Ghumakkadi Banzara Mann ki - 6 in Hindi Travel stories by Ranju Bhatia books and stories PDF | घुमक्कड़ी बंजारा मन की - 6

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घुमक्कड़ी बंजारा मन की - 6

घुमक्कड़ी बंजारा मन की

(६)

ख्वाजा जी की नगरी अजमेर शरीफ की सैर

राजस्थान के पुष्कर इलाके में घुमने आये और अजमेर शरीफ ख्वाजा जी न जाएँ यह तो संभव ही नहीं, बेशक देश भर में हिन्दू मुस्लिम विवाद चलता रहे पर यह ख्वाजा जी तो सबके हैं, इतनी मानता इतना विश्वास है कि ख़ास से आम तक उनके दरबार में हाजिरी लगाते हैं तो हम भी जब आये रेतीले इलाके के इस हिस्से में तो ख्वाजा जी के दरबार में जाना ही था l

जब वहां पहुंचे तो सूरज जी अपनी पक्षियों की सेना ले कर मौजूद थे। यहाँ दिख रहा था कि बरसात हुई है बीते कल में पर वो कल का बरसा पानी प्यासी मरुभूमि के पेट में समा चुका था। हां हवा में वही सुबह की ताजगी थी जो मुख्यत दिल्ली जैसे शहर में तो अब महसूस नही होती। छोटा कस्बा शहर एक बच्चे सा मासूम लगता है और दिल्ली जैसे शहर एक वयस्क बड़े सा एहसास करवा देता है अपनी हर उगती सुबह से।

गुलाब के रंग

सुबह 8 बजे तक दरगाह पहुंचने का टारगेट था । पर यहाँ रिजॉर्ट से निकलते हुए ही आठ बज चुके थे। रास्ते में बाइक पर गुलाब के फूलों की गठरियाँ लादे कई लोग दिखे जो दरगाह बाजार में बिकने जा रहे थे। कैमल राइड लेते हुए ऊंट चालक ने वो बाग़ पुष्कर में दिखाए थे जहाँ गुलाब ही गुलाब उगता है जो सुबह 7 बजे तक दरगाह पहुंचा दिया जाता है । शाम के वक़्त जब देखा तो सिर्फ गुलाब के पौधे थे, पर सुबह यह गुलाबी रंग का। जैसे कालीन बिछ जाता है। बहुत ही सुंदर दिखता है । देखने का दिल था, पर चलो कभी नेक्स्ट टाइम सही। लाल गुलाब, गुलाबी रंग प्रेम का प्रतीक है और पुष्कर से अजमेर शरीफ दरगाह जाते फूलों को देख कर यही विचार आया कि यह प्रेम रंग हिन्दू मुस्लिम भेदभाव नही करते । कहीं खिले कहीं चढ़े बस यह प्रेम और आस्था के प्रतीक है ।

दरगाह के रास्ते की कहानी

हमे दरगाह तक ले जाने वाला चालक बहुत ही बढ़िया स्टोरीटेलर था । इतनी बाते उसने अजमेर, पुष्कर और देसी विदेशी लोगों की सुनाई कि सब लिखने लगूँ तो कई पेज लिखे जाए। पर जो कुछ जो बहुत रोचक लगी वह बताती हूँ, पुष्कर घाटी खत्म होते होते अन्ना सागर जिसे दरगाह की झील भी कहा जाता है वो दरसल सीवरेज वाटर से घिरी हुई है और दरगाह जाने वाले लोग आस्था से वहां नहाते है । क्या वहां की सरकार की कोई इसके प्रति दायित्व नही है।

ख्वाजा शरीफ की दरगाह हर आस्था रखने के लिए कितनी अहम है यह बताने की जरूरत नही । अजमेर की गलियां, नॉलियां आज भी आज़ादी से पहले युग की है । सफाई तो पता नही हमारे धर्मिक स्थलों से क्यों गायब होती है जबकि हर धर्म यही कहता है जहाँ सफाई है वही ईश्वर है खुदा है। जिम्मेवारी तो सबकी है पर सब सिर्फ अधिकार समझते है फ़र्ज़ भूल जाते है।

ख्वाजा जी का घर

हिन्दू धर्म में पंडे है तो यहाँ खादिम, जो पहले ही रिजॉर्ट वालों ने तय कर दिया था पर वो आया नही सो कैब चालक ने फोन करके दरगाह से बाहर एक गली में किसी और को ऑटो वाले के साथ बुलाया। वही हमे दरगाह के अंदर तक ले गया। दरगाह में कोई त्यौहार होने के कारण बहुत भीड़ थी, उस पर खादिम की तक्सीद की चादर ले फूल ले और मै नन्ही समायरा को अपने से चिपकाए सब जल्द से जल्द होने की प्रार्थना कर रही थी। फूल की टोकरी ले कर जैसे तैसे अंदर पहुंचे, तब कैसे यहाँ से बाहर निकले की मांग के सिवा ख्वाजा जी से कुछ और नही माँगा गया, अब यदि फिलासफी अंदाज़ में लिखूं तो यह दुनिया भी यूँ ही भीड़ और हर तरह के लोग से भरी है, जहाँ इंसान अपनी खैरियत, अपने से जुड़े लोगो की सलामती और अंदर बार बार होने वाली घोषणा कि अपनी जेब और कीमती चीज को संभाल के रखे, अब उस वक़्त वहां से सब सुरक्षित निकलने की दुआ के सिवा और क्या माँगा जा सकता है ठीक इस दुनिया में आने की तरह अल्लाह अल्लाह खैर सल्लहा करते हुए बाहर आये और वही से दुआ करी सबकी सलामती की। फिर एक जगह देग और चढ़ावे के लिए गुहार की गयी, श्रध्दा अनुसार दे कर वापस ऑटो तक पहुंचे । खादिम जी का श्रध्दा अनुसार दे के धन्यवाद किया गया। जो शायद उन्हें जमा नहीl रास्ते में ऑटो वाले ने जैन मंदिर दिखाया वह वाकई देखने योग्य है, सुनहरे आवरण में बना हुआ धरती ग्रहों का माडल मुख्यता महावीर जन्म की कहानी से जुड़ा है । स्वर्ग की सीढ़ी, छत पर लटके ग्रह नक्षत्र बहुत ही मनमोहक है। जाए तो इसको देखना न भूले ।

वापसी का सफ़र

रास्ते में पुष्कर घाटी में महाराणाप्रताप स्टेच्यू बना हुआ था, एक तरफ पुष्कर घाटी और दूसरी तरफ अन्ना सागर लेक के साथ अजमेर शहर, इधर पहाड़ियां, हरी और भूरे रंग में लिपटी हुई उधर शहर सफ़ेद धूमिल रंग में सिमटा हुआ, और इन दोनों के बीच इतिहास, वर्तमान चलता हुआ बहुत ही अदभुत लगता है। वही कुछ दूर एक प्लेटफॉर्म सीमेंट का बना हुआ जो पूरी पुष्कर घाटी को खूबसूरत अंदाज़ से दर्शाता नजर आया। कैब चालक ने कहा यह फोटो व्यू पॉइंट है सो हमने भी फोटो लिए। 11 बजने को थे हम रिजॉर्ट पहुंचे तो भूख के मारे बुरा हाल था । गर्मागर्म पूरी आलू तैयार थे, ब्रंच किया गया और अपने टेंट में जा कर कुछ देर खुद को समेटा फिर बिखरे सामान को। ट्रेन का टाइम 4 बजे का था, ढाई बजे वहां से निकलना तय हुआ था। हम जाने की तैयारी में थे और इधर रेगिस्तान फिर से भीगने की तैयारी में, खूब तेज बारिश ने हमे जाते हुए जैसे भीगी आँखों से विदा किया, और जैसे कहा फिर आना l

हमारा दिल भी कहाँ भरा था इस रहस्यमय राजस्थान की नगरी से अभी । न जाने कितनी कहानियां सुननी बाकी है इसकी, जहाँ दुनिया के हर कोने से पर्यटक यहां आ कर घूमते है, अब यह चाहे उन्हें मुक्ति का आकर्षण देता है या सुना गया चरस गांजा नशा से बाँध लेता है, और कई को प्रेम में जो यहाँ सात फेरों के बंधन में बंध जाते है और अपने भविष्य को रूपये से डॉलर में बदलने के साथ प्रेम में भी डूबे रहते हैं वो भी इतने की जिस देश के नागरिक से ब्याहे वहां के रीति रिवाज को भी अपना लेते है। यहाँ मैंने रूपये डॉलर की बात इसलिए की, क्योंकि इनकी शादी से जुडी जितनी बातें बतायी गयी उसमे मनी का जिक्र जरूर हुआ, जैसे पहले झोपड़े थे अब यहाँ बने बंगलों के मालिक है या एक काबिलाई लड़की की स्पेन के लड़के से शादी हुई फिर काफी वक़्त बाद अलग हो गए, दो बच्चे हुए एक लड़का एक लड़की, लड़की पिता के साथ स्पेन में है लड़का माँ के यहाँ, पिता वहां से मनी भेजता है जिसे यहां यह ब्याज पर देती है, घर बहुत बड़ा है हर आधुनिक सुविधा से सजा हुआ यहाँ इतने विदेशी पर्यटक का आना जाना है कि यहाँ के लोकल लोग और बच्चे बिना किसी स्कूल गये विदेशी भाषाएं सीख जाते हैं, जिसमे अंग्रेजी तो फर्राटे से बोलते ही हैं पर इसके साथ फ्रेंच, इजरायलीआदि भी खूब बोलते समझते है ।

जो भी हो बैकपैक टाँगे छोटे कपड़ों में नाममात्र ढके हुए यह पर्यटक यहां की रौनक है । वहीँ दूसरी और देसी गांव की औरतों के लिए पुष्कर एक मात्र ऐसी जगह है जहाँ पूरी तरह से ढकी हुई, लंबे घूंघट में सिमटी हुई औरतें अपना लेडीज ग्रुप बना कर मर्द के बिना आ सकती है, क्योंकि पुष्कर मंदिर में वह अपने पति की लंबी उम्र की प्रार्थना कर सकती है, किसी घुम्मकड़ औरत ने ही जरूर यह रास्ता खोजा होगा आज़ादी की कुछ सांस लेने का

हमारा भी तो सिर्फ लेडिज ग्रुप ही आया था इस रेगिस्तान की नगरी में जो किसी बन्धन का मोहताज नहीं, हमारे इस ग्रुप में हम नानी, माँ और नातिन ने अपने इस ट्रिप को खूब एन्जॉय किया l अपनी आज़ादी के तीन दिन बीता कर ट्रैन में वापसी के सफर के लिए बैठ चुका था पर इस पक्के इरादे के साथ कि जल्दी ही यह तीन पीढ़ी का लेडीज ग्रुप एक नए सफर एक नई जगह पर फिर से चलेगा ।

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