Adrashya Humsafar - 28 in Hindi Moral Stories by Vinay Panwar books and stories PDF | अदृश्य हमसफर - 28

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अदृश्य हमसफर - 28

अदृश्य हमसफर…

भाग 28

चाय खत्म होते ही देविका ने ट्रे उठाकर उठाई और बिना कुछ कहे ही कमरे से चली गयी लेकिन दो पल बाद ही वापस आयी।

देविका- "जिज्जी, कैसे सब व्यवस्थित करोगे। आप मुझे बताइये न। "

ममता-"देविका, मुझे 9 बजे हर हाल में घर से निकलना है। उससे पहले घरवालों से सुलझना बहुत भारी काम है। 5 बज गए है और समान भी पैक नही किया है अभी तक। मेरे तो हाथ पैर फूलने लगे हैं सच्ची। कैसे क्या करूँ?"

देविका-" आप परेशान न हो जिज्जी, आपकी पैकिंग मैं किये देती हूँ। "

देविका ममता के सामने आकर खड़ी हो गई और भीगे गले से कहने लगी -"जिज्जी, एक बार और सोच लीजिये, क्या आपका आज ही जाना इतना जरूरी है। इतने सालों बाद आपसे खुलकर बात हुई। आपके जाने के नाम से ही लगता है जैसे जिस्म से रूह खीचीं जा रही है। "

देविका की स्नेहपगी बातें सुनकर ममता का हौसला डगमगाने लगा। वह खुद भी तो रुकना चाहती थी। एक बार फिर से सारी स्थिति का मन ही मन आकलन किया और जी कड़ा कर लिया।

ममता- "देविका, मुझे जाना ही होगा। तुम समझदार हो भली भांति समझती हो। मुझे सहयोग करो और हिम्मत दो, कमजोर न करो ऐसी बातें कहकर। तुम भी जानती हो कि ऐसे अचानक जाने के निर्णय से मैं भी तो दुखी हूँ और फिर दूसरा कोई रास्ता भी तो नही सूझ रहा मुझे। "

देविका ने हौले हौले सहमति ने गर्दन हिलाकर सिर झुका लिया।

ममता अपना सामान अलमारी से निकाल कर पलंग पर रखती जा रही थी और देविका करीने से उसे सूटकेस में लगाये जा रही थी। लगभग आधे घण्टे में दोनो ने मिलकर सब समान रख लिया था। देविका ने ममता के दोनो सूटकेस उठाकर दरवाजे के पीछे रख दिये।

देविका - "जिज्जी, आप नहा लीजिये और तैयार हो जाइए। मैं काकी को आपके जाने का बताने की सोच रही हूँ। उन्हें आप खुद बताएंगी तो बेहतर होगा। "

ममता - "मेरा तो मन है कि अनुराग को बिना बताए ही निकल जाऊं, जैसे उसने मुझे सताया अब मेरी बारी। " हल्की सी हंसी निकली ममता की।

देविका तड़प उठी यह सुनते ही और जल्दी से कह उठी - "नही नही जिज्जी, ऐसा जुल्म न करना। कितनी कठिनाई से सब कह कर मन हल्का हुआ है उनका । तड़प उठेंगे और फिर से आत्मा पर बोझ ले लेंगे। उन्हें यही अहसास कचोटता रहेगा कि नही कहता तो शायद ममता ऐसे जल्दबाजी में नही जाती। ऐसा तो सोचिएगा भी मत। कहते कहते देविका की आंखे छलक उठी।

ममता - "अरे...अरे....देविका, सच में बुद्धू हो तुम तो। मैं तो मज़ाक कर रही थी। ऐसा कुछ नही करूँगी या कहूंगी जिससे तुम्हे तकलीफ हो। यकीन मानो, अनुराग को सता सकती हूँ लेकिन तुमने तो उसमें भी मेरे हाथ बांध दिए। देख भी रही हूँ और महसूस भी कर रही हूँ कि कैसे तुम अनुराग की पीड़ा को जी जाती हो। उसके हल्के से कष्ट की अनुभूति ने तुम्हारे चेहरे की रंगत ही बदल कर रख दी। सच में तुम तो प्रेम और समर्पण के नए प्रतिमान स्थापित कर रही हो। सच में पगली कहीं की, चलो मुस्कुराओ पहले की तरह, तुम्हारी आँखों की नमी और चेहरे पर पीड़ा की लकीरें मेरे लिए असहनीय हैं। किसी और के लिए नही लेकिन सिर्फ तुम्हारे लिए देविका अब मैं ऐसा कुछ नही कहूंगी जिससे अनुराग को पीड़ा पहुंचे।

देविका तुरन्त ही अपनी आँखें पोंछकर मुस्कुराने लगी।

देविका, ...जिज्जी, आप आइये तैयार होकर तब तक मैं देखूं दोनो भाभी चौकें में लगी हुई हैं। आज दोपहर तक अनुष्का भी तो आने वाली।

ममता ने इशारे से हामी भरी और स्नानघर में चली गयी। देविका एक पल उसे जाते हुए देखती रही और फिर मुड़कर कमरे से बाहर निकल गयी।

कुछ ही देर में ममता तैयार थी। उसे पता था सभी को जाने का पता लगते ही हंगामा होगा तो तैयार नही हो पाएगी। अब बारी थी परिवार वालों को बताने की। मन ही मन वह मन को कड़ा करते हुए काकी के कमरे की तरफ चली जा रही थी।

काकी के कमरे में महफ़िल जमी हुई थी। दोनो भाई, दोनो भाभियाँ और देविका वहीं मौजूद थे। सभी के हाथ में चाय की प्याली थी। ममता को देखकर सभी के चेहरे खिल उठे। काकी ने पलंग पर थोड़ा सरकते हुए उसके लिए जगह बनाई।

काकी-" आजा मुंन्नी, इधर बैठ मेरे पास। "

ममता-" काकी, मुझे कुछ कहना है। "

सूरज भैया-" अरे मुंन्नी जिज्जी, आज इतनी सुबह सुबह कैसे तैयार हो गयी आप। आज लगता है जिज्जी ने कुम्भकरण से लड़ाई कर ली। नींद अधूरी भेजी कुम्भकरण जी ने। "

सभी खिलखिलाकर हंस पड़े सूरज भैया की बात पर। ममता भी बच्चों की तरह ठुनक कर भवें चढ़ाकर बाद में इतना ही बोली-" बड़े भैया, देख लो सूरज भैया को। "

काकी ने नकली गुस्सा जाहिर करते हुए सूरज भैया से कहा-" ए छोरे, यूँ तंग न कर मेरी बिटिया को। "

सूरज भैया-" हा हा हा, काकी जिज्जी अब दादी बन चुकी हैं। कब तक बच्ची रहेंगी। "

ममता-" जब तक जिंदा हूँ तक तक। अब मेरा नाम ही ऐसा रखा आप सभी ने, किसने कहा था मुंन्नी नाम रखने को। "

काकी ने सहमति में हामी भरी तो सभी मुस्कुरा दिए ममता की बात पर। तभी सुनीता भाभी ने ममता को भी चाय की प्याली थमा दी।

ममता-" अरे भाभी, एक कप पी चुकी हूँ मैं, देविका ले आयी थी। "

सुनीता भाभी-" अरे, आज देविका ने तुम्हे अपने रतजगे में शामिल कर लिया। पता है न जाने कैसे करती है। सबसे आखिर में सोने जाती है और सबसे पहले उठती है। हम तो जब उठकर आते तब तक नहाकर पूजा भी कर चुकी होती है। "

काकी ने बड़े स्नेह से देविका के सिर पर हाथ घुमाया और कहा-" माँ का हाथ है देविका के सिर पर। कोई साधारण महिला नही है ये। हमारे पूर्वजन्मों के न जाने कितने अच्छे कर्मों के फलस्वरूप ये हमारे घर में लक्ष्मी बनकर आयी। सुनीता, तेरे बस में तो नही है ऐसे जल्दी उठकर नहाना। "

सभी जन तो हँसने लगे काकी की बात पर और सुनीता ने शिकायती अंदाज में बस यही कहा, ..."काकी। "

ममता असमंजस में फंस गई थी। इतना हल्का फुल्का माहौल है, सभी चुहल करने में लगे हैं। उसके जाने की बात से तो मंजर ही बदल जाना था। क्या करे और क्या न करे। इससे पहले कि वह और सोच विचार में डूबती, मन कड़ा करके एकदम से कह दिया-" काकी, 11 बजे की फ्लाइट से मैं मुम्बई जा रही हूँ। "

जैसे कोई बम फूटा हो, सभी स्तब्ध से रह गए। कुछ पल को कोई कुछ भी नही बोला। जैसे समझ ही नही आया कि क्या कहें और क्या न कहे। काकी ने मौन भंग किया-" क्या, क्या मुंन्नी? ये क्या कह रही है छोरी। "

ममता-" काकी, माफ कर दो लेकिन मुझे जाना है। "

बड़े भैया-" मुंन्नी, सुबह सुबह ऐसा मजाक ठीक नही। "

सूरज भैया-" जिज्जी, 10 दिन का वादा था आपका मुझे। मैं एक नही सुनने वाला। "

बड़ी भाभी-" ऐसा भी क्या जिज्जी, सुबह सुबह क्यों सभी को सता रही हो?"

सुनीता भाभी-" जिज्जी, कोई गलती हुई तो गुस्सा कर लीजिए, लेकिन ऐसे तो मत सताइये। "

सभी एक के बाद एक सवालों की बौछार किये जा रहे थे बस एक देविका थी जो चुप खड़ी थी।

ममता उनकी बातों से व्यथित हो गयी लेकिन भावों में बहना नही चाहती थी।

उसे ज्ञात था कि अगर जरा भी कमजोर पड़ी तो स्थिति को संभाल नही पाएगी।

अंततः ममता लगभग चीख उठी।

"कोई मुझे कुछ कहने का मौका देगा क्या?"

ममता के चीखते ही सभी जन शान्त हो गए। सवालिया आंखों से एक दूसरे की तरफ देखा और फिर सभी की नजरों का केंद्र बिंदु ममता थी।

ममता ने दोनो हाथों से सभी को सहज होने का इशारा किया और खुद को भी शांत करते हुये बोली-" देखो, मुझे भी कौनसा अच्छा लग रहा है ऐसे जाना। मजबूरी नाम की भी कोई चीज होती है न। "
बड़े भैया-" ऐसी क्या मजबूरी मुंन्नी। " उनसे रहा नही गया और बीच में हो बोल उठे।

ममता-" भैया, फैक्टरी में बड़ी दिक्कत आ गयी है। कल रात को फोन आया था मैनेजर का। एक मोटी रकम का चेक रद्द हो गया है। मुझे ही जाकर सामने वाली पार्टी से मुलाकात करनी होगी। "

बड़े भैया-" क्या कोई और रास्ता नही। "

ममता-" भैया, काम पर बहुत फर्क पड़ेगा। एक दिन की बात होती तो कुछ सोचती। कच्चे माल की सप्लाई रुक गयी तो फैक्टरी में काम ही बन्द हो जाएगा। सब हिसाब गड़बड़ा जाएगा। हमारे पुराने ग्राहक हैं उन्हें खराब भी नही करना है और रकम का तकाजा भी करना है। किसी और को जिम्मेदारी भी नही दे सकती। बच्चों का खून गर्म होता है। उन्हें गुस्सा जल्दी आ गया तो पुराने ताल्लुकात हैं बिगड़ न जाएं कहीं। मुझे ही जाना होगा। "

ममता ने अपनी बात कहकर बारी बारी सभी के चेहरे की तरफ देखा। सभी के चेहरे पर असंतोष साफ झलक रहा था। ममता मन ही मन झूठ बोलकर दुखी थी लेकिन और कर भी क्या सकती थी।
बड़े भैया के पास ममता की बात का कोई जवाब नही था। व्यापार की ऊंच नीच से अच्छी तरह वाकिफ थे। उन्होंने ही ममता को सहयोग दिया।

"ठीक है ममता, अगर ऐसी बात थी तो रात को ही बता देती। "- बस यही कहा।

बड़ी भाभी चुप न रह सकी और पूछ बैठी-" जिज्जी, अनुष्का से क्या कहेंगे?"

ममता-" अनु की चिंता न करें भाभी। कल जब वापसी होगी उसकी तो मुम्बई ही आना है उसने। मिलकर सब समझा दूँगी। आखिर मेरे पड़ौस में ही तो रहना है। "

फिर हँसकर बोली-" अब एक दिन उसके जी भर कर आप लाड़ लड़ाईयों, मुझे तो ये मौके रोज रोज मिलेंगे। "

सुनीता भाभी ने देविका से मोर्चा खोल लिया-"देविका, तुम्हे तो कल रात से ही पता होगा। "
देविका ने बस मुस्कुरा कर हामी में गर्दन हिला दी।

सुनीता भाभी-" मने कल रात से जिज्जी से अकेले बतियाये जा रही हो, हमें न बुलाया। "

सुनीता ने ऐसे भोलेपन के शिकायती अंदाज में यह बात कही कि सभी की हंसी छूट गयी।

काकी ने सुनीता को पुचकारते हुए ममता से कहा-" ये छोटकी बहू इस घर की जान है। तुम्हारी तरह ही बेबाकी से अपनी बात रखने वाली। शरारतों में भी तुमसे कम नही। सूरज को बहुत तंग करती है। मेरा तो मन इन बहुओं में इतना रमा कि मेरे अपने बेटों के पास जाने का मन नही होता। मेरे तो दोनो बेटे परदेस में जाकर बस गए और परदेसी बन गए। अब भी बस ब्याह के लिए आये हैं चले जायेंगे और दुइ चार दिन में। मुझे भी ले जाने को कहते लेकिन बोल दिया मैंने भी कि न जाने कितने दिन की और हूँ, अपने देश की मिट्टी में ही रहना मुझे। मुझे न जाना मुये फिरंगियों के देश में। "

ममता-" मानती हूँ काकी। कितना खुशकिस्मत है हमारा घर और हम कि तीन बहुएँ आयी और तीनों की अलग अलग विशेषताएं सभी को एक सूत्र में पिरोकर रखती हैं। और काकी, रहने न सही फिरंगियों के देश में घूमने को तो जा ही सकती हो। "

काकी-" मेरी बहुओं में मेरा मोह ही न पड़ा मुंन्नी। ब्याह होते ही तो छोरे ले गए अपने साथ। कुछ दिन साथ रहती तो मोह पड़ता न। मेरी जान तो इन तीनो में बसती है। मेरा ख्याल भी ये सगी सास की तरह ही रखती। मैं इनको छोड़कर न जाऊंगी कहीं भी। ब्याह कर आई थी इस घर में और अब तो मरी निकलूंगी बस। "

ममता ने एकदम से काकी के मुंह पर हाथ रख दिया।

सुनीता भाभी ने आगे बढ़कर काकी के गले में बाहें डाल दी और तोतली आवाज में कहा-" तांती, ये सदा और थोतेला ता होता है। "

सुनीता भाभी की इस हरकत पर सभी हंस पड़े।

काकी भी हंसी न रोक पायी।

यकायक भारी हुआ माहौल फिर से अपने चुटीले अंदाज में वापस लौट चुका था।

ममता को मन ही मन तसल्ली हुई कि आधी जंग वह जीत चुकी है और आधी अभी अनुराग से बाकी है। ममता ने देविका की तरफ देखा तो वह उसी की तरफ अपलक देखे जा रही थी। दोनो ने आंखों ही आंखों में बात की और सहमति में गर्दन हिला दी।

क्रमशः

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