दस दरवाज़े
बंद दरवाज़ों के पीछे की दस अंतरंग कथाएँ
(चैप्टर - ग्यारह)
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चौथा दरवाज़ा (कड़ी -2)
एडविना : मैं चुड़ैल, मेरे से बच
हरजीत अटवाल
अनुवाद : सुभाष नीरव
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एडविना - उम्र तीस-बत्तीस साल, कद लम्बा, शरीर पतला, पर बहुत कसा हुआ। चेहरे पर एक ख़ास तरह का रौब। नए फैशन के बनाए ब्लौंड केश, कंधों तक कटे हुए, दायीं ओर कुछ ऊँचे होते होते बायीं तरफ से कुछ लम्बे। केन्द्रीय लंदन के दफ़्तर में काम करने की वजह से वह आम तौर पर पुरुषों की तरह ट्राउज़र-सूट पहनती है या फिर जैकेट और स्कर्ट। गले में हमेशा बड़ा-सा बैग होता है। उसकी चाल में एक उतावलापन होता है जो कि लंदन के दैनिक यात्रियों में आम तौर पर देखने को मिलता है।
वह मेरे दुकान खोलते ही पहुँच जाया करती है। मेरे साथ मुस्कराकर बात किया करती है-
“हैलो यंग मैन, हाउ आर यू?“
फिर तेज़ी से अपना बैग काउंटर पर रख उसमें से पैसे निकालती है। मुझे मालूम है कि उसे लैंब्रट बटलर सिगरेट की डिब्बी लेनी है, मैं उसके सामने रख देता हूँ। वह एक च्युंगम भी लेती है। मुझे पैसे देकर ज्यादा बात किए बग़ैर चलती बनती है। शाम को आती है तो उसके पास बहुत सारी बातें होती हैं बताने वालीं। अपने बॉस के बारे में, अपने मातहतों के बारे में, ट्रेन में मिलते राहगीरों के बारे में। कभी अवकाश का दिन हो तो घंटाभर मेरे साथ खड़ी होकर बातें करती रहती है। वह टूरिज़्म के दफ़्तर में काम करती है और मुझे भी नक्शों का और नई जगहों पर जाने का बहुत शौक है इसलिए हमारे पास बहुत सारी बातें होती हैं, करने वाली। एक दिन मैं कहता हूँ -
“एडविना, तेरे में एक ख़ास कशिश है जो आम औरत में नहीं होती।“
“चल, तू भी शुरू हो गया दूसरे मर्दों की तरह। तुम मर्द लोगों को औरत की तारीफ़ के सिवाय कुछ आता भी है?“
“नहीं एडविना, मैं सच कह रहा हूँ। यह ठीक है कि मुझे तेरे साथ बातें करना बहुत अच्छा लगता है, पर तेरे में कुछ और भी है जो मेरी-तेरी इस दिलचस्पी को बनाए रखता है।“
“वह क्या है?“
“मैं खुद भी नहीं समझ पा रहा हूँ, शायद तेरे चेहरे पर बैठा कुछ ऐसा है जो मुझे तेरी ओर खींचता है और तेरे साथ मजाक करने से रोकता भी है।“
“मजाक तू जैसा मर्ज़ी कर, मैं तुझे कभी नहीं रोकती।“
“तू तो नहीं रोकती, पर तेरे वजूद में ऐसा कुछ है जो मेरे अंदर झिझक पैदा करता है।“
“शायद तुझे किसी दूसरी औरत से ज्यादा मेरे में कुछ अधिक ही दिख पड़ा हो। तू मेरी तुलना अपनी अनपढ़-सी ऐनिया से करके देखता होगा, इसलिए भी।“
“नहीं, यह बात नहीं। कुछ ऐसा है तेरे में जिससे मुझे झिझक भी हो रही है और तुझे पाने के लिए मैं हर काम करने के लिए तैयार भी खड़ा हूँ।“
“हर आदमी की यह फितरत है, किसी औरत में कुछ ज्यादा दिख गया तो उसको पाने के लिए गुनाह करने तक भी जाता है।“
“औरत भी तो ऐसा ही करती है। अपने मर्द से बेहतर कोई दूसरा मर्द दिख गया तो उसको छीनने तक जाती है, चाहे उसकी सगी बहन का मर्द ही क्यों न हो।“
“कुछ अच्छा पाने, कुछ अच्छा तलाशने की इन्सान की फितरत है, पर एक बात बता?“
“क्या?“
“तू अच्छा-भला आदमी है, पर तुझे उस आयरिश औरत में क्या दिखता है? उससे तो कहीं ज्यादा किसी भी साधारण औरत में बहुत कुछ होगा।“
यह कहकर वह मेरी ओर देखते हुए मेरे जवाब का इंतज़ार करने लगती है, पर ऐनिया को लेकर बात करने की बजाय मैं दूसरी ही बात करने लगता हूँ।
एक दिन वह कहने लगती है -
“मुझे फंसाने के लिए फ्लैट वाला तेरा ये फंडा तो चाहे कामयाब हो गया हो, पर मैं उस फ्लैट में नहीं रह सकती।“
“क्यों नहीं रह सकती?“
“वहाँ रहने के लिए मुझे पार्टनर चाहिए होगा, अकेली कैसे रहूँगी?“
“तलाश ले कोई अपने साथ काम करने वाला।“
“जॉय, तू मेरे साथ रहना पसंद करेगा, एक जोड़े की तरह।“
“नहीं एडविना, मैं नहीं।“
“क्यों?“
“क्योंकि हम अभी एक दूसरे को जानते ही नहीं। एक रात इकट्ठे गुज़ार कर कितना भर जान सकते हैं।“
“पर मैं तो तुझे जान गई हूँ।“
“पर मुझे अभी और वक्त चाहिए।“ मैं कहता हूँ।
वह कठिन-सा सांस लेती है और कहने लगती है -
“अच्छा फिर, वो फ्लैट किसी और को दे दे।“
उसके कहने में सख़्ती भी है और गिला भी।
एक दिन वह आती है और कहने लगती है -
“मैं दो दिन के लिए योर्क जा रही हूँ।“
“एडविना, मैं तुझे मिस करूँगा। जाने से पहले क्या मेरे साथ कुछ समय बिताना चाहेगी?“
“चल आ, मेरे कमरे में चलते हैं। आज स्टीवन भी कहीं गया हुआ है, रात को लौटेगा।“
“अभी! पर मेरी दुकान?“
“तू टिपीकल दुकानदार है। ज़िन्दगी के आनन्द के बारे में तुझे कुछ नहीं पता।“ कहती हुई वह मेरे साथ दुकान बंद करवाने लगती है।
मैं उसके संग उसके कमरे में चला जाता हूँ। वह मुझे अपना कमरा दिखाते हुए कहती है-
“देख, मेरे कमरे में से एक तरफ एलेग्जैंडरा पैलेस दिखता है और दूसरी तरफ सारा लंदन। यूँ नहीं मैं इसका इतना अधिक किराया देती। अब स्टीवन कहता है कि मैं अभी और यहाँ रह सकती हूँ। लंदन में बसने का मतलब है कि तुम जीती-जागती दुनिया में घूम रहे हो। गाँवों में रहना तो फिजूल है।”
उस कमरे के सभी दरवाज़े-खिड़कियों के पर्दे तानकर वह अँधेरा कर लेती है। मोमबत्ती जलाकर शैंपेन की बोतल खोलती है। एक गिलास मेरे हाथ में थमाकर कहती है -
“जॉय, रिलैक्स। अब कुछ देर के लिए अपना ध्यान, दिल, दिमाग मुझे दे दे। अपने कारोबार को भूल जा और आ जा मेरी दुनिया में।“
मैं सहज नहीं हो पा रहा हूँ। मुझे अपनी दुकान की फिक्र है, ग्राहक लौटकर जा रहे होंगे, परंतु शैंपेन के गिलास के बाद मुझे सबकुछ भूलने लगता है। वह संगीत चला लेती है और नाचने लगती है। वह संगीत की धुन के साथ ही डांस के स्टैप बदल लेती है। फिर, मेरा हाथ पकड़कर मुझे भी अपने नृत्य में भागीदार बना लेती है। मैं कई घंटे उसके संग व्यतीत करता हूँ। आज वाली एडविना डेनियल के फ्लैट वाली एडविना से बिल्कुल भिन्न है। वह एक अलग ही अंदाज से पेश आ रही है। उसमें असीम ऊर्जा है। ऐसी औरत के साथ मेरा पहले कभी वास्ता नहीं पड़ा। मुझे उसका साथ बहुत अच्छा लगता है।
उस दिन के बाद हमारा सामीप्य और बढ़ने लगता है। मेरा दिल करता है कि उसके संग अधिक से अधिक समय व्यतीत करूँ। एडविना दुनियाभर की सियासत और समाचारों की बात करती है। ऐनिया में यह गुण नहीं है। ऐनिया के अपने गुण हैं। जब मैं एडविना की किसी बात पर तारीफ़ करूँ तो वह ऐनिया को लेकर ताना मार जाया करती है। उसको पता है कि कई बार मैं ऐनिया के घर चला जाया करता हूँ, पर उसने ऐनिया को लेकर कभी कोई बड़ी शिकायत नहीं की।
स्ट्रेटफार्ड अपोन एवन। शेक्सपियर का जन्म स्थान है। हम कुछ दिन की छुट्टियाँ पर निकले हैं। हम एक होटल में ठहरते हैं। छोटे-से इस शहर में बड़े-बड़े थियेटर हैं। हम शेक्सपियर का कोई ड्रामा देखना चाहते हैं। एक थियेटर में ‘किंग लीअर’ प्ले चल रहा है। बहुत मुश्किल से टिकटें मिलती हैं। हॉल भरा पड़ा है। लोग विवाह पर जाने की तरह तैयार होकर थियेटर में आए हुए हैं। पूरे हॉल में एक मैं ही एशियन हूँ। प्ले शुरू होता है। बहुत दुखदायक कहानी है। थियेटर में एकदम चुप्पी फैली हुई है कि तुम्हारे करीब कागज का टुकड़ा गिरे तो उसकी आवाज़ भी सुनाई दे जाए। अचानक एक व्यक्ति आकर मुझे ‘हैलो’ सा कहता है -
“बाहर आपको कोई बुला रहा है। बहुत ज़रूरी काम है।“
मैं एडविना की ओर देखता हूँ और उसके कान में फुसफुसाता हूँ -
“मुझे कौन बुलाएगा? मैं तो यहाँ किसी को जानता तक नहीं।“
वह भी हैरान हुई कंधे उचकाती है। मैं बुलाने वाले व्यक्ति से कहता हूँ -
“मुझे लगता है, तुम्हें कोई भ्रम हुआ है... किस नाम के आदमी को बुलाया जा रहा है?“
हमारी बातों से प्ले देख रहे अन्य दर्शक हमें अपना गुस्सा प्रकट करने लगते हैं। मैं उठकर उस व्यक्ति के साथ बाहर चल पड़ता हूँ। पीछे-पीछे एडविना भी। बाहर दो इंडियन खड़े हैं। मुझे देखकर वे सिर मारते हुए कहते हैं -
“नहीं, यह वो आदमी नहीं जिसे हम खोज रहे हैं।”
“क्या मतलब यह नहीं?“ मैं गुस्से में आकर पूछता हूँ। उनमें से एक व्यक्ति कहता है -
“जिस आदमी को हम बुलाना चाहते थे, वो तुम नहीं हो।“
“स्टुपिड! फिर तुमने हमारा प्ले देखने का मज़ा क्यों खराब किया?“ एडविना गुस्से में चीखती हुई कहती है। उनमें से दूसरा व्यक्ति कहता है -
“सॉरी मैडम, हम इंडियन हाई कमीशन से आए हैं। हमें ख़बर मिली थी कि हमारा एक ख़ास कर्मचारी शायद यह प्ले देख रहा है। हमें उससे ज़रूरी काम था, इसलिए...।“
“ज़रूरी काम था तो कम से कम उस आदमी का कोई नाम तो होगा ही। मुझसे नाम पूछता तो सारी बात साफ़ हो जाती।“ मैं भी पूरे क्रोध में आकर बोल रहा हूँ। हम उन लोगों के साथ झगड़ा करने लगते हैं। शोर सुनकर थियेटर के कर्मचारी भी एकत्र हो जाते हैं। सारी बात सुनकर वे हमें अगले शो के पास दे देते हैं ताकि इसी प्ले को हम दुबारा देख सकें। हाई कमीशन के व्यक्तियों में से एक व्यक्ति मुझसे पूछता है -
“तुम इंडियन हो?“
“हाँ, क्यों? इंडियन होने से क्या फर्क पड़ता है?“
“क्योंकि आज सुबह हमारी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का क़त्ल हो गया है। हम वापस लंदन जा रहे हैं और अपना आदमी यहाँ छोड़कर नहीं जा सकते थे।“
उस ख़बर से मैं भी कुछ ढीला पड़ जाता हूँ। मैंने तो आज सुबह के समाचार भी नहीं देखे-सुने। एडविना भी शांत-सी हो जाती है। हम वापस होटल में आ जाते हैं। एडविना इंदिरा गांधी के बारे में बातें करने लगती है। वह इंग्लैंड की प्रधानमंत्री माग्रेट थैचर और इंदिरा गांधी की बहुत बड़ी फैन है।
मैं और एडविना समय मिलते ही किसी नई जगह चले जाया करते हैं। वैसे तो एडविना को अपने विभाग की ओर से दूर-दूर तक घूमने जाने की सुविधाएँ प्राप्त हैं, पर मेरे पास इतना समय नहीं होता। बाहर जाने के लिए मुझे दुकान में स्टाफ का प्रबंध करना पड़ता है इसलिए भी अधिक दिन के लिए मैं कहीं बाहर नहीं जा सकता। डिस्को जाना तो हमारा बना ही रहता है। बाल-डांस में वह बहुत माहिर है। उसकी ठोस पिंडलियाँ उसके अच्छे डांसर होने की गवाह हैं। उसके कुछ मित्र ग्रेट यूनियन कैनाल में खड़ी बोट-हाउसों में रहते हैं, हमारा वहाँ भी आना-जाना बना रहता है। करीब दो बार मुझे किश्ती द्वारा लंदन की सैर का अवसर भी मिलता है। जब मैं अपने कारोबार को लेकर सोचते हुए असहज होता हूँ तो एडविना मुझे कहने लगती है -
“जॉय, जब कहीं और हो तो जो चाहे कर, पर जब मेरे साथ होता है तो मुझे तेरा सौ फीसदी साथ चाहिए।“
इन्हीं दिनों मैं दुकान सेल पर लगा देता हूँ। दुकान बेचने में छह छह महीने और कई बार साल भी लग जाया करता है। स्टोर में रोज़ाना पंद्रह घंटे काम करना पड़ता है। एक तो मेरे से इतने घंटे काम नहीं हो पा रहा, दूसरा सोच रहा हूँ कि दुकान की ओर से फुर्सत पाकर इंडिया जाऊँ और विवाह करवा आऊँ। एडविना पूछती है -
“दुकान बेचकर क्या करेगा?“
“मैं सोचता हूँ कि विवाह करवाकर सैटल हो जाऊँ।“
“विवाह से भी कोई बंदा सैटल होता है?“
“दुनियादारी तो यही कहती है कि विवाह करवाकर, दो बच्चे पैदा करके तुम दुनिया में आने का मुख्य मकसद पूरा कर देते हो।“
“बच्चे अच्छे लगते हैं तुम्हें?“
“हाँ, मुझे पिता बनना बहुत अच्छा लगता है। कई बार तो मैं बेसब्रा-सा हो जाता हूँ।“ मैं कहता हूँ।
वह जैसे कहीं खो गई हो। शांत होकर टकटकी लगाकर एक तरफ देखे जाती है। वह सारी शाम ही उदास रहती है और रात को मेरे साथ मेरे घर आ जाती है। मैं पूछता हूँ -
“क्या बात है सोहणिये?“
“जॉय, मैं अच्छी लड़की नहीं। मैंने ज़िन्दगी में ऐसी गलती की है, जिसे लेकर अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर सकती।“
“कौन-सी गलती?“
“है कोई जो मन का बोझ बनकर तंग कर रही है और करती रहेगी।“
“बताना चाहेगी?“
“मैं बचपन में ही माँ बन गई थी, गलत संगत में पड़ गई थी। मैं अपनी माँ को बता नही पाई थी और समय बहुत ऊपर हो गया था। मुझे एक बच्ची हुई थी।“
“अच्छा! कहाँ है वो बच्ची?“
“पता नहीं, कहाँ होगी... मैंने उसको अडॉप्शन वालों को दे दिया था।“
“ओह, आय सी!“ कहता हुआ मैं चुप हो जाता हूँ। कुछ देर बार पूछता हूँ -
“अभी भी बहुत याद आती है?“
“बहुत, जब कहीं कोई बच्चा रोता है तो मेरे अन्दर कुछ टूटने लगता है।“
“एडविना, यूँ ही दिल को छोटा न कर... इसमें कौन-सी बड़ी बात है, बच्चा और ले ले। चल, मैं तेरी मदद कर देता हूँ।“
मैं उसको उदासी में से निकालने के लिए उसका हाथ पकड़ते हुए कहता हूँ। वह मेरा हाथ एक तरफ झटकते हुए कहती है -
“नरक में जा तू! मैं दुबारा इस राह नहीं चलती, यह तो बस एक टीस है, मेरी निजी-सी टीस! दूसरा कोई इसे समझ ही नहीं सकता। तू भी नहीं।“
कुछ देर भावुक रह कर वह ठीक हो जाती है, पर वह रातभर नहीं सोती और न ही मुझे सोने देती है मानो किसी सोच से भागने का यही राह हो।
(जारी…)