Das Darvaje - 15 in Hindi Moral Stories by Subhash Neerav books and stories PDF | दस दरवाज़े - 15

Featured Books
  • મારા અનુભવો - ભાગ 19

    ધારાવાહિક:- મારા અનુભવોભાગ:- 19શિર્ષક:- ભદ્રેશ્વરલેખક:- શ્રી...

  • ફરે તે ફરફરે - 39

      નસીબમાં હોય તો જ  કહાની અટલા એપીસોડ પુરા  ક...

  • બોલો કોને કહીએ

    હમણાં એક મેરેજ કાઉન્સેલર ની પોસ્ટ વાંચી કે  આજે છોકરાં છોકરી...

  • ભાગવત રહસ્ય - 114

    ભાગવત રહસ્ય-૧૧૪   મનુષ્યમાં સ્વાર્થ બુદ્ધિ જાગે છે-ત્યારે તે...

  • ખજાનો - 81

    ઊંડો શ્વાસ લઈ જૉનીએ હિંમત દાખવી." જુઓ મિત્રો..! જો આપણે જ હિ...

Categories
Share

दस दरवाज़े - 15

दस दरवाज़े

बंद दरवाज़ों के पीछे की दस अंतरंग कथाएँ

(चैप्टर - पंद्रह)

***

पाँचवा दरवाज़ा (कड़ी -3)

ओनो : मुझे भूलकर दिखा

हरजीत अटवाल

अनुवाद : सुभाष नीरव

***

उसके जन्मदिन पर मैं उसको उसके घर से लेने जाता हूँ। वह सचमुच चीनी ड्रैस पहनकर आती है। मैं उसकी तरफ देखता रह जाता हूँ। वह अपना पीले रंग का लम्बा गाउन संभालती कार में बैठते हुए कहती है -

“मेरे समाज में अपने पति की आज्ञा का पालन करना बहुत आवश्यक है। जो तू कहेगा, वही करूँगी।”

“थैक्यू ! ”

मैं उसको कैजिंग्टन के मशहूर रेस्टोरेंट ‘ताज’ में ले जाता हूँ। मेरे मन में यह डर-सा है कि शायद ओनो को मेरे साथ देखकर कोई फब्ती कसे, पर इसके लिए मैं तैयार भी हूँ। यदि कोई बुरा शब्द बोला तो मैं लड़ पड़ूँगा। मैं चैकन्ना-सा होकर इधर-उधर देखता हूँ। सब लोग अपने आनन्द में मस्त हैं, हमारी तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा।

उसके वीज़ा की समाप्ति को एक महीना रह जाता है। आने वाले भविष्य को लेकर उसने सारी योजना बना रखी है। वीज़ा खत्म होने से पहले पहले उसको एक बार सिंगापुर जाना पड़ेगा और वहाँ से वह दुबारा वीज़ा लेकर आ सकती है। वापस आएगी तो हम विवाह करवा लेंगे और यहाँ स्थायी निवास के लिए आवेदन कर देंगे। एक दुकान खरीदने योग्य धन उसका पिता दे देगा जिसमें हम मसाज पार्लर या कोई अन्य नया कारोबार शुरू कर देंगे और आनंदपूर्वक रहेंगे। कभी कभी दिल करता है कि उसको ये सपने लेने से रोक दूँ जो कभी पूरे नहीं होंगे, पर मेरे से ऐसा हो नहीं पाता। एक दिन वह कहती है -

“चल आ, तेरी अपने पिता से बात करवाऊँ। बड़ी मुश्किल से इंदियन लड़के के साथ विवाह के लिए माना, पर मेरी माँ अभी भी नहीं मान रही।”

“ओनो, मैं तेरे पिता से अभी कोई बात नहीं कर सकता।”

“क्यों? ”

“क्योंकि मेरे में अभी इतनी हिम्मत नहीं। मैं कुछ दिनों में ही ऐनिया से पीछा छुड़ाकर तेरे मम्मी-डैडी से बात करूँगा।”

“चल, मैं तेरे साथ ऐनिया के पास चलती हूँ। उससे कहूँगी कि हम विवाह करवा रहे हैं और वो हमारे रास्ते से हट जाए।”

“नहीं, यह नहीं हो सकेगा।”

“कहीं ऐसा तो नहीं, तू मेरे साथ विवाह करवाना ही न चाहता हो?”

“कैसी बातें करती है तू?”

बात करते मेरा मन भर आता है। मेरे अन्दर की गुनाह भावना मुझे तंग करने लगती है। साथ ही साथ, मैं अन्दर ही अन्दर डरने भी लगता हूँ कि मैं तो सच में ही ओनो से जुड़ गया हूँ। अब मैं उसको छोड़ भी नहीं सकूँगा। मुझे लगता है कि मेरे बुरे दिन प्रारंभ होने वाले हैं।

एक दिन मैं उससे कहता हूँ -

“तू ऐसा कर, यह किराये का कमरा छोड़ दे और शेष दिन मेरे घर में आकर रह।”

“मैं ऐसा कर सकती हूँ पर पहले तू मुझे अपने भाई-बहन से मिलवा, उनसे मिलकर मुझे लगे कि मेरा कोई और भी है इस मुल्क में।”

“अभी उनसे मिलना खतरे से खाली नहीं।”

“एक दिन तो उनको इस सच का सामना करना ही पड़ेगा, सो कल की जगह आज ही क्यों नहीं।”

वह ज़ोर डालकर कहने लगती है। लेकिन मैं उसकी बात नहीं मानता। वह मेरे घर आकर रहने से इन्कार कर देती है।

एक दिन मेरा भाई मुझसे मिलने आ जाता है। उस समय ओनो मेरे घर पर ही होती है। वह पहली नज़र में ओनो को देखकर गुस्से में आ जाता है, पर फिर सहज हो जाता है। अब तक इतनी स्त्रियों के साथ मेरी दोस्ती रह चुकी है कि भाई ने मुझ पर खीझना भी कम कर दिया है। हम दोनों बियर पीने लगते हैं। ओनो हमारे लिए खाना बनाने लगती है। हमारी सेवा में वह फिरकी की तरह दौड़ी फिरती है। भाई ओनो की ओर देखते हुए कहता है -

“कहीं तू इसे पक्के तौर पर तो नहीं रख रहा? ”

“नहीं भाजी, यह तो कुछ दिनों तक वापस सिंगापुर जाने वाली है।”

“पर यह बिहेव तो ऐसे कर रही है जैसे घर की मालकिन हो।”

“चीनी लोगों का कल्चर ऐसा है कि यह अपने पति की बहुत सेवा करती हैं।”

“कल्चर तो हमारा भी यही है, पर विवाह के बाद तो औरतें सिर पर चढ़ बैठती हैं... इससे बच, कहीं बच्चा-वच्चा बनाकर तेरे गले ही न पड़ जाए।”

मुझे उसकी बात ज़रा चिंतित कर देती है, पर मेरे दिल का कोई कोना चाह भी रहा है कि किसी न किसी तरह ओनो मेरे गले पड़ ही जाए। मेरे भाई से मिलकर ओनो बहुत खुश है। वह समझती है कि उसे मेरे परिवार की ओर से मंजूरी मिल गई है।

उसका वापस लौटने का दिन आ जाता है। वह अपना सारा सामान मेरे घर में ला रखती है। इतना सामान जैसा कि पूरे परिवार का होता है। इस सामान को ढोने के लिए मुझे कार के तीन चक्कर लगाने पड़े हैं। रसोई के ऐसे बर्तन जो मैंने कभी नहीं देखे - चावल बनाने का कूकर, सब्जी बनाने का कूकर, मछली बनाने का कूकर, खूबसूरत क्रॉकरी। मेरी रसोई, मेरा बेडरूम दोनों ही सामान से भर जाते हैं। इस सारे सामान में उसका एक विशेष सामान है - रेडियो क्लॉक। इसका अलार्म खूबसूरत संगीत से बजता है। इसमें कई किस्म की धुनें हैं। जो चाहे धुन अलार्म में लगा लो। मुझे सबसे मोहक धुन चीनी संगीत की लगती है। मैं इस अलार्म में वो धुन लगा देता हूँ।

वह चली जाती है। मैं सजल आँखों से उसको एयरपोर्ट पर विदाई देता हूँ। वह कहती है -

“क्यों रोता है?...मैं बस गई और आई। यह तो वीज़ा की खातिर मुझे जाना पड़ रहा है। अब मैं विवाह का वीज़ा लेकर लौटूँगी, फिर हैप्पी एदिंग आफ दा लव स्तोरी लाइक इंदीयन फिल्मज़ !”

वह सिंगापुर पहुँचकर मुझे फोन करती है। मैं उसके फोन नंबर पर वापस फोन करता हूँ। उसके पिता के साथ भी मेरी बात होती है और माँ के साथ भी। वे बहुत खुश हैं, पर मेरे अन्दर हर समय कुछ टूटता-फूटता रहता है।

कुछ दिन बाद ही मेरा ब्रिटिश पासपोर्ट बनकर आ जाता है। मेरा भाई कहता है -

“बहुत हो गई मटरगश्ती ! अब इंडिया के लिए हवाई जहाज चढ़ जा और जिस भी लड़की पर उंगली रखेगा, बापू उसके साथ ही तेरा विवाह कर देगा। परसों मेरी बात हुई थी, एक लड़की तो उन्होंने देख भी रखी है। कहते हैं कि बहुत सही है तेरे लिए।”

मेरे मन में नए सपने फूटने लगते हैं। मैं इंडिया जाने की तैयारी करने लगता हूँ, पर समझ में नहीं आ रहा कि ओनो का क्या करूँ। वह तो वापस इंग्लैंड आने की तैयारी करने लगी होगी। जब मैं सोच सोचकर हार जाता हूँ तो मेरे अन्दर का शैतान जागने लगता है। मैं ऐनिया से मिलता हूँ। कहता हूँ -

“ऐनिया, मेरा एक काम कर दे।”

“जॉय, मेरी तुझे अब क्या ज़रूरत पड़ गई?”

“बहुत अहम काम है, प्लीज़ कर दे।”

“मुझे लगता है कि यह काम तेरी दूसरी सहेलियों के वश का नहीं होगा।”

“सब सहेलियाँ छोड़ीं आज से, तेरी कसम।”

“कसमें रहने दे, तू काम बता।”

“बात यह है कि ओनो के बारे में तो मैंने तुझे बताया ही है, वह मेरे साथ विवाह का सपना देखे बैठी है, पर मैं विवाह किसी साड़ी वाली से करवाना चाहता हूँ।”

“फिर मैं क्या कर सकती हूँ? ”

“ओनो वापस इंग्लैंड आने की तैयारी में है। यहाँ आएगी तो सच जानकर मर ही जाएगी बेचारी।”

“तूने ज़रूर उससे कोई झूठ बोला होगा, कोई झूठा वायदा किया होगा।”

“कुछ बातें मैंने की भी होंगी और कुछ उसने खुद कयास ली होंगी और अब वह मेरे साथ विवाह करवाने यहाँ आ रही है। उसको रोकना ज़रूरी है।”

“कैसे रोकेगा?”

“इसीलिए तो तेरी मदद की ज़रूरत है।”

“वो कैसे?”

“देख ऐनिया, ज़रा-सा झूठ बोलने से उसकी ज़िन्दगी बच सकती है।”

“कैसा झूठ? ”

“तुझे उसको फोन करके सिर्फ़ इतना कहना है कि मैं और जॉय अगले हफ्ते विवाह करवा रहे हैं, इसलिए तू न आ।”

“इतना बड़ा झूठ ! मैं तेरा यह काम नहीं कर सकती।”

वह साफ़ इन्कार कर देती है। मुझे पता है कि ऐनिया मेरी नरमदिल सखी है, मैं उसके पीछे पड़ा रहता हूँ। उसकी मिन्नत-याचना करता हूँ। आखि़र वह मान जाती है और ओनो को फोन कर देती है। फोन रखते हुए ऐनिया की आँखें भरी हुई हैं। मेरी भी आँखें भीग उठती हैं। ऐनिया कहती है -

“जॉय, तू बहुत बेरहम आदमी है। जीसस तुझे कभी माफ़ नहीं करेगा।”

“ऐसा न कह ऐनिया, मैंने जानबूझकर कुछ नहीं किया।”

ओनो पर क्या बीती होगी, मुझे नहीं पता, पर मैं कई दिन तक सो नहीं पाया।

कई बरस बीत जाते हैं। उसका अलार्म हर रोज़ मुझे जगाता है। मेरी पत्नी अंजू उसके दिए राइस कूकर में कभी चावल बनाती है और कभी मछली। बाकी के बर्तन भी इस्तेमाल करती है। हर सुबह मुझे उसकी याद आती है। अचानक बैठे-बैठे उसकी आवाज़ कानों को सुनाई देने लगती है। सड़क पर जा रही किसी भी चीनी लड़की को देखता हूँ तो उसमें मुझे ओनो दिखाई देती है।

लगभग दस साल बाद एक दिन हमारे घर के फोन की घंटी बजती है। मेरी पत्नी फोन उठाती है। फोन के दूसरी तरफ की आवाज़ कुछ कहती है तो मेरी पत्नी जवाब देती है, “मैं उसकी पत्नी हूँ।”

दूसरे छोर की आवाज़ फिर कुछ कहती है तो मेरी पत्नी बोलती है -

“मैं ऐनिया नहीं, मैं तो अंजू हूँ।” कहती हुई अंजू फोन मुझे थमा देती हे। फोन पर ओनो है। वह कहती है -

“जॉय, तूने ऐनिया से विवाह नहीं किया?”

“नहीं तो।”

“इसका मतलब ऐनिया ने मेरे से झूठ बोला !”

मैं उसकी बात का कोई उत्तर नहीं देता। वह फिर कहती है -

“ओ माय गोद ! ऐनिया इतनी झूठी निकली।”

मैं उसकी बात की ओर ध्यान दिए बग़ैर पूछता हूँ -

“ओनो, तेरा क्या हाल है?”

“मैं ठीक हूँ, अमेरिका जा रही हूँ। दो दिन के लिए लंदन रुकी हूँ। मैं तेरे यहाँ रखा अपना सामान ले जाना चाहती हूँ।”

“ओनो, तेरा ये सामान ही तो मेरा सरमाया है, प्लीज़ ! इसे मेरे ही पास रहने दे।” कहते हुए मेरा गला भर आता है और वह भी एकदम फोन रख देती है।

अब पच्चीस साल हो गए हैं। मैंने इस बंद गुफा का दरवाज़ा यद्यपि पहले कभी नहीं खोला, पर चीनी संगीत वाला अलार्म हर सुबह मुझे जगाता है।

0

अगली किस्त में आप ‘दस दरवाज़े’ के ‘छठे बंद दरवाज़े’ के सामने होंगे। हम खोलेंगे आपके लिए यह ‘छठा बंद दरवाज़ा’ और आप पढ़कर जानेंगे कि इस ‘छठे बंद दरवाज़े’ के पीछे की अंतरंग कथा क्या है… पर यह जानने के लिए पढ़नी होगी आपको अगली किस्त…