घुमक्कड़ी बंजारा मन की
(५)
मेरी पहली हवाई यात्रा
( दिल्ली से वाईजेग )
इंसान की ख्वाइशें हर पल नयी होती रहती है, कभी यह चाहिए कभी वह । ऊपर उड़ते नील गगन में उड़ते उड़नखटोले को देख कर बैठने की इच्छा हर दिल में होनी स्वाभविक है, सो मेरे दिल में भी थी कि कब दिन आएगा यह बात सोच में नहीं थी बस जब वक़्त आएगा तो जाउंगी जरुर । यही था दिमाग में और फिर वह दिन आ गया, कुछ सपने बच्चे पूरे करते हैं, सो छोटी बेटी के साथ जाना हुआ विशाखापट्टनम । पहली हवाई यात्रा दिल में धुक धुक कैसे कहाँ जाना होगा । बेटी अभ्यस्त थी हवाई यात्रा कि सो आराम से चली । वहां जा कर जो भाग दौड़ हुई वह याद रहेगी भाग के प्लेन पकड़ने के चक्कर में हवाई अड्डा निहार ही नहीं पायी । फिर चेकिंग, और लास्ट में मिला अपना "स्पाइस जेट विमान".. "। इसकी लाल ड्रेस में "एयर होस्टेस" एकदम लाल परी सी लग रही थी । दो दिन की यात्रा थी सो समान अधिक था नहीं खिड़की वाली सीट मिल गयी इस से अधिक और क्या चाहिए था । बस इन्तजार था इसके उड़ने का और मन का बादलों को छूने का ।
अपने एक मनपसन्द रंग अर्थ (धरती के सोंधे पन) से दूसरे मनपसन्द रंग नील गगन की नीली आभा को निहारने का । दरवाज़े बंद हुए और एक एयर होस्टेस को कई तरह से मुसीबतों से बचने के नियम कानून हाथ को व्यायाम की मुद्रा में हिलाते देखा कुछ समझ आया कुछ नहीं । छोटे से सफ़र में यह बालाएं सब कुछ समझाती किसी नर्सरी स्कूल की मैडमें लगीं, कम से कम मेरी जैसी पहली बार यात्रा करने वाली को तो वही ।
जहाज के बाहर का आसमान फैला हुआ विस्तृत अपार सा था । जहाज धीरे धीरे हिचकोले सा खाता हुआ बादलों के ऊपर आ गया था। और बादल रुई के गोले, फ़ाहे, पहाड़ से लग रहे थे और कल्पना के घोड़े दौडाते हुए मैंने तो यही पर स्वर्ग में नाचती मेनका की भी कल्पना कर डाली । । जैसे इंद्र का दरबार है पूरा और सब हाथ बांधे खड़े नृत्य देख रहे हैं, और नीचे धरती की हर चीज धीरे धीरे छोटी होते होते एकदम से अदृश्य हो गईं । बड़े बड़े शहर यूं नजर आए जैसे चींटी। नदियां, पहाड़, शहर, गांव सब एक ऊंचाई पर आने के बाद एकाकार हो गए ।
यात्रा छोटी थी सो जल्द ही यह खत्म हो गयी । बाहर आने पर वही चेकिंग और समुद्र की नमकीन हवा ने स्वागत किया. विशाखापट्टनम प्राचीन भूवैज्ञानिक चमत्कार, प्रसिद्ध मंदिरों के साथ साथ समय के साथ कदम रखने वाला शहर है। यह अपने समृद्ध अतीत के संरक्षण के प्रति सजग भी हैऔर नए के प्रति उम्मीद भरा भी | इस शहर के प्रमुख उद्योग, जहाज निर्माण यार्ड, एक बड़ी तेल रिफाइनरी, एक विशाल इस्पात और बिजली संयंत्र है। इसके सुंदर घाट बंगाल की खाड़ी के नीले पानी पर एक जादू की दुनिया में पंहुचा देते हैं और पहुँचते ही यह जैसे अपने आगोश में समेट लेते हैं
नोवाटेल होटल से समुन्द्र के नज़ारे
हमें रुकना था "नोवाटेल होटल " विशाखापत्तनम, यह वरुण बीच के सामने हवाई अड्डे के करीब है। यहाँ के हर कमरे से समुन्द्र दिखायी देता है बंगाल की खाड़ी की लहरें जैसे आपसे बात करती दिखती है । आधुनिक हर सुविधा से यह होटल जैसे आपको वहां पर रह जाने का निमंत्रण देता लगता है।
होटल स्टाफ बहुत ही बढ़िया हेल्प करने वाला है और आप जैसा जो खाना चाहे वो वहां पर बने रेस्टोरेंट में खा सकते हैं । . बुफे सिस्टम मुझे वहां का बहुत बहुत अच्छा लगा । शेफ, स्टाफ इन सबकी जितनी तारीफ की जाए कम है ।
विशाखापत्तनम एक पर्यटक स्वर्ग जैसा है! यहाँ के समुन्दर तट बहुत ही सुन्दर है. लाल रेतमिटटी में खिले फूल और हरियाली बरबस रोक लेती है। अछूते साफ़ पानी वाले समुन्दर तट जैसे दिल को अजीब सा सकून करवाते हैं.... समुन्दर किनारे बने हुए घर.. आधुनिक और पुराने दोनों का मिश्रण है.... भाग दौड़ से दूर शांत जगह वाकई कई बार वहां यही दिल हुआ कि काश यही रह पाते आदिवासी और नेवी हलचल में सिमटा यह शहर अपने में अनूठा है |
रामोजी फिल्म सिटी
‘रामोजी फिल्म सिटी’। यहाँ इसका छोटा रूप बनाया गया है यहाँ फ़िल्मी हस्पताल जेल मार्किट आदि सब देखे जा सकते हैं| बहुत सी फिल्मों की शूटिंग यहाँ होती है | बहुत सारे फिल्मों के चित्र और कलाकारों के फोटो यहाँ देखने को मिले | यह बेशक हैदराबाद रामो जी सिटी के मुकाबले में छोटा है पर उतना ही रोचक है, ऋषि कोंडा बीच के पास ऊँची पहाड़ी पर बना खुद ही आपको बुलाता है।
ऋषिकोंडा बीच आंध्र प्रदेश के सबसे सुंदर समुद्र तटों में से एक है, यहाँ का पानी जैसे आपको बांध लेता है अभी अधिक पर्यटक न होने के कारण यह अभी साफ सुथरा है और कई तरह के समुन्द्र में खेले जाने वाले खेलों के लिए उपयुक्त है |
विशाखा पट्टनम की यह यात्रा फ़रवरी 2012 में की थी । तब से इसको यूँ ही यादो में जी रही हूँ। बहुत कुछ बता के भी अनकहा रह गया है । तस्वीरों में सब याद सिमटी हुई है.. कैलाश हिल, की वो उंचाई और वहां से समुद्र को निहारना अभी भी यादो में रोमांचित कर देता है.. एक बार मौका मिले तो फिर से जाना चाहूंगी वहां । आखिर समुंदर की लहरे की वहां से आती पुकार अनसुना नहीं किया जा सकता है न वो भी तब मुझे हर वक़्त यह लगता हो की वह लहरे मुझे बुला रही है ।
यूँ ही अपने ख़्यालो में देखा है
तेरी आँखो में प्यार का समुंदर
खोई सी तेरी इन नज़रो में
अपने लिए प्यार की इबादत पढ़ती रही हूँ मैं. "
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