Kamsin - 8 in Hindi Love Stories by Seema Saxena books and stories PDF | कमसिन - 8

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कमसिन - 8

कमसिन

सीमा असीम सक्सेना

(8)

देव कार की पिछली सीट पर बैठ गया और वह आगे वाली सीट पर ! रवि ने कार स्टार्ट कर दी थी ! तभी देव ने अपनी जेकेट की बड़ी जेब से कुछ फल निकाल कर खाने को दिए !

दीदी जी खाकर बताओ कैसे हैं ?

उसने एक फल खुद खाया और एक रवि को दे दिया बाकी बचे हुए अपने पर्स में डाल लिए ! उसने खाकर देखा फल वाकई बहुत ही स्वादिष्ट थे रवि को भी बहुत पसंद आये ! और वे कार चलते हुए ही खाते जा रहे थे ! इस तरह सब खाकर ख़त्म कर दिए !

रवि कह रह थे कि उन्हें फल खाना बहुत पसंद है ! केवल फल ही खिलाते रहो तो भी गुजरा कर लेंगे ! रोटी को हाथ भी नहीं लगायेंगे !

देव बताओ कहाँ चलना है ?

सर जी, स्वर्ग तालाब चलिए जी ! वहां पर कम लोग ही जा पाते हैं ! बहुत ही अच्छी जगह है एक बार जो भी मन्नत दिल से मांग लो जरुर पूरी हो जाती है !

अरे यार मन्न्त क्या मांगना ? मेहनत करो ! उपर वाला सब देखता है ! सबको झोली भर के देता है बस दिल से और सच्चाई से करम करते रहो !

सही ही तो कह रहे हैं रवि ! दिल से निकली हर दुआ कुबूल होगी ! हमारा आँचल जितना बड़ा होगा सौगात भी उतनी ही मिलेगी !

करम करना हमारा फर्ज है और देना उस ऊपर वाले का !

करम किये जा फल की इच्छा न कर ! गीता में भी तो लिखा है .....कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ! मतलब करम करना तुम्हारा अधिकार है और फल देना मेरा !

कार पहाड़ी सडको पर दौड़ती हुई चली जा रही थी ! वे लोग हाईवे पर चल रहे थे ! फोरलेन बना हुआ, खूब चौड़ी सड़कें और उतने ही भयंकर मोड़ ! फिर भी रवि बिना डरे आराम से किसी कुशल पहाड़ी ड्राइवर की तरह कार चला रहे थे ! बल्कि सधे हुए हाथों से दौड़ा रहे थे !

सर जी आगे से दायें मोड़ लेना !

कुछ ही दूरी पर दायीं तरफ एक मोड़ था ! जो बहुत ही पतला सा था और कच्चा भी ! रवि ने कार मोड़ ली थी ! उस पतली सी सडक के एक तरफ को देवदार के पेड़ थे और दूसरी तरफ गहरी खाई ! खाई की तरफ दूर दूर बस एकाध पेड़ ! कोई रोक नहीं थी! बहुत ही कठिन रास्ता था ! सर अभी भी अपनी कुशल ड्राइविंग का परिचय दे रहे थे ! कार आगे बढ़ रही थी और पीछे धूल के गुबार छोडती जा रही थी ! इसी तरह करीब दो किलो मीटर का रास्ता पार कर लिया ! राशी को इन ऊँचे नीचे पहाड़ी रास्तों से गुजरते हुए जाना बेहद डरा रहा था ! वो तो कभी आज तक किसी पहाड़ी इलाकों पर ही नहीं गयी थी और फिर ये इतने खतरनाक रस्ते और डरा देने वाले मोड़ !

घुमावदार रास्तों पर चलते हुए उसका जी भी बार बार मिचला जा रहा था ! कभी गाडी चढाई पर चढ़ जाती तो कभी नीचे उतर जाती ! जितना चढ़ती, उतना ही उतरती !

इस तरह उन धूल भरे कच्चे पहाड़ी रास्ते पर कार दौड़ी चली जा रही थी !

अभी कितनी दूर और जाना है देव जी ?

बस दीदी जी, ये दो पहाड़ और पार करने हैं ! उसने ऊँगली दिखाते हुए कहा !

राशी ने देखा ! पर उसे समझ नहीं आया कि यह पहाड़ कार से कैसे पार होंगे ?

खैर करीब आधा घंटा और लगा उस रस्ते को पार करने में !

आगे ढलवा, कच्चा रास्ता था ! कार ले जाना मुश्किल था ! रवि ने राजू से पूछा, बता यार, आगे कैसे चलना है क्यूंकि कार ले जाना तो सम्भव नहीं है ?

सर जी आगे पैदल ही जाना पड़ेगा !

हाँ भाई मुझे पता है जब मंजिल नहीं आई और कार जा नहीं सकती तो पैदल ही चलना होगा ! कार को लॉक करते हुए बोले, चल भाई चल !

उस सकरे और पतले रास्ते पर हम लोग पैदल ही चल पड़े ! वो पहाड़ी और पैदल चलने वाला रास्ता दोनों तरफ से झाड़ियों से घिरा हुआ था ! कभी उतरती हुई ढलान तो कभी चढता हुआ रास्ता ! कुछ दूर तक ही साथ थे और फिर रास्ता इतना सकरा था कि उन लोगो को एक साथ न चल मिल रहा था ! अब वह लोग एक के पीछे एक चलते हुए जा रहे थे पर उस कठिन राह पर राशि को तेज चलना नहीं हो पा रहा था ! वे दोनों लोग तो आगे निकल गए लेकिन राशि सबसे पीछे रह गयी ! एकदम सुनसान रास्ता और झाड़ियों के पीछे से झांकती खाइयाँ ! एक तरफ ऊँचे पहाड़ और साथ ही कुत्ते के भौंकने की आवाज ! वो थोड़ी दूर तक तो चलती रही फिर थक जाने के कारण वही झाड़ियों की तरफ को बैठ गयी ! अकेली सुनसान जगह पर उसे कुत्ते के भौंकने की आवाज भीतर तक सहमा रही थी ! थोड़ी देर तो डर को सहन कर लिया फिर नहीं रहा गया तब उसने जोर से आवाज लगायी,, रवि किधर हो आप ? रवि ........!

उधर से कोई आवाज ही नहीं आई ! शायद वे लोग बहुत आगे निकल गए थे ! वो हिम्मत करके उठी और पहाड़ी अंजान सुनसान डरावने से सकरे रस्ते पर अकेली ही चल पड़ी ! अब दोनों ओर झाड़ियाँ थी जिनसे टकराती हुई वो चलती जा रही थी ! एक जगह पर उसकी चुन्नी अटक गयी उसने झाड़ियों में फंसी चुन्नी को निकालने की कोशिश की तभी नीचे पैर के पास कटीली झाड़ी चुभ गयी ! उसकी आँख से आंसू बह आये ! आज उसे पहली बार घर से दूर होने और अपने अकेले होने का अहसास हुआ ! वाकई अपने तो अपने होते हैं ! आँखों के बहते आंसुओं को अपनी चुन्नी के किनारे से साफ किया ! जब कोई हमारे पास नहीं होता तब आंसू हमारे सच्चे साथी बन जाते हैं और हमारा साथ निभाने लगते हैं ! लेकिन भौंकने की आवाज सुनकर वे आंसू भी डर से सहम गए लगते थे ! डौगी के बहुत ही करीब से भौंकने की आवाजें आ रही रही थी ! उसे लगा अगर वो यहाँ आ गया तब वो अपना बचाव भी नहीं कर पायेगी ! उसे पेड़ पर चढना भी नहीं आता ! उसने अपनी नजरें इधर उधर दौड़ाई पर कोई ऐसा पेड़ भी नजर नहीं आया जिस पर चढ़कर बैठा जा सके ! पहाड़ पर चीड़ और देवदार के पेड़ थे पर वहां तक पहुंचना ही बेहद असंभव था ! आज उसे मन में बहुत तकलीफ हो रही कि जिसके लिए वह अपने घरवालों से बगावत करके या बिन बताये इतनी दूर आ गयी, उसे उसकी कोई परवाह ही नहीं है, वो अपनेपन के अहसास के लिए तड़प उठी ! उफ़ ये प्यार बहुत बेदर्दी होता है कितना दर्द देता है ! चुन्नी झड़ी में फंसी थी और पैर में कांटा फंसा था ! वो वही घास पर बैठ गयी, उस सूखी घास में हलकी सी चरमराहट की आवाज हुई !

पैर से खून की बूंदें टपकने लगी ! लाल लाल खून देखकर उसे और तेज रोना आया, दिल तेज तेज धडकने लगा ! अब क्या करे और कैसे निकले इस जंगली रास्ते से ! पतली सी घुमावदार पगडण्डी पर दूर दूर तक कोई भी नजर नहीं आ रहा था ! अचानक उसे ध्यान आया कि मोबाइल है न पास में, बस यह सोचते ही आधी परेशानी अपने आप दूर हो गयी ! उसने अपने साईड से टंगे पर्स में से मोबाईल निकाला और रवि का नं मिलाया, उनका नं उसे मुँहजवानी याद हो गया था ! हर दिन कई बार बात जो होती थी ! नियम सा बन गया था बात करने का अगर बात न हो तो मन ही नहीं लगता था ! बस एक छोटी सी बात भी उनके मन को सकूँ से भर जाती थी, दिल की घबराहट दूर हो जाती थी !

वे दोनों दूर होकर भी कितने करीब थे ! कितने अमीर समझ बैठे थे खुद को, एक दूसरे का प्यार पाकर ! जब करीब आ जायेंगे और पा लेंगे तो क्या ये करीबी, दूरी में बदल जाएगी ? ऐसा उसने सोचा ही नहीं था !

सच तो यह है कि कितनी तपस्या, श्रध्दा, आस्था और लगन के बाद आज का दिन नसीब हुआ था ! अपने प्यार को पाया था परन्तु वे तो इस तरह आगे निकल गए जैसे उनको हमारी कोई फ़िक्र ही नहीं !

क्या उन्होंने मुझे पास में न पाकर एक बार भी सोचा नहीं होगा कि राशि कहाँ रह गयी ! यह सब बातें सोचकर वो बहुत परेशान हो गयी थी ! खैर मोबाइल पर नं डायल करके उसने अपने कान से लगा लिया !

दिस नं इज नॉट रिचेबल !

ओह्ह अब क्या करे ? अब वो किधर जाए ? फोन तो मिल ही नहीं रहा ! इस पहाड़ी बीहड़ में नं मिले भी तो कैसे ?सिगनल ही नहीं आ रहे होंगे ! फिर भी वो बार बार नं ट्राई करती रही ! उस पर डर बेतहाशा हाबी होता जा रहा था !

कुत्ते का भौंकने का डर, पैर में काँटे का दर्द और चुन्नी का झाडी में उलझा होना ! अब इस पहाड़ी इलाके में वो अकेले घबराए नहीं तो क्या करे ?

आखिर फोन लग गया ! घंटी की आवाज फिर, कहाँ हो भई आप ? हम इतनी देर से देख रहे थे कि पीछे से आ रही होगी ! रवि का घबराहट भरा स्वर उभरा !

आप कहाँ पर हैं ? मुझे यहाँ अकेला छोडकर आप किधर निकल गए ? आप जल्दी से आ जाइये ! मुझे यहाँ बहुत डर लग रहा है !

आता हूँ आप वहीँ पर रुको ! उनकी फोन पर हांफती हुई आवाज सुनाई दी !

उनको भी तेरी फ़िक्र थी और कितना गलत सोच रही थी, पागल कहीं की ! उसने खुद को धिक्कारा !

किधर हो आप ! मैं बस अभी आ रहा हूँ ! फोन करके उन्होंने फिर से कहा था !

मैं इधर झाड़ियों के पास हूँ ! यहाँ पर कुत्ते के भौंकने की आवाज बहुत ही करीब से आ रही है !

कुछ ही देर में उसे देव आता दिखाई दिया !

आपको तो हमारे संग चलना था ! आप इतना पीछे कैसे रह गयी !

आप लोग तो बातें करते हुए तेज क़दमों से आगे निकल गए ! मेरी आदत नहीं है न, इन पहाड़ी ढलवा, सकरे रास्तों पर तेज चलने की,

मैं अटक अटक कर चल रही थी इसलिए मैं अकेली रह गयी !

अच्छा दीदी जी अब आप उठो और अब मेरे साथ चलो, सर जी बहुत परेशान हो रहे हैं !

देव जी ये कुत्ते के भौंकने की आवाज कहाँ से आ रही है ?

किसी के घर के आसपास होगा, लोग रख देते हैं न !

मुझे बहुत डर लग रहा था कि कहीं यहाँ आ तो नहीं जाएगा !

नहीं दीदी जी, आप परेशान न हो ! ये पहाड़ी कुत्ते हैं किसी को यूँ ही तंग नहीं करते !

उसे याद आया एक बार उसने पढ़ा था तवांग पहाड़ी यात्रा का संस्मरण ! एक जगह लिखा था, वे तवांग जाने वाले रास्ते में चाय पीने के लिए एक जगह पर ठहरे थे ! याक के दूध की चाय पी थी और वहां पर कई कुत्ते घूम रहे थे ! देखने में बहुत ही भयंकर थे पर किसी से कुछ भी नहीं कह रहे थे और हाँ राशि ने भी यहाँ आते समय एक चाय के खोखे के पास एक कुत्ता घूमते देखा था !

राशि धीरे धीरे देव के साथ चलते हुए वहां पर पहुँच गयी जहाँ पर रवि खड़े हुए थे ! वे सचमुच बेहद परेशान से दिखे !

अब साथ में ही रहना !

अब वे लोग ऐसी जगह पर आ गए थे, जहाँ पर धोड़ा सा खुला और समतल स्थान था ! बहुत ही खुबसूरत जगह, चारो तरफ हरियाली बिछी हुई लगभग २०० गज तक सीधी और सपाट जगह !

वो चलते चलते थक गयी थी अतः वही जमीन पर घास के ऊपर अपने पाँव फैलाकर बैठ गयी ! चारो तरफ बेहद सुंदर प्राकृतिक नज़ारे बिखरे पड़े थे ! बाँहें फैलाये खड़े विशाल देवदार के विशाल पेड़ मानों आमंत्रण सा देते हुए प्रतीत हो रहे थे !

वही पर एक चाय की दुकान थी ! राजू ने तीन कप चाय लाने को कह दिया ! ओफ्फो ये लोग कितनी चाय पीते हैं और उसे भी न चाहते हुए पीनी ही पड़ती है

तीनों लोग उस हरी भरी घास पर अपने पैर फैला कर बैठ गए ! सभी लोग थक गए थे ! चायवाला एक ट्रे में चाय के कप ले कर आ गया था ! वो चाय की ट्रे को जमीन में रखकर पास में ही बैठ गया ! देव और वो दोनों ही आपस में पहाड़ी भाषा में बात करने लगे !

राशि को ऐसा लग रहा था कि जैसे देव उनको बता रहा था कि ये लोग मैदानी इलाके से यहाँ पहाड़ों की असली प्राकृतिक सुन्दरता को देखने के लिए चले आये हैं !

सच ही तो कह रहा था वो ! ये प्रकृति कितना लुभाती है, मन को मोह लेती है !

रवि इतनी देर से चुपचाप उनकी बातें सुन रहे थे अब उनसे रहा नहीं गया ! आखिर बोल ही पड़े ! !

भाई ये बताओ ये जगह किसकी है ?

एक जमींदार हैं उनकी है ! चाय वाले ने बताया !

उन्होंने यहाँ पर कोई पेड़ पौधा भी नहीं लगाया ?

हाँ न जाने कब से यूँ ही पड़ी है ! कोई देखने भालने वाला ही नहीं है !

क्यों ? क्या उनका कोई है नहीं ?

अरे बहुत बडा कुनबा है पर आपसी झगडे की वजह से यहाँ कोई आता ही नहीं है !

अजीब लोग हैं !

साब जी, हर घर के अपने झगडे होते हैं और जहाँ पर बड़ा खानदान हो वहां पर तो अकसर ऐसा होता है !

इनके भी घर का झगडा है तो न यहाँ पर घर बना रहे हैं, न ही खेती कर रहे हैं !

अच्छा अगर ये जगह मैं खरीदना चाहूँ, तो क्या खरीद सकता हूँ ?

कैसी बातें कर रहे हैं साब जी ! ये लोग खुद के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं तो बैंच कैसे सकते हैं ? आपसी झगडा निपटे तो बात बने !

रवि ने एक गहरी स्वांस भरते हुए न जाने कैसी विचारमग्न मुद्रा बना ली !

क्या सोचने लगे साब जी ?

कुछ भी नहीं !

चलो सर जी, अब यहाँ से आगे चले !

हालाँकि यहाँ से उठने का बिलकुल भी मन नहीं कर रहा था ! बहुत ही सुंदर और मन को मोहने वाली जगह थी !

जाना तो था ही आखिर कब तक यहाँ बैठे रहते !

ईश्वर ने यहाँ कितनी सुन्दरता बक्शी है ! सेब के बागों के बीच में से गुजरते हुए राशि सोचती हुई चली जा रही थी ! उसका जी चाह रहा था कि इन सेबों से लदे पेड़ों से एक एक सेब तोडकर खाती हुई चली जाए ! परन्तु सेब अभी बिलकुल कच्चे थे ! हरे रंग के छोटे छोटे सेब अभी कडवेपन से भरे हुए हैं ! कुछ ही दिनों के बाद इनमे रंग और स्वाद दोनों ही भर जायेगा ! यह रसीले और मीठे हो जायेंगे ! कौन करता है ? कैसे करता ? उसका दिल श्रद्धा के साथ उस ईश्वर के लिए झुक गया !

सेब के बाग़ सफ़ेद रंग की जाली से ढंके हुए थे !

इन पेड़ों को जाली से क्यों ढँक रखा गया है ! राशि से बिना पूछे रहा ही नहीं गया !

ये इसलिए कबर्ड हैं ताकि इनको बारिश और ओलों की सीधी मार से बचाया जा सके !

बर्फ या ओले इन सेब की फसल के लिए नुकसान दायक होते हैं ?

नहीं नहीं बर्फ तो इन पौधों में जान फूंक देता है और इन फलों का स्वाद दुगुना हो जाता है !

इतने सारे सेब के पेड़ों के बीच में से निकल कर जाती हुई राशि मे रोमांच सा भर रहा था !

कहाँ देखा था उसने कभी भी ऐसा नजारा !

गर्मी की छुट्टी में जब नानी के घर जाते तो वहां पर आम के पेड़ फलों से लदे हुए देखे थे वैसी ही कुछ कुछ फीलिंग आ रही थी लेकिन यहाँ की बात कुछ अलग सी लग रही थी !

बेर के पेड़ों से हाथ बढ़ा कर बेर तोड़ लेते थे ! जितने जी चाहें उतने खाओ ! कोई रोकने वाला नहीं अपनेपन की और अपने की खुशबू या बात अलग ही होती है ! खुद अपने हाथ से तोडकर खाए गए फलों की बात ही निराली होती है !

राजू ने उसे इस तरह से सेब के पेड़ों को निहारते देखा तो उसने एक सेब तोडकर राशि को देते हुए कहा, लो खाओ और बताओ कैसा है ?

राशी ने खुश होकर किसी मासूम बच्चे की तरह जल्दी से वो हरा सेब ले लिया ! उसे फलों से लदे वे सेब के पेड़ इतना सम्मोहित कर रहे थे !

थोडा सा बीच में लाल रंग छिटका हुआ वो कच्चा सेब पाकर अपने सारे दुःख भूल गयी ! अपने घर वालों को याद करके रो रही थी या थकान से परेशान होकर दुखी हो रही थी वो सब कुछ ! अब सेब के बाग़ में वो उस सेब को पाकर ऐसे खुश हो रही थी जैसे कोई बच्चा अपना मनपसंद खिलौना पाकर खुश होता है !

राशि ने अपने आगे के दांतों से उस कच्चे सेब को काटने की कशिश की किन्तु अभी वो फल बहुत कड़क था ! उसने दांत गड़ाकर उस फल का रस चूसा थोड़ा सा कसैला रस उसके मुँह में आ गया ! कोई बात नहीं उसने सेब के बाग़ से ताजे सेब को खाकर स्वाद तो चखा ! क्योंकि पहली बार इस तरह सेब के बाग़ में घूमना उसके मन में रोमांच भर रहा था ! वो कच्चा कसैला स्वाद भी उसके मुँह में मीठा मीठा तरलता से भरा लग रहा था !

देखा राशि कितना कड़वापन लिए हुए है ये फल ! तभी मैं तुझे खाने से मना कर रहा था लेकिन चल कोई बात नहीं यह स्वाद भी पता चलना चाहिए !

राशि ने स्वीकृति में सर हिलाते हुए कहा, जी हाँ, इस कड़वेपन में भी मीठा पन छुपा हुआ है !

वाह राशी यह बात तुमने बहुत बढ़िया कही ! दिल खुश हो गया !

***