घुमक्कड़ी बंजारा मन की
(१०)
आमची मुंबई
मुंबई सपनो का शहर माना जाता है, वह सपने जो जागती आँखों से देखे जाते हैं, और बंद पलकों में भी अपनी कशिश जारी रखते हैं. हर शहर को पहचान वहां के लोग और वहां बनी ख़ास चीजे देती हैं | और मुख्य रूप से सब उनके बारे में जानते भी हैं.. जैसे मुंबई के बारे में बात हो तो वहां का गेट वे ऑफ इंडिया और समुंदर नज़रों के सामने घूम जायेंगे | उनके बारे में बहुत से लोग लिखते हैं और वह सब अपनी ही नजर से देखते भी हैं.. और वही नजर आपकी यात्रा को ख़ास बना देती है | किसी भी शहर को जानना एक रोचक अनुभव होता है.. ठीक एक उस किताब सा जो हर मोड़ पर एक रोमांच बनाए रखती है और मुंबई के समुन्दर में तो हर लहर में यह बात लागू होती है.. कि लोगो की भीड़ की लहर बड़ी व तेज रफ़्तार से भाग रही है या समुन्दर की लहरे तेजी से आपको खुद में समेट रहीं है |
मैं अभी हाल में ही मैं दूसरी बार मुंबई गयी. पहली बार ठीक शादी के बाद जाना हुआ था. तब उम्र छोटी थी और वो आँखों में खिली धूप से सपने देखने की उम्र थी. जम्मू शहर से शादी दिल्ली में हुई थी और उस वक़्त मनोरंजन का जरिया बहुधा फिल्म देखना होता था. कोई भी कैसी भी बस फिल्म लगी नहीं और टिकट ले कर सिनेमा हाल में. लाजमी था जब इतनी फिल्मे देखी जाती थी तो उस वक़्त नायक नायिका ही जिंदगी के मॉडल थे. खुद को भी किसी फिल्म की नखरीली हिरोइन से कम नहीं समझा करते थे, और नयी नयी शादी फिर उसी वक़्त मुंबई जाना एक सपने के सच होने जैसा था. पर वहां पहुँचते ही ऐसे वाक्यात और ऐसी भागमभाग देखी कि तोबा की वापस कभी इस नगरी में न आयेंगे.. जम्मू स्लो सीधा सा शहर दिल्ली में रहने की आदत मुंबई के तेज रफ़्तार से वाकई घबरा गयी. लोकल पर भाग कर चढना और बेस्ट बस के भीड़ के वह नज़ारे कभी भूल नहीं पायी. तीस साल के अरसे में.. याद रहा तो सिर्फ एलिफेंटा केव्स और जुहू चौपाटी पर घूमना ( तब वह कुछ साफ़ सा था ) खैर वह किस्से तो फिर कभी.. चर्च गेट के किसी रेस्ट हाउस में ठहरे थे.. अधिक दिन नहीं थे सिर्फ पांच दिन. जिस में एक दिन ससुर जी के किसी दोस्त के यहाँ लंच था.. लोकल ट्रेन पकड कर टाइम पर आने का हुक्म था और वहां अधिक जान पहचान न होने के कारण मुश्किल से सिर्फ खाना खाने जितना समय बिताया और यह मन में बस गया की मुंबई के लोग बहुत रूखे किस्म के होते हैं.. वरना नयी नवेली दुल्हन घर आये खाने पर और उसके कपड़ों की गहनों की ( जो सासू माँ ने सिर्फ वही पहन कर जाने की ताकीद की थी बाकी घूमते वक़्त पहनना मना था ) क्या फायदा कोई बात ही न करें और तो और घर के लोगों के बारे में भी अधिक न पूछे. दिल्ली वाले तो खोद खोद के एक पीढ़ी पीछे तक की बात पूछ डालते हैं. सो अधिक सोच विचार में समय नष्ट नहीं किया और यही सोच के दिल को तस्सली दी खुद ही "कौन से रिश्ते दार थे जो अधिक पूछते. पर वही अपने में मस्त रहने वाली आदत इस बार भी दिखी. एक वहां के मित्र से वापस आने पर कहा कि आपका शहर पसंद नहीं आया.. तो जवाब मिला. " हाँ लगता है कि आपको साफ़ बात बोलने वाले लोग पसंद नहीं अधिक " मैंने कहा साफ़ बोलने वाले लोग तो पसंद है पर उन लोगों में शहर को साफ़ रखने की भी तो आदत होनी चाहिए.
अभी जैसा की कहा दूसरी बार जाना हुआ अब.. जब छोटी बहन के पतिदेव मुंबई में पोस्टेड है.. उनका घर मुंबई की सबसे आलिशान जगह पर हीरानंदानी पवई लेक के पास ही है यही लालच और बहन के कहे से फिर से मुंबई जाने का दिल बना लिया । बारिश के मौसम में मुंबई देखने का एक सपना था.. पिक्चर में सुना गया डायलाग जहन में था मुंबई देखनी हो तो बारिश में आये तब यह अपने ही अलग रंग में होती है । तो यह रंग जब वक़्त ने दिखाने का इरादा किया तो राजधानी एक्प्रेस से पहुचं गए मुंबई. आप सोचे चाहे कुछ भी पर जहाँ का दाना पानी हो वह दाना पानी आपको बुला ही लेता है.
अँधेरी स्टेशन उतरते ही रिमझिम तेज बारिश ने स्वागत किया और नमकीन हवा साँसों में धुलने लगी । स्टेशन का वही हाल था जो पीछे राजधानी पर चलते वक़्त दिल्ली निजामुद्दीन में गंदगी देख कर आये थे... यह बात कभी समझ नहीं आई कि इतना भारी बजट का शोर मचाने वाला रेल मंत्रालय क्यों सफाई नहीं रख पाता कुछ हम आप लोगों की भी जिम्मेवारी बनती है, पर वही खुद से ही बहाना है कि इतनी पब्लिक है इतनी जनसँख्या और आम लोगों के सफ़र की जगह, आखिर कैसे साफ़ रहे. जैसे तैसे भीड़ से बचाते हुए स्टेशन से बाहर आये तो एक लम्बी सी लाइन लोगों की दिखाई दी. उस दिन मुंबई में ऑटो रिक्शा की स्ट्राइक थी, लगा टैक्सी के लिए यह लाइन लगी है, क्यों की हमने भी टैक्सी लेनी थी, और पता नहीं था की वहां से किस तरफ कैसे जाना है. बाद में पता करने पर यह लाइन बेस्ट बस के लिए थी. अच्छा लगा देख कर, दिल्ली में कहाँ कोई लाइन का पालन करता है ?"... बड़े लोगों ने कहा. बच्चों ने बहस की नहीं जी "मेट्रो के लिए दिल्ली के लोग पंक्तिबद्ध होते हैं" . खैर बहस को वही छोड़ कर टैक्सी से वहां तक ३५० में जाना तय किया गया... पहले ३०० रूपये और जब तक हम फ़ोन कर के बहन से सही पैसे जाने के पूछते तब तक वह ३५० पर पहुँच चूका था. उधर से बारिश जोर पकड रही थी. सो बैठ गए और चल पड़े सपनो की नगरी को बारिश में भीगते हुए देखते हुए.
हर शहर की अपनी एक महक होती है, और यह आपके ऊपर है कि वह गंध आपको पसंद है या नहीं, खैर मुझे थोडा वक़्त लगा इस गंध को अपनाने में. बारिश के पानी से भरी टूटी सड़कों से ग्रस्त और भारी ट्रैफिक जाम से पस्त फिर भी भीगा-भीगा सा भागता सा मुंबई। न रुकने की कसम खाया हुआ ही लगा ठीक पिछली बार इस शहर से हुई मुलाकात की तरह । हाई वे पर पहुच कर मुंबई के पहाड़ दिखे और उसकी तलहटी में बसी पवई लेक | यही पर बने हुए पवई लेक से कुछ दूर" हीरानंदानी गार्डन्स" और उस में बने आलिशान फ्लेट्स के उस इलाके की मुंबई को भी देखा इस बार। हरे-हरे पहाड़ों की तलहटी में सुंदर सुंदर मकान, बेहद सुंदर सी सड़कें, मुंबई के सबसे खूबसूरत और सबसे महंगे इलाकों में से एक है ये जगह। अचानक लगता है जैसे किसी बाहर के देश में आ गए हैं.. बहन ने कहा भी दीदी सिंगापुर भी इसके आगे फीका है.
आलीशान फ्लैट्स ऊपर बने नीले गुम्बद वाकई दिल मोह गए बस दिल किए जा रहा था कि बरसती बारिश में जंगले लगे बालकनी से बस यही नजारा देखते रहे बहते रहे इस मौसम की हवा में. बस यही गड़बड़ थी की कहीं भी वहां से जाने के लिए कम से कम दो तीन घंटे लग जाते थे, और इस स्वर्गिक जगह से निकलते ही जैसे किसी नरक के द्वार के दर्शन होने लगते थे. अधिकतर. काले काले बिल्डिंग में बसे घर. या हमारे जाने वाले रास्ते में वही दिखाई देते थे... नीले प्लास्टिक से ढकी झोपड़ियां और काले अजीब से पुराने घर क्यों हैं वहां... समुंदरी हवा के कारण शायद ? तो क्या कोई ऐसे पेंट नहीं है जो इसको सही हालात में रख सके ? या जो नए बन रहे हैं जो अभी बढ़िया हालत में दिखे वो भी ऐसे हो जायंगे ? काले रंग और उस पर बनी टेढ़ी मेढ़ी सर्पाकार लाइन खिंची हुई होने की वजह बहुत दिमाग लगाने पर भी समझ नहीं आई.. आख़िर में हार कर ऑटो वाले से पूछा तो जवाब मिला ऐसेच ही होता है और हर जगह नजर आता तो सिर्फ कूड़ा प्लास्टिक और गंदगी के ढेर.. और एक अजीब सी गंध नमकीन सी या न जाने कौन सी... पवई लेक दूर से बहुत सुन्दर लगी पर पास आने पर वही कूड़े से अटे हुए किनारे और उसी पानी में मछली पकड़ कर वहीँ बेचते लोग जो जगह जगह झुण्ड बना के मशगूल थे अपने कार्य में.. शर्तिया जब पवई लेक बनायी गयी होगी तब उसकी सुन्दरता बहुत स्वर्गिक रही होगी.. पर अब वहां किनारे पर कूड़ा ही कूड़ा नजर आया..
शायद लोगों को सुन्दरता पसंद नहीं.. इस मामले में दिल्ली भी कम नहीं.. पर वहां जा कर न जाने क्यों दिल्ली अधिक साफ सुथरी लगी.
वहां से जितनी बार क्रॉस किया बांद्रा या जुहू जाने के लिए. कमाल अमरोही स्टूडियो बड़े बड़े पेड़ों और बड़े बंद गेट के पीछे दिखता रहा और यही विचार आता रहा कि कभी यहाँ कितनी शूटिंग होती होगी
.. इन के बगीचे में लगे बड़े ऊँचे पेड़ों ने मीना कुमारी को देखा तो होगा. यहाँ के बगीचों पर चली भी होंगी अपने उन्ही नाजुक पेरों से... न जाने कितने किस्से उन हवाओं में उस दीवारों में अभी भी वक़्त बे वक़्त महक जाते होंगे.... उत्सुकता बहुत थी की काश देख पाती उस जगह को पर इत्ता आसान थोड़े न है. अभी तो वहां कोई शूटिंग होती भी है या नहीं पता नहीं चल पाया (वहां रहने वाले इस बारे में बता सकते हैं कुछ ).... यह मुख्य फर्क था हीरानंदानी और आगे क्रॉस करते हुए मुंबई शहर के फ्लेट्स में. जो अपने बने तरीके से इसको दर्शा रहा था
वही बात जो जहाँ रहता है उस को वही जगह पसंद है.. बदलाव बहुत कम लोग झेल पाते हैं और जो झेल लेते हैं वह जीवन में बहुत सुखी रहते हैं. जुहू बीच पर गुटका बेचने वाले (कोई मेहता या माणिक चंद )कुछ नाम साफ़ नहीं हुआ का महल नुमा बंगला देखा और उसी की दिवार से लगे ठेले पर कई तरह के दोसे खाए । उसके दूसरी तरफ गोदरेज का महल था हरे बड़े बड़े चिक या पर्दो से ढका हुआ । जुहू समुन्दर का किनारा कूड़े के ढेर में तब्दील था पर इस पर बने बंगलों पर रहने वालों की अपनी ही दुनिया थी. घर के पीछे की दिवार पर क्या नजारा है कौन देखे. खिड़की से दिखने वाला समुन्द्र तो अपनी लहरों से लुभा ही लेता है न,
वैसे यहाँ के मशहूर जगह के बारे में सब जानते हैं और सबको भाते भी हैं. जुहू, चौपाटी, गेटवे ऑफ इंडिया, होटल ताज. सब देखा, कुछ याद भी था हल्का सा और जो सबसे अधिक याद था वो था एलिफेंटा केव्स देखना वहां जाने के इरादा तो मन ने ठान ही लिया था... क्यों कि बच्चे साथ होने के कारण सिर्फ हीरो हिरोइन के घर देखने में अधिक रूचि रख रहे थे । पहले दिन की टैक्सी में तो पूरा दिन और आधी रात इसी कार्य को समर्पित कर दिया गया. हाजी अली भी दूर से देखा बारिश बहुत तेज थी तय हुआ कि आते हुए जाया जाएगा पहले अभिताभ बच्चन का घर. देखना उन्हें अधिक सही लग रहा था, बच्चे हैं माननी पड़ी उनकी बात... जलसा. प्रतीक्षा बाहर से न सिर्फ देखे गए वरन उनके बाहर खड़े गार्ड से पूरे परिवार की जानकारी भी ली गयी.. जैसे हम लोग उनके घर आमंत्रित थे और अफ़सोस कि वह लोग घर पर नहीं थे यह बात और है कि हर बड़े एक्टर के गार्ड ने यही कहा वह घर पर नहीं चाहे शाहरुख खान के गार्ड हो या सलमान खान के. किसी के घर महल और सलमान के घर को देख कर निराश हुए
अब पूछे कोई इन बच्चो से कि क्या ख़ास बात है उनके रहने में... कमाते हैं इतना तो रहेंगे भी वैसे " यार रहने दो वह भी इंसान है जैसे हम रहते हैं वैसे वह भी. पर याद आया कि हम भी कभी उम्र के इसी दौर से गुजरे हैं. वह दिन तो लगता है इसी कार्य के लिए था.. दो कार में थे सब लोग. घूमते जा रहे हैं.. भाई किस तरफ जाना है कोई पता नहीं आगे वाली कार में बच्चे थे सभी और हम बड़े पीछे उनको फालो कर रहे थे.. पाली हिल एरिया में ही थे और जब कार रुकी तो सामने राजकपूर का "कृष्णा राज बंगला "था उफ्फ्फ बच्चे रणधीर कपूर को देखने के लालच में फ़ोन से उनेक घर का रास्ता तलाशते हुए वहां पहुचं ही गए. सही कहूँ तो लालच तो था हमें भी था इस जगह को देखने का.. अभी वहां से बाहर खड़े उनके बंगले को देख ही रहे थे और बच्चो के पूछने पर की घर पर कोई नहीं है गार्ड्स का रटा रटाया जवाब सुन कर वापिस होने को ही थे कि गेट खुला और सामने की आती गाडी में रणधीर कपूर दिखा ! वावो था !!! लो जी हो गयी मुंबई यात्रा सफल. उस से पहले जुहू पर घूमते हुए एक बड़ा सा डॉग देखा था वहां बैठे नारियल वाले ने बताया था कि यह एक्टर गोविंदा का डॉग है रोज़ शाम को घुमने आता है यहाँ. तो बच्चे कह रहे थे कि दिल्ली जा कर क्या कहेंगे की वहां देखा तो क्या देखा सिर्फ गोविंदा का डॉग चलो जी बच्चो की मुराद के साथ हमारे दिल को ठंडक मिल ही गयी आखिर. उस वक़्त आठ बजे थे मुंबई में देर रात का कोई पंगा तो देखा नहीं था सो नरीमन पॉइंट पर जा का बैठा गया और वहीँ बैठ कर समुंदरी ठंडी हवा में चाय काफी भुट्टे का आनंद लिया गया सबसे बढ़िया समुन्द्र किनारा वही लगा मुझे तो.. मौज में आये तो ऊँचे सुर में गाना शुरू कर दिया.. मुंबई वाले शायद दिल्ली की इस बिंदास अदा से हैरान हुए सो कुछ देर बाद देखा की भरा होने के बावजूद हमारे आस पास खाली एरिया था इतना कि हम वहीँ पैर फैला कर लेट गए सुर - ताल से क्या लेना दिल की मौज है जब आई तभी बह लिए गानों में.
वहीँ बैठ कर अगले दिन का कार्यक्रम बनाया गया कि एलिफेंटा केव्स जरुर देखी जायेगी इस में भी दो लालच थे एक तो बच्चो ने समुन्दर में बोट में सैर की थी जो बारिश आने के कारण बहुत रोमंचक लगी थी तेज बारिश में बोट के उपरी हिस्से में बैठा जाना कभी भूल नहीं पाउंगी.. क्या नजारा था.. पानी ही पानी. समुन्दर की लहरों का पानी ऊपर से तेज बरसता पानी.. और क्या चाहिये था खुश होने के लिए, और दूसरा वह ही कुछ याद था बाकी मुंबई भूल रहा था और अधिक बदलाव भी नहीं लगा था. वही भगम भाग वही अपने से ही मतलब.. कोई किसी से कोई न वास्ता रखने वाला अपनी दुनिया में कहीं लॉस्ट.. वैसे यह बात मुंबई की पसंद भी आई.. आस पास कुछ भी हो.. कूड़ा है बिल्डिंग है.. जाम है भागमभाग है.... .... साइड में लिखा है बोर्ड पर "यहाँ पर गलत हरकत करने पर जुर्माना किया जाएगा" पर परवाह किसे है और इस लिए फिर भी शायद वहां की हवा में रोमांच है रोमांस है.. खुलापन है.. कोई कुछ भी कैसे भी है किसी का ध्यान नहीं.. बस अपनी दुनिया अपनी सपनो की रूमानियत.. युवा. अधेड़, उम्र का कोई लेना देना नहीं इस रोमांस से सब कोई अपनी ही रूमानियत में.. बहन ने कहा भी बच्चे तो बच्चे.... बाप रे बाप !!! .. या वहां दिल्ली के मुकाबले रोमांस की जगह बहुत है.. दूर दूर तक फैला समुन्दर का किनारा.. और वह नमकीन हवा या तो तेजी से असर करती है या यहाँ की मस्त रहने की वजह इसका कारण है | दिल्ली में इतना खुलापन नहीं है.. यहाँ की हर हरकत पर नजर रहती है आने जाने वालों की । लोदी गार्डन. हुमायूं टॉम्ब. इंडिया गेट आदि जगह पर जोड़े डरे सहमे से बैठे हुए दिखते हैं कुछ पुलिस की तेज नजर और कुछ आने जाने वाले यूँ घूरेंगे कि इश्क भी तोबा कर उठे. पर मुंबई वाकई बिंदास है.. हर शहर का अपना यही अंदाज़ उसको दसरे शहर से जुदा कर देता है...
मुंबई की बात हो और "सी लिंक "की बात न हो तो थोड़ी गलत बात है.. इंसान का बनाया एक खूबसूरत अजूबा जो अपनी सुन्दरता और बनावट से वाकई दिल मोह लेता है... उस पर जाना वो भी बारिश के मौसम में जन्नत सा महसूस करवा देता है । मुंबई की समुन्द्र की लहरों को देखना और उनसे बाते करना मेरा प्रिय शगल रहा. बहुत लकी है मुंबई वाले कि उनके पास समुन्दर है. वहां की फेमस खाऊ गली से मुंबई के फेमस स्ट्रीट फ़ूड खा कर और कई तरह के शेक पी कर ख़ुशी हुई.. मुंबई खाने पीने के मामले में दिल्ली से सस्ता है.. यहाँ आराम से कम रकम में बड़ा पाव खा कर पेट भरा जा सकता है शायद यही कारण है की मुंबई के बारे में सही कहा जाता है यहाँ जो भी आता है वह भूखा नहीं सोता.... और साथ ही बीतती शाम के साथ आती है याद यह खूबसूरत गजल तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे..... मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे........
"हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह"मुंबई यात्रा लिखे जाने के अब अंतिम पडाव पर है. अब मुंबई की बारिश का जिक्र और मुंबई से लोनावाला रास्ते की खूबसूरती जो देखते ही बनती है उसका ज़िक्र करना जरुरी है. इसको पूना मुंबई का मुख्य प्रवेश दरवाज़ा भी कह सकते हैं बरसात के मौसम में इसकी खूबसूरती अक कोई जवाब नहीं !
और रास्ते में मिलने वाले पुलिस वाले अपनी जुगाड़ की जुगत में कई तरह के टैक्स वसूलते हुए मिले का कोई तोड़ नहीं ! लोनावाला महाराष्ट्र का एक हिल स्टेशन है। रस्ते भर में मिलने वाले बरसाती झरनों और सुरंगों मन मोह लिया । और वहां पहुँच कर जो मौसम का नजारा दिखा उसको शब्दों में ब्यान करना मुश्किल है …। बाद्लो पर हम थे या बीच में कहीं गुम थे वो शब्द ब्यान नहीं कर सकते हैं बारिश के ठन्डे मिजाज में बादलों की आवाजाही कमाल थी और उस पर गर्म गर्म कई तरह के पकोड़े उफ़ लाजवाब थे हमेशा याद रहने वाले जगह में से एक है यह जगह ज़िन्दगी भर … अगले दिन एलिफेंटा केव्स देखने का प्रोग्राम तेज धूप में स्टीमर पर ऊपर बैठने का मंजर भी कभी भूला नहीं जा सकता है एक घंटे का सफ़र राम राम करके पूरा हुआ …और वहां पहुंचते ही तेज बारिश शुरू हो गयी स्टीमर से उतरते ही टॉय ट्रेन में बैठने के मोह से कोई बच नहीं पाया और छुक छुक करती उस ट्रेन में मस्ती करते हुए जाना कैसे भुला जा सकता है और पर एक सौ बीस सीढियां वो भी तेज बरसात में भी नहीं भुला जा सकता, अरब सागर के टापू पर स्थित एलिफेंटा में कुल सात गुफाएं हैं जिनमे पांच हिन्दू और दो बौद्ध हैं। बड़ी ही खूबसूरती से पत्थर पर शिव की नौ मूर्तियाँ बनी हुई है जिनमे शिव के अलग अलग तरह के रूप और मुद्राओं को दर्शाया गया है। ब्रह्मा विष्णु महेश की त्रिमूर्ति तो देखने लायक है । शिव पार्वती की शादी से ले कर चौपड़ खेलने की बात और पंचपरमेश्वर और अर्धनारीश्वर रूप को वहां गाइड ने बहुत ही रोचक ढंग से ब्यान किया अच्छा रहा यह मुंबई का सफ़र खाने पीने की मस्ती से लेकर कार में और वहां रहने वाली अपनी कजन सिस्टर की बेटी की मदद से लगता है हमने मुम्बई की हर सड़क को देख लिया । हर अंदाज़ में मुंबई बिंदास लगी बारिश है तो वो भी बिंदास अभी तेज धूप है तो अभी तेज बारिश जैसे सब कुछ डूब जाएगा।
अपने अंदाज़ में बरसती यह बारिश वाकई कमाल थी । और मुंबई भी दिल्ली और मुम्बई के बारे में अंतर करने लगे तो वह बहुत मुनासिब नहीं होगा. हर शहर हर शख्स की तरह खुद में बुराई अच्छाई लिए हुए है. और दोनों में वही बुराई भी और अच्छाई भी. पानी का समुन्दर मुंबई के पास है तो भीड़ का समुन्दर दोनों शहरो के पास. दिल्ली में भी धीरे धीरे खुद में मस्त रहने की आदत पनपती जा रही है. पर फिर भी अभी खत्म नहीं हुई, और भी बहुत कुछ जिसे वहां जा कर खुद ही महसूस किया जा सकता है और समझा जा सकता है.... अभी इतना ही.. शिव कुमार बटालवी की दो पंक्तियाँ याद आरही है...... "यादों की एक भीड़ मेरे साथ छोड़ कर, क्या जाने वो कहाँ मेरी तन्हाई ले गया|"
सफ़र खत्म हो जाते हैं वहां से आने के बाद पर उसकी यादे उसी सफ़र में डूबी रहती है और कहती है कभी अपने किसी लेख में या कभी अपनी किसी कविता के माध्यम से …. वहां के कुछ शब्द रास्ता पूछने पर । इधर से कट मारो उधर से कट मारो …सो मिलते हैं इसी तरह कोई और शहर के बारे में कट मारते हुए, और मुंबई की बारिश पर अपनी लिखी कुछ पंक्तियाँ याद आ रही है.........
देख के सावन झूमे है मन
दिल क्यूँ बहका लहका जाए
बादल की अठखेलियाँ
बारिश की बूदें
मिल के दिल में
उत्पात मचाए
भीगे मन और तन दोनो
ताल-तलैया डुबो जाए
देख के सब तरफ हरियाली
मयूर सा दिल नाचा जाए
यात्रा समाप्त..... अगले किसी शहर की महक ले कर फिर से मुलाकात होगी आपसे.. शुक्रिया उन सभी दोस्तों का जो इस मुंबई लेखन यात्रा के सफ़र में हमसफर बन कर पढ़ते रहे.
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