Dr Diwakar in Hindi Motivational Stories by Ajay Kumar Awasthi books and stories PDF | डॉ दिवाकर

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डॉ दिवाकर

डॉक्टर दिवाकर अब 80 साल के हो गए हैं पर आज भी अपनी क्लिनिक में 4 घण्टे बैठते हैं। वे बच्चों के डॉक्टर हैं ,उनके स्नेह और ममता भरे हाथों ने न जाने कितने नॉनिहालो की जान बचाई है । उन्हें बच्चों की बीमारी समझने में महारथ हासिल है । बच्चे, जो अपनी तकलीफ नही बता सकते ,वे बस रोते हैं ,खांसते हैं, उनकी वयाधि समझ कर उनका उपचार करना बहुत कठिन होता है । उनके नाजुक अंगों को कोई नुकसान न हो वे स्वस्थ्य हँसते,खिलखिलाते,चहकते रहे यही उनकी कोशिश रहती सचमुच बच्चे ऐसे ही अच्छे लगते हैं ।
डॉ दिवाकर की ख्याति दूर दूर तक है । वे सालों तक शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय में प्रोफेसर रहे । उनके अधीन बहुत से डॉक्टर आज सफल हैं और आज उनके भी नाम हैं ।

उनके बारे में सुनकर मैं उनसे मिलने को बहुत उत्साहित थी ,उनसे मिलने का मैं मौका तलाश रही थी। मैंने इसी साल अपना इंटर्न पूरा किया था और क्लिनिकल प्रैक्टिस में हाथ आजमाने वाली थी ।
मैं उनसे मिलने की सोच ही रही थी कि गरीबों के लिए लगाए जा रहे एक मेडिकल केम्प में मुझे भी एक डॉक्टर की सेवाएं देने के लिए बुलाया गया था, जिसमे डॉक्टर दिवाकर भी आ रहे थे । मेरी खुशी का ठिकाना नही रहा जब मुझे यह जानकारी मिली ।
नियत तिथि को मैं सुबह से ही केम्प में पहुँच गयी । सुबह से लोगो की भीड़ लगी थी। सभी को इंतज़ार था डॉ दिवाकर का । वे कब आएंगे,सबसे पहले किसके बच्चे को उन्हें दिखाने का सौभाग्य मिलेगा ,,।
वे समय से पहुँच गए, मैंने आयोजकों से कहकर अपनी ड्यूटी उनके साथ ही लगवा ली ।

वे बहुत ही साधारण कपड़ों में एक मोपेड से आये ,उनकी सादगी देखते बनती थी जबकि वे प्रदेश के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर,विभागाध्यक्ष और फिर डीन होकर रिटायर हुए थे । चिकित्सा क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें पदम् श्री से नवाजा गया था ।
वे साक्षात ऋषि मुनियों की तरह लग रहे थे । उनका स्वागत किया गया वे सबसे मिलकर अपने केम्प में चले गए । उनसे मेरा परिचय आयोजको ने करा दिया सो मैं उनके साथ ओपचारिक बातें करते हुए उनके साथ वाली सीट पर बैठ गयी । बाल मरीजो का आना शुरू हुआ, उनके माँ बाप बड़ी उम्मीद की नजरों से उनकी तरफ देखते, वे उन्हें समझाते ओर दवाइयां लिख कर देते जाते मैं कुछ जरूरी जांच में या इंजेक्शन लगाने में उनकी सहायता करती । कोई बच्चा कितना भी रो रहा होता उनके पास आने पर जाँच के दौरान चुप हो जाता और उनकी ओर उत्सुकता से देखने लगता । उनकी सफेद दाढ़ी ओर सफेद बाल किसी फरिश्ते की याद दिलाते ,शायद इसीलिए बच्चे भी उनके पास रहने पर दिली सुकून महसूस करते थे ।

आज जबकि स्वास्थ्य के क्षेत्र में चिकित्सा बहुत बड़ा उद्योग बन गया है ,अधिकांश डॉक्टर धन कूट रहे हैं बड़ी कम्पनियां इसमे जबरदस्त मुनाफा देख कर निवेश कर रही हैं, ऐसे समय मे जबकि संवेदना और मानवता को दरकिनार रख कर हर इलाज में सौदेबाजी हो रही हो ,जहाँ हर प्राइवेट नर्सिंगहोम विशेषज्ञ डॉक्टरों को मुहमांगी फीस देकर अपने हॉस्पिटल में रखना चाह रही हो वहां डॉक्टर दिवाकर जैसे संत भी थे जो इन प्रलोभनों से दूर गरीबो के लिए सारा दिन काम करते थे । डॉ दिवाकर महीने में 5 दिन सुदूर आदिवासी इलाकों के गाँव मे जाकर बच्चों का उपचार किया करते।

उनसे बातचीत भी बेहद मज़ेदार रही वे बेहद सरल सहज इंसान थे केम्प में सारादिन उनके साथ रहने पर मुझे बहुत खुशी हुई । मैंने जब उनसे मार्गदर्शन मांगा तब उन्होंने मुझे अपने घर बुलाया । हम उस दिन विदा हो गए ।

फिर एक दिन मैं उनसे मिलने गयी, उनका घर बगीचे से घिरा हुआ था । शहर के बीच मे एक मात्र उनका घर ही ऐसा था जहां हरियाली छाई हुई थी जबकि उनके पास पड़ोस के लोग अपनी जमीनों के पेड़ काटकर दुकाने बनाकर उन्हें किराए में देकर मुनाफा कमा रहे थे या करोड़ो में सौदा कर वहाँ से कही और चले गए थे ,वो इलाका अब बड़ा बाजार बन गया था ,पर जो लोग वहां रह रहे थे वे सब बेजान मनहूस कांक्रीट की दीवारों में घिरे किसी लोहे के पिंजड़े में कैद पंछियों की मानिंद लग रहे थे । उन्हें देखकर लगा कि मुनाफा,बाजार और भौतिक साधनों का भंगार इकट्ठा कर बड़े आदमी बनने का ख्वाब लिए हम कहाँ जा रहे हैं ,,,हम तो धरती की आत्मा चूस रहे हैं, कचरे ओर प्रदूषण से दिन दिन मरती जा रही धरती के आज हम सबसे ज्यादा बीमार बच्चे हैं ।

दरवाजे पर दस्तक देने पर उन्होंने ही दरवाजा खोला और बड़े स्नेह से मुझे बिठाया, अपने परिवार वालों से परिचय कराया फिर उनके ऑफिस में हम बैठ गए चाय के बाद उन्होंने मुझसे कुछ सवाल पूछे फिर समझाना शुरू किया ,,,उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा,,,,
"देखो बेटे आज मेडिकल साइंस बहुत आगे बढ़ गया है, जाँच की अत्याधुनिक मशीनें आ गयी है इसलिए हमारी जिम्मेदारी भी बहुत कम हो गयी है, जब बीमारी के बारे में ज्यादा कुछ न समझ आये तब हम सम्भावित बीमारी को जानने के लिए जरूरी टेस्ट करवा लेते हैं जिसके आधार पर दवा देते हैं और आगे का ईलाज करते हैं किंतु इन सबके बिना भी हमारी समझ ऐसी होनी चाहिए कि हम मरीज की तकलीफ के कारणों को समझ सकें मेडिकल की भाषा मे इसे डायग्नोसीस कहते हैं ।
एक डॉक्टर को अपने प्रैक्टिस में अंग्रेजी के डी अक्षर को ध्यान में रखकर डबल डी को ज्यादा से ज्यादा परफेक्ट करना चाहिए ।
डबल डी मतलब एक डी से मेरा मतलब डायग्नोसिस से है और दूसरा डी का मतलब ड्रग अर्थात दवाइयों से हैं ।
हमारी डायग्नोसिस सही हो यदि हम बाद में पैथालोजिकल टेस्ट,सोनो ग्राफी एक्सरे आदि करवा रहे हों तो वह हमारी डायग्नोसिस से बहुत अलग न हो, यदि हमारी जाँच में और उसमे 36 का अंतर आता हो तो हम सही मायनों में जांच करने में सफल नही हैं । जांच के बाद दवाओं की सही सही मात्रा और अंतराल का ज्ञान होना बहुत जरूरी है वैसे सभी दवाओं में उनकी खुराक की जिम्मेदारी डॉक्टरों के ऊपर रहती है । हर दवा की पर्ची में लिखा होता है as directed by physician अतः उनके दुष्प्रभाव को हम जाने ,क्योकि ये बहुत तेज और सूक्ष्म रसायनों से तैयार की जाती हैं । उनके साइड इफेक्ट की ज्यादा से ज्यादा जानकारी हो ।

इन सभी के अलावा सबसे जरूरी बात है मरीज के मन मे आशा का संचार करना ,उन्हें ढाढस बंधाना बच्चों के मामले में मैं अक्सर उन्हें हँसाने की कोशिश करता हूँ, उनका ध्यान अच्छी चीजों पर लाने की कोशिश करता हूँ जब मन मे उत्साह और आशा का संचार होता है तब बीमारियों पर उनका बहुत गहरा असर पड़ता है और शरीर की आंतरिक शक्तियां बढ़ जाती हैं उनका मुकाबला करने के लिए ।
तुम्हारे पास कोई भी मरीज आये तो उसे समझाना कि वो कुदरत के पास रहने की कोशिश करे पेड़, पौधे,फूल,पत्तियों,भौरें, तितली की गुनगुन से प्यार करे,हरियाली पसंद बने । ये सब चीजें उसे उत्साहित करेंगी, उत्साह से बढ़कर बड़ा चिकित्सक कोई नही ।मैं रोज अपने बगीचे में पेड़ पौधों के बीच पसीना बहाता हूँ उनसे बातचीत करता हूँ एक मौन संवाद मैं मौन रहकर उनकी कानाफूसी सुनने की चेष्टा करता हूँ और यह सबसे बड़ा ध्यान है मेडिटेशन है । तुम भी अपने जीवन मे इन भावों की बचाकर रखना,,,,

मैं आज भी वर्तमान में जीने की कोशिश करता हूँ मुझे इतनी पेंसन मिल जाती है कि मुझे पैसे की जरूरत नही फिर भी मैं हर दिन अपनी क्लिनिक में बैठता हूँ ।

उनकी बातों की सुनकर मैं उनके दिए गए महामंत्र डबल डी को मन मे बसाकर लौट रही थी । डायग्नोसिस एन्ड ड्रग ,,,,बेहतर से बेहतर ,,