Adrashya Humsafar - 20 in Hindi Moral Stories by Vinay Panwar books and stories PDF | अदृश्य हमसफ़र - 20

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अदृश्य हमसफ़र - 20

अदृश्य हमसफ़र..

भाग 20

अनुराग ने एक पल सोचने के लिए लिया और फिर दूसरे पल में गहरी सांस लेकर ममता की तरफ देखा। ममता भावहीन चेहरा लिए बिना पलक झपके अनुराग को ही देख रही थी। अनुराग बस झेंप कर रह गए। अंततः बिना किसी लाग लपेट के सीधी बास्त कहने में ही भलाई दिखी।

अनुराग-"ममता, मैं एक लड़की से प्यार करता था। देविका को पहली रात ही बता दिया था मैंने। झूठ की बुनियाद पर रिश्ता शुरू नही करना चाहता था और न ही देविका को धोखे में रखना चाहता था लेकिन उस लड़की को भूलना मेरे लिए असाध्य था तो साथ ही यह भी कह दिया कि उसे नही भूल सकता। तभी देविका ने यह पेंटिंग बनाई थी। "

ममता-"अच्छा सुनो, तुम किसी से प्रेम में थे और देविका ब्याहता थी तुम्हारी। फिर उसने राधा के साथ रुक्मणी की जगह मीरा को क्यों लिया पेंटिंग में। "

अनुराग थोड़े असहज से दिखने लगे। मुंन्नी को बताऊं या नही । एक पल को सोचा कि अब कहना ही है तो सब कुछ कहूँगा। कुछ नही छिपाऊँगा।

अनुराग-" देख मुंन्नी, देविका से कहा था मैने कि मेरे प्रेम के इतर सभी हक़ तुम्हें मिलेंगे। शायद यही कारण रहा होगा कि उसने खुद को रुक्मणी नही अपितु मीरा की जगह रखा और एक राक्षस को देवता बनाकर पूजती रही। बाकी तो भई मुझे लगता है कि एक कलाकार के मन की दूजा कलाकार ही समझे। "

ममता-" अनुराग, मुझे विस्तार से सभी बातें बताइये न। मुझे सब बातें जाननी हैं अगर आपको बुरा न लगे तो। " ममता अनुराग के हाथ को हल्के से सहला कर बोली। "तुम्हें किसी ज्यादा पढ़ी लिखी और बड़े घराने की लड़की का रिश्ता आसानी से मिल सकता था फिर बाबा ने देविका को क्यों चुना?"

अनुराग-" बाबा मेरे जिद्दी स्वभाव से वाकिफ थे और बखूबी जानते थे कि कोई असीम सहनशक्ति वाली लड़की ही मुझे निभा सकती है। फिर अनुराग ने ममता का नाम छिपाकर लगभग काफी बातें कह डाली। " अंत में देविका के स्वभाव की तारीफें करते हुए कहने लगे, -" धरा के समान धीरज है देविका में, दो साल तक हमारे बीच न कोई सवांद थे और न ही सम्बन्ध लेकिन देविका ने किसी से कभी कोई जिक्र नही किया। यह तो हमारे घर का माहौल बहुत सुलझा हुआ था जो सभी प्यार से कहते थे नही तो पड़ोसिनों ने तो इसे बांझ तक कहना शुरू कर दिया था। मुझे खुद पर बहुत ग्लानि महसूस हुई कि देविका पर कितना बड़ा अत्याचार किया है मैंने। तब जाकर हमारी गृहस्थी की गाड़ी आगे बढ़ी। इतना सब होने पर भी मैंने कभी देविका के चेहरे पर शिकन तक नही देखी। "

ममता-" अनुराग, यह तो मानने वाली बात है कि देविका का कोई मुकाबला नही कर सकता। दो साल तक तुमसे कोई संवाद न सम्बन्ध लेकिन पल पल का साथ। उफ्फ्फ...तभी उसने राधा के साथ रुक्मणी की अपेक्षा मीरा को चित्रित किया। लेकिन एक बात समझ नही आई कि उसने क्यों सहन किया यह सब?"

अनुराग-" सही सवाल तुम्हारा, देविका समझदार है सुलझी हुई है साथ ही गृहकार्य में दक्ष होने के साथ साथ सधी हुई चित्रकार भी है मगर देविका मायके से गरीब परिवार से है। देविका के बाबा हमारे ही खेतों में मजदूरी का काम करते थे। देविका के गुणों की तारीफ बाबा अक्सर उनसे सुनते थे। बस जाकर मुझ से नालायक बेटे के लिए मांग लिया उसका हाथ। फिर देविका को ब्याह के बाद मैने बताया कि मैं कैसे इस घर का बड़ा बेटा बना। सख्ती से ताकीद की थी कि किसी सदस्य को कोई शिकायत न होने पाए तुमसे। शायदऔर कोई रास्ता भी तो नही था न देविका के पास। दो साल किस तरह पल पल जलकर गुजारे होंगे इसने मुझे अंदर तक जला देती हैं यही बातें। ये जो पेंटिंग इतने सालों से इसी दीवार पर है न, यही मुझे मेरे देविका के प्रति किये अन्याय को लगातार याद दिलाती है। देविका ने कितनी बार कहा कि कोई दूसरी पेंटिंग बनाकर टाँग देती हूं लेकिन मैं नही माना। मेरी भरपूर कोशिश यही रही कि जिस बेवकूफी में दो साल इसे संताप दिया आगे कभी नही। मेरे किये की सजा देविका क्यों झेले। "

ममता-" बात तो तुम्हारी सही है। एक बात बताओ, तुमने बाबा को बताया क्यों नही उस लड़की के बारे में?"

ममता ने फिर से बात कुरेदी।

अनुराग-" हिम्मत ही नही हुई। "

ममता-" लेकिन तीन जिंदगी बर्बाद करने की हिम्मत कर बैठे। "

अनुराग-" उस लड़की को नही पता था कि मैं चाहता हूं उसे। इकतरफा प्रेम था मेरा। "

ममता-" नाम बताओ। "

अनुराग को सांप सूंघ गया। ममता से हाथ छुड़ाया और लम्बी सांस लेकर करवट बदल ली।

ममता भी कम न थी, अपनी कुर्सी उठाई और दूसरी तरफ अनुराग के सामने जाकर बैठ गयी।

"कब तक मुंह छुपाओगे मुझसे? अबके जो मेरे हत्थे चढ़े हो सारी बातें जाने बिना न छोड़ने वाली। "

ममता ने हँसकर कहा।

अनुराग-" तुम जाओ अभी, मुझे नींद आ रही है। शाम को बात करेंगे। "

ममता-" न, मैं न जाने वाली। "

अनुराग-" जिद्दी लड़की"

ममता-" तुमसे तो कम ही"

अनुराग समझ गए थे कि आज आसानी से पीछा नही छूटने वाला। उन्होंने विषय बदलने का प्रयास करते हुए ममता से कहा, -" ए मुंन्नी सुन; तुझे याद है 10 साल पहले मनोहर जी बड़ोदा गए थे किसी काम के सिलसिले में?"

ममता-" हाँ, बहुत अच्छे से याद है। कितने भयानक दिन थे वह। " ममता उन दिनों को याद करके सिहर उठी थी।

अनुराग-" ह्म्म्म समझ सकता हूँ अच्छे से। बड़ोदा पहुंचते ही मनोहर जी को हार्ट अटैक आ गया था। "

ममता जैसे सोते से जागी-" तुम्हें कैसे पता अनुराग?"

अनुराग हंस दिए।

"पगली, भले ही तुम्हारी नजरों से दूर हो गया था लेकिन पल पल की खबर रखता था मैं। "

ममता-" लेकिन ये बड़ौदा वाली घटना, और बहुत अजीब बात हुई थी वहां मेरे साथ। "

अनुराग-" जानता हूँ मुंन्नी। वह मुनीर भाई याद हैं तुम्हें?"

ममता-" जीते जी कभी नही भूल सकती उनको। किसी फरिश्ते से कम नही वह मेरे लिए। कितने बुरे वक्त और परदेस में मेरे काम आए थे वह, कभी नही भूल सकती। हमेशा मेरी प्रार्थनाओं में उनके लिए जगह रहती है।

पता है अनुराग जब इनको दिल का दौरा पड़ा तो इनके आस पास कोई नही था। उस भले मानुष ने इनको अस्पताल पहुंचाया। मुझे फोन करके इत्तला दी। इतना ही नही जब मैं बड़ोदा पहुंच कर अस्पताल पहुँची तब तक इनके पास से एक पल को दूर नही गए। तीन दिन और तीन रात मुनीर भाई वहीं इनके कमरे के बाहर एक बेंच पर बैठे रहे। डॉक्टर जो भी दवाई लाने को कहते पर्चा मेरे हाथ से छीनकर खुद लेकर आते थे। मुंह से एक शब्द नही निकालते थे। बार बार पूछा मैंने कि आप कौन तो बोले मनोहर जी से बेहद करीबी व्यवसायिक ताल्लुकात हैं हैरान हूं कि आप मुझे नही पहचानती। मैं खामोश रह जाती थी और कहती भी क्या? मैने तो कभी किसी मुनीर भाई का नाम इनकी जुबां से नही सुना था। "

लगातार बोलते बोलते ममता बैचैन हो उठी। फिर से वही बातें याद आने लगी कि कितने कठिन दौर से गुजरी थी। तभी उसके दिमाग में बिजली सी कौंधी और तुरन्त ही अनुराग से पूछने लगी-" लेकिन तुम मुनीर भाई को कैसे जानते हो अनुराग?"

अनुराग-" क्योकिं उन्हें मैंने ही भेजा था। अब यह मत पूछना कि कैसे भेजा। "

ममता-" क्यों न पूछूँ, बताना तो पड़ेगा ही। "

अनुराग-" याद करो मुंन्नी कि मेरे दोस्त दीपक की बहन मीनू अक्सर तुम्हें फोन किया करती थी। "

ममता-" हाँ, अब भी कभी कभार करती है। "

अनुराग-" जब मनोहर जी बड़ोदा गए उस दिन भी उसका फोन आया था। "

ममता-" हम्म, आया था। "

अनुराग-" तुमने बताया था कि जल्दी में हो मनोहर जी के समान की पैकिंग में व्यस्त हो और अगले दिन बात करने को कहा। "

ममता-" हाँ कहा तो था। "

अनुराग-" मीनू ने अगले दिन फिर फोन किया और तुम हड़बड़ी में थी बड़ौदा जाने की। तुमने उसे बताया कि मनोहर जी को दिल का दौरा पड़ा है। "

ममता-" हाँ, मुझे याद है। अनुराग अब पहेलियां न बुझाओ। मेरी सांसें रुक जाएंगी।

अनुराग ने हाथ के इशारे से उसे तसल्ली दी और कहना आरम्भ किया।

अनुराग-" पहले दिन जब मनोहर जी के बड़ौदा जाने की बात मुझे पता चली तभी मैंने मुनीर को फोन करके उनका ख्याल रखने को कह दिया था। ये उन दिनों की बात है जब गोधरा कांड के कारण गुजरात में भारी तनाव था। न जाने क्यों मुझे भी कुछ अनहोनी की आशंका हुई और देखो मेरी आशंका सच साबित हुई। मुनीर का छोटा भाई हमारे ही डिपार्टमेंट में नौकरी करता है। गुजरात में जब आगजनी वगैरा आरम्भ हुई थी तो उसे फोन पर मुनीर से बात करते अक्सर देखता था। उस वक़्त किसी पर आंख बंद करके भरोसा नही कर सकता था। एयरपोर्ट से ही मुनीर को मनोहर जी के पीछे लगा दिया था। ताकीद थी कि उनका बाल भी बांका न होने पाए। "

ममता की आंखे विस्मय से बड़ी होती जा रही थी कि किस तरह और कैसे कैसे अनुराग उसके साथ न होते हुए भी अदृश्य हमसफ़र की तरह साथ थे। पलक तक झपकना भूल गयी थी।

ममता की जब हाँ, हूँ, ह्म्म्म की आवाज नही आई तो अनुराग ने नजरें उठाकर देखा तो फिर से अपलक खुद को देखते हुए पाया।

ममता का मुंह खुला था ।

अनुराग ने फटाक से उसकी ठुड्डी पर हाथ मारकर मुंह बंद किया और बोले-" शुक्र मना, मच्छर मख्खी नही हैं हमारे घर में नही तो अभी तक न जाने कितने तुम्हारे मुंह में घुसे बैठे होते। "

अनुराग की बातों में हास्य का पुट था।

ममता थोड़ा वर्तमान में लौटी और अनुराग से नजरें बचने की जद में इधर उधर नजरें घूमाने लगी।

कुछ पल को कमरे में खामोशी छा गयी। इस बार ममता नजरें चुरा रही थी और अब अनुराग अपलक उसे निहार रहे थे।

क्रमशः

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