Adrashya Humsafar - 30 - Last Part in Hindi Moral Stories by Vinay Panwar books and stories PDF | अदृश्य हमसफ़र - 30 - अंतिम भाग

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अदृश्य हमसफ़र - 30 - अंतिम भाग

अदृश्य हमसफ़र…

30

अंतिम भाग

रास्ते भर भैया और ममता चुपचाप रहे। दोनो को कुछ सूझ ही नही रहा था कि बात करें भी तो क्या।

बीच बीच में एक दूसरे की तरफ देखकर बस हल्के से मुस्कुरा देते थे। जैसे ही एयरपोर्ट पहुँचे बड़े भैया की नसीहतें शुरू हो गयी।

"देख ममता, अपना ध्यान रखना। मुझे उम्मीद ही नही यकीन है तुम सम्भाल ही लोगी। अगर फिर भी बात न बने तो मुझे फोन कर देना। दो दिन के लिए मैं मुम्बई चला आऊंगा। मोटी रकम है बच्चों को इस मामले से दूर ही रखना। "

ममता मन ही मन अपने कहे झूठ पर ग्लानि अनुभव करने लगी। उसे जाने के लिए इससे बेहतर बहाना नही सुझा था और बड़े भैया कितने चिंतित हो रहे थे। कह भी तो नही सकती कि भैया सब झूठ है आप फिकर न करना । बस हामी में गर्दन हिलाकर अंदर सिक्योरिटी चेक के लिए चली गयी।

बड़े भैया ने रास्ते में ही कह दिया था कि जब तक जहाज उड़ान नही भरेगा वह बाहर खड़े रहेंगे, हर बार की तरह ही।

उधर घर में ममता के जाने के थोड़ी देर तक तो जो जहां था वैसे ही खड़ा रहा। धीरे धीरे सभी की तन्द्रा टूटी तो सब अपने अपने काम में जुटने लगे। काकी बहुओं को समझा रही थी कि दामाद जी की आवभगत कैसे करनी हैं। दोनो भाभियाँ तैयारी में जुट गयी और देविका वहाँ से यह कहकर खिसक ली कि अभी आयी। उसके दिमाग में अब अनुराग को लेकर हलचल मची हुई थी। जल्द से जल्द अपने कमरे में पहुंच कर उन्हें सम्भालना चाहती थी। उसे यकीन था अनुराग फिर से एक बार टूट गए होंगे।

कमरे में घुसते ही अनुराग पर नजर पड़ी। बिस्तर पर निस्तेज से पड़े हुए थे। चेहरे से लग रहा था जैसे कोई कीमती वस्तु गुम हो गई हो। देविका को देखते ही एक फीकी सी मुस्कान उनके चेहरे पर आई। देविका वहीं पलंग के कोने पर जगह बनाकर बैठ गयी। अनुराग के जिस्म में कोई हलचल नही हुई। देविका ने अनुराग का हाथ अपने एक हाथ में लिया और दूसरे हाथ से हल्के से थपथपाया।

अनुराग ने देविका से पूछा -" ममता चली गयी?"

देविका-" जाना ही था। क्या कर सकते थे। "

अनुराग-" देविका, मैंने कुछ गलत तो नही किया ना। "

देविका -" नहीं जी, आपने कुछ भी गलत नही किया। "

अनुराग -" देविका, क्या ममता को बुरा लगा होगा। "

देविका -" नही, जिज्जी को कुछ बुरा नही लगा। "

अनुराग-" क्या ममता मुझसे नाराज होगी? मुझे माफ़ कर पायेगी। "

देविका "- आप ऐसा क्यों सोचते हैं? जिज्जी आपसे नाराज नही है और माफी किस बात की जी? आपने कोई गुनाह थोड़ी किया है। "

अनुराग-" क्या ममता के मन में मेरी पहले वाली इज्जत कायम रहेगी। "

देविका-" सुनिए जी, जरा गौर से। ममता जिज्जी पहले आपको सम्मान देती थी लेकिन अब आपकी पूजा करेगीं। यकीन से कह सकती हूँ। "

अनुराग -" इतने यकीन से कहने का कोई कारण?" अनुराग की आंखों में चमक उभरी।

देविका -" कुछ बातें हम महिलाओं तक सीमित रहने दीजिए। आप नही समझेंगे। कह रही हूँ तो बस मान लीजिये। बहुत सी बातें ऐसी होती हैं जिन्हें संवाद की जरूरत नही होती। एक स्त्री दूसरी स्त्री की आंखों में या फिर उसकी धड़कनों की सरगम से पढ़ लेती है। "

अपनी बात खत्म करते वक़्त देविका के लबों पर प्यारी मुस्कान उभर आई।

अनुराग-" अब यह स्त्री पुराण की ज्ञाता तो कोई स्त्री ही हो सकती है। हम पुरूष कितनी भी कोशिश करें, स्त्री मन को पढ़ पाना हमारे बस की बात नही। धन्य हो देवी। "

कहते ही अनुराग हल्के से हंस पड़े।

देविका मन ही मन सोच रही थी कि अच्छा हुआ जो वह यहाँ आ गयी। कम से कम अनुराग को संभालने में कामयाब होती जा रही थी। ममता के जाने के बाद उदासीन हुई कमरे की ओरा अब पूर्ववत महकने लगी थी।

अचानक ही अनुराग ने अपने हाथ को देविका के हाथों से छुड़ाया और उसकी बांह पकड़ कर देविका को अपनी तरफ खींच लिया। देविका को अनुराग से इस अप्रत्याशित हरकत की उम्मीद नही थी और वह एक हल्के झटके में ही अनुराग की छाती पर आ गिरी। देविका के सिर का पल्लू फिसल गया और उसके खुले बाल बिखर कर चेहरे पर आ गए। अनुराग ने देविका के चेहरे पर नजर डाली तो देखते रह गए। उसे लगा जैसे बादलों की ओट से चंद्रमा आंख मिचोली खेल रहा है। देविका ने अनुराग की आंखों में झांका तो वहाँ उसे प्रेम का सागर हिलोरे लेता हुआ दिखाई दिया जिसकी लहरों पर उसने अपना नाम स्पष्ट रूप में पढ़ा। देविका की आंखे लज्जा से भारी हुई और झुक गयी। अनुराग ने उसके बालों में उंगलियां घुमानी शुरू कर दी। देविका इस लम्हे को जी भर कर जी लेना चाहती थी अतः अपना सिर पति की छाती पर टिका दिया। हालाकिं मौन था लेकिन फिर भी अनकही अनगिनत बातें कही सुनी जा रही थी। अनुराग की सांसे उसके चेहरे को छू रही थी। अनुराग की सांसों की गर्मी देविका में नयी ऊर्जा का संचार कर रही थी। तभी मौन को भंग करती हुई अनुराग की आवाज उसके कानों में आई -'देविका"

देविका-" हम्म"

अनुराग -" एक बात कहनी है तुमसे। "

देविका -" कुछ न कहिये plsss, मैं जानती हूँ आप क्या कहेंगे। "

देविका अपनी तन्द्रा भंग नही होने देना चाहती थी लेकिन अनुराग कहे बिना चुप नही होने वाले थे।

अनुराग -" देविका, तुम्हारा अपराधी हूँ मैं। तुमसे माफी मांगता हूँ। सौभग्यशाली हूँ जो तुम मेरी अर्धांगिनी बनकर आयी। "

देविका ने अनुराग की छाती से सिर उठाना चाहा लेकिन अनुराग ने उसे रोक दिया।

देविका-" ऐसी बातें न कहिये आप। "

अनुराग ने देविका के होठों पर अपनी उंगली रख कर चुप कर दिया और अपनी बात जारी रखी। "देखो देविका मुझे कह लेने दो। आज नही तो कभी नही। "

देविका के सिर पर हाथ घुमाते घुमाते अनुराग ने कहना आरम्भ किया -" देविका, ईश्वर से प्रार्थना है कि अगले जन्म में मुझे तुम दोबारा पत्नी के रुप में मिलो। तुम्हे पूर्वजन्म भले ही याद न रहे लेकिन मुझे याद रहे। इस जन्म में तुम्हें जितना दुख दिया अगले जन्म में दुगुना सुख देने की कोशिश करूँगा। इस जन्म में पूर्ण समर्पण नही दे पाया लेकिन अगले जन्म में पूर्णतः समर्पित रहूँगा।

तुम्हारी साधना और तपस्या के काबिल नही था मैं लेकिन फिर भी तुमने देवता बनाकर पूजा। ईश्वर मुझे कुछ तो कर्ज़ उतारने का मौका दे। "

कहते कहते अनुराग भावुक हो चले थे।

देविका ने फिर सिर उठाने की कोशिश की और कुछ कहने की लेकिन अनुराग ने बहुत प्यार से उसे रोक दिया और हल्के हल्के हँसतें हुए कहा -" जानता हूँ तुम्हे, अब यही कहोगी कि अजी नही जी..मुझे तो आपसे कोई शिकायत नही। "

अनुराग की बात खत्म होते ही दोनो खिलखिलाकर हंस पड़े। हँसतें हुए ही अनुराग ने फिर कहा कि -"देविका जानता हूँ समय कम बचा है मेरे पास लेकिन वादा है मेरा की जितना भी बचा है सब तुम्हारे नाम रहेगा। " कहते कहते अनुराग ने देविका के माथे पर चुम्बन अंकित कर दिया।
अनुराग की बातों में देविका ऐसी मदहोश हुई कि उसे वक़्त की भी सुध नही रहीं । भूल गयी थी कि नीचे अनुष्का और दामाद आने वाले हैं। बस मन ही मन देवी माँ को धन्यवाद दे रही थी और ममता को दुआएं।

उधर ममता हवाई जहाज में बैठी सारी बातों को विस्तार से सोचे जा रही थी। एक के बाद एक घटनाएं उसके मस्तिष्क पर चलचित्र की तरह चलती जा रही थी। अचानक उसके मुंह से निकला -" अनुराग, यह तुमने क्या किया? ये कैसे मोड़ पर आकर तुमने अपना हाल ए दिल बयां किया। तुम्हे तो पता भी नही कि किस तरह तुमने मनोहर जी की यादों में सेंध लगा दी है। तुम्हारा मन हल्का करने के लिए मुझे खुद से समझौता करना पड़ा । जिन यादों पर सिर्फ और सिर्फ मनोहर जी का हक़ था तुमने वहाँ अपना दखल दर्ज करा दिया। उफ्फ। "

हवाई जहाज के साथ साथ ममता का मन भी असीमित यादों की उड़ान भर रहा था। तभी ममता ने अपने पर्स से डायरी और पेन निकाला।

उसने कुछ पँक्तियाँ लिखी और फिर सीट पर टेक लगाकर आंखे बंद कर ली।

उसने अपनी डायरी में लिखा -

मेरी आदत थी कड़ी धूप मे चलते जाना

उसकी बादल की तरह राह पे छा जाने की

न कोई रस्म न रिश्ता न ही क़लाम कभी
जहाँ को छोड़ मुझे अपनी रूह मे बसाने की
(बस अपनी रूह तलक मुझको बसा लेने की )

आख़िरी वक़्त सही, कह गया कहने वाला
ज़िद थी मेरी तो महज़ बात निकलवाने की

ख़ुद तलातुम मे बहा आह भी निकली न कभी
वो हमसफ़र था पसेपर्दा(अदृश्य) ज़िद मेरा साथ देने की

इतनी परवाह थी लोगों के सितम की जिसको
उसकी पाकीज़गी पे है आँख नम ज़माने की

ऐसा नायाब सा हीरा हो जिसके हिस्से मे
क्यूँ वो ज़हमत करे फिर लाल-ओ-गुहर पाने की

मैं ख़ुशनसीब हूँ तू हमक़दम रहा मेरा
तुझपे क़ुर्बान हर इक रस्म है ज़माने की

इति शुभम

समाप्त