Chickens third leg in Hindi Motivational Stories by r k lal books and stories PDF | मुर्गे की तीसरी टांग

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मुर्गे की तीसरी टांग

“मुर्गे की तीसरी टांग”

आर 0 के 0 लाल

शहर में कल्लन भाई की दुकान की बड़ी चर्चा है जहां पर चिकन निहारी, लाहौरी मुर्ग छोले, चिकन कीमा, पंजाबी चिकन और चिकन बुखारा खरीदने के लिए लोगों की लंबी लाइन लगी रहती है। उसके मुगलई चिकन टिक्का का तो कोई जवाब ही नहीं। पहले वे मुंबई के किसी पांच सितारा होटल में चीफ सेफ थे। अनेकों रेसिपी बनाने का लम्बा अनुभव और हांथो में गजब का जादू था। कई ने उनकी तरह का चिकन बनाने की बड़ी कोशिश की मगर सभी नाकामयाब रहे। उनमें से कई ने कहा " भाई जान! हम लोगों को भी अपना हुनर सिखा दो ताकि हमारी भी रोजी रोटी चलती रहे। जो भी फीस कहेंगे, हम लोग देने को तैयार हैं।"

कल्लन मियां ने सोचा यह अच्छा मौका है। इसी बहाने शहर में कुछ अपने शागिर्द बना लेंगे और कुछ पैसे भी कमा लेंगे। कल्लन भाई ने उन लोगों से कहा- " देखो मियां मैं ऐरू गैरू नत्थू खैरू को तो कोई हूंनर नहीं सीखा सकता, जिनको कुछ आता ही न हो। वह मेरा नाम भी बदनाम करेंगे। इसलिए मैं एक टेस्ट लूंगा और जो उसमें पास होंगे उनको अपने मदरसे के किचन में रखकर ट्रेनिंग दूंगा।"

फिर तो कल्लन के यहां भीड़ लग गई। सभी लोग अपना नाम लिखाने लगे। बीस पच्चीस लोग बकायदा एप्लीकेशन लेकर पहुंच गए। इतना अच्छा रिस्पॉन्स देख कर कल्लन ने हर आवेदन पर पचास रुपए का शुल्क लगा दिया और प्रवेश के लिए एक प्रतियोगिता आयोजित करने की घोषणा कर दी। इसके लिए एक महीने बाद की एक तारीख मुकर्रर कर दी। थिवरी एवम् प्रैक्टिकल दोनों होगा यह भी बता दिया।

यह एक कंपटीशन था इसलिए सभी प्रतिभागी तैयारी में जुट गए थे। तीस दिन तक सभी ने गूगल के सारे रिजल्ट्स छान मारे पता नहीं क्या पूछ लिया जाए।

मुहल्ले के तमाम लोगों ने पूछा कि कल्लन भाई ये क्या तमाशा कर रहे हो? उन्होंने समझाया कि कैसा तमाशा, प्रतियोगिता ही तो करा रहा हूं। कोई भी आयोजित होने वाला मौका जिस में शामिल होने वाले प्रतिभागियों में से किसी को चुना जाता है तो वह प्रतियोगिता बन जाती है। मुझे भी कुछ ही को चुनना है। लोग कहते हैं कि कंपटीशन सफलता का पहला द्वार है, इससे बुद्धि का विकास होता है। इसमें शामिल होने से ही अपने अंदर खुद की काबिलियत जानने का मौका मिलता है और आत्मविश्वास बढ़ता है। दूसरी तरफ इससे अच्छे हुनरमंद लोग काम के लिए मिल जाते हैं।

आगे कल्लन मियां ने मिशाल दिया कि मान लीजिए आपको इंजीनियर या डॉक्टर बनना है तो पहले उसके बारे में परीक्षा देते हैं कि नहीं। यदि आप उसके लिए आयोजित प्रवेश परीक्षा द्वारा विषय के संबंधित प्रश्नों के सही उत्तर बता पाते हैं तभी आप मेरिट में आएंगे और तभी आपको पढ़ने को मिलेगा।" यह सुनकर सभी निरुत्तर हो गए।

प्रतियोगिता की परीक्षा में कल्लन मियां ने केवल दो ही प्रश्न दिए। पहला - मुर्गे की टांग खाने से क्या फायदा होता है? और दूसरा - मुर्गे की तीसरी टांग पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो। प्रैक्टिकल में उन्होंने डिश बनाने के अलावा एक कार्य यह भी दिया। एक मेज के पीछे एक जिंदा मुर्गा छोड़ कर कहा जो मेज फांद कर मुर्गा नहीं पकड़ पाएगा उसे अलग कर दिया जाएगा।

फिर मुहल्ले वालों ने फिर हल्ला मचाया तो उन्होंने कहा कि मेरे सारे प्रश्न मुर्गे से ही संबंधित थे इसलिए आउट आफ कोर्स नहीं था। फिर इस धंधे में तो मुर्गा पकड़ना भी पड़ेगा और ग्राहकों की मांग को देखते हुए तीसरी टांग फैब्रिकेट भी करनी पड़ेगी। फिर लोग चुप ही हो गए।

कल्लन ने केवल एक अभ्यर्थी को चुना और सभी को कहा आप लोगों को अभी और तैयारी करने की जरूरत है। आप सभी को हतोत्साहित होने की भी जरूरत नहीं है। हमने प्रतियोगिता इसलिए कराया जिससे आप अपनी कमियों को जान सकें। अगर इसे एक चुनौती के रूप में लेंगे तो आप अपने अंदर के साहस का अनुभव करेंगे । अगले महीने फिर प्रतियोगिता आयोजित होगी उसमें फिर अपनी किस्मत आजमाए। सभी लोग निराश होकर लौट गए।

नसीम और चमन भी उन्हीं लोगों में से थे। उन्होंने बहुत उम्मीद की थी कि कल्लन उस्ताद के साथ कुछ सीख कर अपना धंधा जमा लेंगे। नसीम ने कहा मुझे तो लगता है यह हम लोग को उल्लू बना रहा है। अपना तो पैसा कमा लिया। नौकरी ढूंढने जाओ तब भी यही सब करना पड़ता है। अब इनके चक्कर में नहीं पड़ेंगे। मैं तो दोबारा कोई अर्जी नहीं दूंगा। इनके मुर्गे की टांग की कीमत बहुत ज्यादा है।

बहुत से ऐसे काम है जहां बहुत कम प्रतियोगिता है हम उन काम को क्यों नहीं कर सकते। तमाम सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं आजकल प्रतियोगिताएं कराती हैं जिसमें लोगों की ऊर्जा, धन और समय बेकार जाता है। बड़ी संख्या में लोग असफल होते हैं और फिर तैयारी करते हैं फिर भी सफल नहीं होते और मानासिक रूप से टूट जाते हैं।

चमन ने भी उसका समर्थन किया और कहा वैसे तो प्रतियोगिता हमारे जीवन में अपरिहार्य है। प्रत्येक व्यक्ति किसी एक अथवा समूह के बीच प्रतिस्पर्धा के संघर्ष के अनगिनत तरीकों में शामिल रहता है। कभी हम अपने प्रतिस्पर्धी के बारे में जानते हैं तो कभी नहीं जानते हैं। उदाहरण के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा के लिए आप नहीं जानते कि अन्य प्रतिस्पर्धी अपने प्रतियोगिता के लिए किस तरीके से तैयारी कर रहे हैं इसलिए वहां मुश्किल होती है कि लक्ष्य कैसे प्राप्त करें। यह बात सही है कि केवल सीमित व्यक्ति सफलता प्राप्त कर सकते हैं मगर विफलता सफलता की तुलना में अधिक होती है इसलिए उसके दुष्परिणाम भी अधिक होते हैं। लोगों को जब कोई उपलब्ध मिलती है तो वह खुशी देती है लेकिन अगर वह हार जाता है तो हारने की प्रक्रिया नकारात्मक प्रभाव विकसित कर सकती है इसलिए प्रत्येक असफल घटना के बाद हताशा, शारीरिक और मानसिक तनाव प्रतियोगियों में अविश्वास और आत्म विनास्कारी आदतें विकसित होती हैं।

चमन ने भी कहा - "अगर हम इस प्रकार की भीड़ से बच सके तो राहत महसूस कर सकते हैं। हम कुछ अलग कर सकते हैं। लेकिन दूसरों से अलग ढंग से कार्य करने के लिए साहस में कमी और अस्वीकृत का डर हमें वैकल्पिक तकनीकों के बारे में सोचने पर संकोच पैदा करता है। आज भी कई अवसर लगभग शून्य प्रतियोगिता के साथ उपलब्ध है। हमें ऐसा रास्ता चुनना है जहां न्यूनतम प्रतियोगिता हो क्योंकि एक बार विश्वास टूटता है तो उसके कुप्रभाव से बचना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। केवल लोगों की देखा देखी अनावश्यक रूप से प्रत्येक लाइन में शामिल होना गलत है। सबसे पहले आवश्यकता और अपनी ताकत को समझ कर अच्छी तरह से तैयारी का परीक्षण कर लेना चाहिए। अनायास शेर से लड़ने का क्या मतलब?

चमन ने फिर कहा आज अपने शहर के तमाम बच्चे इंजीनियरिंग में एडमिशन पाने के लिए कोचिंग करने के लिए कोटा या दिल्ली चले जाते हैं। कोचिंग ज्वाइन करने मात्र से ही सभी सफल नहीं हो जाते। हजारों बच्चे असफल होकर घर लौटते हैं। वह ना घर के होते ना घाट के। उनका पैसा अलग से डूब जाता है और समय भी बर्बाद हो जाता है। अगर किस्मत अच्छी हुई तो परीक्षा पास कर लेते हैं। उसके बाद भी उनको भयंकर प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है। कालेज में जाते ही उन्हें पता चलता है कि वहां पर पहले से ही बहुत बेहतर लड़के सैकड़ों की संख्या में उपलब्ध है। वह इतना प्रतियोगिता के लिए तैयार नहीं होते। नतीजा यह होता है कि कुछ बच्चे मानसिक रूप से बीमार हो जाते हैं और सुसाइड तक कर लेते हैं। वैसे भी लंबी प्रतियोगिता की लाइन में बहुत पीछे खड़े होने का कोई मतलब नहीं होता। अनेक ऐसे उदाहरण है जहां लोग बिना किसी कंपटीशन के आगे बढ़ते गए हैं और अंत में उनके बराबर हो गए हैं जो दौड़ प्रतियोगिता के माध्यम से उस मुकाम घर पहुंचे हैं। कोई जरूरी नहीं है कि हम इतना बड़ा चिकन स्टोर खोलें अगर मोहल्ले में शाम को बनी हुई सब्जी और रोटी सप्लाई करें तो भी बहुत आमदनी हो सकती है।"

नसीम ने कहा - "चलो हम लोग भी मुर्गे की तीसरी टांग ढूंढते हैं। यह उसी जगह मिलेगी जहां मुर्गा कुकड़ू कु बोल रहा होगा । माने जहां किसी और का व्यापार फल फूल रहा हो, वहीं हमें अवसर मिल सकता है।“

चमन ने कहा भाई यह बात तो कुछ समझ में आती है। मैं तुम्हें एक सलाह देता हूं अगर तुम साथ दो तो हम भी अपना मुर्गा बुलवा सकते हैं। बगल में एक बहुत बड़ा अस्पताल है, रोजाना सैकड़ों लोग इलाज कराने के लिए आते हैं उनके बच्चे भी उनके साथ आते हैं जो उन्हें परेशान करते रहते हैं। साथ ही उन्हें अस्पताल में ले जाने पर इंफेक्शन होने का डर रहता है। अगर हम वहीं पर एक खिलौने की दुकान खोलें और बच्चों के खेलने की जगह बना दें तो हमें काफी फायदा हो सकता है। इसमें बहुत ज्यादा पैसे की भी जरूरत नहीं है और फिर अपनी खिलौने की दुकान सराफा बाजार में है ही। वहीं से खिलौने और गुब्बारे ले आऊंगा।"

यह सुनकर नसीम ने तो चमन को चूम ही लिया और बोला हम लोग कल से यह काम शुरू करेंगे। नसीम ने आगे की भी योजना बताई कि कुछ दिन में काम करके पैसे इकट्ठा करेंगे फिर एक मोबाइल की दुकान खोलेंगे। उसी मोबाइल की दुकान में मोबाइल के इस्तेमाल करने की आदत को छुड़ाने की एक कंसल्टेंसी भी शुरू करेंगे। आजकल सभी गार्जियन अपने बच्चों से मोबाइल को दूर करने के लिए परेशान है यह भी एक बहुत अच्छा बिजनेस बिना कंपटीशन वाला हो सकता है। आज युवकों को इस तरह के कई सुझाव की आवश्यकता है।