में हम दोनों ही थे, नर्वस तो नहीं थे, हाँ over exitited जरुर थे, बोर्डिंग पास वही पास लगी मशीन से लेने था, पहले अपने आगे वाले को बटन दबाते हुए और बोर्डिंग पास निकलते हुए देखा फिर खूब विश्वास के साथ हमने भी अपना बोर्डिंग पास उस मशीन से निकाल कर दिल में ही कहा "यूरेका ! वैसे वहां एयरपोर्ट पर मदद करने वाले कर्मचारी भी खड़े रहते हैं, आगे की चेकिंग करवा के फ्लाईट की इंतज़ार में बैठ के काफी पी और बाहर आते जाते विमानों को देख के तस्वीरे लेते रहे, बारिश भी उसी दिन झमाझम थी, दिल्ली एयरपोर्ट की जहाँ से हमने फ्लाईट के लिए जाना था छत टपकने लगी, आननफानन में एक मशीन आई और झट से टपकते पानी को सुखाने में लग गयी, मैंने मन में अपने घर में भी ऐसी मशीन की कल्पना की और उस से मिलने वाले सुखाने के सुख़ को सोच कर मुस्करा दी, वैसे इतने बड़े माने जाने वाले एयरपोर्ट में छत टपकी ही क्यों, यह भी सोचने वाली बात है।

बारिश बहुत तेज थी सो फ्लाईट बीस मिनट लेट चली, इस में बेटी ने जलपान की व्यवस्था भी करवा दी थी, बढ़िया से पनीर पालक रोल और समोसे के साथ हवा में गर्म काफी पीने का मजा ही कुछ और है, यह एहसास महसूस करके ही अच्छा लगा खुद को, रोज़ जाने आने वालों के लिए यह नयी बात न हो पर मेरा बच्चे सा मन हर हवाईयात्रा में यूँ ही प्रफुलित हो उठता है। जब चले तब तेज बारिश, थोडा सा ऊपर जाने पर हम बादलों के ऊपर थे और उसके ऊपर था फिर वही नीला विस्तृत आकाश, कुदरत के रंग अजब, और मन में विचार आया देख के आखिर इस नीले नभ के बाद क्या होगा, हवाई यात्रा शुरू होने से पहले संदेह था खिड़की वाली सीट मिलेगी या नहीं पर आते जाते दोनों बार खिड़की वाली सीट ही मिली, नीचे कुछ देर तक, शहर दिखे, फिर बादल और फिर वही बादलों के खेत, कई आकृतियों में ढलते हुए,

एक घंटे की हवाईयात्रा पलक झपकते ही समाप्त हो गयी और सामान कुछ अधिक था नहीं तो चंद मिनटों में बाहर थे, बाहर बेटी द्वारा करवाई गयी व्यवस्था रहने और कैब की पहले ही हो चुकी थी, सो कैब चालक "अमन" हमारा ही इंतजार कर रहा था, कैब में बैठते ही अमन का सवाल था, कि पहले इंदौर साईट सीन या सीधे होटल चलेंगे ? मैंने कहा होटल फिर फ्रेश हो कर आते हैं, उसने बताया की यहाँ बहुत कुछ नहीं है देखने को, और जो है मंदिर या म्यूजियम वह बाद में बंद हो जायेंगे, तो सोचा चलो फिर घूम ही लेते हैं, मैं अपना देखने वाला पूरा होम वर्क करके ही गयी थी और देखने वालीं जगह थी मेरे माइंड में, पर अपने ही शहर के प्रति इतनी उदासीनता दिखाने वाली की देख कर सच में उत्साहित मूड का बुलबुला थोडा सा "पिचके गुब्बारे सा फुस" हो गया। मैंने जो इंदौर के बारे में पढ़ा था कि यह मध्‍यप्रदेश के मालवा के पठार पर स्थित है यह शहर में 18 वीं सदी में बना एक मंदिर है जो भगवान इंद्रेश्‍वर को समर्पित है। इंदौर शहर का नाम इसी मंदिर के देवता के नाम पर रखा गया है। इस शहर की खोज राव नंदलाल चौधरी ने की थी। यह शहर कई महान राजवंशों और शासकों के नियमों का गवाह रहा है। लेकिन इतिहास में पन्‍नों में होलकर वंश के शासकों ने इंदौर को एक अलग पहचान दी है। इंदौर को मध्‍यप्रदेश का दिल कहा जाता है। यहाँ पर है चमचमाती नदियां, शांत झीलें और बुलंद पठार जो बहुत ही सुंदर दिखाई देते हैं यह शहर बीते समय का और आज के वक़्त का मिला जुला रूप है इंदौर एक ऐसा स्‍थान है जहां स्‍मारकों और स्‍थलों की सुंदरता, शहर को खास बना देती है।

खैर एयरपोर्ट से शहर तक का सफ़र शुरू हुआ, शहर को देख कुछ निराशा सी हुई, पुराने घर, सड़के झूला देती हुई, और कूड़े के जगह जगह ढेर, देख के दिल में यही ख्याल जब नए शहर में कोई पर्यटक दाखिल हो तो यह होटल, कैब चलाने वाला सुनश्चित करे कि उनको अपने शहर का बेस्ट पार्ट पहले दिखाना है, ऐसा इस लिए कह रही हूँ, इंसानी फितरत की तरह हर शहर के भी अच्छे बुरे दो चेहरे होते हैं, और हमने वापस आते हुए इंदौर का बेस्ट हिस्सा भी देखा, पर आते ही हम उस शहर के प्रति भी वही भाव बना लेते हैं जो पहली बार मिले इंसान के प्रति बनाते हैं, फिर उसी भाव से उस शहर को देखते हैं, और लगभग दस मिनट के बाद सडक के एक कोने में कार रुक गयी और सामने दिखते एक मंदिर की तरफ इशारा करके कहा गया आप वह देख आये यह यहाँ के सबसे बड़े गणपति जी का मंदिर है। मंदिर में गणपति की विशाल प्रतिमा थी गेरुएँ रंग में और उसके सामने आहाते में चार पांच श्रद्धालु वहीं जाना की यह भारत की सबसे बड़ी गणेश प्रतिमा है, और बहुत प्राचीन है, पर वहां के रख रखाव को देख कर निराशा ही हुई, हमने भी श्रद्धा से माथा टेका और धन्यवाद किया गणेश जी का यहाँ तक आने के लिए और वापस अपनी कैब में बैठ के कर अगले आकर्षण की तरफ चल पड़े,

इंदौर, उज्जैन बाबा शिव की नगरी है, सो हर तरफ कावड यात्रा का नजारा था, रजवाडा महल देखने जाने के लिए थोड़ी सी भीड़ से गुजरना पड़ा, रजवाड़ा, होलकर राजवंश के शासकों की ऐतिहासिक हवेली है। इस महल का निर्माण लगभग 200 साल पहले हुआ था इस महल की वास्‍तुकला, फ्रैंच, मराठा और मुगल शैली के कई रूपों व वास्‍तुशैलियों का मिश्रण है। यह इमारत, शहर के बीचों-बीच शान से खड़ी है जो सात मंजिला इमारत है। इस महल का प्रवेश बेहद सुंदर व भव्‍य है। यह पूरा महल लकड़ी और पत्‍थर से बना है। जल्दी से टिकट ले कर अन्दर गए तो सब तरफ ताले, पूछने पर पता चला की सब बारिश होने के कारण कच्चा हो के टूट के गिर रहा है इसलिए बस यही आंगन देखिये और सब नहीं देख सकते, बहुत अधिक निराश हुए जिस रजवाडा के बारे में पढ़ कर आई थी कि यह काफी पुराना दो सदी पुराना स्‍मारक है जो कि इस आधुनिक युग में भी भव्‍यता से इतिहास की गवाही देता खड़ा हुआ है। और यह भी सुना कि नगर के बीचोबीच स्थित इस स्मारक में १९८४ के दंगों के समय इसमें आग लग जाने से इसको बहुत नुक्सान हुआ था पर इसको काफी हद तक ठीक किया गया था, पर आज उसको अपने समक्ष बाहर से इतना खूबसूरत पर अंदर से खंडहर देख के अच्छा नहीं लगा।

अगला पडाव यहाँ का म्यूजियम था, वहां भी टिकट थी, अंदर जाते ही पुराने मूर्ति अवशेष दिखे जिन्होंने मन में इसको देखने की जिज्ञासा जाग गयी, कोई भी संग्रहालय किसी भी शहर की बीती विरासत को दिखाता है। कैसे कोई शहर आबाद हुआ क्या था यह वहां बने किसी संग्रहालय से जाना जा सकता है, इस संग्रहालय को केंद्रीय संग्रहालय के नाम से भी जाना जाता है। इंदौर संग्रहालय में हिंदू और जैन धर्म की कई मूर्तियों को रखा गया है। इस संग्रहालय में पुराने समय के कलाकृतियों, सिक्‍कों का संग्रह, हथियार, आदि रखे गए हैं।

यह सब पढ़ कर जब अंदर गए तो कुछ ऐसा विशेष नहीं लगा, बाहर एक छोटे से बोर्ड पर लतामंगेशकर की एक फोटो के साथ बहुत कम शब्दों में लिखा हुआ था कि इनका जन्म यही इंदौर में हुआ था, अपनी जन्मभूमि को यह अपने ही प्रसिद्धि सा समृद्ध करती तो यह सोच कर अच्छा लगता कि मालवा की भूमि पर अहिल्या बाई की तरह इन्होने भी अपनी जन्मभूमि को सिर्फ अपने पैदा होने के नाम भर से ही नहीं बलिक अपने धन से भी संवार दिया,,

सिक्के, मूर्ति विरासत सब थे पर मुझे वह उपेक्षित से लगे, दो अधेड़ उम्र की औरते वहीँ बने चबूतरे पर ढीली सी बैठी थी, उनकी नजरों में झाँका तो यही भाव दिखा, क्या देखने आये हो यहाँ, क्यूंकि दिल्ली की बारिश दिल्ली में छुट चुकी थी और यहाँ उमस भरी गर्मी थी, वाशरूम पूछने पर एक तरफ इशारा कर दिया चले जाओ उस तरफ, और वाशरूम भी मुझे उस संग्रहालय सा बियाबान लगा जहाँ सदियों से किसी ने पांव नहीं रखा हो, छिपकली और बड़े मकड़ी के जाले देख कर उलटे पांव बाहर आ गयी, हाँ बाहर इसको जरुर अच्छे से रखा गया है, पर मध्यप्रदेश की इतनी एड इतने बढ़िया विज्ञापन सुन कर देशी विदेशी पर्यटकों का यह सब देखना इस विज्ञापन को झूठा साबित कर देता है। बुनयादी जरूरतों का ऐसे स्थान पर ध्यान रखना हर सरकार का काम है और ख़ास कर उस सरकार का जिसको बेस्ट पर्यटन स्थल घोषित किया गया हुआ हो।

इसके साथ ही अभी का इंदौर दर्शन समाप्त करके थोड़ी देर विश्राम के लिए @Effotel Hotel Indore में पहुंचे, बहुत ही प्रेम पूर्वक स्वागत हुआ और साफ़ सुथरा बहुत ही सुंदर होटल देख कर अब तक की थकावट और कड़वाहट सब ठीक हो गयी यह इंदौर के बेस्ट होटल में है, शानदार कमरे में ही चाय और कुछ नाश्ता मंगवा लिया, जो की बहुत ही स्वादिष्ट था। कुछ देर रेस्ट के बाद आगे की भूमिका देखने की तय की गयी।

सर्राफा बाजार देखने का आकर्षण था ही और भी जगह थी, जैसे लालबाग स्मारक, काँच का मंदिर आदि वैसे यह जाना कि इंदौर मुख्यता मंदिरों का शहर है, सो शाम को वापस निकलने पर "अमन जी" हमको खजराना के गणेश मंदिर ले गए। यह मंदिर वाकई बहुत सुंदर बना हुआ है जिसमे गणेश जी कृष्ण जी और शिव आदि की आकर्षण मूर्तियां है येमंदिर विजय नगर से पास है और देवी अहिल्या बाई होलकर ने दक्षिण शैली में बनवाया था. साफ़ सुथरा और खूब रौनक वाला यह मंदिर बहुत देर तक हमें अपने आकर्षण में बांधे रहा, बहती मीठी हवा और वहां लगे सब पेड़ों पर सफ़ेद पक्षी बैठे हुए बहुत ही सुंदर दिख रहे थे। एक दो से उन पक्षियों के बारे में पूछा भी पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया।

इसके बाद हम यहाँ के मुख्य चौक पर आये यहाँ नए इंदौर की झलक दिखी, माल संस्कृति और ५६ दुकाने जो सिर्फ खाने पीने की थी बहुत ही आकर्षित करती है, कई तरह की नमकीन मिठाई और चाट, आदि ने तो जैसे बस मन ही मोह लिया, बटाटा नारियल टिक्की का स्वाद अभी लिखते हुए भी जुबान पर है पर कुछ खाया क्योंकि सराफा बाजार में मिलने वाले स्वादिष्ट व्यंजन खाने थे, सराफा बाजार पहुंच के लगा इंदौरी लोग खाने के बहुत ही शौकीन है, जोशी जी के दही भल्ले, भुट्टे की कीस, गराडू (जिमीकंद की तली हुई खट्टी चाट )मालपुए काला जामुन रबड़ी, गोलगप्पे सब ही बहुत स्वादिष्ट। देर रात तक लगने वाला यह बाजार वाकई अनूठा है। पुराने समय से शुरू किया गया यह बाजार आज भी अपनी पूरी रौनक के साथ मौजूद है। सोने के गहनों की दुकाने होने के कारण यह बाज़ार शुरू किया गया ताकि दुकानों की निगरानी रात में भी होती रहे, तब से यह खाने पीने की कई तरह के जायके के साथ रात के २ बजे तक गुलज़ार रहता है। खूब जायके लिए गए जब तक हमारे पेट ने हमसे हाथ जोड़ कर न खाने की गुजारिश की ।

रात के ११ बज चुके थे, सुबह के जगे हुए भर पेट लिए हम अपने आरामगाह पहुंचे और दिन भर के लिए फोटो देखते हुए सो गयी। सुबह हमने महेश्वर के लिए निकलना था। नाश्ता होटल में ही था, रात का खाया सुबह होते ही गायब था, यहाँ भी नाश्ता बहुत ही लजीज था, जलेबी पोहा, यहाँ का मशहूर है वह खाया, खाने की मेज कई प्रकार के खाने के स्वाद से सजी थी, जो अच्छा लगा खाया और होटल वालों को अच्छी मेहमान नवाजी के लिए धन्यवाद दिया

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