श्रीकान्त अंकल जी की पत्नि जिनका नाम शान्ति था, और जो अपने परिवार के सभी सदस्यों से बहुत प्यार करती थीं। जैसे ही उन्होने अपनी पति को उस हालत में देखा, वो बहुत बुरी तरह घबरा गयीं। और आव देखा ना ताव सीधा श्रीकान्त अंकल जी की ओर दौड पड़ी। उनकी तरफ़ दौडते समय उनके मुँह से एक ही आवाज़ निकली, और वो ये कि ' हाय रे भगवान, ये इन्हें क्या हो गया।' वो तुरन्त उनके पास पहुँच गयीं। और बिना श्रीकान्त अंकल जी की तरफ़ देखे, सीधा उनके बालों में हाथ फेरने लगीं। जहाँ श्रीकान्त अंकल जी को चोट लगने के कारण उनका खून निकलकर उनके सिर के बालों में चिपक गया था। और वहीं से लकीरें बनाता हुआ, उनकी गर्दन से होता हुआ, उनकी शर्ट के नीचे की और जा रहा था।
सबसे पहले शान्ति आंटी जी ने जो श्रीकान्त अंकल जी की पत्नि थीं। अपने पति के सिर में हाथ फेरा और देख रही थी, कि चोट कितनी लगी है। लेकिन फिर अचानक उन्होने अपने बड़े बेटे से कहा कि ' तू जल्दी से जाकर डॉक्टर को घर बुलाकर ला।' रोहन तुरन्त डॉक्टर को बुलाने बाहर चला गया। शान्ति आंटी ने अपने छोटे बेटे सोहन से कहा कि ' तू इन्हें धीरे-से संभालकर लेकर आ। मैं इनके लिए चारपाई बिछाकर उस पर बिस्तर डालती हूँ।'
थोड़ी देर के बाद रोहन बिना डॉक्टर को साथ लाये वापस अपने घर आ गया। शान्ति आंटी ने रोहन से पूछा कि ' डॉक्टर को साथ क्यों नही लाया।' तो रोहन ने थोड़ा उदास आवाज़ में कहा कि ' मॉं डॉक्टर ने कहा है कि पहले पिछला हिसाब करो, जब दवा-गोली दूँगा।' रोहन की बात सुनकर शान्ति आंटी की आँखों में आँसू आ गये। शान्ति आंटी बेचारी करती भी तो क्या करतीं। ग़रीबी से लाचार थीं। रोने के सिवाय उनके पास कोई और उपाय नही था।
शान्ति आंटी वहॉं रोहन के पास से आकर बाहर बरामदे में जहॉं श्रीकान्त अंकल जी की मॉं चारपाई पर बैठीं अपने बालों में अपने छोटे पोत्र से चम्पी करा रही थीं। उसी चारपाई पर शान्ति आंटी ने श्रीकान्त अंकल जी के लिए बिस्तर कर दिया। और बिस्तर करने के तुरन्त बाद उस तरफ़ गयी जहॉं सोहन अपने पिताजी को लेकर पड़े हुए बिस्तर की तरफ़ आ रहा था। उनके पास आकर घबरायी हुई आवाज़ में अपने बड़े बेटा रोहन से कहा कि ' तू जाकर एक बर्तन में हल्का-सा गर्म पानी लेकर आ, मैं और सोहन तेरे पिताजी को बिस्तर पर लेकर जा रहे हैं।' इसी बीच बिज़ली चली गयी। और जो छत वाला पंखा धीरे-धीरे घूम रहा था। वो भी अब बन्द हो चुका था। और उधर मौसम में भी बदलाव हो गया। सुबह की ठंडी हवा अब दोपहर की हल्की गर्म हवा परिवर्तित हो गयी। एक तो सभी श्रीकान्त अंकल जी की हालत को देख कर परेशान थे। और ऊपर से गर्मी के कारण सभी की हालत नाज़ुक हो रही थी।
श्रीकान्त अंकल जी को बड़े ही आराम से शान्ति आंटी और उनके छोटे बेटा ने बिस्तर पर लिटाया। और फिर शान्ति आंटी ने बहुत ही घबराती हुई आवाज़ में अपने छोटे बेटे से हाथ वाला पंखा लाने को कहा। सोहन जैसे ही पंखा लाने के लिए पीछे की ओर मुडा तो सोहन की दादी मॉं यानि श्रीकान्त अंकल जी की मॉं, वो पहले से ही अपने हाथ में वो पंखा लेकर खड़ी थी। जिसे लाने के लिए शान्ति आंटी ने सोहन से कहा था।
दादी मॉं ने सोहन को एक तरफ़ किया, और श्रीकान्त अंकल जी पास आकर खुद ही हाथ वाले पंखे से उनकी हवा करने लगीं। और शान्ति आंटी को हल्दी वाला दूध लाने कहा। शान्ति आंटी ने तुरन्त अपनी सासू मॉं की बात सुनकर हल्दी वाला दूध लाने के लिए जाने लगी। तो सामने से आता हुआ उन्हें उनका बड़ा बेटा रोहन दिखा, जिसे उन्होने गर्म पानी लाने को कहा था। रोहन बड़े से बर्तन को दोनो हाथों से पकड़ कर उन्हीं की तरफ़ चला आ रहा था। शान्ति आंटी रोहन को गर्म पानी लाता देख वहीं रूक गयीं। और अपने छोटे बेटे से हल्दी वाला दूध लाने को कहा। सोहन हल्दी वाला दूध लेने चला गया।
इतने में रोहन भी गर्म पानी लेकर उनके पास आ गया। फिर रोहन और शान्ति आंटी ने ख़ूनो में सनी उनकी शर्ट को उतारा। और शान्ति आंटी ने सिर और शरीर से ख़ून को साफ़ किया। और रोहन धीरे-धीरे उनके सिर पर पानी डाल रहा था।
श्रीकान्त अंकल जी बार-बार एक ही बात कह रहे थे कि ' आप लोग परेशान ना हों। मैं ठीक हूँ।' शान्ति आंटी और रोहन ने मिलकर उनके सिर और शरीर को साफ़ किया, और कपड़े बदले। तभी छोटा बेटा एक गिलास में हल्दी वाला दूध ले आया। सोहन ने वो दूध का गिलास अपनी दादी मॉं को दिया। क्योंकि रोहन और शान्ति आंटी उनके गंदे कपड़ों को बदल रहे थे। दादी मॉं ने सोहन के हाथ से दूध का गिलास लेकर अपने बेटे को पिलाने लगीं।
कपड़े बगैरह बदलने के बाद रोहन घर के अन्दर से देसी दवा का लेप लेकर आया, घावों पर लगाने के लिए। वो लेप शायद उनके घर में पहले से ही रखा होगा। वो लेप लाकर रोहन ने अपनी मॉं को दिया। और शान्ति आंटी श्रीकान्त अंकल जी के घावों पर उस लेप को लगाने लगीं। लेप लगवाने के बाद श्रीकान्त अंकल जी ने कुछ देर तक आराम करने की इच्छा ज़ाहिर की। फिर वो आराम करने लगे। और उनकी मॉं उनके पास बैठ कर हाथ वाले पंखे से उनकी हवा करने लगीं।
..
मंजीत सिंह गौहर