अमूल्या हर्ब्स के द्वारा प्रदत मंसूरी यात्रा के लिये हम 6 अगस्त 2019 को अपने टीम के साथ ग़ाज़ीपुर सिटी से दिल्ली के लिए सुहेलदेव ट्रेन द्वारा 7 अगस्त 2019 को पहुंचे।हमनें दिल्ली में अपने अपने चिर परिचितों के यहां अपना आशियाना टीका दिया। क्योंकि मंसूरी यात्रा अगले दिन सुबह 6 बजे तड़के ही शुरू होने वाली थी।
कल तक का इंतजार भी है और अब कल साथियों से मुलाकात मसूरी यात्रा के साथ ही होगी।
अमूल्या हर्ब्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा प्रायोजित मंसूरी टूर के लिए मेरा भी दिल्ली में प्रवास है,रोहनी सेक्टर 17 में रुका हूँ अपने गुरु श्री टी एन चतुर्वेदी जी के यहां, हम और चतुर्वेदी जी सायं को टहलने के लिए सेक्टर 11 में स्थित दिल्ली विकास प्राधिकरण के देख रेख द्वारा संचालित बहुत बड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ स्वर्ण जयंती पार्क में घूमने गये।करीब 1 घंटे तक रहने के बाद अनुभव हुआ कि पूरा पार्क तक़रीबन 50 एकड़ में फैला हुआ है पार्क के एक चक्कर लगाने में अनुमानतः 30 मिनट से ज्यादा ही लगते हैं। पार्क में शहर के हेल्थ फिटनेस रखने वाले , खेलकूद करने वाले,वाकिंग करने वाले, शायं को नियमित टहलने वाले, फुटबाल खेलने वाले, साथ में अपने परिवार के साथ परिवार में आने वाले
और युगल के रूप में घूमने वालों की भरपूर आमद मौजूद थी। दिल्ली के पार्क दिल्ली वासियों के लिए जीवन रेखा साबित हो रहे हैं।
आठ अगस्त की सुबह अमूल्या हर्ब्स की दिल्ली आफिस पीरागढ़ी से बसों द्वारा हम मंसूरी यात्रा पर निकल पड़े। मेरे साथ ज़मानिया तहसील के मशहूर चिकित्सक सैयद एस.वदूद जी, भदौरा से आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ ओंकार नाथ सिंह के बेटे अनिल सिंह और उनकी बहू किरण सिंह,करंडा से डॉ विनोद कुमार जी सपत्नीक,मेरे सीनियर अल्ताफ़ हुसैन अंसारी, मास्टर ओमप्रकाश जी,डॉ अमानतुल्लाह जी,गोविंद जैसवाल, भदौरा से ए. बी. एच. होल्डर पंकज सिंह भी साथ में हैं।
हम सब वातानुकूलित बस नंबर 8 के लिस्ट अनुसार अल्ताफ़ हुसैन अंसारी की पूरी टीम दिल्ली में पीरागढ़ी आफिस के पास ओवरब्रिज के नीचे तैयार है मंसूरी के 3 दिवसीय टूर के लिए ... ..
हमारी बस के साथ कई बसें दिल्ली से और हैं।
सुविधा अनुसार हरियाणा पंचकूला हेड आफिस से से भी बसें हैं।..... सभी बसें करीब 9 बजे सुबह दिल्ली से गाज़ियाबाद, सहारनपुर देहरादून होते हुए करीब शायं 3 बजे मंसूरी पहुंची।मंसूरी शहर में माल रोड में मेरा होटेल था जहां तक बसों का जाना मना था। इसलिए हम लोग बस पड़ाव से अपने सामान को लेकर 1 फर्लांग दूर होटल "ड्राइव इन" पहुंचे।दोपहर के भोजन में देर हो चुका था सो हम लोग तुरंत हाथ मुँह धोने के बाद भोजन लेने के लिए होटल के डायनिंग हॉल में चले गए।
भोजन के उपरांत हमें कंपनी के अधिकारियों द्वारा निर्देश मिला कि आप सभी अपने कमरे में जाकर विश्राम करें। सुबह तड़के जग कर 8 बजे होटल से निकलकर दर्शनीय स्थानों पर चलना है।
हम ,अल्ताफ़ जी,और डॉ सैयद वदूद जी साथ साथ एक ही कमरा नंबर 301 में सोने चले गए।
सुबह होटल में नास्ता लेने के बाद हम सभी कंपनी के बसों द्वारा शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर मशहूर कैम्पटी फाल देखने गए। फाल का दृश्य बहुत ही मनोहारी था इसमें नहाने और देखने के लिए उत्तराखंड में दूर दूर से पर्यटक आते हैं। कैम्पटी फाल से गिरते हुए पानी मे नहाने के लिए पहाड़ी की तलहटी में जाना जरूरी था । जाने के सीढ़ियों द्वारा भी जा सकते थे लेकिन वापसी में लौटने में फेफड़ों को बहुत ही ताकत लगानी पड़ सकती है ऐसा महसूस हुआ,सो मैंने इरादे बदल दिए,और रोप वे का सहारा लेने का मन बनाया। रोप वे द्वारा ऊपर से नीचे औऱ नीचे से ऊपर आने का किराया प्रति व्यक्ति 120 रुपये था,हम चार लोग एक साथ अल्ताफ़ सर,डॉ वदूद,डॉ, अमानतुल्लाह जी रोप वे द्वारा गए और झरने का आनंद उठाया।वहां के रास्ते वाली मार्किट में घरेलू सामानों की खरीदारी भी की। लकड़ी के बर्तन, हस्तनिर्मित बस्तुएं बिक रही थी।जिसकी खरीदारी भी की गई।लकड़ी के पालिशदार बोर्ड के ऊपर पीतल के अक्षरों से बनी अपनी नेम प्लेट भी बनवाई,प्लेट बनाने वाले ने हमारे होटल तक पहुंचा कर पैसा लिया।
कैम्पटी फॉल घूमने के बाद हम सभी अपनी बसों के साथ कैम्पटी से लगभग 33 किलोमीटर दूर धनौल्टी के लिए निकल पड़े। बताया गया कि दोपहर का लंच आपको धनौल्टी स्थित रॉक गार्डन रिसार्ट के खुले एडवेंचर प्लेस पर रखा गया है।
यात्रा बड़ी साहसिक और रोमांचक थी। हम करीब 1बजकर 30 मिनट पर कैम्पटी से निकले थे लगातार चलते चलते 3 बजकर 30 मिनट पर धनौल्टी स्थित बुरासखंडा से आगे रॉक गार्डन रिसोर्ट पर पहुंचे। जहां पर दोपहर का लंच किया गया। प्राकृतिक दृश्यों को कमरे में कैद करते हुए,साथियों के साथ खूब फ़ोटो ग्राफी हुई। अमूल्यन्स टीम ने वादी में आपस मे क्रिकेट मैच खेला, कुछ डांस के शौकीन अमूल्यन्स ने डी जे पर जम कर डांस किया और डांस का लुफ्त उठाया। शायं को 6 बजे वापस हम सभी
लौट कर माल रोड स्थित होटल ड्राइव इन को लौट आये। फ़्रेश होने के पश्चात हम मंसूरी के कुरली मार्केट घूमने गये, मार्केट में जबरदस्त मोल भाव और बारगेनिग थी। हमनें माल रोड के होटल के दाहिने जाने वाली सड़क पर तफरी करते हुए कुरली बाजार के पास श्री गांधी आश्रम के पास पहुंच कर आश्रम द्वारा निर्मित माल्टा जूस, गांधी टोपी भी खरीदी। बगल में मिठाई की दुकान थी जहां बहुत चहल पहल और खासी भीड़ थी। दुकान पर से गरम जिलेबी और कुल्हड़ वाली गरम दूध का भी आनंद लिया गया। मसूरी के माल रोड से थोड़ा आगे कुरली बाजार में एक पंजाबी भाई हरमिंदर सिंह की चमक, दमक से दूर "मॉडर्न हैंडलूम" की दुकान थी।हमारे अधिकांश साथियों ने हरमिंदर सिंह की दुकान से शाल और गर्म कपड़ों की खरीदारी की ,हमारे हिसाब से उनके यहां दाम वाज़िब थे। रात्रि होटल ड्राइव इन में
डिनर के बाद हम सीनियर अल्ताफ़ जी और डॉ वदूद जी के कहने पर टहलने के लिए फिर एक बार माल रोड पर निकले। कुरली बाजार की श्री गांधी खादी आश्रम की दुकान से डॉ वदूद जी ने खादी की गंजी, लुंगी की खरीदारी की ।
मसूरी के होटल ड्राइव इन में लगातार तीन दिन दो रात विभिन्न राज्यों और विभिन्न संस्कृतियों से आये संपर्क में रहना,साथ साथ उठना, बैठना,खाना, पीना सभी तरह की चर्चाओं में व्यस्त रहने के बाद कब मसूरी यात्रा द्वारा वापसी का दिन आ गया, पता ही नही चल पाया।
बतातें चले कि मसूरी पर्वतीय राज्य उत्तराखंड के जिले देहरादून की एक तहसील है जिसे अंग्रेजी हकूमत के दौरान अफसरों ने गर्मियों के दिनों में अपने आरामगाह के लिए इस्तेमाल किया करते थे।
मसूरी जिसे पर्वतों की रानी भी कहा जाता है। देहरादून से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, मसूरी उन स्थानों में से एक है जहां लोग बार-बार घूमने आते जाते हैं।ज्यादा सभ्रांत और पैसे वाले लोग ही मंसूरी का खर्च उठा सकते है क्योंकि मंसूरी पहाड़ी टूरिस्ट प्लेस के साथ साथ एक महंगा शहर है। घूमने-फिरने के लिए जाने वाली प्रमुख जगहों में यह एक है। यह पर्वतीय पर्यटन स्थल हिमालय पर्वतमाला के शिवालिक श्रेणी में पड़ता है, जिसे पर्वतों की रानी भी कहा जाता है। इसकी औसत ऊंचाई समुद्र तल से 2005 मी. (6600 फ़ीट) है।
उत्तर-पूर्व में हिम मंडित पर्वत शिखर सिर उठाये दृष्टिगोचर होते हैं, तो दक्षिण में दून घाटी और शिवालिक श्रेणी दिखाई देती है। इसी कारण यह शहर पर्यटकों के सदैव से आकर्षित करता है। मसूरी गंगोत्री का प्रवेश द्वार भी है। देहरादून में पायी जाने वाली वनस्पति और जीव-जंतु इसके आकर्षण को और भी बढ़ा देते हैं। दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश के निवासियों के लिए यह लोकप्रिय ग्रीष्मकालीन पर्यटन स्थल है।
मंसूरी का इतिहास सन 1825 में कैप्टन यंग, एक साहसिक ब्रिटिश मिलिट्री अधिकारी और देहरादून के निवासी श्री शोर द्वारा वर्तमान मसूरी स्थल की खोज से आरम्भ होता है।
1827 में एक सैनिटोरियम बनवाया गया था लैंढ़ौर में, जो आज कैन्टोनमैन्ट बन चुका है।कर्नल एवरेस्ट ने यहीं अपना घर बनाया 1832 में और 1901 तक यहां की जनसंख्या 6461 थी, जो कि ग्रीष्म ऋतु में 15000 तक पहुंच जाती थी।
पहले मसूरी सड़क द्वारा सहारनपुर से जाया जाता था और दूरी थी 58 किलोमीटर। सन 1900 में इसकी गम्यता सरल हो गयी यहां रेल के आने से, जिससे सड़क मार्ग छोटा होकर केवल 21 किलो मीटर ही रह गया। इसके नाम के बारे में प्रायः लोग यहां बहुतायत में उगने वाले एक पौधे "मंसूर" को इसके नाम का कारण बताते हैं, जो लोग, अभी भी इसे मन्सूरी कहते हैं।
यहां का मुख्य स्थल अन्य सभी अंग्रेज़ों द्वारा
बसाये गये नगरों की भांति ही "माल" कहलाता है। मसूरी का माल रोड पूर्व में पिक्चर पैलेस से लेकर पश्चिम में पब्लिक लाइब्रेरी तक जाता है। ब्रिटिश काल में मसूरी के माल मार्ग पर लिखा होता था "भारतीय और कुत्तों को अनुमति नहीं है"।
मोती लाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधान मंत्री के पिता, द्वारा उनके मसूरी निवास काल में प्रतिदिन यह नियम तोड़ा जाता था। नेहरू परिवार का मसूरी में अपना आवास था।
सन 1920-1940 के दशक में निकतवर्ती
देहरादुन में भी अपना समय देते थे, जहाँ पँडित जी की बहन विजयलक्ष्मी पंडित रहतीं थीं। अप्रैल 1959 में, दलाई लामा चीन अधिकृत तिब्बत से निर्वासित होने पर यहीं आये और तिब्बत की निर्वासित सरकार बनाई। बाद में यह सरकार हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में स्थानांतरित हो गयी।
मंसूरी में प्रथम तिब्बती स्कूल सन 1960 में खुला था। अभी भी लगभग 5000 तिब्बती लोग मसूरी में मुख्यतः हैप्पी वैली में बसे हुए हैं। वर्तमान मसूरी में होटल और जनसंख्या में भारी बृद्धि हो गयी है, दिल्ली इत्यादि से निकटता के कारण यह नगर आज ढेरों कूड़ा, जल-संकट, पार्किंग की कमी, इत्यादि से, विशेषकर ग्रीष्म ऋतु में सामना करता है। इसके अन्य अनुभागों में अपेक्षाकृत कम संकट हैं।
मसूरी दिल्ली और अन्य मुख्य नगरों से सड़क द्वारा अति सुगम है। इसे गंगोत्री, यमुनोत्री आदि उत्तर भारतीय तीर्थ स्थलों का प्रवेशद्वार कहा जाताहै। समीपतम रेलवे स्टेशन देहरादून है। यहां टैक्सियां और बसें नियमित उपलब्ध रहतीं हैं।
मसूरी भ्रमण का सर्वश्रेष्ठ समय मध्य मार्च से मध्य नवंबर का है, जिसमें वर्षाकाल जुलाई से सितंबर तक का सीजन परेशान कर सकता है क्योंकि इस काल में वर्षा तो होती ही है, इसके अलावा यहां कोई भी दूरवर्ती पर्वत बादलों के कारण दृश्यमान नहीं हो पाते हैं।
मसूरी की दूसरी सबसे ऊंची चोटी गन हिल पर रोप-वे द्वारा जाने का आनंद लेना चाहिए। यहां पैदल रास्ते से भी पहुंचा जा सकता है।यह रास्ता माल रोड पर कचहरी के निकट से जाता है और यहां पहुंचने में लगभग 20 मिनट का समय लगता है। रोप-वे की लंबाई केवल 400 मीटर है। सबसे ज्यादा इसकी सैर में जो रोमांच है, वह अविस्मरणीय है।
गन हिल से हिमालय पर्वत श्रृंखला अर्थात् बंदरपंच, श्रीकांता, पिठवाड़ा और गंगोत्री समूह आदि के सुंदर दृश्य देखे जा सकते हैं, साथ ही मसूरी और दून-घाटी का विहंगम दृश्य भी यहां से देखे जा सकते हैं। आजादी-पूर्व के वर्षों में इस पहाड़ी के ऊपर रखी तोप प्रतिदिन दोपहर को चलाई जाती थी ताकि लोग अपनी घड़ियां सैट कर लें, इसी कारण इस स्थान का नाम गन हिल पड़ा।
म्युनिसिपल गार्डन मसूरी का वर्तमान कंपनी गार्डन या म्युनिसिपल गार्डन आजादी से पहले तक बोटेनिकल गार्डन भी कहलाता था। कंपनी गार्डन के निर्माता विश्वविख्यात भूवैज्ञानिक डॉ॰ एच. फाकनार लोगी थे। सन् 1842 के आस-पास उन्होंने इस क्षेत्र को सुंदर उद्यान में बदल दिया था। बाद में इसकी देखभाल कंपनी प्रशासन के देखरेख में होने लगा था। इसलिए इसे कंपनी गार्डन या म्युनिसिपल गार्डन कहा जाने लगा।
तिब्बती मंदिर बौद्ध सभ्यता की गाथा कहता यह मंदिर निश्चय ही पर्यटकों का मन मोह लेता है। इस मंदिर के पीछे की तरफ कुछ ड्रम लगे हुए हैं। जिनके बारे में मान्यता है कि इन्हें घुमाने से मनोकामना पूरी होती है।
चाइल्डर्स लॉज लाल टिब्बा के निकट यह मसूरी की सबसे ऊंची चोटी है। टूरिस्ट कार्यालय से यह 5 कि॰मी॰ दूर है, यहां तक घोड़े पर या पैदल भी पहुंचा जा सकता है। यहां से बर्फ के दृश्य देखना बहुत रोमांचक लगता है।
कैमल बैक रोड कुल तीन कि॰मी॰ लंबा यह रोड रिंक हॉल के समीप कुलरी बाजार से आरंभ होता है और लाइब्रेरी बाजार पर जाकर समाप्त होता है। इस सड़क पर पैदल चलना या घुड़सवारी करना अच्छा लगता है। हिमालय में सूर्यास्त का दृश्य यहां से सुंदर दिखाई पड़ता है। मसूरी पब्लिक स्कूल से कैमल रॉक जीते जागते ऊंट जैसी लगती है।
झड़ीपानी फाल मसूरी-झड़ीपानी रोड पर मसूरी से 8.5 कि॰मी॰ दूर स्थित है। पर्यटक झड़ी- पानी तक 7 कि॰मी॰ की दूरी बस या कार द्वारा तय करके यहां से पैदल 1.5 कि॰मी॰ दूरी पर झरने तक पहुंच सकते हैं।
भट्टा फाल मसूरी-देहरादून रोड पर मसूरी से 7 कि॰मी॰ दूर स्थित है। पर्यटक बस या कार द्वारा यहां पहुंचकर आगे की 3 कि॰मी॰ दूरी पैदल तय करके झरने तक पहुंच सकते हैं। स्नान और पिकनिक के लिए यह अच्छी जगह है।
कैम्पटी फाल जिसके बारे में हमने जिक्र किया था वह यमुनोत्री रोड पर मसूरी से 15 कि॰मी॰ दूर 4500 फुट की ऊंचाई पर यह इस सुंदर घाटी में स्थित सबसे बड़ा और सबसे खूबसूरत झरना है, जो चारों ओर से ऊंचे पहाड़ों से घिरा है। झरने की तलहटी में स्नान तरोताजा कर देता है और बच्चों के साथ-साथ बड़े भी इसका आनंद उठाते हैं। मसूरी-यमुनोत्री मार्ग पर नगर से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित यह झरना पांच अलग-अलग धाराओं में बहता है, जो पर्यटकों के लिए खासा आकर्षण का केंद्र बना रहता है। यह स्थल समुद्रतल से लगभग 4500 फुट की ऊंचाई पर है। इसके चारों ओर पर्वत श्रृंखलाएं दिखाई देती हैं। अंगरेज अपनी चाय दावत अकसर यहीं पर किया करते थे, इसीलिए तो इस झरने का नाम कैंपटी (कैंप टी) फाल है। यमुनोत्री के रास्ते में 1370 मीटर की ऊंचाई पर कैम्प्टी जलप्रपात स्थित है। मसूरी से इसकी दूरी 15 किलोमीटर है। यह मसूरी घाटी का सबसे सुंदर जलप्रपात है।
ऊंचे-ऊंचे पर्वतों से घिरे इस जलप्रपात के मनभावन नजारे लोगों का दिल जीत लेते हैं। यहां की शीतलता में नहाकर पर्यटकों का मन तरोताजा हो जाता है। खासतौर से गर्मी के मौसम में कैम्प्टी जलप्रपात में स्नान करने का अनुभव आप जिंदगी भर नहीं भुला पाएंगे।
कैम्प्टी जलप्रपात के निकट कैम्प्टी झील है। लोग यहां पर अपने परिवार एवं मित्रों के साथ समय बिताने के लिए आते हैं। यहां उपलब्ध नौकायन और टॉय ट्रेन की सुविधा बच्चों को खासा लुभाती है। यही नहीं, यह स्थल पिकनिक मनाने के इच्छुक लोगों में बहुत ही लोकप्रिय है।
नाग देवता मंदिर कार्ट मेकेंजी रोड पर स्थित यह प्राचीन मंदिर मसूरी से लगभग 6 कि॰मी॰ दूर है। वाहन ठीक मंदिर तक जा सकते हैं। यहां से मसूरी के साथ-साथ दून-घाटी का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
मसूरी झील मसूरी-देहरादून रोड पर यह नया विकसित किया गया पिकनिक स्पॉट है, जो मसूरी से लगभग 6 कि॰मी॰ दूर है। यह एक आकर्षक स्थान है। यहां पैडल-बोट उपलब्ध रहती हैं। यहां से दून-घाटी और आसपास के गांवों का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
वाम चेतना केंद्र टिहरी बाई-पास रोड पर लगभग 2 कि॰मी॰ की दूरी पर यह एक विकसित किया गया पिकनिक स्पॉट है, इसके आसपास पार्क है जो देवदार के जंगलों और फूलों की झाड़ियों से घिरा है। यहां तक पैदल या टैक्सी/कार से पहुंचा जा सकता है। पार्क में वन्य प्राणी जैसे घुरार, हिमालयी मोर, मोनल आदि आकर्षण के मुख्य केंद्र हैं।
सर जॉर्ज एवरेस्ट हाउस मंसूरी से 6 कि॰मी॰ की दूरी पर भारत के प्रथम सर्वेयर जनरल सर जॉर्ज एवरेस्ट की दि पार्क एस्टेट है, उनका आवास और कार्यालय यहीं था, यहां सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट का नाम इन्हीं के नाम पर रखा गया है।
ज्वालाजी मंदिर (बेनोग हिल)मसूरी से 9 कि॰मी॰ पश्चिम में 2104 मी. की ऊंचाई पर ज्वालाजी मंदिर स्थित है। यह बेनोग हिल की चोटी पर बना है, जहां माता दुर्गा की पूजा होती है। मंदिर के चारों ओर घना जंगल है, जहां से हिमालय की चोटियों, दून घाटी और यमुना घाटी के सुंदर दृश्य दिखाई देते हैं।
क्लाउड्स एंड यह बंगला 1838 में एक ब्रिटिश मेजर ने बनवाया था, जो मसूरी में बने पहले चार भवनों में से एक है। अब इस बंगले को होटल में बदला जा चुका है, क्लाउड्स एंड कहे जाने वाला यह होटल मसूरी हिल के एकदम पश्चिम में, लाइब्रेरी से 8 कि॰मी॰ दूर स्थित है। यह रिजार्ट घने जंगलों से घिरा है, जहां पेड़-पौधों की विविध किस्में हैं साथ ही यहां से हिमालय की हिमाच्छादित चोटियां और यमुना नदी को देखा जा सकता है। विदेशी पर्यटकों और हनीमून पर आने वाले दंपत्तियों के लिए यह सबसे उपयुक्त रिजार्ट है।
मसूरी में दो राते व्यतीत करने के बाद 10 अगस्त की सुबह 8 बजे बसों द्वारा पूरा ग्रुप 140 किमी दूर हरिद्वार चला आया। हरिद्वार से 6 किलोमीटर पहले चौहान फैमिली रेस्टुरेंट के पास वुडस् ऑर्चर्ड रिट्रीट रिसार्ट एंड रेस्टोरेंट में दोपहर के लिए भोजन की व्यवस्था थी ।भोजन के साथ ही तुरंत एयरकंडीशनड हॉल में एक मीटिंग आयोजित भी किया गया। अमूल्या हर्ब्स के एम. डी.मनीष सर ने सभी को संबोधित किया,और साथ ही पवन सैनी,सुनील देवगन,और मुकेश सिंह के साथ कंपनी के सभी डायमंड ने भी अपने अपने विचार प्रस्तुत किये।
रात्रि के भोजन और गाला पार्टी डी जे संगीत की भी व्यवस्था वुड्स रिसार्ट में ही थी। इसके बाद बसों द्वारा हम रात्रि विश्राम के लिए हरिद्वार में मेन रोड पर आश्रमों के निकट स्थित होटल मैंगो में चौथी मंजिल के कमरा नंबर 402 में आकर अपना आशियाना बनाया।
सुबह हम हरिद्वार में गंगा स्नान के लिए हरी की पौड़ी पर बस द्वारा समूह में गए।
गंगा हरिद्वार में भी बड़ी गंदी थी,लेकिन भारत भर से श्रद्धालुओं की भारी भीड़ थी।सावन का महीना और अंतिम सोमवार का दिन होने के कारण भारी मात्रा में बोल बम कावरियों का भी जमघट जमा था। गंगा में तेज धार होने के कारण घाट पर लोहे के मजबूत सिक्कडों को पकड़ कर हम सभी ने स्नान और पूजा अर्चना भी किया।
स्नान के बाद होटल आने पर करीब 8 बजे सुबह का ब्रेक फ़ास्ट तैयार था। होटल के दूसरी मंजिल पर बना हुआ आधुनिकता से सुसज्जित रेस्त्रां बहुत ही मन मोहने वाला था। नास्ते में गरम दुध के साथ फ्रूट्स, जलेबी,इडली साम्भर, टी, कॉफी ,पूड़ी,छोले सब कुछ मौजूद था। नास्ते के बाद हम सभी 8 बजे रूढ़की गाज़ियाबाद वाले रुट से करीब 5 बजे शायं को दिल्ली पहुंचे।अल्ताफ़, डॉ वदूद,और अमानतुल्लाह की अगले दिन बकरीद थी,और वे सभी लोग दिल्ली के जामा मस्जिद में नमाज अदा करने के लिए अगले दिन के लिए रुक गए और मैं अपने मित्र विनोद कुमार अनिल कुमार सिंह, प्रदीप सिंह और गोविंद जायसवाल के साथ रात्रि में नई दिल्ली से ट्रेन पकड़ कर मंसूरी और हरिद्वार यात्रा का रोमांच लिए वाराणसी लौट आये।
डॉ राधेश्याम केसरी
(रूबी मैनेजर)
अमूल्या हर्ब्स
देवरिया,ग़ाज़ीपुर(यूपी)
9415864534