Das Darvaje - 25 in Hindi Moral Stories by Subhash Neerav books and stories PDF | दस दरवाज़े - 25

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दस दरवाज़े - 25

दस दरवाज़े

बंद दरवाज़ों के पीछे की दस अंतरंग कथाएँ

(चैप्टर - पच्चीस)

***

आठवाँ दरवाज़ा (कड़ी -3)

आलिया : मैं सबसे ऊपर

हरजीत अटवाल

अनुवाद : सुभाष नीरव

***

उस दिन अस्पताल से लौटकर वह कई दिनों तक रोती रहती है। बड़ी कठिनाई से वह यह सब भूल पाती है। धीरे-धीरे पहले वाली रौ में आने लगती है।

मैं इंडिया जाता हूँ। हमीदा आलिया से बहुत दुःखी है। एक तो उसने पैसे भेजने बंद कर दिए हैं और दूसरा उनकी इच्छा के अनुसार विवाह भी नहीं करवा रही। वह मुझसे कहता है -

“छोटे भाई, यह लड़की बहुत हठी है, पर तेरा कहना नहीं टालेगी। तू ही वहाँ कोई ज़रूरतमंद-सा लड़का देखकर उसका विवाह कर दे। मुसलमान लड़का मिल जाए तो बहुत बढ़िया, नहीं तो कहीं और... मुझे अकेली घूमती-फिरती अच्छी नहीं लगती।”

मैं यह बात आलिया से करते हुए कहता हूँ -

“देख, अब मेरे बच्चे बड़े हो रहे हैं। मेरी घरवाली भी पहले से अधिक सर्तक हुई जाती है। अब मेरे पास तुझसे मिलने आने के सारे बहाने भी खत्म हो चुके हैं। कहीं ऐसा न हो कि मेरे घर में बम फूट जाए और मैं दलबीर की तरह घर से बाहर हो जाऊँ और मुझे भी टीके लगते फिरें।”

“हाय, मैं मर जाऊँ जोगी जी! शुभ शुभ बोलो।”

“फिर तू मेरा कहना मान। यह सारा चक्कर खत्म कर और विवाह करवा ले।”

वह सोच-विचार में पड़ जाती है और कुछ नहीं कहती। कुछ देर बाद मैं कहता हूँ -

“तेरी शादी होगी तो तेरे पास कोई बातें करने के लिए होगा। तेरे बच्चे होंगे। ज़रा सोच कि वह लाइफ़ कितनी बढ़िया होगी।”

उसकी चुप बता रही है कि वह मेरी बात से सहमत है। फिर वह आहिस्ता-से कहती है -

“तुम श्योर हो कि ये सब ठीक रहेगा?”

“बिल्कुल श्योर हूँ। सौ फीसदी श्योर!”

“फिर जैसा तुम्हें ठीक लगता है, देख लो, पर मैं इंडिया से डैडी के कहने पर लड़का नहीं मंगवाऊँगी।“

अब मुझे यह चिंता आ घेरती है कि उसके लिए लड़का कहाँ से खोजूँ। मुझे लड़के-लड़कियाँ तलाश करने का कोई अनुभव ही नहीं। मैं उससे पूछता हूँ -

“तुझे कोई लड़का पसंद है?”

“क्या बात करते हो जोगी जी, मैंने कभी ऐसा सोचा ही नहीं। यह तो तुम्हारी प्रॉब्लम है।” कहते हुए वह हँसने लगती है।

अब मैं प्रायः आलिया के लिए लड़का ढूँढ़ने के बारे में सोचने लगता हूँ। एक-दो मित्रो से उसके बारे में बात करता हूँ और कहता हूँ कि यदि कोई ज़रूरतमंद हो तो बताएँ।

एक दिन मेरे मोबाइल पर घंटी बजती है। कोई अनजाना-सा नंबर आ रहा है। मैं फोन ऑन करता हूँ। उधर से एक औरत ‘सत्श्री अकाल’ बोलकर कहती है -

“भाई साहब, मेरा नाम जिंदी है। मैं आलिया के साथ काम करती हूँ।”

“बताओ, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ? ”

“भाई साहब, मेरा भाई यहाँ रहता है मेरे पास ही। बहुत अच्छा लड़का है। आप एक बार आलिया के लिए देख लो। मुझे यकीन है कि आपको पसंद आएगा।”

“आप आलिया से ही बात कर लो।”

“मैंने आलिया से ही पूछा था, पर उसने आपका नंबर दे दिया।”

मैं आलिया को फोन करता हूँ तो वह बताने लगती है -

“मेरे साथ काम करती है यह लड़की। मेरे पीछे पड़ी हुई है कि इसके भाई केवल से मैं विवाह करवा लूँ, पर मुझे वह अच्छा नहीं लगता।”

“अच्छा क्यों नहीं लगता?”

“पता नहीं क्यों, बस पसंद नहीं।”

“देखने में कैसा है?”

“देखने में तो ठीकठाक है, पढ़ा-लिखा भी है, मेहनती भी है, पर मेरे मन को क्लिक नहीं कर रहा, पता नहीं क्यों।”

“देख आलिया, सोलह कला सम्पूर्ण तो तुझे कोई मिलेगा नहीं। थोड़ा-सा इसके बारे में सोचकर देख, शायद पसंद आ जाए, पर एक बात है कि अपने बारे में उसको सारी बात पहले ही खोलकर बता देना।”

“यह तो वे सब जानते हैं, जिंदी मेरी खास सहेली है।”

बात कुछ और आगे बढ़ती है। धीरे-धीरे आलिया को वही लड़का अच्छा लगने लग पड़ता है। मैं भी केवल से मिलता हूँ। मुझे भी वह शरीफ प्रतीत होता है। सारी बात सफलता की सीढ़ी चढ़ने लगती है। कुछ महीनों बाद सादा-सा विवाह हो जाता है। आलिया केवल के साथ रहने लगती है। मुझे अब वह फिर से ‘भाजी’ कहकर मुखातिब होने लग पड़ती है। मैं पूछता हूँ -

“यह क्या है?”

“मैंने तो तुमसे बहुत कहा था, पर तुमने मेरी एक न सुनी। अब मुझे अपनी ज़िन्दगी जीनी है, अपने पति की बनकर।”

“कभी कभी ईदी मिलती रहे तो ठीक रहे।”

“नहीं, कभी भी नहीं।” कहते हुए वह गंभीर हो जाती है।

वक्त बीतने लगता है। आलिया अपने घर में खुश है। जब कभी फोन करती है तो वह अपने पति की तारीफों के पुल बाँधते नहीं थकती। बाकी के रिश्तेदार भी उससे बहुत खुश हैं। उसको खुश देखकर मुझे भी तसल्ली होती है। वक्त राज़ी-खुशी व्यतीत होने लगता है। वे दोनों काम करते हैं और शीघ्र ही बड़ा-सा घर ले लेते हैं। आलिया अब कभी-कभी ही मुझे फोन करती है, जब कभी उसे कोई काम हो। नहीं तो वह अपने घर में घुल-मिल चुकी है।

एक दिन उसका फोन आता है। कहती है -

“भाजी, सब गड़बड़ हो गया।”

“क्या हो गया?”

“मैं डॉक्टर के गई थी, केवल भी मेरे साथ था।”

“डॉक्टर के पास क्या करने गए थे?”

“क्योंकि मेरे बेबी जो नहीं ठहर रहा।”

“डॉक्टर क्या कहता है?”

“उसने मुझे अस्पताल भेजा था और अस्पताल से मिली रिपोर्ट पढ़कर डॉक्टर केवल के सामने ही कहने लगा कि जो तुमने पहला बेबी गिराया था, उसके कारण ही कोई गड़बड़ हुई है। दोबारा अस्पताल जाना पड़ेगा।”

“फिर इसमें कौन-सी मुश्किल है, हो आ अस्पताल।”

“वो तो मैं हो आऊँगी, पर केवल पूछने लग पड़ा है कि यह बच्चा कब गिराया और किस का था। जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया तो वह लड़कर घर से चला गया।”

“उसे पता तो था कि तू पहले शादीशुदा थी।”

“वो तो ठीक है पर डॉक्टर के रिकार्ड में दलबीर से तलाक के बाद की यह घटना है।”

“उससे कह कि दलबीर से बेशक तलाक हो गया था, पर वह घर आता जाता था।”

“उसने विवाह से पहले ही सब पता कर लिया था। वह दलबीर की सेहत के बारे में सबकुछ जानता है।”

“कुछ ज्यादा ही गुस्सा हुआ फिरता है?”

“बहुत ज्यादा, बहुत अबा-तबा बोलकर गया है।”

“फिर?”

“फिर क्या? करो कुछ।”

“मैं सोचता हूँ कुछ, करता हूँ कुछ।”

उससे तो मैं कह देता हूँ, पर मेरी समझ में नहीं आ रहा कि करूँ क्या। एक दिल करता है कि केवल से जाकर मिलूँ और समझाऊँ कि यह सब उसका वहम है। कभी दिल करता है कि डॉक्टर से जाकर लड़ूँ कि उसने आलिया के मेडिकल रिकार्ड के बारे में केवल को क्यों बताया। हर मरीज़ का हक है कि उसका मेडिकल रिकार्ड गुप्त रखा जाए। सोचते-सोचते मेरे कई दिन निकल जाते हैं। अंत में एक दिन मैं केवल से जाकर मिलता हूँ। उसके साथ बातचीत करने का यत्न करता हूँ। परंतु वह बहुत गुस्से में है और मेरी एक नहीं सुन रहा। मैं भी गुस्से में आने लगता हूँ। थोड़ा सख़्त स्वर में कहने लगता हूँ -

“केवल, एक बात तो तू जानता है कि विवाह से पहले हर इन्सान की ज़िन्दगी भिन्न होती है। ख़ास तौर पर इस मामले में तुझे पता था कि आलिया कुआँरी कंजक तो थी नहीं, यही हाल तेरा होगा।”

“यह तो मैं समझता हूँ जी।”

“फिर विवाह के समय यह बात तय हो गई थी कि तुम दोनों आज के बाद दुबारा एक दूसरे की बीती ज़िन्दगी में नहीं झाकोंगे, कोई बात नहीं करोगे।”

“बिल्कुल जी, तुम्हारी सारी बातें ठीक हैं, पर मैं जो कुछ कहने की कोशिश कर रहा हूँ कि इसका विवाह के बाहर भी किसी दूसरे के साथ रिश्ता था जो इसने मुझे बताया नहीं। वो रिश्ता आज भी कायम हो सकता है। इस तरह तो यह मेरे साथ वफ़ादारी न हुई, न।”

“तुझे कैसे मालूम कि इसका अभी भी रिश्ता हो सकता है? ”

“क्योंकि यह बता नहीं रही कि इसने किसका बच्चा गिराया था।”

“तू गड़े मुर्दे क्यों उखाड़ना चाहता है?”

“क्योंकि मैं इसका हसबैंड हूँ।”

वह गुस्से में हाथ मारकर कहता है। मैं फिर कहता हूँ -

“जब बात हो गई कि विवाह से पहले जो भी हुआ, वो सब खत्म, फिर तू ये सवाल बार बार क्यों कर रहा है?”

“क्योंकि मैं हसबैंड हूँ।”

“यार केवल, तेरी सुई इस बात के इर्दगिर्द ही घूमे जाती है कि तू उसका हसबैंड है, उसने भी कभी तेरे से ऐसा तेरी पुरानी लाइफ़ के बारे में कोई सवाल किया?”

“पर भाजी, मेरे इतने से सवाल का जवाब वो क्यों नहीं देती कि यह बच्चा किसका था। यह बात बता दे, बस।”

“वो बच्चा मेरा था।” मैं गुस्से में आकर कहता हूँ। केवल एकदम चुप हो जाता है और शून्य में देखने लगता है। मैं फिर कहता हूँ -

“देख केवल सिंह, आलिया बहुत ही अच्छी लड़की है। बेहद ईमानदार, सच्ची और पवित्र। शायद तू इस बात की कीमत न आंक सके।”

वह अभी भी खामोश है। मैं अपनी बात जारी रखता हूँ -

“यह ऐसी लड़की है कि सदा एक मर्द की होकर रहने में ही यकीन रखती है। जब तक वह दलबीर के साथ रही, मेरे साथ इसने वास्ता नहीं रखा। दलबीर की सेहत का तुझे पता ही है, फिर भी दो-तीन साल इसने गऊ बनकर निकाल लिए, उसके प्रति पूरी वफ़ादार रही और उसकी जी भरकर सेवा की।”

“पर भाजी...। ”

वह कुछ कहने की कोशिश करता है, पर मैं उसकी बात टोककर कहना जारी रखता हूँ -

“दलबीर के बाद इसका वास्ता मेरे से जुड़ गया। जुड़ा भी ऐसा कि इसने दूसरा विवाह करवाने से इन्कार कर दिया। इसके घरवाले इसकी मिन्नतें करते करते थक गए, पर यह नहीं मानी। तेरे साथ विवाह का तो इसने सपना भी नहीं देखा था। यह तो मेरे साथ ही सारी उम्र विवाह के बग़ैर रहने का फै़सला किए बैठी थी।”

“फिर क्यों?”

“क्योंकि मुझे इसके भविष्य की चिंता थी। यह मैंने ही इससे कहा, मैंने ही इस पर ज़ोर डाला कि विवाह करवा ले। मैं तो अपना भरपूर घर छोड़कर इसके साथ नहीं रह सकता था, सो मैं सोचता था कि यह मेरे लिए अपनी ज़िन्दगी क्यों खराब करे... और उन्हीं दिनों में तेरी बहन का मुझे फोन आया और तेरे लिए आलिया का हाथ मांगने लगी।”

केवल के चेहरे पर पहले जैसा तनाव नहीं रहता। बात करते हुए अचानक मुझे स्मरण हो आता है -

“तूने यह बात अपनी बहन से क्यों नहीं पूछी। वह तो आलिया को काफ़ी समय से जानती है।”

मैं पलभर के लिए चुप हो जाता हूँ कि देखूँ कि वह क्या कहता है। लेकिन वह भी कुछ नहीं बोलता। मैं उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहने लगता हूँ -

“देख केवल सिंह, आलिया बहुत ही अच्छी लड़की है, मैं शर्त लगाकर कह सकता हूँ कि तुझे ऐसी लड़की नहीं मिलेगी। तूने भी दुनिया देखी हुई है, यदि तू आलिया के साथ नहीं रहना चाहता तो कोई बात नहीं। ऐसी लड़की को लड़कों की कोई कमी नहीं, तुझे भी और लड़कियाँ मिल जाएँगी, पर उनमें आलिया कोई नहीं होगी।”

केवल मेरी तरफ देखता है। मैं एकबार फिर कहता हूँ -

“मेरा यकीन कर, आलिया जैसी वफ़ादार लड़की आम नहीं होती।”

मेरी बातों का केवल पर असर हो जाता है। उनकी आपस में सुलह हो जाती है।

इस बात को कई वर्ष हो चुके हैं। यह सारी कहानी गुफ़ा में बंद हो जाती है। आलिया अपने परिवार के साथ यॉर्कशायर में रहती है। उसके बच्चे दौड़े फिरते हैं। केवल का अपना डबल ग्लेजिंग का काम है। आलिया भी किसी फैक्ट्री में काम करती है। अपने घर में खुश है। मुझे वह कभी-कभार ही मिलते है। हाँ, कभी-कभी वह फोन कर लेते हैं। केवल को पढ़ने का शौक है, कभी लंदन आता है तो मेरी लायब्रेरी में से किताबें उठाकर ले जाता है।

एक दिन आलिया का फोन आता है। वह हमीदा के बीमार होने के बारे में बताती है। अन्य बातें भी चलती है तो वह पूछती है -

“और आजकल क्या हो रहा है?”

“आजकल मैं यादों की गलियों में घूम रहा हूँ। बंद दरवाज़ों को खोल खोलकर गुफाओं के अंदर घुसकर बीत चुके समय का सामना कर रहा हूँ।”

“जोगी जी, सीधे-सीधे कहा कि पुरानी सहेलियों को याद कर रहे हो।”

“ऐसा ही सोच ले।”

“जितनी चाहे कहानियाँ डाले जाओ, पर मैं सबसे ऊपर हूँ...! ”

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अगली किस्त में खुलेगा ‘नौंवें बंद दरवाज़े’ के पीछे की अंतरंग कथा का रहस्य… क्या है वो अंतरंग कथा, जानने के लिए अवश्य पढ़ें अगली किस्त जिसमें हम आपके लिए ‘नौंवाँ बंद दरवाज़ा’ खोलने जा रहे हैं…