माँमस् मैरिज - प्यार की उमंग
अध्याय - 6
निकिता के इतने करीब आने की अनुमति केवल विकास को ही थी। कुछ ही पलों में निकिता विकास की बाहों में थी। विकास की सांसों की आहट से उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। विकास की हाथों की ऊंगलियां निकिता के गौर वर्ण गालों को सहला रही थी। विकास धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। यकायक निकिता ने मुस्कुराकर हाथों से अपने बालों को विकास के चेहरे पर दे मारा और उसे दूर छिड़क कर वहां से बचकर भागने लगी। विकास अपनी आंखों को मलने लगा। बालों का पानी उसकी आंखो में चला गया था।
निकिता तैयार होकर जब कमरे से बाहर आई तब विकास ड्राइंग रूम में बैठकर टीवी पर आईपीएल मैच देख रहा था। उसकी दिली इच्छा थी कि विकास अपनी शरारत जारी रखे। मगर विकास को क्रिकेट मैच देखने का इतना चाव था कि निकिता जो उसके लिए साड़ी पहनकर आई थी वह भी विकास ने पुरे मन से नहीं देखी। निकिता को बहुत गुस्सा आ रहा था। पुरा एक घण्टा बिगाड़ा था उसने तैयार होने में। आज वे दोनों बाहर डीनर पर जाने वाले थे। मैच बड़ी गंभीरता से देख रहा विकास क्रिकेटर द्वारा लगाये गये चौके-छक्के पर कभी उछल रहा था तो कभी रन नहीं लेने पर उसी क्रिकेटर को क्रोधित होकर बड़बड़ाये जा रहा था। निकिता को विकास का यह बचपना बहुत आनंद प्रदान कर रहा था। डाइनिंग टेबल पर चाय पीते-पीते वह विकास की इन हरकतों को आंखे बचाकर देख लेती और मन ही मन खुश हो रही थी।
जब रात के 10 बज गये तब निकिता ने विकास के हाथों से टीवी का रिमोट छीना और टीवी बंद कर दी। उसने विकास को डिनर पर चलने का उसका वादा याद दिलाया। विकास ने अपनी भूल स्वीकार कर ली। निकिता का हाथ पकड़कर वह दोनों घर से बाहर आकर डीनर के लिए चल दिए।
डीनर लेने के उपरांत रेस्टोरेंट से बाहर निकलकर दोनों कार में घर लौट ही रहे थे की विकास ने निकिता के सम्मुख एक बार फिर शादी का प्रस्ताव रख दिया। विवाह की बातें सुनकर निकिता का मुड अपसेट हो जाता? अपनी शादी टूटने के दृश्य एक-एक कर उसकी आंखों के सामने पुनः किसी फिल्म के दृश्य की भांति आ रहे थे। विकास की किसी भी बात का उत्तर मौन के रूप में देकर वह अपने फ्लेट पर लौट आई। निकिता के गुस्सैल मुड को भांपकर विकास ने बात वहीं खत्म कर दी। वह भी अपने फ्लेट पर लौट आया।
कुछ दिनों के बाद अचानक निकिता बीमार पड़ गई। उसे टाइफाइड हो गया था। निजी हाॅस्पीटल में उसे भर्ती किया गया। विकास, निकिता के पास ही रूका। न केवल एक डॉक्टर की हैसियत से अपितु अपनी होनेवाली पत्नी के होनेवाले पति की हैसियत से विकास ने निकिता के ह्रदय में जगह बना ही ली। निकिता के माता-पिता ने विकास को निकिता से पुनः विवाह करने की अनुमति दे दी थी। साथ ही निकिता को दोबारा धोखा नहीं देने की चेतावनी भी देने से वे नहीं चूके। विकास ने निकिता के लिए अपने पिता का जीवन में पहली बार विरोध किया था। अपने पिता के मुख से यह जानकर निकिता गदगद हो गई थी। इतना ही नहीं विकास उसी गांव में निकिता का हाथ थामकर उससे शादी करना चाहता था जहां उनकी सगाई टूटी थी। निकिता ने शादी के लिए हां कर दी। दोनों की शादी बड़ी धूमधाम से सम्पन्न हो गई।" बबिता ने अपनी पुरी बात कह दी थी।
रात के तीन बजे रहे थे। तनु निकिता और विकास की प्रेमकथा सुनकर बहुत खुश थी। उसके ख्यालों में रवि आ गया, जिसकी बाहों में वह कसकर लिपट गई थी। तकियें को रवि समझकर वह गहरी नींद में चली गई। बबीता भी सो गई।
शहर के रामनगर में रामनाथ परिहार के यहां उनकी बड़ी बेटी की शादी का उत्सव चल रहा था। सुमन को हल्दी और उपटन का लेप लगाया जा रहा था। रामनाथ परिहार के सगे-संबंधी ढोलक की ताल पर नाच-गा रहे थे। परिवार की कुछ महिलाएं नृत्यरत अन्य पारिवारिक महिलाओं के सिर के ऊपर रूपये घुमाकर चढ़ावा कर रही थी। सुमन और तनु अच्छी सहेलीयां थी। तनु ने अपनीमाँम से सुमन की शादी में सम्मिलित होने की अनुमति ले ली थी। बबिता उसे अपने साथ लेकर सुमन की हल्दी आदि की रस्मों में सम्मिलित करवाती और सांज ढले अपने साथ घर ले जाती।
सुमित को पल भर देख लेने से सुगंधा का दिन भर अच्छा जाता था। सुमित पीथमपुर थार की सिप्ला मेडिसिन निमार्ण कम्पनी में क्वालिटी मैनेजर के पद पर कार्यरत था। रामनगर में रामनाथ परिहार जी के मकान की तीसरी मंजिल पर वह किराये से रहता था। रामनाथ परिहार, पत्नी रमा बड़ी बेटी सुमन और छोटे बेटे नमन के साथ रहते है। मकान के दोनों माले स्वयं के इस्तेमाल के लिए थे और ऊपर के तीसरे माले पर केवल सुमित के व्यवहार से प्रभावित होकर रामनाथ परिहार ने उसे रेन्ट पर दिया था।
सुमित संयमित जीवन के लिए जाना जाता था। उसकी दिनचर्या में सुबह छः बजे उठकर व्यायाम और योगा से शुरू होती थी। सुगंधा अपने घर की छत से चोरी-छिपे सुमित को व्यायाम करते देखना कभी नहीं भूलती थी। सुमित यह देखकर भी अनदेखा कर देता की सुमन उसे चुपके से वाॅच कर रही है। प्रत्येक मौसम में ठण्डे पानी से स्नान कर ईश्वरीय नमन कर ही सुमित सुबह का नाश्ता लेता था। शाकाहारी सुमित बादाम-पिस्ता युक्त दुध से भरा गिलास एक सांस में गटक जाता। कुछ फल का सेवन कर रामनगर से सटी मुख्य सड़क पर आकर 9 बजे वह खड़ा हो जाता। जहां से स्टाफ बस उसे पिक-अप कर लेती और शाम 7 बजे उसे वही छोड़ देती। दोपहर का भोजन वह कम्पनी में ही करता। रात का भोजन सुमित स्वयं बनाकर खाता था।
सुमित पर जान छिड़कने वाली सुगंधा कूछ समय पुर्व तक सुमित को हेय दृष्टि से देखा करती थी। इसका कारण यह था की सुमित नगर की महिलाओं से बहुत ही घुलमिलकर बातें किया करता था। यहां तक कि वहीं की कुछ भाभीयां सुमित से मसखरी करने लग जाती। जिसका जवाब सुमित मस्ती-मजाक से ही देता। यह सब देखकर सुगंधा को यकीन हो गया की सुमित भी बाकी युवकों की तरह ही है। फ्लर्ट करना सुमित की आदत में शुमार है। एक वर्ष पुर्व जब सुमित यहां रहने आया था तब सुमन की सगाई होना थी। रामनाथ परिहार के घर सगे-संबंधियों की भीड़ जमा थी। दोपहर का समय था। लड़के वाले शाम तक आने वाले थे। रामनाथ परिहार के निवेदन पर घर की कुछ जिम्मेदारियां सुमित ने वहन करने की हांमी भर दी थी। इसी कारण आज उसने ऑफिस से छुट्टी ले ली थी। रामनाथ परिहार के घर के तीसरे माले पर जिसमें सुमित रहता था, उसमें सुगंधा को तैयार करने का उत्तरदायित्व सुमन और उसकी सहेलीयों पर था। भुलवश सुमित अपने रूम में जाने के जैसे दरवाजा खोला- अन्दर बैठी सुमन असहज हो गयी। सुगंधा ने तुरंत उसे टुपट्टे से ढांक दिया। वह सुमित पर गरज पढ़ी-- " कैसे आदमी हो? दरवाजा नाॅक करके आना चाहिए न? कौन हो बिना पूछे अन्दर आने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुयी।"
"अरे सुगंधा सुन तो सही?" सुमन बोली।
"क्या सुनू सुमन? मैं इन लड़को को अच्छी तरह जानती हूं। लड़कीयों को ताड़ने का और आंखे सेकने का कोई मौका नहीं चूकते। नीचे से कोई राम अंकल को बुलाव तो जरा, इस मजनू की तो मैं आज खबर लेती हूं।" सुगंधा दहाड़ रही थी।
सुमन और बाकी सहेली ने उसे पकड़कर समझाया कि ये सुमित का ही रूम है और उसे ये पता नहीं था की हम लोग यहां है। सुमित बालकनी के गलियारे में खड़ा था। सुगंधा और सुमन से क्षमा मांग सुमित नीचे आ गया। सुगंधा का क्रोध जैसे-तैसे शांत हुआ। बात वहीं ख़त्म हो गई।
सगाई की पुरी रस्म में सुगंधा सुमित को घुरती रही। उसने अभी तक सुमित को माफ नहीं किया था। उस पर रहवासी शादी-शुदा महिलाओं से उसकी हंस-हंस के करती हुई बातों ने उसके ह्रदय में जल रही सुमित के प्रति ज्वाला को भड़काने में आग का में घी का काम किया।
सुमन के भाई नमन पर पड़ोस की भील काॅलोनी में रहने वाले कुछ बदमाशों ने जानलेवा हमला कर दिया। मदन की चाहत नुपूर थी जो कि नमन की कॉलेज गर्लफ्रेंड थी। मदन का प्रणय प्रस्ताव नुपूर ने यह कहकर ठुकरा दिया था की वह नमन से प्यार करती है मदन से नहीं। मदन जो कि भील काॅलोनी में रहने वाला एक चर्चित बदमाश युवक था, ने अपने कुछ दोस्तों के साथ काॅलेज से लौट रहे नमन पर आक्रमण कर दिया। हाॅकी स्टीक से चार नवयुवकों ने नमन की पिटाई कर दी। नमन को बहुत चोटें आई थी। पुलिस प्रकरण बनाया गया। सुमित, नमन को लेकर एमवाय हाॅस्पीटल ले गया। वहां से पुलिसियां कार्यवाही कर सुमित ने नमन को निजि हास्पीटल सुयश में भर्ती करवा दिया। पुलिस प्रकरण के चलते नमन के स्थानीय मित्रों ने नमन से दुरी बना ली। क्योंकि भील काॅलोनी के गुण्डों से आसपास की सभी कालोनियों के लोग डरते थे। खुन-खराबा करना भील कालोनी के रहवासियों के लिए आम बात थी।
सुमित ने नमन के दोस्तों समझाया कि आज जो नमन के साथ हुआ है कल उनके भी साथ हो सकता हो। सो एक होकर रहे। इस मुश्किल खड़ी में नमन को दोस्तों के साथ की जरूरत है। सुमित की समझाइश ने नमन के साथ काॅलेज में पढ़ने वाले उसके क्लास मेट राघव और शैलेंद्र की विचारधारा को बदल कर रख दिया। नमन के बयान और राघव,शैलेंद्र की गवाही ने मदन और उसके तीनों दोस्तों को जेल की हवा खिला दी। चारों को तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।
नमन धीरे-धीरे रिकवर कर स्वास्थ्य लाभ ले रहा था। इस घटना के बाद सुगंधा के विचार सुमित के प्रति बहुत बदल गये थे। अपने पुर्व वर्ती व्यवहार पर उसने सुमित से माफी मांगी। सुमित ने बिना वक्त गंवाये सुगंधा को माफ कर दिया।
भीषण गर्मी के मौसम में एक दिन गैस सिलेंडर फटने से दिनेश त्रिवेदी जी के घर में आग लग गई। परिवार सदस्य बाहर आ चूके थे। फायर ब्रिगेड की गाड़ी आने में समय लग रहा था। सुमित ने पास ही की शर्मा जी की पानी की टंकी के यहां से मोटर द्वारा पानी का छिड़काव कर आग बुझाने की कोशिश शुरू कर दि। आग की लपटों तक पानी ठीक से पहूंच नहीं पा रहा था। सुमित ने दिनेश त्रिवेदी जी के घर की बालकनी पर से खड़े होकर उनके किचन में सीधे पानी पहूंचाने का रास्ता खोज निकाला। बाहर खड़े रहवासी सुमित को सम्भलने की सलाह दे रहे थे। रहवासियों ने आग के डर से भयभीत होकर अपने-अपने घरों के गैस सिलेंडर निकालकर बाहर रख दिये थे। आग बुझाने में सुमित की सहायता को कुछ युवक आये। बाल्टी भर-भरकर आग पर पानी फेंका जा रहा था। सुमित की बहादुरी को देख रहवासी हतप्रद थे। वह जलते हुये गैस सिलेंडर को हाथों से खींचकर बाहर ले आया था। सुमित ने कंबल की सहायता से जलते हुये गैस सिलेंडर पर जोरदार दबाव के साथ एक के बाद एक कई प्रहार किये। देखते ही देखते सिलेंडर बुझ गया। पाइप की सहायता से घर के अन्दर छिड़काव किये जा रहे पानी से आग भी बुझ चूकी थी। फायर ब्रिगेड की टीम ने रहवासियों द्वारा स्वयं आग बुझा लेने की कोशिश की सराहना की। इसके साथ ही सुमित की पीठ थपथपाकर वे लोग लौट गये।
सुगंधा, सुमित की बहादुरी से बहुत प्रभावित हुई। उसके ह्रदय में सुमित ने जगह बना ली थी। सुमित के पैरों से खून बह रहा था। बालकनी पर चढ़ाई करते समय नुकीले लोहे का सरीये पैर के तलवे पर घुस गया था। जिससे कारण खून बह रहा था। इतना ही नहीं जलते हुआ गैस सिलेंडर उठाने से उसकी हाथों की हथेलियां भी जल गई थी।
"क्या जरूरत थी इतनी हिरोपंती दिखाने की? आपको कुछ हो जाता तो?"
रात के समय सुगंधा से रहा नहीं गया और वह छत पर सो रहे सुमित की हथेलियों को सहलाते हुये बोली।
"इस हिरोपंती के कारण ही तो तुमने पसंद किया है न सुगंधा? वर्ना तुम तो मुझसे कितनी नफरत करती थी।" सुमित ने कहा।
"हां हां ठीक है ठीक है। आगे से जरा सोच समझकर कदम उठाईयेगा। अब आप पर आपका नहीं मेरा अधिकार है।" कहते हुये सीमा ने सुमित की हथेलियों को अपने गालों पर फिराया।
कृष्णपक्ष अंतिम समय में था। रात का अंधियारा बढ़ते देख सुमित ने सुगंधा को घर लौटने को कहा। सुमित को गले लगाकर उसके गालों पर एक चुंबन चिपका कर सुगंधा घर लौट गयी।
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